दुखी राम का नामकरण जब उनके पिता ने किया होगा, तो शायद ही उन्हें अंदाजा रहा होगा कि उनका नाम उनके जीवन का पर्याय बन जाएगा।
रोहतास जिले के सुरजपुरा स्थित रमई नगर मोहल्ले के रहने वाले 40 वर्षीय दुखी राम अकेले रहते हैं और पिछले डेढ़ दशक से कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं। कुष्ठ रोग के चलते ही उनकी शादी भी नहीं हो पाई। कुष्ठ रोग की वजह से उनके हाथों की सभी उंगलियां कटकर छोटी हो गई हैं जिस वजह से वह कोई काम ठीक से नहीं कर पाते हैं। मगर, तब भी वह किसी तरह जी रहे थे, लेकिन पिछले चार साल से उनको राशन मिलना भी बंद हो गया, जिसके चलते अब उनका जीवन और भी मुश्किल हो गया है।
वह कहते हैं, “पहले राशन मिलता था। कोरोना के चलते जब लॉकडाउन लगा, तो राशन भी मिलना बंद हो गया। डीलर बोला कि आधार कार्ड नहीं है, तो राशन नहीं मिलेगा।”
लेकिन, आधार कार्ड बनवाना उनके लिए पहाड़ तोड़ने जैसा साबित हुआ। तमाम कोशिशों को बाद भी उनका आधार कार्ड नहीं बन पाया और इसमें एक वजह बना कुष्ठ रोग।
कुष्ठ रोग एक संक्रामक बीमारी है। यह माइकोबैक्टीरियम लेप्राई नाम रोगाणु से होता है। ये रोग त्वचा, ऊपरी श्वसन पथ की सतहों और आंखों पर असर डालता है।
“दो बार ब्लॉक ऑफिस और एक बार सासाराम गये, लेकिन तीनों ही बार आधार कार्ड बनवाने की प्रक्रिया शुरू नहीं हो पाई। वहां कहा गया कि मेरे अंगूठे का निशान मैच नहीं कर रहा है क्योंकि कुष्ठ रोग के चलते मेरे अंगूठे का कुछ हिस्सा खत्म हो चुका है। आंख की पुतली भी मैच नहीं कर पाई,” उन्होंने कहा। दुखी राम को नहीं पता कि आंख की पुतली का बायोमेट्रिक मैच क्यों नहीं किया, लेकिन चूंकि कुष्ठरोग में आंखों पर भी प्रभाव पड़ता है, तो संभव है कि इसी वजह से उसकी आंखों का बायोमेट्रिक मैच नहीं किया होगा।
वह हाथ क्षतिग्रस्त होने से कठिन काम नहीं कर पाते हैं और लोगों से मांग कर खाते हैं।
उल्लेखनीय हो कि केंद्र सरकार ने साल 2017 में एक अधिसूचना जारी कर रियायती दर पर राशन लेने के लिए राशन कार्ड के साथ आधार कार्ड को लिंक कराना अनिवार्य कर दिया था और इसकी तिथियां अब तक कई दफा बढ़ चुकी हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने समय समय पर यह भी कहा कि जिन परिवारों के आधार कार्ड से राशन कार्ड लिंक्ड नहीं है, उन्हें राशन से वंचित नहीं किया जा सकता है।
लेकिन दुखी राम के मामले से पता चलता है कि केंद्र सरकार के आदेशों की अनदेखी हुई है।
दुखी राम के मोहल्ले में रहने वाले लोगों का कहना है कि इस मोहल्ले में करीब 70 प्रतिशत लोगों का राशन बंद है क्योंकि उनके पास आधार कार्ड नहीं है।
मामला सिर्फ राशन तक ही सीमित नहीं है। दुखी राम बताते हैं कि उन्हें नौ महीनों तक कुष्ठ रोग को लेकर पेंशन भी मिला था, लेकिन आधार कार्ड नहीं होने से वह भी बंद हो गया है। वह कहते हैं, “बीडीओ साहब के पास गये थे, तो बोला कि आधार कार्ड नहीं है इसलिए पेंशन नहीं मिलेगा।
दुखी राम झल्लाते हुए कहते हैं, “पेंशन के लिए दफ्तर में गये, तो एक आदमी बोला है कि पटना जाओ, एक बोला कि सासाराम जाओ…. कोई कहेगा कि मुंबई जाओ, दिल्ली जाओ…हम कहां कहां जाएंगे।”
कुष्ठ रोग
दुनिया में कुष्ठ रोग की मौजूदगी के संकेत 4000 BC में मिलते हैं, लेकिन इसे फैलाने वाली बैक्टीरिया की शिनाख्त नार्वे के एक चिकित्सक ने साल 1873 में की थी। कुष्ठरोग एक ऐसा रोग है, जिसके प्राथमिक लक्षण सामने आने में 5 से 10 वर्ष लगते हैं।
दुनिया में कुष्ठ रोग के सबसे अधिक मामले भारत में दर्ज किये गये। वर्ष 2019 विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 160 देशों में कुल 2,02,185 कुष्ठ रोगियों की शिनाख्त की थी, जिसमें 56.61 प्रतिशत कुष्ठ रोगी भारत में थे।
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कुष्ठ रोग पर नियंत्रण के लिए भारत ने सबसे पहला कार्यक्रम 1955 में शुरू किया था। इसके बाद से समय समय पर कई और कार्यक्रम शुरू किये गये।
21 मार्च 2023 को केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण राज्य मंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार की ओर से राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में दिये गये आंकड़ों से पता चलता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भले ही केंद्र सरकार ने उन्मूलन लक्ष्य हासिल कर लिया हो, लेकिन कुछ राज्यों में अब भी स्थिति चिंताजनक ही है।
आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में 10000 की आबादी में 2.3 लोग कुष्ठ रोग से ग्रसित पाए गए हैं, वहीं, झारखंड में ये आंकड़ा 1.4, महाराष्ट्र और ओडिशा में 1.2 और चंडीगढ़ में 1.4 है। बिहार में 10000 की आबादी में 0.9 लोग कुष्ठरोग ग्रस्त पाए गए गये हैं।
केंद्र सरकार ने भारत को वर्ष 2027 तक कुष्ठरोग मुक्त करने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए 30 जनवरी, 2023 को राष्ट्रीय प्लान व रोड मैप लांच किया गया।
हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस लक्ष्य को हासिल करने में कुछ चुनौतियों की ओर इशारा किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, तकनीकी चुनौतियों में लगातार आ रहे नये मामले, देखभाल की गुणवत्ता, शुरुआती चरण में ही मामलों की शिनाख्त, प्रयोगशालाओं की सेवाएं और संक्रमण पर नियंत्रण शामिल हैं, जबकि सामाजिक / आर्थिक / सांस्कृतिक चुनौतियों में स्टिग्मा, कुष्ठ रोगियों की समाज में स्वीकार्यता, कुष्ठरोग के बारे में एक बड़ी आबादी में जानकारी का अभाव और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आदि का जिक्र किया गया है।
सरकारी स्कीमों तक पहुंच मुश्किल
कुष्ठ रोगियों की आर्थिक मदद के लिए कुछ स्कीमें भी हैं। केंद्र सरकार, कुष्ठ रोग के चलते बुरी तरह प्रभावित अंगों की सर्जरी के लिए 12000 रुपये की मदद देती है। वहीं, बिहार सरकार कुष्ठ रोग से पीड़ितों को पेंशन के तौर पर 1500 रुपये प्रतिमाह देती है। हालांकि, साल 2020 एक मीडिया रिपोर्ट बताती है कि बिहार सरकार ने पेंशन की राशि बढ़ाकर 3000 रुपये किया है। लेकिन, बहुत सारे कुष्ठ रोगियों को सरकारी मदद नहीं मिल रही है।
दुखी राम के हाथ की सर्जरी के लिए सासाराम के सरकारी अस्पताल में बुलाया गया था, लेकिन बाद में अस्पताल ने सर्जरी करने से इनकार कर दिया। दुखी राम बताते हैं, “मेरा कोई परिवार नहीं है, इसलिए अस्पताल से बोला गया कि परिवार नहीं है, तो ऑपरेशन नहीं होगा क्योंकि फिर मेरी देखभाल कौन करेगा।”
दुखी राम के ही मोहल्ले के रहने वाले कुष्ठ रोग से पीड़ित 42 वर्षीय सत्येंद्र मांझी का कहना है कि उन्हें केंद्र या राज्य सरकार की किसी भी स्कीम का फायदा नहीं मिल रहा है।
उन्होंने कहा, “20 साल से कुष्ठ रोग है और इन 20 सालों में सरकार से कोई मदद नहीं मिली है। न कोई पेंशन मिल रहा है और सर्जरी कराने के लिए कोई राशि मिली।”
40 वर्षीय सत्येंद्र मांझी के पांच बच्चे और पत्नी हैं। वह बताते हैं कि उनके पास भी आधार कार्ड नहीं है, जिसके चलते राशन नहीं मिल पा रहा है। उनके पास अपना खेत भी नहीं है और कुष्ठ रोग के चलते वह विकलांग हैं, जिस कारण कोई काम भी नहीं कर पाते हैं। फिर उनका परिवार कैसे चलता है? इस सवाल किसी तरह की शर्मिंदगी जाहिर किये बिना वह कहते हैं, “हम घूम घूम कर भीख मांगते हैं।” “मेहरारुओ ले आवेला कमाके, तs ओहिसे चलेला (पत्नी भी कमाकर लाती है, तो परिवार चल जाता है),” उन्होंने कहा।
हालांकि, पेंशन और फ्री राशन के लिए उन्होंने मुखिया से मुलाकात की थी, लेकिन उन्होंने भी आधार कार्ड बनवाने की बात कही।
“मुखिया जी से मिले राशन और पेंशन को लेकर, तो बोले कि आधार कार्ड बनवाइए, तो पेंशन मिलेगा लेकिन ब्लॉक ऑफिस में गये, तो वहां आधार बनाने के लिए 500 रुपये मांग रहा है। हमारे पास 500 रुपये है ही नहीं कि कार्ड बनवाएं,” उन्होंने कहा।
कृष्णा भारती, रोहतास जिले के सामाजिक कार्यकर्ता हैं और खुद कुष्ठ रोगी भी। वे कहते हैं कि दुखी राम और सत्येंद्र मांझी जैसे दर्जनों लोग हैं, जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। वह कहते हैं, “कुष्ठ रोग के ज्यादा मरीज दलित समुदायों में ही मिलते हैं, लेकिन उनके पास आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज नहीं होते हैं, जिस कारण उन्हें सरकार की किसी भी स्कीम का लाभ नहीं मिल पाता है।”
वह आगे कहते हैं, “जब हम लोग आधार कार्ड बनवाने के लिए सरकारी दफ्तरों में जाते हैं, तो वहां लोग हमसे घृणा करते हैं और भगा देते हैं।”
“दलित समुदाय के लोग हमेशा डरे सहमे रहते हैं, इसलिए वे जरूरी दस्तावेज बनवाने के लिए सरकारी दफ्तरों में भी जाने से डरते हैं, यही वजह है कि वे सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं और उन्हें परिवार चलाने के लिए भीख तक मांगना पड़ता है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह उनके कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को पीड़ितों के घर तक पहुंचाए,” उन्होंने कहा।
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