बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त यानी affiliated कुल 3587 मदरसे हैं, जिनमें से सिर्फ 1942 मदरसों को सरकार आर्थिक सहयोग करती है, बाकी के मदरसे बिना किसी सरकारी सहयोग के चल रहे हैं। कितने मदरसों को कब मान्यता हासिल हुई या कबसे government aid मिलना शुरू हुआ, इस हिसाब से मदरसों को कई केटेगरी में बांटा गया है।
मदरसों की केटेगरी
पुराने मदरसे जिनको government aid मिलता है, उन्हें 1127+1 या 1128 केटेगरी कहा जाता है। 1987 में अविभाजित बिहार में करीब 3400 मदरसों को मान्यता यानी affiliation मिली थी, लेकिन इन्हें government aid नहीं मिलता था, 2000 में बिहार-झारखण्ड बंटवारे के बाद इनमें से जो मदरसे बिहार में बचे, उन्हें 2459+1 केटेगरी कहा जाता है। 2005 में प्रदेश में नीतीश सरकार आने के बाद 2459+1 केटेगरी से पहले 205 और फिर 609 मदरसों को government aid के लिए मंज़ूरी मिली, इसी हिसाब से उन्हें 205 और 609 केटेगरी का मदरसा कहा जाता है। बाकी के करीब 1600 मदरसों को मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त है, लेकिन उन्हें फिलहाल कोई government aid नहीं मिलता है।
पिछले तीन महीनों में हमने government aid से चल रहे 1128, 205 और 609 केटेगरी के करीब एक दर्जन मदरसों को दौरा किया। इन मदरसों की हालत इतनी दयनीय है की राज्य में अगर कोई सरकारी स्कूल इस हालत में दिख जाए तो मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सरकारी महकमे में हलचल मच जायेगी।
फूस के कमरे
कई मदरसे फूस के कमरों में चल रहे हैं, जहाँ बच्चे ज़मीन पर बैठकर पढ़ते हैं। इन मदरसों में शौचालय, पीने का पानी या सड़क जैसी मूल सुविधाएं नहीं हैं। कुछ मदरसों के सभी शिक्षक महीनों पहले रिटायर हो गए, इसलिए इन मदरसों में ताला बंद है या कहीं 100 से ज़्यादा बच्चों के लिए सिर्फ एक टीचर है।
किशनगंज ज़िले के बहादुरगंज प्रखंड अंतर्गत 338/609 मदरसतूल बनात नूर जहाँ, धरहर, 360/609 मदरसा इम्दादुल उलूम, इस्लामपुर खाड़ी टोला और कोचाधामन प्रखंड अंतर्गत 364/609 मदरसा क़ुर्बान अली, इस्लामनगर बागमारा कुछ ऐसे मदरसे हैं जो आज भी फूस के कमरों में चल रहे हैं। बांस और टाट के सहारे बने कमरों पर प्लास्टिक या कहीं-कहीं टीन की छत डाल दी गई है। इन कमरों में कहीं कहीं गिनती के बेंच-डेस्क दिख जाते हैं, ज़्यादातर जगहों पर बच्चे अपने साथ घर से लाइ हुई जूट या प्लास्टिक की खाली बोरियाँ बिछा कर ज़मीन पर बैठते हैं। अधिकतर मदरसों में शौचालय और पेय जल की व्यवस्था नहीं है, लेकिन MDM भोजन रोज़ाना बनता है।
364/609 मदरसा क़ुर्बान अली, इस्लामनगर बागमारा और 338/609 मदरसतूल बनात नूर जहाँ, धरहर मदरसे तक जाने के लिए पक्की सड़क तक नहीं है। बाहर के लोगों के लिए इन मदरसों को ढूंढ पाना किसी चमत्कार से कम नहीं है।
मदरसा सुदृढ़ीकरण योजना
बिहार सरकार का अल्पसंख्यक कल्याण विभाग पिछले कई सालों से मान्यता प्राप्त मदरसों में मूलभूत सूविधाएँ एवं आधारभूत संरचनाओं को उपलब्ध कराने के लिए बिहार राज्य मदरसा सुदृढ़ीकरण योजना चलाता है। इसमें मदरसों में भवन, कार्यालय, बहुउद्देशीय हॉल, छात्रावास, कम्प्यूटर या साइंस लैब, पुस्तकालय, रसोई घर, मेस, शौचालय आदि का निर्माण, भवनों का जीर्णोद्धार, स्वच्छ पेयजल हेतु बोरिंग, पम्प, टंकी सहित नल, बिजली आदि शामिल हैं। बिहार राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के मुताबिक़, इसका लाभ अभी तक सिर्फ 70 मदरसों को मिल पाया है। कई शिक्षक बताते हैं कि इस योजना की तमाम शर्तें पूरी करने के बावजूद चार-चार सालों से उनका आवेदन मदरसा बोर्ड के ऑफिस में धूल फांक रहा है।
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उधर, बोर्ड के चेयरमैन सलीम परवेज़ कहते हैं, कि मदरसों को सर्व शिक्षा अभियान से जोड़ने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष रखा जाएगा। ऐसा हो जाने से इन मदरसों में ये कमियां नहीं रहेंगी।
शिक्षक बिना मदरसा
कटिहार ज़िले के आजमनगर प्रखंड अंतर्गत 1170 मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम, माराडंगी 1128 केटेगरी के पुराने मदरसों में से एक है, इसके पास अपनी बिल्डिंग है, लेकिन आठ महीनों से यहाँ कोई शिक्षक नहीं है। आज नौबत ये है कि अब मदरसा का ताला तक नहीं खुलता है और मदरसे में नामांकित 143 बच्चे शिक्षा से वंचित हैं।
इसी तरह आजमनगर प्रखंड के 1195 मदरसा क़दरिया इमारतुल इस्लाम, बहरखाल में भी एक भी टीचर नहीं है। तीन साल पहले यहाँ के सभी टीचर रिटायर कर गए, उसके बाद यहाँ कोई बहाली नहीं हुई। हालांकि, कमेटी ने निजी खर्चे पर टीचर रखा है, जिस वजह से यहाँ रोज़ाना ताला खुल रहा है।
कटिहार ज़िले के कदवा अंतर्गत 1196 मदरसा बदरुल इस्लाम और किशनगंज के पोठिया प्रखंड अंतर्गत 590 मदरसा इस्लामिआ फैज़ुल ग़ुरबा, दामलबाड़ी हाट जैसे पुराने मदरसे एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।
मदरसा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन सलीम परवेज़ कहते हैं कि मदरसा में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए बिहार सरकार से 5500 टीचर्स की मांग की गई है।
मदरसों की कमिटियां
मदरसों की बदहाली के लिए सरकार और बोर्ड के साथ बहुत हद तक इन मदरसों को चलाने वाली कमेटियां भी ज़िम्मेदार हैं। दरअसल, हर एक मदरसे की नौ सदस्यीय कमेटी होती है। इस कमेटी में दो डोनर, दो अभिभावक, दो स्थानीय पढ़े लिखे लोग, दो स्टाफ और एक अधिकारी शामिल होते हैं। दोनों डोनर को सेक्रेटरी और अध्यक्ष का पद दिया जाता है, वहीं मदरसे के हेड मौलवी का भी कमेटी में होना ज़रूरी है। इस कमेटी का कार्यकाल तीन साल का होता है। मदरसे का हर एक काम, जैसे शिक्षक बहाली से लेकर वेतन भुगतान तक इसी कमेटी की मंज़ूरी से होता है। दिक्कत ये है कि ये कमेटियां अक्सर आपसी विवाद के दलदल में फंसी होती हैं, जिस वजह से मदरसे का छोटा छोटा काम सालों साल अटका रहता है।
बोर्ड के चेयरमैन सलीम परवेज़ का दावा है कमेटियों के विवाद को कम करने के लिए नियमवाली में कई बदलाव किये गए हैं और आने वाले दिनों में इसमें बहुत हद तक सुधार दिखेगा।
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