अपनी एक रपट से देश की सबसे बड़ी पिछड़ी आबादी का कायापलट करने वाले बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल, जिन्हें बीपी मंडल भी कहा जाता है, के अपने गांव मुरहो में दलितों को आम सुविधाएं मयस्सर नहीं हैं। मधेपुरा जिले में स्थित मुरहो गांव में लगभग 60-80 घर दलितों के हैं, जिनमें अधिकांश मुसहर जाति के लोग हैं। अधिकांश लोगों का घर आज भी टीन और फूस का बना हुआ है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दलित टोले में बसे अधिकांश लोग सरकारी या फिर बड़े किसानों की ज़मीनों पर बसे हुए हैं, जबकि भूमि सुधार की दिशा में पहल करने वाला बिहार पहला राज्य था।
मुसहर टोले में रहने वाला 21 वर्षीय मनीष ऋषिदेव 2024 के लोकसभा चुनाव में पहली बार वोट करेगा। मनीष एकदम धीमी आवाज में कहता हैं, “मेरे मां-पिता ने सबको वोट दिया लेकिन आज तक हमारे लिए किसी ने भी कुछ नहीं किया। आज भी हम लोग झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं। विकास के नाम पर इतना हुआ है कि गांव में कुछ रास्ते को छोड़कर लगभग सड़क बन चुकी है।”
इसी हरिजन टोले के विक्रम ऋषिदेव कस्तूरबा विद्यालय के हॉस्टल में हरिजन कोटे से चपरासी हैं। विक्रम ऋषि देव 4 साल से नौकरी कर रहे हैं, लेकिन समय पर पगार नहीं मिलने से घर चलाने में काफी परेशानी हो रही है। विक्रम बताते हैं, “पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के सांसद दिनेश चंद्र यादव को वोट दिए थे, लेकिन वो आज तक हमारी पंचायत घूमने नहीं आए। अगर इस बार बीपी मंडल के पोते निखिल मंडल को टिकट मिला तो हम लोग उन्हें वोट देंगे।”
मुसहर जाति के बारे में अधिकांश लोग जानते हैं कि यह जाति मूस यानी चूहा खाती है। मनीष ऋषिदेव व विक्रम ऋषिदेव के मुताबिक अब मुरहो गांव के मुसहरों ने चूहा खाना छोड़ दिया है। उनके मुताबिक, गांव में अभी तक सिर्फ 4 दलित लड़कों को सरकारी नौकरी हुई है।
दलित जातियों के साथ भेदभाव वाले सवाल पर सब चुप हो जाते हैं। एक लड़का नाम ना बताने की शर्त पर कहता हैं, “अब पहले की तरह तो जातिवाद नहीं होता है, लेकिन तब भी गांव के कुछ लोग दलित होने का एहसास जरूर दिला देते हैं।” “पहले तो खेतों में कम मजदूरी देकर काम कराया जाता था, लेकिन अब जबरदस्ती कोई किसी के साथ नहीं कर सकता है।”
गांव के दो बड़े नेता लोकसभा टिकट लेने के दौर में हैं
स्थानीय पत्रकार धीरज बताते हैं, “बीपी मंडल के पोते निखिल मंडल और आनंद मंडल के नाम की चर्चा लोकसभा चुनाव के लिए हो रही है। दोनों अभी पटना में ही हैं। जहां निखिल मंडल का जदयू से टिकट मिलना लगभग तय हैं, वहीं आनंद मंडल राजद से टिकट लेना चाह रहे हैं।”
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गांव में भी इस बात की काफी चर्चा है। जहां दो-तीन लोग निखिल मंडल के टिकट की बात कर रहे थे, वहीं 40 वर्षीय बीसो ऋषि देव कहते हैं, “इस गांव में सरकारी योजना की स्थिति तो बद से बेहतर है। नल जल योजना पूरी तरह फेल है। फिर से वापस हमलोग चांपाकल का ही पानी पी रहे हैं। सरकारी दफ्तर में बिना घूस का कोई काम नहीं हो रहा है। राजद इस बार अगर आनंद मंडल को टिकट दिया, तो हम लोग महागठबंधन को वोट देंगे।”
वहीं, भलटू ऋषिदेव बताते हैं, “कोई भी नेता हम लोगों के लिए नहीं किया, चाहे वह लालू यादव हो या नरेंद्र मोदी। सब बड़े नेता मंडल जी के दरवाजे पर जाते हैं, लेकिन हमारी बस्ती में झांकने तक नहीं आते हैं।”
“मुसहर सांसद के घर में कोई झांकने भी नहीं आता”
मुरहो गांव व उसके आसपास के इलाकों में बीपी मंडल के परिवार की अलग ही हस्ती है। बीपी मंडल के पिता रास बिहारी मंडल इलाके के बहुत बड़े जमींदार थे। उनके परिवार की हैसियत की कहानी लगभग गांव के सभी लोगों को जुबानी याद है।
इसी गांव में मुसहर जाति के पहले व्यक्ति किराई मुसहर 1952 में सांसद बने थे। उनका घर गांव के दक्षिणी हिस्से में है। जहां तक अभी भी सड़क नहीं पहुंची है। गांव के अशरफी मुसहर बताते हैं, “राज्य और क्षेत्र के सभी बड़े नेता मंडल जी के दरवाजे पर तो जाते हैं लेकिन किराई मुसहर जी के यहां कोई झांकने भी नहीं आता है। किराई मुसहर ने अपनी काफी जमीन पर दलितों को बसाया था। बीपी मंडल के परिवार से उनका केस चलता था, ऐसे में बाकी बची जमीन को कोर्ट कचहरी के चक्कर में बेचना पड़ा, इसलिए उनके परिवार की ऐसी स्थिति हो गई है।”
गांव में यादव जाति की संख्या ज्यादा है। बीपी मंडल की तरह ही इस गांव में कई यादव मंडल टाइटल लगते है। यहां अधिकांश लोग राजद को पसंद करते हैं। हालांकि, निखिल मंडल के जदयू में होने की वजह से लोग खुलकर नहीं बोलते हैं।
गांव के गजेंद्र यादव बताते हैं, “चाहे यादव समाज हो या दलित समाज, किसी को भी सरकारी लाभ नहीं के बराबर ही मिला है। बड़े नेता सिर्फ मंडल जी की जयंती मनाने आते हैं। पिछले साल दिनेश यादव को वोट दिए, उसके बाद आज तक नहीं दिखे हैं। पप्पू यादव कभी-कभी गांव आते थे।”
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