बिहार के किशनगंज जिला स्थित कोचाधामन प्रखंड के रुइया गांव की रहने वाली दो बहनें मन्नत और रहमत बचपन से चल और बोल नहीं सकतीं। उनके पिता मोहम्मद ज़हीर ने बताया कि गर्भावस्था में उनकी पत्नी को जरूरी इलाज और दवाइयां न मिलने के कारण दोनों बच्चियां शारीरिक और मानसिक दिव्यांगता का शिकार हो गईं। उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह शहर के अस्पतालों में बच्चियों का इलाज कराएं।
रुइया में करीब दो दर्जन बच्चे किसी न किसी दिव्यांगता के शिकार हैं। गांव के लोग लंबे समय से APHC यानी अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में छोटी-मोटी बीमारी के इलाज के लिए भी 10 से 12 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। गांव में न APHC है न HSC, जिसके कारण गर्भवती महिला व नवजात बच्चों को सामान्य इलाज नहीं मिल पाता है।
पांच वर्षीय अयान बोल नहीं सकता। रीढ़ की हड्डी में दिक्कत के कारण उसे चलने में भी तकलीफ होती है। अयान की नानी कौसरी बेगम ने बताया कि बचपन में उसका टीकाकरण नहीं हो सका। जब वह छोटा था तब घर वाले समझ नहीं पाए, धीरे धीरे अयान चलने लगा तो पता चला कि वह बोल नहीं सकता और उसे चलने में भी थोड़ी तकलीफ है।
अयान की तरह 12 वर्षीय अरमान भी बोल नहीं सकता। पिछले महीने अरमान के पिता उसे दिल्ली ले गए थे जहां डॉक्टरों ने बताया कि बचपन में आवश्यक टीका नहीं लगने के कारण अयान का मानसिक और मौखिक विकास ठीक से नहीं हो सका है।
रुइया निवासी इस्लाम दिहाड़ी मज़दूर हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य सर्दी, बुखार होने पर वह 5 किलोमीटर दूर जनता हाट जाते हैं। डॉक्टर की फीस और दवाई का खर्च इतना ज्यादा होता है कि इलाज कराने से पहले कई बार सोचना पड़ता है।
आगे उन्होंने बताया कि घर में किसी तरह की इमरजेंसी हो जाने पर कर्ज उधार लेकर शहर में इलाज कराना पड़ता है। पिछले दिनों उनकी बहू को प्रसव के लिए किशनगंज के निजी अस्पताल ले जाना पड़ा। डॉक्टर ने पहले 20 हज़ार बोला लेकिन बाद में 50 हज़ार का बिल बना दिया।
स्थानीय वार्ड सदस्य प्रतिनिधि शाह अफ़रोज़ ने बताया कि उनके वार्ड में पांच गांव आते हैं। उनके वार्ड क्षेत्र में 20 से अधिक बच्चे दिव्यांगता के शिकार हैं। 2 सप्ताह पहले इलाज न मिलने के कारण एक बच्चे की मृत्यु हो गई थी।
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स्थानीय युवा जानिसार अख्तर कहते हैं कि गांव में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा न होने के कारण पिछले 10 वर्षों में गांव में प्रसव के दौरान 5 से अधिक महिलाओं की मृत्यु हो गई है।
आगे उन्होंने कहा कि अगर सरकार के पास रुइया में APHC बनाने के लिए जमीन नहीं है तो उनका परिवार जमीन देने को तैयार है। इस बारे में उन्होंने कोचाधामन प्रखंड के स्वास्थ्य प्रबंधक से भी बात की थी लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
कोचाधामन स्वास्थ्य प्रबंधन अधिकारी किशोर कुमार केसरी ने बताया कि रुइया में HSC यानी स्वास्थ्य उपकेन्द्र के निर्माण की स्वीकृति मिल चुकी है लेकिन भूमि न होने के कारण वहां भवन का निर्माण नहीं हो सका है।
उन्होंने यह भी बताया कि रुइया निवासी जानिसार अख्तर ने उनसे जमीन उपलब्ध कराने की बात की है। अगर वह जमीन दे देते हैं तो जमीन की कागजी प्रक्रिया पूरी कर HSC भवन का निर्माण करा दिया जाएगा।
वहीं रुइया HSC की ए.एन.एम सरिता सोरेन ने बताया कि भवन न होने के कारण काम करने में काफी दिक्कतें आती हैं। उन्होंने गांव में न आने के ग्रामीणों के आरोप को गलत बताते हुए कहा कि वह अपने स्तर से गांव में स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने का काम कर रही हैं। जागरूकता के अभाव में अक्सर गांव की महिलाएं दवाइयां लेने से हिचकिचाती हैं।
कोचाधामन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ कुंदन कुमार निखिल ने कहा कि रुइया में आशा और एएनएम द्वारा टीकाकरण और गर्भवती महिलाओं की देखरेख का सारा काम किया जा रहा है। APHC भवन निर्माण के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए वह जिला पदाधिकारी से बात कर जल्द भवन बनवाने का प्रयास करेंगे।
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