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‘हमारा बच्चा लोग ये नहीं करेगा’ – बिहार में भेड़ पालने वाले पाल समुदाय की कहानी

डोरिया गांव में एक नहर के किनारे रह रहे चरवाहों ने बताया कि वे साल में 6 महीने अररिया जिले के आसपास के इलाके व सुपौल के सीमावर्ती इलाकों में भेड़ चराने निकल जाते हैं। अमूमन ये लोग नदी किनारे मैदानों में भेड़ चराते हैं और 4 से 5 लोगों झुंड में एक जगह अस्थाई टेंट बनाकर निवास करते है।

ved prakash Reported By Ved Prakash |
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आम तौर पर भेड़ पालन पहाड़ी और पथरीली इलाकों में किया जाता है लेकिन बिहार के अररिया में कुछ परिवार दशकों से भेड़ पालन कर जीवनयापन कर रहे हैं। अररिया जिले के डोरिया गांव में पाल समुदाय के लोग भेड़ पालते हैं और उनसे ऊन निकाल कर बेचते हैं।

डोरिया गांव में एक नहर के किनारे रह रहे चरवाहों ने बताया कि वे साल में 6 महीने अररिया जिले के आसपास के इलाके व सुपौल के सीमावर्ती इलाकों में भेड़ चराने निकल जाते हैं। अमूमन ये लोग नदी किनारे मैदानों में भेड़ चराते हैं और 4 से 5 लोगों झुंड में एक जगह अस्थाई टेंट बनाकर निवास करते है।

भेड़ चरवाहों ने बताया कि अररिया जिले के नरपतगंज प्रखंड स्थित घूरना महेश पट्टी गांव में पाल समुदाय के लगभग 40 परिवार रहते हैं जिनका मुख्य रोजगार भेड़ पालन है।


अशोक पाल ने बताया कि नरपतगंज के घूरना महेश पट्टी गांव से कुल पांच लोग भेड़ चराने डोरिया गांव आए हैं।

बिहार में भेड़ पाल रहे ये पेशेवर पाल जाति से आते हैं। पाल जाति के लोग पारंपरिक तौर पर सदियों से भेड़ पालन कर रहे है। इसी वर्ष बिहार में जारी हुए जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पाल जाति की जनसंख्या 3 लाख 63 हज़ार 529 है जो राज्य की आबादी का 0.2781 प्रतिशत है। सर्वे के अनुसार बिहार में पाल जाति के 33.20 प्रतिशत परिवार गरीब हैं।

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अररिया के डोरिया गांव में भेड़ चराने आए सबन पाल ने बताया कि भेड़ पालन में अधिक मुनाफा नहीं हो पाता है। मौसम के बदलाव से कई बार बीमार होकर भेड़ मर जाते हैं। उनके समुदाय में लोग पारंपरिक तौर पर भेड़ पाल रहे हैं इसलिए उनके पास रोजगार के लिए यही एक विकल्प रहता है।

बिहार जाति सर्वेक्षण 2023 के अनुसार पाल जाति के केवल 17.56 प्रतिशत लोग ही हाई स्कूल तक पहुंच पाते हैं जबकि समाज में स्नातकों का प्रतिशत 8.11 बताया गया है। अशोक पाल ने बताया कि वह और उनके समुदाय के अन्य लोग अब अपने बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं ताकि अगली पुश्त को उनकी तरह चरवाहों का जीवन न बिताना पड़े।

अशोक ने आगे बताया कि उनके पूर्वज भी भेड़ पालन करते आए हैं। एक ज़माने में उनके पूर्वज चरखा की मदद से ऊन के कंबल बनाया करते थे लेकिन समय के साथ यह कला विलुप्त हो गई।

भेड़ पालन पर सरकार की क्या योजना है यह जानने के लिए हमने पशुपालन विभाग में संपर्क किया। विभाग के एपीओ डॉक्टर बासुकी कुमार ने बताया कि भेड़ को लेकर पशुपालन विभाग में फिलहाल कोई योजना नहीं है।

भेड़ से संबंधित बिमारियों के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि जो समस्या बकरियों को होती है, लगभग वही समस्याएं भेड़ में भी देखी जाती हैं लिहाज़ा उनका निदान भेड़ों के लिए भी काम करता है।

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अररिया में जन्मे वेद प्रकाश ने सर्वप्रथम दैनिक हिंदुस्तान कार्यालय में 2008 में फोटो भेजने का काम किया हालांकि उस वक्त पत्रकारिता से नहीं जुड़े थे। 2016 में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा। सीमांचल में आने वाली बाढ़ की समस्या को लेकर मुखर रहे हैं।

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