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बिहार-बंगाल सीमा पर वर्षों से पुल का इंतज़ार, चचरी भरोसे रायगंज-बारसोई

करीब 100 फ़ीट लंबे इस चचरी पुल का अधिकतर हिस्सा पश्चिम बंगाल के रायगंज विधानसभा क्षेत्र में आता है वहीं, दूसरी तरफ बिहार का बारसोई है। चचरी के इस पुल से दोनों राज्यों के सैकड़ों लोग रोजाना आवागमन करते हैं जिसके लिए उन्हें किराया देना पड़ता है।

Aaquil Jawed Reported By Aaquil Jawed |
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बिहार और पश्चिम बंगाल को जोड़ने वाला तारापुर – गोढ़हार घाट लंबे समय से सरकारी उदासीनता का शिकार है। यह घाट महानंदा और नागर नदी का संगमस्थल है जहां बिहार का कटिहार ज़िला, पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर ज़िले से जुड़ता है। आम दिनों में लोग चचरी पुल का प्रयोग कर नदी पार करते हैं, लेकिन बरसात के समय जलस्तर बढ़ जाने से लोगों को नाव पर निर्भर रहना पड़ता है।

करीब 100 फ़ीट लंबे इस चचरी पुल का अधिकतर हिस्सा पश्चिम बंगाल के रायगंज विधानसभा क्षेत्र में आता है वहीं, दूसरी तरफ बिहार का बारसोई है। चचरी के इस पुल से दोनों राज्यों के सैकड़ों लोग रोजाना आवागमन करते हैं जिसके लिए उन्हें किराया देना पड़ता है।

पश्चिम बंगाल के गोढ़हार गांव निवासी ज़मीरुद्दीन, बिहार में अपनी बेटी के घर जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुल से गुजरने के लिए ग्रामीण हर साल 50 किलो धान देते हैं, जो अनाज नहीं देते, उन्हें हर बार चचरी पुल पार करने पर पैसा देना पड़ता है।


आगे उन्होंने कहा कि पिछले कई वर्षों से स्थानीय जन प्रतिनिधियों से पुल बनाने की मांग की जा रही है लेकिन दोनों राज्यों की सरकार इस मामले में कोई रुचि नहीं दिखा रही है।

बंगाल के गोढ़हार गांव निवासी रुह-उल-अमीन बिहार जाने के लिए इसी चचरी पुल का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने बताया कि मोबाइल में देखने पर घाट पर एक ब्रिज दिखाता है लेकिन जब लोग अपनी गाड़ी लेकर पहुँचते हैं तो पता चलता है यहां तो पुल है ही नहीं। विधायक और सांसद ने कई बार आश्वासन दिया लेकिन किसी ने पुल नहीं बनवाया।

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आगे उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि पुल न होने से जो लोग कठिनाई का सामना करते हैं वे सब मिलकर चुनाव का बहिष्कार करें, केवल एक गांव के बहिष्कार करने से बात नहीं बनेगी।

बिहार के बारसोई के अधिकतर किसान और दुकानदार अपने सामान के लिए पश्चिम बंगाल के बाज़ारों पर निर्भर हैं। बिहार के आबादपुर गांव निवासी मोहम्मद कालू पश्चिम बंगाल के रायगंज से सामान खरीद कर वापस अपने घर जा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि लंबे समय से इस घाट पर पुल बनाने की मांग हो रही है लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। अगर पुल बन जाता है तो सबसे अधिक लाभ बिहार के किसानों को होगा। किसान अपनी फसल बंगाल के बड़े बाज़ारों में अच्छी कीमत पर बेच सकेंगे।

रायगंज के देबोजीत दास एक फाइनेंस कर्मी हैं। वह अक्सर रायगंज से बिहार के बारसोई स्थित अपने ग्राहकों के घर जाते हैं। उन्होंने बताया कि पुल न होने के कारण बरसात के दिनों में लोगों को आने जाने में काफी दिक्कतें होती हैं। दूसरे रास्ते से आने के लिए लगभग 50 किलोमीटर घूमना पड़ता है ऐसे में नाव ही एकमात्र सहारा होता है।

इस मामले में हमने रायगंज विधानसभा के पूर्व विधायक कृष्ण कल्याणी से फोन पर बात की। उन्होंने बताया कि पश्चिम बंगाल सरकार ने गोढ़हार घाट की जगह बहिन घाट पर पुल बनाने का निर्णय लिया है। पुल निर्माण के लिए वित्त विभाग ने 19 करोड़ रुपये स्वीकृत भी कर दिया है लेकिन बिहार सरकार NOC नहीं दे रही है जिस कारण सालों से प्रोजेक्ट रुका हुआ है।

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Aaquil Jawed is the founder of The Loudspeaker Group, known for organising Open Mic events and news related activities in Seemanchal area, primarily in Katihar district of Bihar. He writes on issues in and around his village.

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