बिहार के किशनगंज जिला स्थित देसियाटोली गांव का इतिहास 400 वर्ष पुराना है। बहादुरगंज प्रखंड अंतर्गत देसियाटोली टोली पंचायत का यह गांव देसियाटोली एस्टेट हुआ करता था। 1877 में देसियाटोली में फ़ज़्लुर्रहमान एस्टेट और मेहर अली एस्टेट की शुरुआत हुई। दोनों एस्टेट के जागीरदार मोहम्मद हैदर चकलादर के वंशज थे।
ऐसा माना जाता है कि हैदर चकलादार 1630 के दशक (संभवतः 1623) में देसियाटोली गांव आये थे। उनकी पांचवीं पुश्त के वंशज मोहम्मद मुनाफ के दो पुत्र ग़ुलाम मोहम्मद सरकार और अनायतुल्लाह की अगली पीढ़ी ने देसियाटोली एस्टेट की नींव रखी।
मोहम्मद मुनाफ के पोते मेहर अली और परपोते मोहम्मद फ़ज़लुर्रहमान ने देसियाटोली एस्टेट की शुरुआत की। देसियाटोली निवासी और जमींदार मोहम्मद फ़ज़्लुर्रहमान के पोते मास्टर अमानुल्लाह ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि फ़ज़्लुर्रहमान एस्टेट और मेहर अली एस्टेट संभवतः 1877 ई में अस्तित्व में आया था। दोनों एस्टेट के जागीरदार देसियाटोली एस्टेट से ही पहचाने गए। बीसवीं सदी में देसियाटोली एस्टेट किशनगंज के कुछ सबसे बड़े राजस्व जमा करने वाले गांवों में से एक हुआ करता था।
अमानुल्लाह ने आगे बताया कि वर्ष 1947 में एस्टेट का वक्फनामा बनाया गया जिसमें वक्फ विलेख संख्या 169 में देसियाटोली की जागीरदारी का ब्यौरा दिया गया। 60 वर्ष पहले 1877 ई में देसियाटोली एस्टेट अस्तित्व में आया हालांकि मोहम्मद हैदर चकलादार के वंशज लंबे समय से इलाके के सबसे बड़े जागीरदार रहे थे। कहा जाता है कि उनकी खेती कई एकड़ जमीन में फैली थी।
ऐसे हुई थी देसियाटोली एस्टेट की शुरुआत
हैदर चकलादार जब देसियाटोली गांव आये तो उन्होंने वहां खेती करनी शुरू की। उनकीअगली पीढ़ी में भी खेती जारी रही। उनके छठी पीढ़ी में आने वाले मेहर अली के समय एस्टेट में जमींदारी शुरू हुई।
“मेहर अली धबेली एस्टेट के एहसान बख़्श की बहन से शादी की और उसी ज़माने में एस्टेट कायम हुआ। मेरे परदादा नजाबतुल्लाह बहुत बड़े किसान थे। उनकी 1200 बीघा बका जमीन थीं। एस्टेट की मस्जिद 1905 से 1910 के बीच बनी थी। मेहर अली एस्टेट की हवेली भी उसी दौरान बनी, इसे मैहर अली साहब ने बनवाया था,” अमानुल्लाह ने बताया।
मेहर अली एस्टेट के संस्थापक मेहर अली के बेटे मोहम्मद अफ़ज़ल की अचानक मृत्यु होने पर खान फ़ज़लुर्रहमान मेहर अली एस्टेट के भी मुतवल्ली अर्थात प्रबंधक बने। खान फ़ज़्लुर्रहमान मेहर अली के भतीजे और दामाद थे। फ़ज़्लुर्रहमान को अंग्रेज़ों द्वारा ‘खान’ का खिताब दिया गया था।
अमानुल्लाह ने बताया, “देसियाटोली में दो एस्टेट थे, एक खान फ़ज़्लुर्रहमान एस्टेट और एक मेहर अली एस्टेट। मेहर अली के बेटे जमींदार मोहम्मद अफ़ज़ल इंतेकाल कर जाते हैं, जिससे जिम्मेदारी उनके बहनोई खान फ़ज़्लुर्रहमान पर आ जाती है। देसियाटोली एस्टेट पाटकोई से खड़सेल तक और भोलमारा से अलताबाड़ी तक फैला था। खतियान के अनुसार 4 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में एस्टेट का फैलाव था।”
1947 तक विधायक रहे एस्टेट के जमींदार खान फ़ज़्लुर्रहमान
खान मोहम्मद फ़ज़्लुर्रहमान ने देसियाटोली एस्टेट की जमींदारी को फैलाया और स्वतंत्रता से पहले बड़े सरकारी पद पर भी रहे। अमानुल्लाह ने बताया कि उनके दादा खान फ़ज़्लुर्रहमान 1947 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। इसके अलावा उन्होंने लोकल बोर्ड की अध्यक्षता की और एसडीओ कोर्ट में मानद मजिस्ट्रेट रहे।
जब 1947 में खान फ़ज़्लुर्रहमान की मृत्यु हुई तब वह बहादुरगंज से विधानसभा के सदस्य थे। 24 जुलाई 1946 में बिहार विधानसभा में खान फ़ज़्लुर्रहमान ने कुछ प्रश्न किये थे जिसकी प्रतियां ‘मैं मीडिया’ को मिलीं। खान फ़ज़्लुर्रहमान ने बिहार विधानसभा में सरसों तेल की तस्करी के मामले में किशनगंज के उपमंडल पदाधिकारी पर कार्रवाई न होने का कारण पूछा था।
सदन में उन्होंने कहा, “बंगाल में बड़ी संख्या में सरसों के तेल के टिन की तस्करी के संबंध में भारत के रक्षा नियमों के तहत अपराध करने के लिए किशनगंज के दिवंगत उपमंडल अधिकारी राय बहादुर बी.बी. सिंह के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी क्यों रोक दी गई? क्या सरकार उपरोक्त अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का इरादा रखती है और यदि नहीं, तो क्यों?”
खान फ़ज़्लुर्रहमान किशनगंज से ‘आईना’ नामक अखबार निकालते थे। अखबार में विधानसभा के कार्यवाही की प्रतियां भी छपती थीं जिसपर कुछ लोगों ने आपत्ति दर्ज की थी।
इस पर खान फ़ज़लुर्रहमान ने सदन में पूछा था,”क्या माननीय राजस्व विभाग के प्रभारी मंत्री यह बताने की कृपा करेंगे कि क्या बिहार विधानमंडल की कार्यवाही की प्रतियों को मान्यता प्राप्त समाचार पत्रों को आपूर्ति करने में कोई आपत्ति है जो नि:शुल्क, या कम से कम कीमतों पर अपने संपादकीय पुस्तकालयों में रखने के उद्देश्य से छापे जाते हैं?”
उनके प्रश्न का राजस्व विभाग मंत्री कृष्णा वल्लभ सहाय ने जवाब दिया था कि ऐसा करने में कोई आपत्ति नहीं है बशर्ते प्रतियां प्रकाशित करने वाला अखबार अच्छी तरह से स्थापित हो।
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फज़्लुर्रहमान ने देसियाटोली में अस्पताल, स्कूल का निर्माण कराया
खान फ़ज़्लुर्रहमान के पोते मोहम्मद अमानुल्लाह ने बताया कि खान फ़ज़्लुर्रहमान जब विधायक बने तो उन्होंने एस्टेट के पास एक अस्पताल बनवाया और अपने ससुर मेहर अली के नाम पर अस्पताल का नाम मेहरगंज अस्पताल रखा।
मोहम्मद अमानुल्लाह ने अस्पताल के बारे में कहा, “नदी कटाव में जब अस्पताल कट गया तो मज़हरुल हक़ और मेरे पिता ज़ियाउर्रहमान साहब ने ज़मीन देकर अस्पताल को बरकरार रखा। अभी 20 बेड का अस्पताल बन गया है। यह अस्पताल अंग्रेज़ के जमाने से है और सरकारी है। बहादुरगंज, पौआखाली और मेहरगंज ये तीनों अस्पताल बहुत पुराने हैं, इन्हें अंग्रेज़ के जमाने में कायम किया गया था।”
खान फ़ज़्लुर्रहमान ने 1930 के दशक में सलामपुर गांगी में एक प्राथमिक स्कूल बनवाया था, अभी वह स्कूल मध्य विद्यालय बन गया है। उन्होंने कई वर्षों तक किशनगंज से ‘आईना’ अखबार प्रकाशित किया। वह विधायक रहे और उस दौरान दसियाटोली एस्टेट में उन्होंने सड़कें, स्कूल, अस्पताल और डाकखाना बनवाया। उन्होंने मेहरगंज हाट शुरू कराया और अपने कार्यकाल में एक डाकखाना भी बनवाया जिसका नाम उन्होंने मेहरगंज पोस्ट ऑफिस रखा।
फ़ज़्लुर्रहमान शिक्षा पर जोर दिया करते थे। यही वजह रही कि उन्होंने अपने बच्चों को शिक्षा के लिए बाहर भेजा। मास्टर अमानुल्लाह की मानें तो खान फ़ज़्लुर्रहमान के बेटे मोतिउर्रहमान मोहन बागान फुटबॉल टीम का हिस्सा रहे थे। वह बंगाल के लाल गोला अकादमी से पढ़े थे जहां अंग्रेजों के बच्चे भी पढ़ने आते थे। उन्होंने स्कूल में ही फूटबाल खेलना सीखा। फ़ज़्लुर्रहमान के एक और पुत्र ज़ियाउर्रहमान ने अलीगढ़ में पढ़ाई की जबकि उनके बड़े भाई अताउर्रहमान ने बैंगलोर से एल.एम.एफ़ की डिग्री हासिल की थी।
मास्टर अमानुल्लाह ने बताया कि 1940 के दशक में ज़मींदार खान फ़ज़्लुर्रहमान के पास फोर्ड की एक कार थी। वह कहते हैं, “उस समय पूरे बिहार में वो कार 3-4 लोगों के पास हुआ करती थी उनमें से एक खान फ़ज़्लुर्रहमान भी थे।”
किशनगंज के लाइन मोहल्ले में हुआ करती थी शानदार हवेली
किशनगंज के लाइन मोहल्ले में खान फ़ज़्लुर्रहमान का एक हवेलीनुमा घर था जो चार बीघा में फैला था। अपने विधायकी के दौर में वह अधिकतर वहीं रहते थे। उस घर के बारे में अमानुल्लाह कहते हैं, “बाहर से डॉक्टर बुलाकर वह लोगों की आँखों का ऑपरेशन कराते थे। हर साल 400 से अधिक लोगों का ऑपरेशन होता था। किशनगंज के लाइन मोहल्ले में एक बड़ी हवेली थी उनकी।”
आगे उन्होंने कहा, “चार कमरे इधर से और चार कमरे उधर से और बीच में बड़ी हवेली थी। वह एमएलए थे और मानद मजिस्ट्रेट भी थे इसलिए उनके घर पर अंग्रेज़ और बड़े पद वाले लोग आते थे।”
मास्टर अमानुल्लाह ने बताया कि खान फ़ज़्लुर्रहमान किशनगंज के एसडीओ कोर्ट में मानद मजिस्ट्रेट थे। अमानुल्लाह ने हमें कोर्ट के कुछ पुराने कागज़ात दिखाए जिसमें खान फ़ज़्लुर्रहमान के हस्ताक्षर और मुहर के निशान देखे जा सकते हैं।
“किशनगंज एसडीओ कोर्ट में उनका नाम लिखा हुआ है। वहां जो पदाधिकारियों ने काम किया उनका नाम और कार्यकाल की अवधि दफ्तर में लिखा गया है,” अमानुल्लाह ने बताया।
खान फ़ज़्लुर्रहमान अपने आखिरी समय फ़ालिज की बीमारी से ग्रसित हुए। अपने अंतिम समय में उन्होंने अपनी संपत्ति ‘अलल औलाद’ व्यवस्था के तहत वक्फ की थी। इसमें मेहर अली एस्टेट की संपत्ति उनके पोते ज़हरुल हक़ और मज़हरूल हक़ में बांटी गई। वहीं, खान फ़ज़्लुर्रहमान एस्टेट की संपत्ति उनके पांच बेटों को मिली जिनमें परिवार के बड़े बेटे अताउर्रहमान को फ़ज़्लुर्रहमान एस्टेट का ‘मुतवल्ली’ (प्रबंधक) बनाया गया।
खान फ़ज़्लुर्रहमान के छोटे पुत्र सादिकुर रहमान अभी जीवित हैं लेकिन उनकी तबीयत खराब होने के कारण उनके बड़े भाई मुजीबुर्रहमान के पुत्र मोहम्मद सालिम इस समय खान फ़ज़्लुर्रहमान एस्टेट के प्रबंधक हैं। अमानुल्लाह ने बताया कि मेहर अली एस्टेट के प्रबंधक इस समय फ़ैयाज़ मज़हर हैं। मेहर अली के वंशज वर्षों पहले गांव छोड़कर चले गए थे जिनमें अधिकतर किशनगंज शहर में आ बसे।
देसियाटोली एस्टेट की पुरानी परम्पराएं
जमींदार खान फ़ज़्लुर्रहमान के पोते अमानुल्लाह ने बताया कि देसियाटोली एस्टेट के अधीन 40 से 50 तहसीलदार थे। एस्टेट में कई दीवान और ‘मुहाफ़िज़’ रहते थे जो एस्टेट की सुरक्षा, हिसाब-किताब, पत्राचार जैसे काम देखते थे। एस्टेट में एक बड़ा सा घंटा था जो भोजन का समय होने पर बजाया जाता था।
“एस्टेट में एक बड़ा घंटा बजता था, जिसकी आवाज़ 3-4 किलोमीटर तक जाती थी। जो लोग लगान देने के लिए देसियाटोली एस्टेट आते थे उन्हें खाना खिलाने के लिए घंटा बजाया जाता था,” अमानुल्लाह बोले।
देसियाटोली एस्टेट में धूमधाम से मुहर्रम मनाया जाता था जिसे दूर दूर से लोग देखने आते थे। खान फ़ज़्लुर्रहमान के पोते और एस्टेट के मौजूदा प्रबंधक मोहम्मद सालिम ने बताया कि देसियाटोली एस्टेट में चार हाथी थे जिनकी मदद से मुहर्रम की भीड़ को नियंत्रित किया जाता था। हर वर्ष मुहर्रम के दिन देसियाटोली में 3 से 4 हज़ार लोग आते थे।
देसियाटोली गांव में आज भी मुहर्रम मनाया जाता है। करीब डेढ़ सौ साल पुरानी यह परंपरा आज भी जारी है। देसियाटोली एस्टेट की निशानी के तौर पर 120 वर्ष पुरानी मस्जिद और एक सफ़ेद हवेली आज भी गांव में मौजूद है। सफ़ेद हवेली में फिलहाल कोई नहीं रहता हालांकि मुहर्रम के अवसर पर परिवार के लोग हवेली की खिड़की से मुहर्रम मनाते लोगों को देखते हैं। यह पुरानी प्रथा वर्षों से कायम है।
मस्जिद के सामने पुराना कब्रिस्तान है जहां एस्टेट के जागीरदारों की कब्रें हैं। 1947 में जब खान फ़ज़्लुर्रहमान का निधन हुआ तो उन्हें उसी कब्रिस्तान में सुपूर्द-ए-ख़ाक किया गया।
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