अररिया नगर क्षेत्र के वार्ड नंबर 23 में हरियाली मार्केट कहलाने वाली यह जगह डंपिंग ग्राउंड में तब्दील हो चुकी है। हनुमान मंदिर के पास स्थित हरियाली मार्केट पर शहर के अधिकतर हिस्सों से लाए गए कचरों को फेंका जाता है।
करीब 4 किलोमीटर लंबी यह सड़क सदापुर गल्लाकट्टा चौक से शेखपुरा गांव तक जाती है। 10 से अधिक गांवों के लोग इस सड़क का इस्तेमाल करते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत यह सड़क 2018 में ही बनकर तैयार होनी थी लेकिन इसे 2021 में बनाया गया।
कटिहार जिले के गोगरा, ललगांव और पीरगंज गांव के लोग सालों से एक अधूरे पल के निर्माण की आस में बैठे हैं। नेताओं के खोखले वादों से तंग आकर ग्रामीणों ने पुल न बनने की सूरत में आने वाले लोकसभा चुनाव का पूर्ण बहिष्कार करने की ठान ली है।
किशनगंज जिले के दिघलबैंक प्रखंड में एक गांव है, जिसका नाम वोटरलिस्ट से लेकर मतदान केंद्रों की संख्या से संबंधित सरकारी कागजों में पहले नंबर पर आता है। मगर, यह गाँव आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण नेपाल से अपनी जरूरतों को पूरा करता है।
यात्री बसें सीमांचल की अर्थव्यवस्था का मज़बूत पाया हैं। इससे एक जिले से दूसरे जिले तक की पहुँच आसान होती है। लेकिन, इन बसों पर किराये के बदले दी जाने वाली बेनामी यात्रा टिकट एक अलग कहानी बयाँ करती है।
सहरसा नगर निगम क्षेत्र के सुबेदारी टोला में स्थित मुक्तिधाम विद्युत शव दाह गृह का निर्माण 15 साल पहले उस समय के विधायक रहे संजीव झा ने कराया था। इसमें तीन बड़े-बड़े कमरे, 6 बर्निंग शेड, ट्यूबवेल, सोलर पैनल व लाइट जैसी सभी सुविधाओं के लिए लाखों रुपये खर्च किये गये।
बीते दिनों केन्द्र सरकार ने पशु जन्म नियंत्रण नियमावली, 2023 अधिसूचित कर दी है। यह नियमावली उच्चतम न्यायालय में दायर रिट याचिका में जारी दिशा-निर्देशों के आलोक में अधिसूचित की गई है।
अररिया चांदनी चौक से लेकर कोर्ट रेलवे स्टेशन तक जाने वाली इस सड़क के बीच कई महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालय भी हैं। लेकिन, सरकारी उदासीनता के कारण यह सड़क पिछले डेढ़ दशकों से टूटी फूटी हालत में है।
सुपौल जिले की माल्हनी पंचायत के वार्ड नंबर 10 यानी सिमरा टोला स्थित प्राथमिक विद्यालय में जाने के लिए पगडंडी वाला रास्ता है। बरसात के मौसम में उस रास्ते से जाने में काफी कठिनाई होती है।
कोसी की पुरानी धार के किनारे बसा लहटोरा गांव बांसुरी वाले मोहल्ले के रूप में जाना जाता है। यहां लगभग 20 परिवार रहते हैं, ये लोग बाँसुरी बनाकर घूम घूम कर बेचते हैं।
बिहार में कुल 45,793 जल स्रोत हैं, जिनमें तालाब, टैंक, झील, रिजर्वायर आदि शामिल हैं, लेकिन इनमें से 49.8 प्रतिशत यानी 22799 जलाशयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है।
कटिहार जिले के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत महेशपुर पंचायत में एक पुल पिछले तीन सालों से अधूरे ढाँचे पर खड़ा है।