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“हम लोग घर के रहे, न घाट के”, मधेपुरा रेल इंजन कारखाने के लिए जमीन देने वाले किसानों का दर्द

भारतीय रेलवे और फ़्रांस की कंपनी एल्सटॉर्म के संयुक्त उद्यम के तहत मधेपुरा प्रखंड के लक्ष्मी रामपुर चकला गांव में इस रेल इंजन कारखाने की शुरुआत की गई थी। मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड नामक इस रेल कारखाने में बनी लोकोमोटिव इंजन वाली मालगाड़ी ट्रेन को 8 मई 2020 को दीनदयाल उपाधयाय रेलवे स्टेशन से शिवपुर तक चलाया गया था।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
Published On :
pain of the farmers who gave land for the madhepura railway engine factory

10 अप्रैल 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मधेपुरा विद्युत रेल इंजन कारखाने में बने देश के पहले 12,000 हॉर्सपावर (एचपी) के विद्युत चालित रेल इंजन का उद्घाटन किया था। इस रेल इंजन का उपयोग करने वाला भारत विश्व का छठा देश बना था। इससे पहले रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी और स्वीडन ही वे पांच देश थे, जहां 12,000 एचपी की विद्युत रेलवे इंजन का प्रयोग हो रहा था।


भारतीय रेलवे और फ़्रांस की कंपनी एल्सटॉर्म के संयुक्त उद्यम के तहत मधेपुरा प्रखंड के लक्ष्मी रामपुर चकला गांव में इस रेल इंजन कारखाने की शुरुआत की गई थी। मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड नामक इस रेल कारखाने में बनी लोकोमोटिव इंजन वाली मालगाड़ी ट्रेन को 8 मई 2020 को दीनदयाल उपाधयाय रेलवे स्टेशन से शिवपुर तक चलाया गया था।

ग्रामीण बोले, “जमीन लेने के बाद वादों से मुकर गई सरकार”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आगामी 26 फरवरी को मधेपुरा रेलवे स्टेशन के पुनर्विकास कार्य का शुभारंभ करेंगे। करीब 300 एकड़ में फैले इस रेलवे इंजन कारखाने के निर्माण के समय जिन ग्रामीणों से जमीन ली गई थी, वे सरकार से नाराज हैं। भूदाताओं का कहना है कि कारखाने के लिए जमीन लेने के लिए सरकार ने लोगों से कई वादे किये थे जिन्हें अब तक पूरा नहीं किया गया है।


मधेपुरा की बालमगढिया पंचायत के चकला गांव के बुजुर्ग रामदेव यादव ने कहा कि सरकार ने बिजली और पानी फ्री देने के साथ साथ नौकरी देने का वादा किया था लेकिन न नौकरी मिली न पैसा दिया गया।

रामदेव कहते हैं, “हमारा जो जमीन लिया था तो बोल कर लिया था कि बिजली, पानी फ्री देंगे, पुर्नवास बनवा देंगे। कुछ नहीं दिया है, न जमीन का पैसा मिला न नौकरी दिया, कुछ दे ही नहीं रहा सरकार। हमलोग का गुज़ारा बहुत कठिनाई से होता है, न जमीन है न मज़दूरी मिलता है, कहां जाएं हमलोग।”

नहर के किनारे रहने पर मजबूर भूमिदाता

रामदेव यादव ने आगे बताया कि उन्होंने 3 एकड़ चार कट्ठा जमीन दी थी लेकिन उस जमीन का मुआवज़ा भी उन्हें नहीं दिया गया है। वह बाहर राज्यों में जाकर मज़दूरी करते हैं। पिछले कई वर्षों से वह नहर के करीब घर बनाकर रह रहे हैं।

“मेरी जमीन पर झगड़ा चल रहा, उसका पैसा नहीं मिला। जिस जमीन पर झगड़ा नहीं है उसमें भी पैसा नहीं मिला है, बोलता है सर्वे दूसरे के नाम से हुआ है। पुराना कागज़ मेरे बाप दादा के नाम से है, उसमें भी पैसा नहीं मिल रहा है। जमीन नहीं है तो हम नहर पर घर बना कर रह रहे हैं। मज़दूरी करने हम पंजाब, हिमाचल, राजस्थान जाते हैं इस उम्र में,” रामदेव यादव ने कहा।

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गांव के एक और बुज़ुर्ग मोहम्मद अब्बास ने कहा कि जमीन लेने के समय उनसे शिक्षा, नौकरी, पेंशन और मुनाफे में हिस्सेदारी का वादा किया गया था लकिन कुछ नहीं मिला। पहले अपनी जमीनों पर खेती कर के खाते थे अब अनाज और पशुओं का चारा भी बाहर से खरीदना पड़ता है।

उन्होंने कहा, “लालू जी जमीन अधिग्रण किये थे। उस अधिग्रण के तहत हम सबका जमीन लिया गया, और बोला कि शिक्षा, सुरक्षा, पेंशन देंगे। मुनाफे में 25% किसान को मिलेगा लेकिन यहां कोई किसान को नौकरी भी नहीं मिला है। मुआवज़ा था 9,000 का डिसमिल, 11,000 का और 13,000 का, उसमें हमको 9,000 मिला है। हमारी चार फसल की जमीन थी 2 एकड़ से ज्यादा।”

local farmers from madhepura
ज़मीनदाता रामदेव यादव और मोहम्मद अब्बास

मोहम्मद अब्बास आगे कहते हैं, “हमलोग न घर के रहे न घाट के रहे। हम पांच ठो मवेशी भी पालते थे उसका पालन भी अपने खेत से करते थे। अभी तो हम घांस, भूसा अलग से खरीद रहे हैं। दाना तो बाहर से खा ही रहे हैं। हम लोग को सरकार से कोई लाभ नहीं मिला।”

नौकरी न मिलने से आक्रोशित हैं चकला गांव निवासी

गांव के युवाओं ने कहा कि सरकार ने ग्रामीणों को नौकरी का वादा किया था इसीलिए किसान अपनी कृषि भूमि छोड़ने के लिए राजी हुए थे। ग्रामीणों को लगा था कि परिवार में एक सदस्य को नौकरी मिल जाएगी। पूरे गांव में केवल 10 से 12 ग्रामीणों को नौकरी दी गई है जिसमें अधिकतर को साफ़ सफाई का काम दिया गया।

चकला गांव निवासी कुंदन यादव ने कहा कि तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल में रेल कारखाने के लिए सरकार ने 1,62,000 की दर से किसानों से जमीन ली थी। तब कहा गया था कि पढ़े लिखों को नौकरी दी जाएगी लेकिन सरकार ने गांव के किसी युवा को नौकरी नहीं दी।

“लालू यादव के समय जो जमीन अधिगृहित की गई उसमें 25,000 की दर से मुआवज़ा दे रहा था, तो हमलोग बोले कि इतना कम में हम जमीन देने में सक्षम नहीं हैं। सरकार ने फिर 1 लाख 62 हज़ार की दर से हमलोग को जमीन का पैसा दिया। उन्होंने कहा था जो पढ़े लिखे हैं उनको नौकरी दिया जाएगा। हमारा कहना है कि हम जो स्तर के हैं आप वही नौकरी दीजिये लेकिन यहां से जो भी लड़का को ले गया उसको झाड़ू पोछा करने के लिए दिया,” कुंदन यादव ने कहा।

वह आगे कहते हैं, “लालू जी रेल कारखाना बनवा दिया और अपना नाम ऊंचा कर दिया लेकिन आप आकर देखें कि गांव का आदमी किस हाल में है। जमीन देने वाला मर रहा है जाके देखो कैसे जी रहा है। नहर पे घर बना कर जीता है। आप चार मंजिला घर में रहते हैं तो सोचते हैं सब वैसे ही रह रहा है।”

“केंद्र सरकार ने हमें ठग लिया”

स्थानीय ग्रामीण अरविंद कुमार यादव ने कहा कि 2008 में जब कारखाने के लिए जमीन मांगी गई तो गांव वालों ने यह सोच कर दे दी कि गांव में इससे विकास होगा। कारखाना बनाने के लिए 1100 एकड़ जमीन अधिगृहित की गई थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आने के बाद केवल 307 एकड़ जमीन का अधिग्रहण हुआ।

उन्होंने आगे कहा कि दी गई हुई सारी जमीनें उपजाऊ थीं जिससे लोगों का गुज़र बसर चलता था। जमीन लेने के बाद गांव वालों को उचित मुआवज़ा नहीं दिया गया, न ही नौकरियां दी गईं। उनके अनुसार, गांव में कई बच्चों ने इंजीनियरिंग, आईटीआई, डिप्लोमा किया है लेकिन उनमें से किसी को नौकरी नहीं दी गई।

“60 से ऊपर आयु वाले वृद्धों को पेंशन मिलना चाहिए था, गांव वालों को मुफ्त बिजली देनी चाहिए थी लेकिन ग्रामीणों को कोई सेवा नहीं दी जा रही है। स्वास्थ सेवा होना चाहिए, गांव में अस्पताल खुलना चाहिए लेकिन कुछ नहीं मिल रहा है। हम लोगों से केंद्र सरकार ने जमीन ले ली पर कुछ नहीं दिया। हमें ठग लिया गया। हमलोग शोषित हैं, प्रधानमंत्री ने शोषण कर लिया। राजतन्त्र में जैसे होता था ना वैसे ही हुआ है,” अरविंद कुमार बोले।

एक और ग्रामीण धीरज यादव मिस्त्री का काम करते हैं। उन्होंने कहा कि रेल कारखाने में हर तरह का काम होता है लेकिन उन जैसे मजदूरों को कभी रोजगार नहीं दिया जाता। गांव के सैकड़ों मजदूर बाहर जाकर काम करते हैं लेकिन पास में कारखाना होने के बावजूद किसी तरह का लाभ उन्हें नहीं मिलता।

“जमीन आप जिससे ले लिए, चाहे जैसे भी लिए हों, कम से कम उनको रोजगार देना चाहिए। वहां तो हर तरह का काम है, ऐसा तो नहीं है कि सिर्फ इंजीनियर का काम है। हम मिस्त्री हैं। टाइल, मार्बल, चुनाई, पलस्तर करते हैं। कारखाना में बाहर का आदमी काम करता है लेकिन हमलोग को काम नहीं मिलता। सरकार को यह देखना चाहिए कि हम जिस आदमी से जमीन लिए हैं वो किस हाल में जी रहा है,” धीरज यादव ने कहा।

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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