बिहार के किशनगंज जिलांतर्गत ठाकुरगंज प्रखंड के कई गांवों में तंबाकू की खेती होती है। महानंदा और मेची नदी से घिरे इस इलाके में नकदी फसल के तौर पर तंबाकू को एक मुनाफ़ाबख्श विकल्प के तौर पर देखा जाता रहा है। लेकिन हाल के सालों में फसल की बर्बादी से किसानों को भारी नुक्सान भी उठाना पड़ा है। किसानों को इस हानि के लिए कोई सरकारी मुआवजा नहीं मिला।
बरचौंदी पंचायत निवासी मुबश्शिर रज़ा ने बताया कि किशनगंज के ठाकुरगंज और पोठिया प्रखंड की कई पंचायतों में परंपरागत तौर पर तंबाकू की खेती की जा रही है। खासकर ठाकुरगंज के बरचौंदी, खारुदह, और जीरनगच्छ पंचायत में सबसे अधिक तंबाकू उगाए जाते हैं। इन पंचायतों में ऐसे कई गांव हैं जहां के 90% किसान तंबाकू की खेती करते हैं।
आगे उन्होंने बताया कि इन इलाकों में तंबाकू की खेती काफी अधिक होती है, लेकिन तंबाकू उगाने के लिए ज़रूरी खाद और केमिकल नहीं मिल पाता। कई तंबाकू किसान कर्ज़ में डूबे हैं। ओला वृष्टि के कारण कई बार तंबाकू की खेती को नुकसान पहुंचता है। इन सब कठिनाइयों के बावजूद किसान लंबे समय से तंबाकू की खेती कर रहे हैं।
ऐसे होती है खेती
किसानों ने बताया कि तंबाकू का बीज बाज़ार में उपलब्ध नहीं होता। इसे पौधे में मौजूद छोटे से फल से निकाला जाता है और काट कर सुखाया जाता है। फिर बीज तैयार होता है। बीज लगाने के एक महीने बाद तंबाकू की पली निकाल कर उनकी रोपाई की जाती है। कमोबेश तीन महीने के बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
कटाई के बाद तंबाकू की फसलों को 5 से 6 महीनों तक सूखने के लिए रख दिया जाता है। तंबाकू के पत्तों के सूखने के बाद उन्हें काटकर बंडलों में भरकर मंडी तक पहुँचाया जाता है जहां उन्हें 80 से 90 रुपये प्रति किलो के भाव से बेच दिया जाता है। तंबाकू के पत्तों से खैनी और ज़र्दा बनाया जाता है वहीं, इसकी डंडियाँ गुल बनाने के काम आती हैं।
क्या कहते हैं आंकड़ें
सेहत के लिए हानिकारक होने के बावजूद तंबाकू उगाने वाले देशों में भारत का नाम शामिल है। केंद्रीय तंबाकू अनुसंधान संस्थान के आंकड़ों के अनुसार, भारत ब्राज़ील के बाद विश्व में तंबाकू निर्यात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है।
तंबाकू उद्योग 3 करोड़ 60 लाख भारतीयों को रोज़गार देता है जिनमें दो करोड़ 60 लाख केवल किसान और खेत के मज़दूरों की संख्या है, जबकि बाकी 10 लाख लोग तंबाकू के उत्पाद जैसे खैनी, बीड़ी , गुल आदि बनाते हैं। देश में हो रहे सभी कृषि निर्यात का चार प्रतिशत हिस्सा तंबाकू से संबंधित है।
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गोलाबस्ती निवासी मंज़र आलम दो बीघा ज़मीन में तंबाकू की खेती करते हैं। उन्होंने बताया कि तंबाकू की फसल तैयार करने के में हर साल 9 से 10 महीने लगते हैं। सरकार इसके लिए सब्सिडी पर दो दो बोरी यूरिया, डीएपी और पोटास देती है, लेकिन खाद की आवश्यकता इससे कई गुना अधिक होती है। ऐसे में किसानों को महंगे दामों पर खाद खरीदना पड़ता है।
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