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क्रांतिकारी शायरी को वायरल करने वाले गायक डॉ हैदर सैफ़ से मिलिए

डॉ हैदर सैफ़ इतिहास के शिक्षक हैं और राजस्थान के एक कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि वह सहायक प्रोफेसर के तौर पर आगे भी काम करते रहेंगे और अपनी गायिकी को साथ साथ लेकर चलेंगे। हैदर सैफ के पिता सरफ़राज़ बज़्मी उर्दू शायर हैं। सैफ ने उनकी लिखी ग़ज़ल और कई धार्मिक नज़्में भी गायी हैं।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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उर्दू शायरों की ग़ज़लों और नज़्मों को आवाज़ देकर इंटरनेट पर बग़ावती लहजे को वायरल करने वाले डॉ हैदर सैफ़ पिछले दिनों अररिया अररिया लिटररी फेस्टिवल धनक 2024 में शामिल हुए।

‘मैं मीडिया’ से ख़ास बातचीत में उन्होंने अपने सफर के बारे में कई रोचक किस्से सुनाये। क्रांतिकारी शायरी को संगीत की दुनिया में अलग पहचाने दिला रहे हैदर सैफ पिछले एक- दो वर्ष में काफी लोकप्रिय हुए हैं।

उन्होंने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई की। उसी दौरान उन्होंने गायिकी शुरू की और उर्दू शायरों की पंक्तियों को सादे अंदाज़ में गाकर यूट्यूब पर अपलोड करते रहे। कुछ समय बाद उनके गाने इनटरनेट पर काफी मशहूर होने लगे।


वह कहते हैं, “अलीगढ के दिनों में लॉकडाउन के समय मैंने कुछ क्रांतिकारी शायरों को पढ़ा। मुझे वो शायरी पसंद थी और उन्हें पढ़कर मुझे प्रेरणा मिलती थी। जिस ज़माने में ये लिखी गई थीं, उस ज़माने में और आज के दौर में बिलकुल सटीक बैठती हैं ये पंक्तियाँ। मैंने उन शायरी को कम्पोज़ कर यूट्यूब पर उपलोड किया और डेढ़ साल बाद जब लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे थे तो उन्होंने उन चीज़ों को देखा और फिर मेरे वीडियो वायरल हुए।”

पुरानी शायरी को नई पहचान दिलाने का प्रयास

आज इंटरनेट पर हैदर सैफ़ की कई नज़्में खूब लोकप्रिय हैं। रील बनाने वालों ने उनकी आवाज़ को खूब इस्तेमाल करना शुरू किया और फिर लोग उन्हें जानने लगे। उन्होंने हफ़ीज़ मेरठी की ‘ज़ंजीर’ और आमिर उस्मानी की लिखी नज़्म को ‘बग़ावत’ के नाम से गाया और इन दोनों वीडियो को काफी पसंद किया गया। ‘बग़ावत’ को अब तक यूट्यूब पर 43 लाख लोगों ने देख लिया है। इसका दूसरा भाग भी आ चुका है।

“आमिर उस्मानी साहब को बहुत कम लोग जानते थे। इस कलाम के बाद लोगों ने उन्हें पढ़ना शुरू किया और जाना कि मरहूम आमिर उस्मानी साहब ने कितना साहित्य में काम किया हुआ है। मैं ऐसे ही शायरों को ढूंढ़ता हूँ और उनका ऐसा कलाम जो लोगों ने नहीं पढ़ा उसको लोगों तक लाने की कोशिश रहती है,” डॉ हैदर सैफ़ ने कहा।

हैदर ने अहमद फ़राज़, जॉन एलिया और बहादुर शाह ज़फर जैसे कई बड़े शायरों की ग़ज़लों और नज़्मों को अपनी आवाज़ दी। ‘मैं मीडिया’ से बातचीत में उन्होंने बताया कि अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में रहने के शुरुआती दिनों में उन्होंने गायिकी शुरू कर दी थी। उसी दौरान कॉलेज के कुछ छात्रों ने उन्हें हफ़ीज़ मेरठी की नज़्म ‘ज़ंजीरें’ गाने को कहा। कुछ समय बाद ज़ंजीरें काफी लोकप्रिय हो गया।

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“अबू की शायरी पढ़ने पर गर्व महसूस होता है”

डॉ हैदर सैफ़ इतिहास के शिक्षक हैं और राजस्थान के एक कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि वह सहायक प्रोफेसर के तौर पर आगे भी काम करते रहेंगे और अपनी गायिकी को साथ साथ लेकर चलेंगे। हैदर सैफ के पिता सरफ़राज़ बज़्मी उर्दू शायर हैं। सैफ ने उनकी लिखी ग़ज़ल और कई धार्मिक नज़्में भी गायी हैं।

अपने पिता के बारे में हैदर कहते हैं, “मेरे पिता बहुत आला दर्जे के शायर हैं। मैंने उन्हें काफी देर से पढ़ना शुरू किया। उनकी ग़ज़लें हैं जो मैं पढ़ता रहता हूँ। उनकी कई नात और हम्द मैंने पढ़ीं हैं। उनकी शायरी अधिकतर धार्मिक होती हैं। मुझे उनकी शायरी पढ़ने में काफी गर्व महसूस होता है। एक बेटे के लिए उसके पिता से बड़ा कोई प्रेरणा स्रोत नहीं होता।”

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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