देश की राजधानी दिल्ली से 1200 और बिहार की राजधानी पटना से 250 किलोमीटर दूर बिहार के सुपौल जिले की लौउढ पंचायत के भैलाई टोले में 200 घर हैं। इनमें सिर्फ दो लोग सरकारी नौकरी करते हैं। बाकी परिवारों की जिंदगी खेती और दिल्ली-पंजाब में मजदूरी के भरोसे चलती है। कुछ परिवार को छोड़ दें, तो यहां परिवार की औसत मासिक कमाई 7000-9000 रुपये से ज्यादा नहीं होगी। इसके बावजूद 200 परिवारों में से लगभग 50 घर पानी खरीद कर पी रहा हैं।
“मेरे परिवार में 6 सदस्य हैं, जिसमें 2 बच्चे भी शामिल हैं। मैं घर-घर जाकर लोगों के बाल काटता हूं। मैं 10-12 हजार रुपये कमा लेता हूं। मेरे पास खेत के नाम पर कुछ नहीं है। इसके बावजूद सिर्फ पानी के पीने के लिए हम लोग 600 रुपये खर्च करते हैं।” भैलाई टोले के 33 वर्षीय राधे ठाकुर बताते है।
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पानी खरीदने की जरूरत क्यों पड़ी? इस सवाल के जवाब पर राधे बताते हैं, “गांव में पहले चर्म रोग आम हो चुका था। धीरे-धीरे यकृत, फेफड़े, गुर्दे और रक्त विकार संबंधी बीमारियां भी होने लगीं। पहले पता नहीं चला कि इन सब की वजह पानी है। फिर एक टीम आई थी 2017 में पटना से, पानी की जांच करने के लिए। टीम ने कुएं से पानी पीने के लिए कहा। हम लोग कुएं का पानी पीने लगे। धीरे धीरे लोग कुएं के पानी से अब खरीद कर पानी पी रहे हैं। बाकी लोग पानी खरीदने में असमर्थ रहने के कारण मजबूरी में नल जल योजना के तहत लगाए गए नल का पानी भी पी रहे हैं।”
पानी का बढ़ता व्यापार
पहले सुपौल जिला स्थित बरवाड़ी गांव में कपिलेश्वर मंदिर के पास राजीव मिश्रा पानी बेचते थे। लगभग 2 से 3 साल पहले वह एकमा, बरवाड़ी, परसरमा और बभनगामा में अकेले पानी सप्लाई करते थे। लेकिन अभी सिर्फ उनके दुकान के पास ही 4 और नई दुकानें खुल चुकी हैं।
राजीव बताते हैं, “जल नल योजना आने के बाद हमारा धंधा थोड़ा चौपट हुआ था। लेकिन, लोगों में जागरूकता आने के बाद फिर से पानी बिकने लगा। पहले सिर्फ बभनगामा गांव में 300 घर पानी पहुंचाते थे। अभी उस गांव में 40 से 50 घरों में ही पानी पहुंचाते हैं, जबकि बभनगामा गांव में दो-तीन और दुकानें खुल चुकी हैं। पहले जैसे पढ़ाई करना निश्चित था, उसी तरह अब पानी लेना हो चुका है। लोग दो रोटी कम खाते हैं लेकिन पानी जरूर शुद्ध पीते हैं।”
जल नल योजना कारगर नहीं
भारत सरकार के जल जीवन मिशन – हर घर जल कार्यक्रम के अनुसार, 21 नवंबर, 2021 तक के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 88.63 प्रतिशत घरों में नल के पानी की आपूर्ति है यानी बिहार के 17,220,634 घरों में से 15,262,678 घरों में नल कनेक्शन है।
“शुरू शुरू में हर घर के लोग जल नल योजना का पानी पी रहे थे। लेकिन धीरे-धीरे स्थिति बदल गई। अभी नल जल योजना का पानी सिर्फ कपड़ा धोने के काम आ रहा है। हालांकि जहां गरीबी है वहां मजबूरी में लोग पानी पी रहे हैं,” बभनगामा पंचायत के जनप्रतिनिधि मनमोहन झा बताते हैं। पानी व्यवसायी राजीव के मुताबिक, लोगों में शुद्ध पानी पीने की जागरूकता तो आई है, लेकिन पैसे की कमी की वजह से जल नल योजना का पानी पी रहे हैं।
सुपौल के भूगर्भ जल में 80 माइक्रोग्राम यूरेनियम
बिहार के कई जिलों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा पहले से ही बहुत ज्यादा थी, नया रिसर्च और भी डरावना है। ब्रिटेन की मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर पटना के प्रसिद्ध महावीर कैंसर शोध संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा बिहार के भूगर्भ जल की गुणवत्ता पर जारी रिसर्च के मुताबिक, राजधानी पटना के अलावा सुपौल, नालंदा, नवादा, सारण गोपालगंज और सिवान के पानी में स्वीकार्य से अधिक मात्रा में यूरेनियम मिला है जो बेहद चिंता का सबब है।
इस रिसर्च में शामिल महावीर कैंसर संस्थान के अरुण कुमार बताते हैं, “पानी में सबसे अधिक प्रति लीटर 80 माइक्रोग्राम यूरेनियम सुपौल जिले में मिला है। यह मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा स्वीकृत मात्रा से लगभग तीन गुना अधिक है। पानी में यूरेनियम की स्वीकृत मात्रा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर है।
सुपौल के बाद सिवान में प्रति लीटर पानी में 50 माइक्रोग्राम यूरेनियम मिला है।”
रिसर्च में शामिल बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण परिषद के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार घोष बताते हैं, “ग्रामीण बिहार का जिक्र करें तो वे जहरीले पानी पीने को पहले से मजबूर हैं। वहीं यूरेनियम किडनी को सर्वाधिक प्रभावित करता है, जो काफी चिंताजनक है। सरकार अगर कोई ठोस कदम नहीं उठाती है तो न केवल मानव जाति बल्कि पर्यावरण पर भी इसके घातक परिणाम देखे जा सकते हैं।”
जिले में किडनी रोग के मरीजों की संख्या
पूरे सुपौल जिले का जिक्र करें, तो सुपौल मुख्य शहर में स्थित सदर अस्पताल छोड़ कर कहीं भी डायलिसिस नहीं किया जाता है। सुपौल सदर अस्पताल के अस्पताल प्रबंधक विलास वर्मा डायलिसिस पेशेंट का आंकड़ा बताते हैं कि 2020 के दिसंबर महीने में डायलिसिस पेशेंट की संख्या 05 थीं वहीं 2021 के जून महीने में 19 और सितंबर महीने में 26, दिसंबर में 33 , 2022 फरवरी में 35 और अभी 39 मरीजों का डायलिसिस हो रहा है।
डायलिसिस सेंटर के हेड राजकुमार बताते हैं, “पूरे जिले में सिर्फ सदर अस्पताल में ही डायलिसिस होता है। लेकिन यहां पर सीट की संख्या फिक्स है। साथ ही सदर अस्पताल सुपौल में अच्छी व्यवस्था होने के बाद भी शहर या जिले में ना के बराबर लोगों की भर्ती होती है। जो आर्थिक तौर पर से थोड़ा भी मजबूत होता है, वह पूर्णिया, दरभंगा, पटना या फिर बाहर चला जाता है। इसके बावजूद सदर अस्पताल सुपौल में किडनी पेशेंट की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।”
जब हम अस्पताल के डायलिसिस सेंटर गए वहां 6 मरीजों का इलाज चल रहा था। उसमें से एक करिहो गांव की 20 वर्षीय अंशु कुमारी भी थी। अंशु के बड़े भाई नवनीत (38 वर्ष) बताते हैं, “अंशु की दोनों किडनी फेल है। डॉक्टर ने कोई खास कारण नहीं बताया। हमारे घर में यह बीमारी पहले किसी को भी नहीं हुई है। डॉक्टर ने इलाज के अलावा सिर्फ खरीद कर पानी पीने की सलाह दी।”
गांव की स्थिति डरावनी
सुपौल जिले के बीना बभनगामा गांव के परिवार टोले में लगभग 70 घर हैं। सभी घरों में खरीद कर पानी पिया जाता है। वजह यह है कि लगभग सभी घर समृद्ध हैं। लेकिन, उसी गांव के मुसहर टोली में 200 से ज्यादा घर मौजूद हैं। जो जल नल योजना के नल से पानी पी रहे हैं।
बिहार के जल पुरुष के तौर पर मशहूर एमपी सिन्हा बताते हैं, “यूं तो कोसी का इलाका जल के मामले में काफी समृद्ध रहा है। लेकिन इस क्षेत्र के पानी में आयरन व आर्सेनिक अधिक मात्रा मानव जीवन के लिए काफी खतरनाक है। यूरेनियम की मौजूदगी की खबर और भी डरावनी है। अमीर लोग तो किसी तरह बाजार से सप्लाई का पानी खरीद कर पीते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में तो स्वच्छ पेयजल की हालत और गंभीर है। लोग कुआं व चापाकल का दूषित पानी पीने को मजबूर हैं।”
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