भारत के कई राज्यों में लम्पी वायरस (Lumpy Virus) का कहर व्यापक स्तर पर देखा जा रहा है। इस वायरस की वजह से सिर्फ राजस्थान में 50,000 से ज्यादा गायों की मौत हो चुकी है और लाखों संक्रमित हैं। राजस्थान के अलावा गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की कुछ जगहों पर भी इस वायरस के लक्षण देखे गए हैं।
अब यह वायरस बिहार में भी प्रवेश कर चुका है और सीमांचल के कुछ क्षेत्रों में इसके लक्षण देखे जा रहे हैं।
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बिहार में कटिहार जिले के बारसोई अनुमंडल क्षेत्र के कुछ गांवों के पशुओं में लम्पी वायरस जैसे लक्षण देखे गए हैं।
कदवा प्रखंड की शेखपुरा पंचायत अंतर्गत जादेपुर गांव के निवासी सैफुल्लाह खालिद उर्फ बिट्टू ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि उनके गांव में भी लम्पी वायरस फैल चुका है और उनके दो पशुओं को चपेट में ले लिया है। इनमें से एक की हालत काफी खराब हो गई थी, लेकिन स्थानीय चिकित्सक द्वारा दवाई और इंजेक्शन देने के बाद कुछ कम हुआ है।
वहीं, कदवा प्रखंड की चंधहर पंचायत अंतर्गत पकड़िया गांव के दो पशुओं में इस वायरस के लक्षण देखे गए हैं।
पकड़िया गांव के मजनू शर्मा के पास एक गाय है जिसके बछड़े को बुरी तरह से लम्पी वायरस ने प्रभावित किया है। बछड़े के पूरे शरीर पर गांठ उभर चुकी है और कुछ गांठ (घाव) बन चुकी है, जिनमें से पानी निकल रहा है।
जागरूकता न होने की वजह से गांव में लोग इसे पानी गूटी बीमारी का नाम दे रहे हैं और पारंपरिक तरीके से इलाज करने में लगे हैं।
उसी गांव के डोमरा शर्मा की गाय के शरीर में भी गांठ हैं, जिनमें से पानी निकल रहा है। डोमरा शर्मा की पत्नी ने बताया कि लगभग 20 दिनों से ऐसा हो रहा है, कई पशु चिकित्सकों द्वारा इलाज कराने के बाद भी बीमारी पकड़ में नहीं आ रही है। सैकड़ों रुपए अब तक गांव के आसपास के पशु-चिकित्सकों को दे चुके हैं, लेकिन यह बीमारी खत्म नहीं हो रही है। चमड़ी अब सड़ने लगी है।

रिजवानपुर पंचायत अंतर्गत बिदेपुर गांव के मोहम्मद महफूज भी पशुपालक हैं और गाय पालते हैं। आस पास के इलाके में थोड़ा बहुत दूध भी बेच लेते हैं।
उनकी गाय के बछड़े के शरीर में लम्पी वायरस जैसे लक्षण दिखाई देने लगे हैं। बछड़े की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है और बछड़ा कमजोर होता दिख रहा है। इस वजह से अब उनसे दूध खरीदने वाले ग्राहक दूध का सेवन करने में हिचक रहे हैं।
कृषि शोध संस्था BAIF (Bharatiya Agro Industries Foundation) से जुड़े विनोद कुमार कदवा प्रखंड की शेखपुरा पंचायत अंतर्गत मवेशियों को कृतिम गर्भधारण (AI) करवाने का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि इस इलाके में लंपी वायरस जैसे लक्षण कई पशुओं में उन्होंने देखे हैं।

वह कहते हैं कि इस बीमारी में पशुओं के शरीर पर गांठ बन जाती है और कुछ समय बाद उसमें से पानी जैसा पदार्थ निकलने लगता है किसी किसी पशुओं के पैर फूल जाते हैं और घाव बन जाते हैं। कई गांवों में इस तरह की बीमारी पशुओं को हो रही है।
“पहली दृष्टि में देखने पर यह बीमारी लम्पी वायरस ही लगती है। इस तरह की बीमारी आसपास के पंचायतों में भी मिल रही है, हर गांव के तीन चार पशुओं में इस तरह के लक्षण हमने देखे हैं। हालांकि अब तक इस बीमारी की वजह से किसी पशु की मौत की खबर नहीं है,” उन्होंने कहा।
क्या है लम्पी वायरस/लम्पी स्किन रोग
लम्पी स्किन डिजीज को ‘ढेलेदार या गांठदार त्वचा रोग वायरस’ के रूप में भी जाना जाता है। इसे संक्षेप में LSDV कहते हैं। यह एक संक्रामक रोग है, जो एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलता है। सीधे शब्दों में कहें, तो एक संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से दूसरा जानवर भी बीमार हो सकता है। यह रोग Capri Poxvirus नामक वायरस के कारण होता है। यह वायरस बकरी, लोमड़ी और भेड़ चेचक वायरस यानी goat pox और sheep pox वायरस के परिवार से संबंधित है।
जानकारों के मुताबिक, मवेशियों में यह बीमारी मच्छर के काटने, खून चूसने वाले कीड़ों, जानवरों से जानवरों के संपर्क में आने और जानवरों की लार आदि से फैलता है। इस रोग में पशुओं की मृत्यु दर कम होती है, लेकिन पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता कम हो जाती है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये वायरस अपना बिहेवियर भी चेंज कर सकता है और ऐसी संभावना है कि आगे चलकर ये वायरस इंसानों में भी फैल जाए। इसलिए इंसानों को भी इससे सतर्क रहने की जरूरत है।
कहां से आया लम्पी वायरस
उल्लेखनीय है कि इससे पहले वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी लम्पी वायरस का प्रकोप देखने को मिला था। इसके बाद साल 2019 में भी लम्पी वायरस का कहर भारत में देखने को मिला था।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान द्वारा दी गई एक रिपोर्ट में 14 सितंबर, 2021 को भी उत्तराखंड के काशीपुर ब्लॉक की चार गायों को LSD वायरस से पॉजिटिव पाया गया। अब इस साल लम्पी वायरस का प्रकोप फिर से गुजरात से फैला और बढ़ते बढ़ते 12 राज्यों तक पहुंच चुका है।
इसके लक्षण क्या हैं
लक्षण के बारे में पशुपालन विभाग के चलंत चिकित्सा पदाधिकारी कटिहार डॉ पंकज कुमार बताते हैं कि हल्का बुखार और मवेशी के त्वचा पर गांठ उभर आना इसका सबसे बड़ा लक्षण है। कुछ समय बाद गांठों का घाव में बदल जाना और उसमें से पानी जाना, मुंह से लार टपकना, नाक बहना और दूध कम हो जाना, समय पर इलाज न होने पर गांठ लिवर तक भी पहुंच सकती है और पशु की जान भी जा सकती है लेकिन जान जाने की संभावना कम रहती है।

कैसे फैलता है लम्पी वायरस
यह जानवरों का खून चूसने वाले कीड़े और मच्छरों के जरिए फैलता है। संक्रमित मवेशी का खून चूसने के बाद वही मच्छर जब दूसरे स्वस्थ मवेशी के शरीर से खून चूसने बैठता है तो इससे स्वस्थ मवेशी भी संक्रमित हो जाते हैं।
लम्पी वायरस के लक्षण दिखने पर क्या करें
लम्पी वायरस के लक्षण किसी मवेशी में दिख जाने पर सबसे पहले उस मवेशी को आइसोलेट (अलग-थलग) कर देना चाहिए। आस-पास साफ सफाई का ध्यान रखें और जल्द से जल्द जिला पशुपालन कार्यालय या स्थानीय पशु चिकित्सालय में इसकी सूचना दें।
क्या संक्रमित गाय का दूध पी सकते हैं
बहुत से लोग इस असमंजस में हैं कि क्या गाय का दूध पीने से इंसानों में भी यह वायरस फैल जाएगा, तो इसका जवाब है कि अब तक ऐसा कोई केस या साक्ष्य सामने नहीं आया है जिससे यह कहा जाए कि लम्पी वायरस इंसानों को नुकसान पहुंचाया हो। लेकिन दूध का सेवन करने से पहले उसे 15-20 मिनट तक जरूर उबाल कर पीना चाहिए।
क्या कहते हैं अधिकारी?
डॉ पंकज कुमार कटिहार पशुपालन विभाग के चलंत चिकित्सा पदाधिकारी है और उन्हें ही लम्पी स्किन रोग (LSD) के लिए जिला नोडल अधिकारी बनाया गया है।
लम्पी स्किन रोग के बारे में पूछने पर डॉ. पंकज ने ‘मैं मीडिया’ से बातचीत करते हुए कहा कि अभी तक कटिहार जिले में लम्पी वायरस फैलने की जानकारी विभाग को नहीं है और न ही ऐसा कोई केस अब तक जिले में आया है। लेकिन, फिर भी विभाग तत्पर है और किसानों में जागरूकता फैलाने में लगी हुई है।
पशुपालन विभाग जिले के सभी 236 पंचायतों में जाकर किसानों में इस बीमारी को लेकर जागरुकता अभियान चलाएगा। इसके लिए माइक्रो प्लान भी तैयार कर लिया गया है। कटिहार के 16 ब्लॉक के सभी 28 हॉस्पिटल के डॉक्टरों को निर्देश दिया गया है कि वह अपने क्षेत्र में किसानों को जागरूक करें।

इस बीमारी का कोई रामबाण इलाज नहीं है और न ही इसके लिए कोई खास दवाई उपलब्ध है। हालांकि, सरकार द्वारा टीका तैयार किया जा रहा है, लेकिन कटिहार जिले में ऐसी कोई परिस्थिति नहीं हुई है जिससे टीकाकरण की नौबत आए।
आगे डॉक्टर पंकज कुमार ने बताया कि अगर जिले में कहीं भी इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं, तो तुरंत स्थानीय पशु चिकित्सालय में संपर्क किया जाना चाहिए। इसके बाद पशु चिकित्सक गांव में जाकर सैंपल कलेक्ट करेंगे और वैज्ञानिक जांच के लिए पटना भेजा जाएगा और फिर विधिवत तरीके से इलाज किया जाएगा।
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