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किशनगंज की मिली कुमारी ने लिखा पहला सुरजापुरी उपन्यास ‘पोरेर बेटी’

किशनगंज जिला पदाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने पुस्तक विमोचन समारोह में मिली कुमारी की प्रशंसा की और कहा, ''यह कार्य बहुत ही सरहानीय है कि कोई हमारी बेटी आगे आई और अपनी संस्कृति को जगाना चाही।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
Published On :
porer beti writer mili kumari with kishanganj dm shrikant shahstri

किशनगंज की मिली कुमारी ने ‘पोरेर बेटी’ नामक एक उपन्यास लिखा है। ख़ास बात यह है कि यह उपन्यास हिंदी या अंग्रेजी नहीं बल्कि सुरजापुरी बोली में लिखी गई है। सोमवार को किशनगंज के खगड़ा में स्थित सम्राट अशोक भवन में इस सुरजापुरी उपन्यास का विमोचन किया गया। विमोचन समारोह में किशनगंज जिला पदाधिकारी श्रीकांत शास्त्री सहित साहित्य जगत से जुड़े लोगों के अलावा समाजसेवी और विभिन्न विभागों के अधिकारियों ने शिरकत की।


हिंदी में ‘पोरेर बेटी’ का मतलब ‘पराई बेटी’ होता है। इस उपन्यास के केंद्र में एक युवती है जो मायके और ससुराल में अपने हिस्से की जगह तलाशती है। संभवतः यह सुरजापुरी बोली में छपने वाला पहला उपन्यास है। सुरजापुरी सीमांचल की सबसे मशहूर आंचलिक बोलियों में से एक है। बिहार के अलावा देश के बाहर नेपाल और बांग्लादेश के कुछ इलाकों में भी सुरजापुरी बोली जाती है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सितम्बर 2022 में सुरजापुरी अकादमी के निर्माण का ऐलान किया था। इस अकादमी का उद्देश्य सुरजापुरी बोली को समृद्ध करना है।


‘मेरा प्रयास है कि सुरजापुरी बोली भाषा बने’: मिली कुमारी

‘पोरेर बेटी’ की लेखिका मिली कुमारी ने कहा कि उनकी जानकारी में सूरजापुरी बोली में अबतक कोई उपन्यास नहीं लिखा गया है। ‘पोरेर बेटी’ पहला सुरजापुरी उपन्यास है। पहले उन्होंने इस पुस्तक को हिंदी भाषा में लिखने का विचार किया था लेकिन जब पिछले साल वह गांव गईं तो उन्होंने गांव के रहन-सहन को देखा, तो पाया कि गांव में लड़कियों के जीवन यापन की व्यवस्था निचले स्तर पर है, खास कर सुरजापुरी समाज में हालात अधिक खराब हैं।

”मेरी यह प्रथम पुस्तक है और मैं चाहूंगी कि मेरी और भी पुस्तक सुरजापुरी में आए। मेरा प्रयास है कि हमारी बोली एक भाषा के रूप में स्थापित हो सके। मैंने इस उपन्यास में एक लड़की की भावना को आश्रय दिया है। एक लड़की को उसके मायके में बोला जाता है कि तुम इस घर की मेहमान हो। जब विवाह के बाद लड़की ससुराल जाती है और वहां भी उसके साथ अगर पराया जैसा व्यवहार हो तो वह सवाल पूछती है कि मेरा अस्तित्व क्या है,” मिली कुमारी ने कहा।

वह आगे कहती हैं, ”पिछले दो वर्षों से मैं उपन्यास लिख रही थी। पहले मैंने विचार किया कि उपन्यास हिंदी में लिखूं, लेकिन पिछले साल मैं सीमांचल के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में गयी थी। संस्कृति की बात करें तो यह सुरजापुरी में कहीं नहीं है। लोगों से पूछते हैं कि सुरजापुरी में है क्या, तो वह कहने में कतराते हैं। अपनी संस्कृति और तहज़ीब को बताने का सबसे बड़ा ज़रिया साहित्य ही होता है, तो मैंने एक उपन्यास रचा है और अपनी सुरजापुरी बोली को पहचान दी है।”

जिला पदाधिकारी ने मिली कुमारी को दी बधाई

किशनगंज जिला पदाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने पुस्तक विमोचन समारोह में मिली कुमारी की प्रशंसा की और कहा, ”यह कार्य बहुत ही सरहानीय है कि कोई हमारी बेटी आगे आई और अपनी संस्कृति को जगाना चाही। सुरजापुरी की जो संस्कृति थी, लोग उसे भूलने लगे थे। इन्होंने बहुत बड़ा काम किया है, किशनगंज के लिए और यहां के पूर्वजों के लिए जिन्होंने यह बोली दी थी जिसे लोग धीरे धीरे भूल रहे थे। मैं चाहूंगा कि वह बहुत अच्छी अच्छी किताबें लिखें और किशनगंज की माटी को धन्य करें।”

‘सुरजापुरी को भाषा बनाने की ओर यह पहला कदम’ – डॉ सजल प्रसाद

समारोह में उपस्थित किशनगंज मारवाड़ी कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सजल प्रसाद ने कहा कि अपनी संस्कृति की तरफ लौटने के लिए भाषा सबसे अच्छा माध्यम होता है। मिली कुमारी ने जो सुरजापुरी बोली में उपन्यास लिखा है वह ऐतिहासिक काम है। कोई भी बोली भाषा तब बनती है,जब उसमें साहित्य लिखा जाता है।

”तुलसीदास जी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे लेकिन उन्होंने संस्कृत में रामचरितमानस नहीं लिखा, अवधि में लिखा। उसका कारण यह था कि वह चाहते थे कि रामचरितमानस जन जन तक पहुंचे इसलिए उन्होंने अवधि में लिखा। अवधि उस समय बोली थी लेकिन रामचरितमानस लिखने के बाद भाषा बन गई। मैं यहां के साहित्य से जुड़े लोगों से कहूंगा कि अपनी बोली में लिखें,” डॉ सजल ने कहा।

उन्होंने आगे कहा कि जब तक अपनी बोली में साहित्य नहीं लिखा जाएगा तब तक सुरजापुरी बोली को भाषा के रूप में मान्यता नहीं दिलायी जा सकती। सुरजापुरी बोली, भारत के सीमांचल सहित नेपाल और बांग्लादेश के इलाकों में भी बोली जाती है। मिली कुमारी का उपन्यास ‘पोरेर बेटी’ सुरजापुरी को साहित्यिक भाषा बनाने की ओर पहला कदम है।

नेपाल से पहुंचे ‘सुरजापुरी विकास प्रतिष्ठान संस्था’ के उपाध्यक्ष

मिली कुमारी के पुस्तक विमोचन समारोह में नेपाल के झापा जिले के सुरजापुरी भाषा विकास प्रतिष्ठान के उपाध्यक्ष संतोष कुमार गणेश भी मौजूद थे। संतोष ने कहा कि मिली कुमारी ने सुरजापुरी बोली को भाषा बनाने की मुहिम की शुरुआत कर दी है। अब नयी पीढ़ी को चाहिए कि इस बोली में अधिक से अधिक लिखे।

उन्होंने आगे कहा कि मैथिली और भोजपुरी आज भाषा के तौर पर पहचानी जाती है। इन बोलियों के विकास के लिए इनके बोलने वालों के द्वारा न सिर्फ देश बल्कि विदेश में भी खूब प्रयास किया जा रहा। सुरजापुरी को भी अकादमिक स्तर पर लिखा जाना चाहिए ताकि यह बोली भी भाषा के रूप में पहचानी जाए।

संतोष कुमार गणेश नेपाल में चल रही एक गैर सरकारी संस्था सुरजापुरी भाषा विकास प्रतिष्ठान से जुड़े हैं। इस संस्था ने नेपाल सरकार से मांग की है कि सुरजापुरी को सरकार मान्यता दे। नेपाल के मोरांग और थापा जैसे जिलों में सुरजापुरी बोलने वाले काफी संख्या में लोग मौजूद हैं।

जिला कला संघ की अध्यक्ष रचना सुदर्शन ने कहा कि मिली कुमारी की यह पुस्तक महिलाओं की छवि निखारने का एक अच्छा प्रयास है और मिली ने अपनी बात पहुंचाने का एक बहुत अच्छा माध्यम चुना है।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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