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सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

बिहार के सुपौल जिले का एक परिवार जिसके सदस्य केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्य सरकार में मंत्री, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और विधायक बने, सुपौल के लोग इस परिवार को बलुआ बाजार परिवार के नाम से जानते हैं। बलुआ सुपौल जिले की एक पंचायत है।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
Published On :
why is development not reaching the village of former railway minister of the country and chief minister of bihar

मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के गांव फुलवरिया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गांव कल्याण बिगहा के विकास की कहानी अक्सर मीडिया की सुर्खियों में रहती है। इसी क्रम को देखते हुए देश के रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र और बिहार के तीन बार के मुख्यमंत्री डॉ जगन्नाथ मिश्रा की पंचायत बलवा बाजार की स्थिति की पड़ताल की।


बलुआ पैक्स अध्यक्ष प्रभात मिश्र बताते हैं, “नेताओं के इस गढ़ में आम लोगों की समस्या जस की तस है। सरकार ने बड़ा स्वास्थ्य केंद्र तो दे दिया लेकिन डॉक्टर समय पर नहीं आते और एंबुलेंस की व्यवस्था भी ठीक नहीं है। ग्रामीणों की मांग पर डीएम साहब ने चार डॉक्टर तो नियुक्त किया था लेकिन उनके आने का कोई समय ठीक नहीं है। प्रखंड की मांग वर्षों से पड़ी हुई है, जबकि प्रखंड के सभी मानक पर यह जगह उपयुक्त है। ललितग्राम भाया बलुआ-भीमनगर, बथनाहा बीरपुर रेलमार्ग ललित बाबू का सपना था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ है। एक बात सच भी है कि सुपौल जैसे पिछड़े इलाकों में इस क्षेत्र के विकास में बलवा परिवार का काफी योगदान है।”

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ठूठी गांव के मुखिया प्रतिनिधि मनोज राय बताते हैं, “देश और बिहार की राजनीति में बलुआ का काफी योगदान रहा है। आज भी बलुआ की छवि राजनीतिक गलियारों में बनी हुई है। इसके बावजूद ये धरती आज एक अस्पताल व प्रखंड की समस्या से जूझ रही है। मसला अच्छी शिक्षा हो या स्वास्थ्य, सड़क की समस्या हो या किसानों की सिंचाई की समस्या हो, यहां के लोग आज इन सभी समस्याओं से जूझ रहे हैं। जब तक बलवा को प्रखंड नहीं बनाया जाएगा और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बेहतर नहीं होगा, इसका विकास संभव नहीं है।”


बलवा की सृष्टि माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही हैं, वह बताती हैं, “2008 की बाढ में इलाके की स्थिति थोड़ी खराब हो गई थी। हालांकि हेल्पलेज इंडिया और काफी एनजीओ ने काफी अच्छा काम किया था। आम आदमी की सारी मूलभूत सुविधाएं पंचायत में उपलब्ध हैं। ललित बाबू जिंदा होते तो क्षेत्र की स्थिति और बेहतर होती।”

बिहार के सुपौल जिले का एक परिवार जिसके सदस्य केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री, राज्य सरकार में मंत्री, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, सांसद और विधायक बने, सुपौल के लोग इस परिवार को बलुआ बाजार परिवार के नाम से जानते हैं। बलुआ सुपौल जिले की एक पंचायत है।

इस परिवार के राजेंद्र मिश्र, जिन्हें गांव में राजा बाबू कहा जाता था, महात्मा गांधी के करीब आए। फिर कांग्रेस के विधान परिषद सदस्य, विधायक और प्रदेश कमिटी के अध्यक्ष बने। इन्हीं के बाद ललित नारायण मिश्रा राजनीति में प्रवेश किए। 1975 में उनकी हत्या हुई। कई लोग इस हत्या का आरोप इंदिरा गांधी पर लगाते हैं। फिर छोटे भाई डॉ. जगन्नाथ मिश्र की सक्रियता बढ़ी। वे तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री और एक बार केंद्रीय मंत्री रहे। इसी परिवार के अमरेंद्र मिश्र विधायक और मंत्री रहे। वर्तमान में डॉ जगन्नाथ मिश्रा के पुत्र नीतीश मिश्रा बिहार के पर्यटन व उद्योग मंत्री है।

जमींदारी जस की तस

राजनीतिक परिवार से ज्यादा इस परिवार की पहचान जमींदार परिवार के तौर पर की जाती थी। स्वतंत्रता के बाद भारत में बिहार जमींदारी उन्मूलन के लिए कानून बनाने वाला पहला राज्य बना। इस परिवार के डॉक्टर जगन्नाथ मिश्रा जब मुख्यमंत्री बने तो सदन में अक्सर भूमि सुधार को लेकर बोलते रहते थे। डॉ. जगन्नाथ मिश्रा ने संत विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से अपने सार्वजनिक जीवन की बाकायदा शुरुआत की थी।

इस सब से इतर एक लोकल पत्रकार ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि इस परिवार के पास आज भी काफी जमीन है। ललित नारायण मिश्रा के बेटे हाल-फिलहाल में भी जमीन बेचे हैं। कई जमीनें विवाद में भी चल रही हैं। इस परिवार की पहचान इलाके में जमींदारी की वजह से है। डॉ जगन्नाथ मिश्रा ने अपनी पुस्तक लैंड रिफॉर्म्स इन बिहार में लिखा है कि जिम्मेदारी मर गई लेकिन जमींदार लंबे समय तक जीवित रहेगा।

अंबेडकर विश्वविद्यालय दिल्ली के स्कूल ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में पीएचडी कर रहे राहुल यादुका कोसी पर रिसर्च कर रहे हैं, वह बताते हैं, “शोध के दौरान कई लोगों और विशेषज्ञों ने बताया कि तटबंध निर्माण के वक्त इलाके के जमींदारों ने अपनी जमीन को बचाने के लिए कई तरह की राजनीतिक रणनीतियां बनाई थीं। जमींदारों की तरफ से अपनी जमीन को बाढ़ से मुक्त करने के ऐसे प्रयत्न ब्रिटिश काल में भी होते रहे हैं। उस समय राज्य तटबंधों के निर्माण में अधिक हस्तक्षेप नहीं करता था। इसमें बलवा बाजार का नाम भी आता है। आज भी कोशी के लोग ललित बाबू को याद करके उनको तटबंध की नीति का दोषी बताते हैं। ललित नारायण मिश्रा उस वक्त कोशी क्षेत्र के सबसे उभरते हुए नेता थे और खानदानी जमींदार भी।”

वरिष्ठ इंजीनियर और लेखक दिनेश कुमार मिश्र ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘दुई पाटन के बीच में’ में इस बारे में विस्तार से जिक्र किया है कि कैसे दोनों तटबंधों के भीतर अप्रोच, सुरक्षा तटबंध, रिंग बांध बनाए गए।

हॉस्पिटल की स्थिति और प्रखंड बनने की मांग मुख्य मुद्दा

बलवा बाजार के विकास के जिक्र में लोग सबसे ज्यादा बात प्रखंड बनने और अस्पताल की हालत पर करते हैं।

अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ, जनता दल यूनाइटेड सुपौल के जिला उपाध्यक्ष रोशन कुमार पासवान बताते है, “बलुआ पंचायत के सरकारी अस्पताल में किसी भी तरह की सेवा उपलब्ध नहीं हैं। एक साल पहले खराब हुए एंबुलेंस को ठीक नहीं किया गया है। बिशनपुर गुलामी वार्ड नंबर 9 में प्राथमिक विद्यालय में भवन नहीं रहने के कारण पठन-पाठन करने में बच्चों को बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है। इतने बड़े नेता देने के बावजूद यहां की आम जनता छोटी-छोटी परेशानियों के लिए मोहताज रहती है।”

ग्रामीण विनय कुमार दास बताते हैं, “हमारे यहां से बीरपुर अनुमंडल और प्रखंड की दूरी 15 किमी है, जबकि हमारा छातापुर प्रखंड 25 किमी है और हमारा अनुमंडल त्रिवेणीगंज 55 किमी है। ग्रामीणों को कोई काम करने के लिए इतनी लंबी दूरी तय कर अनुमंडल जाना पड़ता है। बलुआ के लिए प्रखंड की घोषणा हो गयी था, लेकिन लोकल राजनीति के कारण बलुआ को प्रखंड नहीं बनाया गया है। सरकार या तो बलवा को प्रखंड बना सकती है या फिर बीरपुर से जोड़ सकती है।”

बलुआ बाजार के रहने वाले युवक गौरव कुमार मिश्रा कहते हैं, “जीतन राम मांझी अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में इस इलाके में एक अस्पताल दिए थे। लेकिन स्थिति ऐसी है कि आज तक यहां डाक्टर, जांच व अन्य सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। संर्प दंश से लेकर मूलभूत दवाई भी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है।”

health wellness centre balua

चैनपुर के पुर्व मुखिया क्रांति उर्फ अश्विनी झा कहते हैं कि राजनीतिक क्षेत्र में बलुआ एक रीढ़ है, लेकिन आज भी बलुआ पिछड़ा है। अच्छी स्वास्थ्य हो या शिक्षा हो दोनों का हाल बुरा है। समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्थायी चिकित्सक नहीं है। 30 किमी का सफर कर लोगों को प्रखंड अंचल जाना पड़ता है,जबकि बलुआ हर दृष्टिकोण से खुद प्रखंड डिज़र्व करता है।

सड़क और पुलिया की स्थिति

बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के बावजूद नीतीश कुमार के विकास की झलक यहां दिखती है। घूमने के दौरान इलाके में बीरपुर-बिहपुर एस एच 91 से सटे मार्ग से शाह टोल तक जाने वाली सड़क कच्ची थी। ग्रामीण रोहित बताते हैं कि आगे लगभग 200 घरों की बस्ती है। पिछले विधानसभा चुनाव में स्थानीय विधायक नीरज सिंह बबलू ने इसका शिलान्यास किया था, इसके बावजूद अबतक सड़क नहीं बन पाई है। भारी बारिश के वक्त कमर तक पानी भर जाता है।

वहीं, कभी बथनाहा बिरपुर ललितग्राम भाया बलुआ भीमनगर छोटी रेल चलती थी। लालू प्रसाद के रेलमंत्री बनने के बाद ये बन्द है। पटरी भी उखाड़ लिया गया है। रेल संघर्ष समिति ने कई बार आंदोलन किया। इसके बावजूद सरकार की ओर से इसपर खास पहल नहीं हो रही। हालांकि कुछ दिन पूर्व इस रेलखंड की भू मापी का आदेश मंत्रालय ने जारी किया है। इसके बावजूद कार्य बहुत धीमी गति से चल रहा है।

(रिपोर्ट स्थानीय पत्रकार अनुज कुमार झा की मदद से की गई है।)

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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