Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

कोसी क्षेत्र : मौसम की अनिश्चितताओं से निपटने के लिए मखाना की खेती कर रहे किसान

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
Published On :

“पहले मैं 4 बीघा खेत में धान और गेहूं की खेती करता था। इनमें लगभग 2 बीघा खेत की जमीन गहरी थी। जब बारिश ज्यादा होती थी, तो फसल बर्बाद हो जाती थी। इसलिए पिछले साल के फरवरी में मैंने मखाना की खेती शुरू की। पिछले साल मुझे लगभग 60-70 हजार रुपए का लाभ मिला। धान और गेहूं के दोनों फसल मिलाकर भी मुझे शायद ही इतना लाभ मिल पाता। इस साल बारिश कम होने की वजह से शुरुआत में पंपिंग सेट से पानी देना पड़ा, इसलिए लागत ज्यादा लग गया। अभी तक अनुदान नहीं मिला है”

मखाना की खेती के चुनाव और मखाना से फायदे के बारे में बात करते हुए उक्त बातें सुपौल जिले के बीना बभनगामा गांव के अमोद कुमार झा ने कहीं।

Also Read Story

कटिहार में गेहूं की फसल में लगी भीषण आग, कई गांवों के खेत जलकर राख

किशनगंज: तेज़ आंधी व बारिश से दर्जनों मक्का किसानों की फसल बर्बाद

नीतीश कुमार ने 1,028 अभ्यर्थियों को सौंपे नियुक्ति पत्र, कई योजनाओं की दी सौगात

किशनगंज के दिघलबैंक में हाथियों ने मचाया उत्पात, कच्चा मकान व फसलें क्षतिग्रस्त

“किसान बर्बाद हो रहा है, सरकार पर विश्वास कैसे करे”- सरकारी बीज लगाकर नुकसान उठाने वाले मक्का किसान निराश

धूप नहीं खिलने से एनिडर्स मशीन खराब, हाथियों का उत्पात शुरू

“यही हमारी जीविका है” – बिहार के इन गांवों में 90% किसान उगाते हैं तंबाकू

सीमांचल के जिलों में दिसंबर में बारिश, फसलों के नुकसान से किसान परेशान

चक्रवात मिचौंग : बंगाल की मुख्यमंत्री ने बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए मुआवजे की घोषणा की

bina babhangama village makhana field in supaul district

पिछले महीने यानी अगस्त 2022 में केंद्र सरकार ने मिथिला के मखाना को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग दे दिया है। यह एक प्रकार का लेबल होता है जिसमें किसी प्रोडक्ट को विशेष भौगोलिक पहचान दी जाती है। काफी अरसे से किसानों की मांग थी कि मखाना को जीआई टैग मिले।


पग-पग पर मखाना की खेती

बीना बभनगामा के अरुण कुमार झा कृषि विभाग में 35 साल काम कर चुके हैं। वह बताते हैं, “दरभंगा और मधुबनी की तरह सुपौल और सहरसा में मखाना की खेती का प्रचार प्रसार नहीं था। मखाना की खेती में लागत अच्छा लगती है।

सुपौल और सहरसा पैसे की दृष्टि से पिछड़ा रहा है, इसलिए यहां के किसान मखाना की खेती कम करते थे। हम लोगों को भी पहले मखाना की खेती देखने के लिए सुंदरपुर जाना होता था, जो यहां से 4 किलोमीटर दूर है। अभी बीना बभनगामा गांव में ही लगभग 10 से 15 बीघा में मखाना की खेती हो रही है।”

“एक तो इसकी वजह है समृद्धि। पहले की तुलना में यहां की आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार हुआ है। दूसरी वजह है बारिश। शायद ही कोई साल होता है जब गहरी जमीन पर धान या मूंग की खेती हो पाती है। साथ ही एक वजह और है-सरकारी अनुदान। लेकिन, यह योजना कम ही लोगों तक सीमित है। अगर वाकई में यह योजना धरातल पर आ जाए तो किसानों की संख्या में 2-3 गुना वृद्धि हो जाएगी” आगे अरुण कुमार झा बताते हैं।

बिहार में मत्स्य योजना के लिए प्रसिद्ध गांव सखुआ सुपौल जिले में स्थित है। यहां मत्स्य योजना की खूबसूरती देखने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आ चुके हैं। सखुआ गांव के शंकर महतो बताते हैं, “मखाना अमीर किसानों की खेती हुआ करती थी। बताइए, एक हेक्टेयर मखाने की खेती करने में कम से कम एक से डेढ़ लाख रुपये खर्च होते हैं। इतना रुपया गरीब किसान कहां से लाएगा।” वह कहते हैं, “पिछले साल से हम 18 कट्ठे खेत में मखाना की खेती कर रहे हैं। अनुदान के लिए गांव के ही किसान सलाहकार को फॉर्म भर कर दे दिए हैं।”

कोसी इलाके में छोटे किसान तालाब के बजाय खेत को खोदकर मखाना की खेती कर रहे हैं।

shankar mahto from sakhua village

नहीं मिल रही सरकारी मदद

सहरसा जिले की महिषी पंचायत में लगभग 10 बीघा नीचले खेत को मखाना के खेत में तब्दील कर दिया गया है। लगभग 7 किसान की जमीन इसमें है। यह पूरा खेत बटाईदार खेती के तहत बभनगामा गांव के सुंदरपुर के रहने वाले राजेंद्र शाह को दिया गया है। राजेंद्र साह जमीन के मालिक को सालाना 500 रुपये प्रति कट्ठा देंगे।

जमीन के मालिक आदित्य मोहन झा बताते हैं,” हम लोग पटना में रहते हैं। इससे पहले गांव के ही अशर्फी यादव को धान- गेहूं के खेती के लिए दिया था। लगभग 20 साल में इस जमीन से ना के बराबर रुपया मिला है। बेचारे को खुद नहीं हो पाता था, तो वह हम लोगों को क्या देता। गांव के खेत में कोसी का भी पानी आ जाता है। पहली बार इस जमीन से भी रुपया आ रहा है, यह जानकर खुश हूं।”

वहीं, जमीन बटाई पर लेने वाले राजेंद्र शाह बताते हैं, “मखाना की खेती में पूंजी के अनुपात में अधिक लाभ मिल जाता है, लेेकिन अनुदान के लिए सरकारी दफ्तर जाते जाते जूते घिस चुके हैं। मखाना खेती में सरकार की ओर से जो सहायता मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पा रही है।”

ज्यादातर उपज मखाना का बाजार न गिरा दे

पटना के पुनाई चौक स्थित पोस्ट ऑफिस गली में गुड्डू यादव मखाना बेचते हैं। वह बताते हैं, “पर्व त्यौहार छोड़कर बाकी दिनों में मखाना की ज्यादा बिक्री नहीं होती है। अभी पहले की तुलना में कीमत में कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है। लेकिन, कीमत कम जरूर हुआ है। इस बार सात-आठ नए लोगों यानी कंपनी का फोन आया था मखाना लेने के लिए।”

बीना बभनगामा गांव के सुंदरपुर टोला के संजीत मंडल लोगों से जमीन लेकर मखाना की खेती करते है। वह बताते हैं, “पहले मखाना बेचने के लिए अपने क्षेत्र के अलावा भागलपुर तक जाना पड़ता था। इस बार नेपाल भी बेचना पड़ा।

हालांकि कीमत उतनी ही मिली। लेकिन जिस तरह से मखाना की खेती बढ़ रही है, डर है कि अगर ग्राहक नहीं मिलेगा, तो ज्यादा उपज मखाना का बाजार न गिरा देगी।”

संजीत मंडल तालाब पद्धति से मखाना व मछली पालन एक साथ कर रहे हैं।

विशेषज्ञों की राय

पूसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक शंकर झा बताते हैं, “पहले बिहार में मखाना की खेती मुख्य रूप से दरभंगा व मधुबनी में ही होती थी। लेकिन अब इसकी खेती सुपौल, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज आदि जिलों में होने लगी है। एक तो कोसी की वजह से 10 से 15 फीट पर पानी मिल जाता है। साथ ही इन जिलों की मिट्टी में जिंक की मात्रा अधिक है, जो मखाना की खेती के लिए उपयुक्त है।”

मखाना विशेषज्ञ प्रो डॉक्टर अनिल कुमार बताते हैं, “दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी में तालाब में मखाना की होती है जबकि कोसी और सीमांचल क्षेत्र में निचले खेत और वेटलैंड में हो रही है। अच्छे उत्पादन के लिए किसानों को पारंपरिक खेती की जगह तकनीक को अपनाना होगा।

क्या कहते हैं अधिकारी

सहरसा उद्यान विभाग में कार्यरत संजीव कुमार झा बताते हैं, “प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना के जरिए एक जिला एक उत्पाद के तहत सहरसा को मखाना के लिए चयनित किया गया है। इसी तरह सरकार की और भी कई योजनाएं हैं, जो मखाना खेती को प्रोत्साहित कर रही है। कृषि विभाग इस खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के साथ प्रशिक्षण देने की भी व्यवस्था करती है। अनुदान को लेकर मुख्य दिक्कत तब पैदा होती हैं जब पोखर या खेत विवादित हो।”

सुपौल कृषि विभाग में कार्यरत एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, “अनुदान मुख्य रूप से सभी किसानों के लिए होता है। लेकिन, मिलता नहीं है सबको। ऊपर से ही आंकड़े तय होते हैं कि किस जिले में कितने किसानों को बांटना है। उसी हिसाब से अधिकारी अपने लोगों को दे देते हैं।”


बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहे कटिहार के कुरसेला, बरारी, मनिहारी, अमदाबाद

सुपौल: पानी में प्रदूषण से गांवों में फैल रहा आरओ वाटर का कारोबार, गरीबों का बढ़ा खर्च


सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

Related News

बारिश में कमी देखते हुए धान की जगह मूंगफली उगा रहे पूर्णिया के किसान

ऑनलाइन अप्लाई कर ऐसे बन सकते हैं पैक्स सदस्य

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

पश्चिम बंगाल: ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सफलता की कहानी लिखते चौघरिया गांव के पवित्र राय

सहरसा: युवक ने आपदा को बनाया अवसर, बत्तख पाल कर रहे लाखों की कमाई

बारिश नहीं होने से सूख रहा धान, कर्ज ले सिंचाई कर रहे किसान

कम बारिश से किसान परेशान, नहीं मिल रहा डीजल अनुदान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?