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सहरसा: युवक ने आपदा को बनाया अवसर, बत्तख पाल कर रहे लाखों की कमाई

जिले के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड स्थित पूर्वी कोसी तटबंध के अंदर बसे सकरा पहाड़पुर गांव के रहने वाले पप्पू कुमार के लिए बत्तख पालन ही उनकी कमाई का जरिया बन गया है। ग्रेजुएशन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद पप्पू कुमार ने नौकरी के बजाय अपना कारोबार करने की ठानी। पप्पू बताते हैं कि बत्तख पालन को लेकर उन्होंने यूट्यूब का सहारा लिया और इससे संबंधित तमाम जानकारी वहीं से हासिल की।

Sarfaraz Alam Reported By Sarfraz Alam |
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जहां एक तरफ लोग मनोरंजन का साधन के तौर पर इस्तेमाल करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कई ऐसे युवा भी हैं जो सोशल मीडिया से सीख कर अपना कारोबार भी कर रहे हैं। ऐसा ही कुछ सहरसा जिले से सामने आया है, जहां यूट्यूब पर बत्तख पालन का वीडियो देखकर एक युवा ने बत्तख पालने का कारोबार शुरू कर दिया।

जिले के सिमरी बख्तियारपुर प्रखंड स्थित पूर्वी कोसी तटबंध के अंदर बसे सकरा पहाड़पुर गांव के रहने वाले पप्पू कुमार के लिए बत्तख पालन ही उनकी कमाई का जरिया बन गया है। ग्रेजुएशन और इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद पप्पू कुमार ने नौकरी के बजाय अपना कारोबार करने की ठानी। पप्पू बताते हैं कि बत्तख पालन को लेकर उन्होंने यूट्यूब का सहारा लिया और इससे संबंधित तमाम जानकारी वहीं से हासिल की।

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पप्पू कुमार शुरू में मुजफ्फरपुर से देसी प्रजाति का लगभग 200 बत्तख खरीद कर लाये और उसका पालन शुरू किया। देखते ही देखते उनका कारोबार चल निकला और पप्पू के पास अभी एक हजार से अधिक बत्तख मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि इस काम में उनको लागत मूल्य के पचास फीसद तक की बचत हो जाती है। पप्पू सरकारी उदासीनता पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि विभाग की तरफ से ऐसे कार्यों के लिए अनुदान दिया जाता है, लेकिन सरकारी बाबुओं की लेट-लटीफी की वजह से अनुदान लेने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।


बिहार का कोसी और सीमांचल इलाका हर साल सैलाब की मार झेलता है। आपदा ऐसी भयंकर होती है कि कई-कई जगहों पर सालों साल पानी लगा रहता है। ऐसे में एक युवक ने आपदा में ही अवसर खोजा और अपना कारोबार शुरू कर, अपने साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार का अवसर प्रदान कर रहा है। पप्पू कहते हैं कि सरकार तो हर किसी को नौकरी नहीं दे सकती है, इसलिए अपना कारोबार शुरू करना एक अच्छा विकल्प है। वह कहते हैं कि इलाके में नदी और पोखर भरे पड़े हैं, और सबसे अच्छी बात यह है कि देसी प्रजाति के बत्तख को पालने में मेहनत भी कम लगती है।

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एमएचएम कॉलेज सहरसा से बीए पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर सहरसा से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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