वर्षों से पक्की सड़क की मांग कर रहे लोग अब स्थानीय जन प्रतिनिधियों से बेहद नाराज़ हैं, जिसके चलते उन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है।
जब हम कार्यस्थल पर पहुंचे तो संवेदक या साइट इंजीनियर में से कोई वहां मौजूद नहीं था। मौके पर मिले मुंशी और साइट इंचार्ज ने बताया कि स्थानीय मुखिया ने लोकल बालू गिराया था जिसका ग्रामीणों ने विरोध किया तो काम रोक दिया गया।
कटिहार जिले के बारसोई प्रखंड अंतर्गत सुधानी पंचायत में पुरानी महानंदा नदी पर स्थित कोल्हा घाट पर पुल न होने से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
वीडियो में हाथों में बांस लिए कुछ लोग देखे जा सकते हैं। पनासी ईदगाह बिहार-बंगाल के बॉर्डर पर स्थित है जहां दोनों राज्यों के लोग हर वर्ष बड़ी संख्या में ईद की नमाज़ अदा करने आते हैं।
बिहार के किशनगंज ज़िलांतर्गत पोठिया प्रखंड की परलाबाड़ी पंचायत स्थित डूमरमनी और छगलिया को स्कूल से जोड़ने वाली सड़क कच्ची गड्ढों से भरी है।
बिहार के कटिहार ज़िले में शिक्षा सेवकों और तालीमी मरकज़ केंद्रों को लेकर कई अनियमितताएं सामने आई हैं। एक आरटीआई के माध्यम से बलरामपुर प्रखंड में संचालित इन केंद्रों की जानकारी मांगी गई थी।
किशनगंज प्रखंड की मोतिहारा तालुका पंचायत में छगलिया और रामजीबाड़ी गांवों के बीच स्थित यह टूटा पुल हजारों लोगों के लिए लंबे समय से मुसीबत बना हुआ है।
बिहार के पूर्णिया ज़िले के बायसी प्रखंड में शादीपुर भुतहा पंचायत की शर्मा टोली में सड़क की मांग को नेशनल मीडिया ने हिंदू-मुस्लिम विवाद का रूप दे दिया। 'मैं मीडिया' के ज़मीनी पड़ताल से पता चला कि यह मामला धार्मिक टकराव का नहीं, बल्कि प्रशासन और ज़मीन मालिकों से जुड़ा था।
कटिहार जिले में ज़ैतून निशां जैसी बुज़ुर्ग विधवा महिलाओं को सरकारी दस्तावेजों में मृत दिखाकर उनकी पेंशन रोक दी गई है, जबकि वे जिंदा हैं और बीते लोकसभा चुनाव में वोट तक डाल चुकी हैं।
बिहार में दहेज प्रथा आज भी महिलाओं के लिए एक भयावह सच्चाई बनी हुई है। गरीब पिता चांदनी की शादी के लिए कर्ज लेकर दहेज देता है, फिर बेटी की लाश रेलवे ट्रैक पर मिलती है। किरण कुमारी ने ग्रेजुएशन और नौकरी की तैयारी की, लेकिन दहेज के लिए उसे मार दिया गया। प्रेम विवाह करने वाली पिंकी बेगम को भी ससुरालवालों ने दहेज के लिए प्रताड़ित किया।
बिहार के किशनगंज जिलान्तर्गत पोठिया प्रखंड की जहांगीरपुर पंचायत स्थित बेलपोखर और सारादीघी समेत कई गाँवों के लोग एक अदद सड़क के लिए वर्षों से आस लगाए बैठे हैं।
आहर-पाइन पर व्यापक अध्ययन करने वाले निर्मल सेनगुप्त लिखते हैं, “बाहर से आहर-पइन व्यवस्था भले ही बदरूप दिखती हो, लेकिन ये कठिन प्राकृतिक स्थितियों में पानी के सर्वोत्तम उपयोग की अनूठी देसी प्रणाली है।”