फेस्टिवल में 17 फरवरी को लिटररी सेशन होगा। इस सेशन में सीमांचल में उर्दू अफसानानिगारी का इतिहास, हिंदी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य, रेणु साहित्य की विशेषताओं पर चर्चा होगी।
साहित्य और कला की दुनिया से मशहूर शायर वसीम बरेलवी, नवाज़ देवबंदी, अज़हर इक़बाल और स्टैंडअप कॉमेडियन रेहमान खान भी इस साहित्योत्सव में शामिल होने अररिया पहुंचेंगे।
अपने पूरे करियर के दौरान मुनव्वर राणा को कई पुरस्कार मिले, जिनमें उनकी काव्य पुस्तक 'शाहदाबा' के लिए 2014 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है। हालांकि, देश में बढ़ती असहिष्णुता से खिन्न होकर उन्होंने बाद में यह पुरस्कार लौटा दिया था।
किशनगंज जिला पदाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने पुस्तक विमोचन समारोह में मिली कुमारी की प्रशंसा की और कहा, ''यह कार्य बहुत ही सरहानीय है कि कोई हमारी बेटी आगे आई और अपनी संस्कृति को जगाना चाही।
अहमद हसन दानिश ने उर्दू में शायरी के अलावा उपन्यास, विश्लेषण और समालोचना के मैदान में अपना योगदान दिया। उन्होंने हिंदी में भी कुछ कविताएं लिखीं जो काफी पसंद की गईं । उनकी कविताएं ''शिवाला'', ''कारगिल'' और ''हम आज़ाद हुए हैं क्या'' ने उन्हें राष्ट्रभक्त कवि के तौर पर पेश किया। उनकी मृत्यु पर सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि पेश करते हुए कई लोगों ने उन्हें 'देशभक्त कवि' कह कर याद किया।
हारुन रशीद का जन्म 5 मई 1965 में अररिया जिले के कुकुड़वा बसंतपुर में हुआ। कुकुड़वा बसंतपुर उनका नानिहाल हुआ करता था और उनके पिता मोहम्मद नईमुद्दीन और उनका परिवार अररिया के गैयारी में रहता था। हारुन रशीद ने गैयारी में ही तालीम हासिल की। उस समय वह हारुन रशीद हुआ करते थे, लेकिन जब वह शायरी करने लगे तो उन्होंने "ग़ाफ़िल" का तखल्लुस ले लिया।
वफ़ा मालिकपुरी का जन्म 1922 में दरभंगा जिला के मालिकपुरी नामक गांव में हुआ। कहा जाता है कि उन्होंने महज़ 13 साल की उम्र से शायरी शुरू कर दी थी।
राहत इंदौरी को उनके शेर कहने के तरीके और अपने फक्कड़पन के लिए खास तौर पर याद किये जाएंगे। उनकी शायरी का सबसे खास बात ये था कि वे उर्दू या हिंदी के नही बल्कि हिंदुस्तान के शायर थे। वह आसान जबान के मानीखेज़ शायर थे। जिस वजह से उनकी शायरी जेहन में लंबे वक्त तक तैरती रहती है।