गुलटेन मंडल के पांच बच्चे हैं और वह मजदूरी कर मुश्किल से इनका पेट भर पाते हैं। पिछले दिनों जब उनके पास उनकी 12 साल की बच्ची की शादी करा देने का प्रस्ताव आया और शादी के बाद दूल्हे वालों की तरफ से 20 हजार रुपए देने का प्रलोभन मिला, तो वह इनकार नहीं कर सके।
दूल्हे की उम्र 35 साल है और वह बेतिया का रहने वाला था। तय तारीख को शादी के लिए दूल्हा, सीमांचल के अररिया जिले के रानीगंज थाना क्षेत्र में दूल्हन के घर पहुंच गया। पूरे रीति-रिवाज के साथ शादी हो गई, लेकिन दूल्हे की तरफ से बच्ची के पिता को मिलने वाली रकम को लेकर विवाद हो गया।
बताया जाता है कि दूल्हे वाले 12 हजार रुपए दे रहे थे, जबकि पिता 20 हजार रुपए देने की मांग कर रहे थे। पैसे का विवाद इतना बढ़ गया कि मामले थाने पहुंच गया।
हालांकि, बच्ची के पिता ने थाने में लिखित आवेदन देकर जबरन पैसे का प्रलोभन देकर उनकी नाबालिग बेटी से शादी करने का आरोप लगाया है। आवेदन में उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया है कि उनका परिवार पैसे के एवज में शादी के लिए तैयार हो गया था।
वह आवेदन में लिखते हैं कि उनके ही गांव के एक व्यक्ति ने पैसे का प्रलोभन देकर 12 साल की बेटी की शादी कराने का दबाव बनाया और जब वह घर पर नहीं थे, तो दूल्हे को लेकर वह व्यक्ति उनके घर पहुंच गया। घर पर उनकी पत्नी को पैसा देने का लालच देकर शादी करा दी।
गुलेटन मंडल भूमिहीन हैं। वह परिवार चलाने के लिए ईंट-भट्टे में काम करते हैं और ईंट भट्टा बंद रहता है, तो खेतों में मजदूरी किया करते हैं। उन्होंने कहा, “ईंट भट्टे में कभी 300 रुपए तो कभी 200 रुपए की दिहाड़ी मिल जाती है। जरूरत पड़ती है, तो मेरे साथ पत्नी भी ईंट भट्टे में काम करने जाती है।”
गुलटेन मंडल ने ‘मैं मीडिया’ के साथ बातचीत में कहा, “हमलोगों ने कोई पैसा नहीं लिया है।” वह कहते हैं, “मुझे पता चला कि वे लोग घर आए हैं और शादी कर रहे हैं, तो मैं भागता हुआ आया और तुरंत पुलिस को इसकी खबर दी। पुलिस जब आई, तब तक दलाल व अन्य लोग फरार हो चुके थे। पुलिस ने रामबाबू यादव और शादी कराने वाले दलाल को गिरफ्तार कर लिया।”
रामबाबू यादव ही नाबालिग से शादी करने आया था। रामबाबू यादव के छोटे भाई नरेंद्र यादव ने गुलटेन के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि लड़की के परिवार वालों की मर्जी से ही शादी हुई थी। नरेंद्र यादव ने कहा, “लड़की के आंगन में ही रीति-रिवाज के साथ शादी की गई थी और इसके एवज में हमारी तरफ से 12 हजार रुपए दिए गए थे।”
शादी की जो फोटो ‘मैं मीडिया’ को मिला है, उसमें लड़की शादी के जोड़े में दिख रही है और आसपास शादी देखने वाली महिलाओं का हुजूम है। फोटो देखकर गुलटेन मंडल के जबरन शादी कर लेने के दावे में वजन नजर नहीं आता है।
पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची थी, तो नाबालिग की शादी हो चुकी थी। अब गुलटेन मंडल अपनी ब्याही नाबालिग बेटी की दूसरी जगह शादी करेंगे या फिर उसी उम्रदराज व्यक्ति के घर भेजेंगे, इसको लेकर ऊहापोह की स्थिति में हैं। “दूल्हे का घर बहुत दूर है। अभी एक डेढ़ साल तो हम बेटी को वहां नहीं भेजेंगे। एक डेढ़ साल बाद इस पर सोचेंगे,” उन्होंने कहा। यह पूछे जाने पर कि क्या वह बेटी की शादी दूसरी जगह करेंगे, गुलटेन मंडल ने कोई स्पष्ट जबाव नहीं दिया।
गौरतलब हो कि इसी साल जुलाई में राज्य के पंचायती राज विभाग ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा था कि अगर किसी पंचायत में नाबालिग की शादी होती है, तो इसके लिए पंचायत के मुखिया व पंचायत सदस्य को जिम्मेदार माना जाएगा और उनकी सदस्यता भी जा सकती है। गुलटेन मंडल के मामले में हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ है। ‘मैं मीडिया’ ने इस संबंध में स्थानीय मुखिया से बात की, तो उन्होंने कहा कि उन्हें किसी नाबालिग की शादी होने की कोई सूचना नहीं है।
क्या कहते हैं आंकड़े
गरीब परिवारों में चंद पैसों के लिए उम्रदराज लोगों या बिहार के बाहर के राज्यों के लोगों के यहां अपनी नाबालिग बेटियों की शादी कर देने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। पूरे बिहार के आंकड़े देखें, तो नाबालिग बच्चियों की शादी के आंकड़े घटे हैं, लेकिन सीमांचल के चार जिलों किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया में इन आंकड़ों में इजाफा हुआ है।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) – 5 के मुताबिक, साल 2019-2020 में 35.6 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हुई। साल 2015-2016 में यह आंकड़ा 62.05 प्रतिशत था।
वहीं, सीमांचल के जिलों की बात करे, तो साल 2016 के मुकाबले साल 2020 में नाबालिग बच्चियों की शादी के आंकड़ों में इजाफा हुआ है। ये आंकड़े एनएफएचएस-4 (साल 2016) और एनएफएचएस-5 (साल 2020) के हैं।
किशनगंज में साल 2016 में 18 साल से कम उम्र में 25 प्रतिशत लड़कियों की शादी हुई थी, जो साल 2020 में बढ़कर 37 प्रतिशत हो गई। इसी तरह, अररिया में साल 2016 में 49 प्रतिशत लड़कियों की शादियां 18 साल की उम्र से पहले हुई थी, साल 2020 में बढ़कर 52 प्रतिशत हो गई। कटिहार में साल 2016 में 18 साल से कम उम्र में 39 प्रतिशत लड़कियों की शादी हुई थी, जो साल 2020 में बढ़कर 49 प्रतिशत हो गया। पूर्णिया में साल 2016 में 18 साल से कम उम्र में 39 प्रतिशत लड़कियों की शादी हुई थी, जो साल 2020 में बढ़कर 51 प्रतिशत हो गई।
सेंटर फॉर कैटेलाइजिंग चेंज नामक एनजीओ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में बाल विवाह सामाजिक और आर्थिक तौर पर हाशिये पर रहने वाले घरों व विकास सूचकांकों में कम अंक लाने वाले गांवों में ज्यादा आम है।
अररिया एसडीपीओ पुष्कर कुमार ने कहा, “यह थोड़ा गरीब इलाका है। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से बहुत से लोग आते हैं यहां सीमांचल में शादी करने। ऐसा वर्षों से हो रहा है। हमें जब नाबालिग की शादी कराने की घटना संज्ञान में आती है, तो हम कार्रवाई करते हैं। रानीगंज के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। यहां दलाल के माध्यम से नाबालिग लड़की की शादी कराई जा रही थी। इसके बदले लड़के वाले ने 12 हजार रुपए दिए थे।”
एक पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि ज्यादातर मामलों में लड़की वालों की तरफ से इसी तरह की शिकायत दर्ज कराई जाती है कि उनकी बेटी से जबरन शादी कर ली गई, लेकिन असल मामला कुछ और निकलता है।
नाबालिग गर्भवतियों की संख्या में इजाफा
कम उम्र में शादी होने से बच्चियां कम उम्र में ही गर्भवती हो जाती हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 और 5 के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016 के मुकाबले साल 2020 में कम उम्र में गर्भवती होने वाली नाबालिगों की संख्या में इजाफा हुआ है।
रिपोर्ट के मुताबिक, किशनगंज में साल 2016 में 15 से 19 साल के बीच की उम्र की 7 प्रतिशत युवतियां गर्भवती थीं, जो साल 2020 में बढ़कर 10 प्रतिशत पर पहुंच गई।
इसी तरह अररिया में साल 2016 में 15 से 19 साल के बीच गर्भवती होने वाली युवतियों की संख्या 11 प्रतिशत थी, जो साल 2020 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई। वहीं, साल 2020 में कटिहार में 15 से 19 साल के बीच गर्भवती होने वाली युवतियों की संख्या 16 प्रतिशत रही, जो साल 2016 के मुकाबले 2 प्रतिशत अधिक थी। पूर्णिया की बात करें, साल 2020 में गर्भवती होने वाली युवतियों (15 से 19 साल के बीच की उम्र की) की संख्या 21 प्रतिशत रही, जो साल 2016 के मुकाबले 9 प्रतिशत अधिक थी।
कम उम्र में गर्भवती होने से प्रसूताओं में कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आती हैं और कई बार ये जानलेवा भी साबित होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 10 से 19 वर्ष की उम्र में गर्भवती होने वाली व बच्चा जनने वाली मांओं में इक्लैम्पसिया, प्यूरपेरल इंडोमेट्रिटिस व सिस्टेमिक संक्रमण का खतरा 20 से 24 साल की मांओं के मुकाबले अधिक होता है। इक्लैम्पसिया में गर्भवती महिलाओं का ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है, उनके पेशाब से प्रोटीन निकलने लगता है और बांह में सूजन आ जाता है। प्यूरपेरल इंडोमेट्रिटिस में गर्भाशय में संक्रमण हो जाता है।
कम उम्र में गर्भवती होने वाली युवतियाओं के बच्चों में भी स्वास्थाय संबंधी दिक्कतें आ जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कम उम्र की मांओं में बच्चों के अंडर वेट (कम वजन), समय से पहले जन्म लेने का जोखिम होता है।
कटिहार की आशा वर्कर अनीता देवी ने ‘मैं मीडिया’ से कहा कि उनके फील्ड विजिट में बहुत सारी गर्भवती युवतियां मिलती हैं, जिनकी उम्र कम होती है और उनमें स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें होती हैं। “शरीर में आयरन और अन्य तत्वों की कमी आम होती है। उन्हें चिन्हित कर हमलोग सरकारी अस्पताल ले जाते हैं, जहां उन्हें आयरन की गोलियां व अन्य दवाइयां दी जाती हैं।”
गरीबी, अशिक्षा, आपदा के गठजोड़ से बिगड़ते हालात
जानकारों का कहना है कि सीमांचल में नाबालिग लड़कियों की शादी व तस्करी की कई वजहें हैं, जिनपर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। स्थानीय समाजसेवी डॉ फरजाना बेगम कहती हैं, “चार पांच वजह हैं जो लड़कियों की कम उम्र में शादी और तस्करी को बढ़ावा देती हैं।” “सीमांचल के इलाकों में रहने वाली आबादी बेहद गरीब है और उनके पास अच्छा रोजगार नहीं है। अधिकांश लोग खेतों या ईंट भट्टों में दैनिक मजदूरी करते हैं जहां 200 से 300 रुपए दिहाड़ी मिलती है। इतनी दिहाड़ी में लोग घर कैसे चला सकते हैं? ऐसे में जब कोई पैसे देकर बेटियों की शादी करने का प्रस्ताव देता है, तो वे इनकार नहीं कर पाते हैं,” वह कहती हैं।
उन्होंने आगे कहा, “इस आबादी में अशिक्षा भी है, तो वे यह भी नहीं समझ पाते कि उनकी बेटी के साथ आगे क्या होगा। तस्करी करने वाले दलाल आसानी से इन्हें बरगला देते हैं।”
कम उम्र में लड़कियों की शादी व तस्करी की अन्य वजहों में वह बाढ़, कटान जैसी आपदाओं को रखती हैं।
“सीमांचल में तस्करी और कम उम्र में शादी होने के पीछे आपदा की बड़ी भूमिका है। सीमांचल में बाढ़ का भीषण असर होता है और नदियों की कटान तो लगभग साल भर चलता है, जिसमें गरीब लोगों के घर तबाह हो जाते हैं। इन लोगों को हर छह महीने में नया ठिकाना तलाशना पड़ता है क्योंकि पुराना घर नदी के कटान में चला जाता है। इससे उन पर आर्थिक बोझ काफी बढ़ जाता है और तब वे थोड़े पैसे के लिए बच्चियों को काम करने के लिए बाहर भेजने या पैसे लेकर बेटियों की शादी करने को विवश हो जाते हैं। इसका फायदा दलाल उठा लेते हैं,” उन्होंने कहा।
भीषण गरीबी और आपदा का तस्करी से जिस संबंध की बात फरजाना बेगम ने की, उसकी पुष्टि कई शोध पत्रों में भी हो चुकी है। यूरोपियन साइंटिफिक जर्नल में साल 2017 में छपे एक शोधपत्र ‘नेचुरल डिजास्सटर एंड़ वल्नरेब्लिटी टू ट्रैफिकिंगदि वुमेन एंड गर्ल्स इन इंडिया’ में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की प्रो. मंदिरा दत्ता लिखती हैं कि आपदाएं सामाजिक संस्थानों को निष्क्रिय कर देती हैं जिससे खाद्य सुरक्षा व मानवीय आपूर्तियां मुश्किल हो जाती हैं। इससे महिलाओं व बच्चों के अपहरण, ट्रैफिकिंग और लैंगिक शोषण का खतरा बढ़ जाता है। शोधपत्र में लिखा गया है कि साल 2008 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के चलते लड़कियों को दूल्हन के रूप में बेचा जाने लगा था।
सीमांचल के जिलों से होकर दर्जनों नदियां बहती हैं और मॉनसून में ये नदियां भीषण लाती है और बाकी समय नदियों से कटान होता है, जिससे गांव के गांव नदियों में समा जाते हैं और लोगों को विस्थापित होना पड़ता है। ‘मैं मीडिया’ ने हाल के कटान पर कई खबरें की हैं, जिन्हें ‘मैं मीडिया’ की वेबसाइट व यूट्यूब चैनल पर देखा जा सकता है।
सीमांचल में गरीबी अन्य जिलों के मुकाबले अधिक है, जो इस तरह की घटनाओं के लिए उत्प्रेरक का काम करती है और इसकी गवाही नीति आयोग की रिपोर्ट में भी मिल जाती है। बिहार में बहुआयामी गरीबी के जिलावार आंकड़े देखें, तो शीर्ष पर सीमांचल के ज़िले हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, किशनगंज में 64.75 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीब है जबकि मधेपुरा में यह आंकड़ा 64.65 प्रतिशत है। सीमांचल के अन्य दो जिले पूर्णिया और कटिहार भी शीर्ष 10 जिलों में आते हैं। पूर्णिया में कुल आबादी का 63.29 प्रतिशत और कटिहार में कुल आबादी का 62.38 प्रतिशत हिस्सा बहुआयामी गरीब है।
डॉ. फरजाना बेगम इसके समाधान के तौर पर सरकार, समाज और परिवार की भूमिका पर जोर देती हैं। उन्होंने कहा, सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीब तबके को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा मिले। बच्चे-बच्चियों को शिक्षा मिले। वहीं, समाज के स्तर पर समर्थ लोगों को चाहिए कि वे गरीब तबके की मदद करें तथा परिवार के स्तर पर हर परिवार को जागरूक होने की जरूरत है कि वे पैसे की कीमत पर अपनी बच्चियों की जिंदगी बर्बाद नहीं होने देंगे।
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