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चाय बागान मजदूरों का करोड़ों दबाए बैठे हैं मालिकान!

आज से 10 बरस पहले यानी 2012 का ही आंकड़ा देखें, तो असम में 429 करोड़, तमिलनाडु में 70 करोड़, पश्चिम बंगाल में 30 करोड़ व केरल में 27 करोड़ रुपये बकाया हैं।

M Ejaj is a news reporter from Siliguri. Reported By M Ejaz |
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सिलीगुड़ी: वे मज़दूर हैं। चाय बागानों के मज़दूर। रोज़ कमाते हैं, रोज़ खाते हैं। मतलब, रोज़ खाने के लिए उन्हें रोज़ कमाना पड़ता है। एक दिन अगर कमाई न हो तो घर का चूल्हा जलना मुहाल हो जाता है। दो जून की रोटी मयस्सर नहीं हो पाती है। इसीलिए, कंपकंपाती ठंड हो या बदन जलाती गर्मी, या तन-मन गीला करती बरसात या फिर उजड़ा पतझड़, हमेशा सुबह से शाम तक उन्हें जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है। सारे-सारे दिन खड़े-खड़े, बागानों में चाय की पत्तियां तोड़नी पड़ती हैं। उनमें भी अनेक महिला मजदूर तो ऐसी होती हैं कि अपने दुधमुंहे बच्चों को भी गोद में लिए या पीठ पर सवार किए खड़ी-खड़ी दिन भर चाय की पत्तियां तोड़ कर इकट्ठा करते रहने को मजबूर होती हैं। इसके बावजूद उनके खून-पसीने की मजदूरी उन्हें न मिले तो फिर क्या कहिए ? यह क़ानूनन जुर्म तो है ही, इंसानियत के नाते भी बहुत बड़ा जुर्म है। और, यह जुर्म उन गरीब मजदूरों पर हो रहा है, होता ही जा रहा है।

कहते हैं कि इंसानियत का तक़ाज़ा यही है कि मज़दूर को उनकी मज़दूरी, उनका पसीना सूखने से पहले अदा कर देनी चाहिए। मगर, यहां तो हाल ऐसा है कि दो-चार दिन, दो-चार महीने या दो-चार साल नहीं बल्कि 20 साल जैसे लंबे अरसे से मजदूरों को उनका बकाया नहीं मिल रहा है। यह बकाया चाय बागान मज़दूरों की मज़दूरी, भत्ता, एरियर, बोनस, ग्रैच्यूटी व पीएफ आदि का है और करोड़ों में है जो एक-दो नहीं बल्कि 20 वर्षों से उनके करोड़पति मालिकान दबाए बैठे हैं।

 


आज से 10 बरस पहले यानी 2012 का ही आंकड़ा देखें, तो असम में 429 करोड़, तमिलनाडु में 70 करोड़, पश्चिम बंगाल में 30 करोड़ व केरल में 27 करोड़ रुपये बकाया हैं। आज 2023 तक यह राशि और कितनी बढ़ गई होगी? इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है।

सालों लड़ी गई अदालती लड़ाई

इधर, बीती छह फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में असम राज्य के ऐसे 25 चाय बागानों के 28,556 श्रमिकों के लगभग 650 करोड़ रुपये बकाये का संपूर्ण भुगतान करने का आदेश दिया है। इनमें असम सरकार की सहायक कंपनी असम टी कंपनी लिमिटेड के स्वामित्व वाले 15 बागान भी शामिल हैं। अदालत का यह फैसला कोई दो-चार दिन में ही नहीं आ गया। इसके लिए लड़ने वालों ने कई सालों तक लड़ाई लड़ी है तब जाकर यह ऐतिहासिक फैसला आया है।

Water being sprinkled in a tea garden in Darjeeling

इसकी कहानी आज से 16 साल पहले शुरू होती है। वह वर्ष था 2006। इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चरल वर्कर्स (आईयूएफए) व पश्चिम बंग खेत मजूर समिति ने चाय बागान श्रमिकों और दो अन्य संघों संग मिल कर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। इन याचिकाकर्ता यूनियनों का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस, अधिवक्ता मुग्धा व अधिवक्ता पूरबायन चक्रवर्ती कर रहे हैं। उक्त जनहित याचिका के तहत कुल चार सालों तक चली सुनवाई के बाद छह अगस्त 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया था कि सरकार को चाय अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपने वैधानिक कर्तव्यों का अनुपालन करना चाहिए व मजदूरों के समस्त बकाया का भुगतान छह महीने की अवधि के अंदर सुनिश्चित करना चाहिए।

मगर, फिर भी कुछ नहीं हुआ। सरकार भी कान में तेल डाल कर सोई रही और चाय बागानों के मालिकान तो खैर बेफिक्र व मस्त-मौला रहे ही रहे। मजदूरों को फूटी कौड़ी न दी गई। तब इन यूनियनों ने 2012 में दोबारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अवमानना याचिका दायर की। उस पर भी सुनवाई का छह सालों का लंबा दौर चला। तब जाकर 4 अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत का आदेश दिया। कोर्ट ने कड़ा निर्देश दिया था कि अंतरिम राहत के तौर पर अगले 60 दिनों के अंदर मजदूरों को उनके बकाया का 50 प्रतिशत व उसके बाद जल्द से जल्द बाकी बची राशि का भुगतान किया जाए।

मगर, उस पर भी अमल ढुलमुल-ढुलमुल ही रहा। फिर, इसी मामले में 10 जनवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति का गठन किया ताकि चाय बागानों के श्रमिकों के बकाये की गणना की जा सके और उस अनुसार भुगतान सुनिश्चित किया जा सके। इस समिति ने असम में कुल 10 सुनवाई कर अपनी रिपोर्ट पूरी कर सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी और उसी के आलोक में बीती छह फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया कि असम में असम सरकार की सहायक कंपनी असम टी कंपनी लिमिटेड के स्वामित्व वाले 15 बागानों समेत ऐसे सभी 25 चाय बागानों के 28,556 श्रमिकों के लगभग 650 करोड़ रुपए बकाया का संपूर्ण भुगतान किया जाए।

इधर, केरल व तमिलनाडु के साथ पश्चिम बंगाल के चाय बागानों के मजूदरों के मामले को लेकर सप्रे समिति की सुनवाई अभी भी जारी है। गत 27 फरवरी 2023 को भी सिलीगुड़ी के श्रमिक भवन में इस समिति ने सुनवाई की। जहां उत्तर बंगाल के डूआर्स क्षेत्र के चाय बागानों के मजदूरों व उनके प्रतिनिधियों ने अपना पक्ष रखा। इस मामले के पक्षकारों में से एक पश्चिम बंग खेत मजूर समिति की ओर से अधिवक्ता सप्तर्षि बनर्जी ने कहा कि यह सुनवाई संतोषप्रद रही। अब अगली सुनवाई 10 अप्रैल को होगी। हमें उम्मीद है कि वही अंतिम सुनवाई होगी। उसके बाद समिति पश्चिम बंगाल राज्य के चाय बागानों के मामलों की रिपोर्ट भी सुप्रीम कोर्ट को सौंप देगी और तब फिर पश्चिम बंगाल के चाय बागानों के मजदूरों के हक में भी सुप्रीम कोर्ट का वैसा ही फैसला आएगा जैसा कि असम राज्य के चाय बागानों के मजदूरों के हक में आया है।

इस बारे में पश्चिम बंग खेत मजूर समिति की राज्य कमेटी की सदस्य व जानी-मानी समाजसेवी अनुराधा तलवार ने कहा, “हमें जहां तक जानकारी मिली है कि असम में चूंकि ज्यादातर चाय बागान सरकारी कंपनी की देखरेख में चल रहे हैं तो वहां सारा रिकाॅर्ड उपलब्ध था जो आसानी से मिल गया। यही वजह रही कि वहां मात्र 10 सुनवाई में ही समिति की रिपोर्ट भी तैयार हो गई व अदालत में जमा भी हो गई और उस पर अदालत के फैसला भी आ गया। मगर, पश्चिम बंगाल में चूंकि चाय बागान निजी मालिकान व कंपनियों द्वारा ही संचालित हैं इसीलिए उनके रिकॉर्ड ही पूरी तरह नहीं मिल पा रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा, “यही वजह है कि यहां अब तक लगभग 20 सुनवाइयां हो चुकी हैं लेकिन फिर भी रिपोर्ट नहीं बन पाई है।”

Saptarshi, Anuradha and Jiyaul

उन्होंने यह भी कहा कि आरोप तो यह भी है कि यहां के विभिन्न चाय बागानों के प्रबंधन ने फाइल ही गुम कर रखी है। इसीलिए रिकॉर्ड नहीं मिल पा रहे हैं और रिपोर्ट पूरी हो पाने में समस्याएं आ रही हैं। इधर, सुनवाई में तो ऐसी भी कई शिकायतें सामने आईं कि चाय बागानों के प्रबंधन द्वारा मजदूरों के मद से पीएफ अंशदान की राशि काट ली गई लेकिन न तो उनका पीएफ अकाउंट खुलवाया गया और न ही पीएफ अंशदान जमा किया गया।

हाल तो यह है कि पश्चिम बंगाल के ऐसे 29 चाय बागान, जो कि सभी जलपाईगुड़ी व अलीपुरद्वार जिले के डूआर्स क्षेत्र के हैं, उन सभी के 34000 मजदूर अपने बकाया की अदायगी की बाट जोह रहे हैं। यह बाट जोहते-जोहते गत 20 वर्षों में कम से कम हजार मजदूर तो इस दुनिया से चल भी बसे।

किस चाय बागान पर कितना बकाया

इस बाबत अब तक उपलब्ध 2012 के आंकड़ों के अनुसार डूआर्स के चाय बागानों के मालिकान पर मजदूरों के बकाया का हाल अच्छा नहीं है। वहां बांदापानी चाय बागान में मजदूरों की संख्या 1215 और बकाया राशि 5, 36,00, 000 रुपये है। ढेकला पाड़ा में 604 मजदूरों के 1,63,00,000 रुपये बकाया हैं। रेड बैंक में 886 मजदूर हैं और बकाया राशि 4,60,00,00 रुपये है। धरनीपुर में 374 मजदूर 2,25,00,000 रुपये पाएंगे। सुरेंद्र नगर चाय बागान में 316 मजदूर हैं और बकाया राशि 1,61,25,000 रुपये है। राम झोरा में 962 मजदूर 14,35,03,105 रुपये पाते हैं। मुजनाई चाय बागान में मजदूरों की संख्या 1095 व बकाया 4,60,32,972 रुपये है। कोहिनूर चाय बागान में 975 मजदूरों का 17,50,00,000 रुपये बकाया है। कालधौनी में 1969 मजदूर हैं जो 4,33,68,532 रुपये पाएंगे। राय मटांग में 1261 व श्रीनाथपुर में 238 मजदूरों का मालिकान पर क्रमश: 2,65,00,000 व 21,00,000 रुपये बकाया है। कैरोन में 757 मजदूर व बामनडांगा तोंदू में 1310 मजदूर क्रमश: 800,00,000 व 2,60,00,000 रूपये पाएंगे। काठालगुड़ी चाय बागान में बकाये का ब्योरा उपलब्ध नहीं है मगर वहां 1356 मजदूरों का भी मालिक पर बहुत बकाया है।

ऐसे ही चामुर्ची चाय बागान में 1053 मजदूर 5,30,00,000 रुपये पाते हैं।

शिकारपुर-भंडारपुर में 1551 मजदूर हैं और बकाया राशि 2,02,93,399 रुपये है। रायपुर में 617 व चिनचुला में 1245 मजदूर क्रमश 1,95,00,000 रुपये व 2,96,00,000 रुपये पाएंगे। कुम्हलाई में 1118 मजदूर 7,08,69,598 रुपये पाते हैं। मधु चाय बागान में 950 व जॉय बीरपाड़ा में 641 मजदूरों का क्रमश: 5,95,00,000 रुपये और 1,21,00,000 रुपये बकाया है। बीर पाड़ा चाय बागान में मजदूरों की संख्या 2623 व बकाया राशि 6,33,83,000 रुपये है। दुमची पाड़ा के 1918 व गरगंडा के 1517 मजदूर क्रमश: 5,71,47,000 रुपये व 4,93,15,000 रुपये पाते हैं। हंटरपाड़ा में 1898 व लंका पाड़ा में 2132 मजदूर या उनके परिजन क्रमश: 13,63,45,660 रुपये व 5,59,45,000 रुपये मालिकों से पाने की बाट जोह रहे हैं। तुलसी पाड़ा चाय बागान में 1141 मजदूरों और डेमडेमा चाय बागान में 1645 मजदूरों का अपने मालिकान पर 2,64,11,000 रुपये व 4,66,25,000 रुपये बकाया है।गौरतलब है कि मजदूरी, भत्ता, एरियर, ग्रैच्यूटी, पीएफ व अन्य मदों की इस बकाया राशि की अदायगी की बाट जोहते-जोहते 2002 से अब तक वहां के लगभग हजार मजदूर इस दुनिया से गुजर भी गए। उसके बावजूद मालिकान का कलेजा नहीं पसीजा।

अनुराधा तलवार कहती हैं कि अब तो कुछ संगठनों ने दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के सभी 86 चाय बागानों के भी ऐसे मामलों को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया है। वहीं, डूआर्स क्षेत्र के चाय बागानों के मजदूरों के हमारे पहले के मामलों को लेकर बीच में अदालत ने जो अंतरिम राहत के तौर पर मजदूरों के बकाये के 50 प्रतिशत के भुगतान का आदेश दिया था, उस पर भी अभी तक पूरी तरह अमल नहीं हो पाया है। हालांकि, पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने कुछ हद तक अपनी ओर से भुगतान किया है। मगर, फिर भी पूरा भुगतान अभी तक नहीं हो पाया है। इसे लेकर भी तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के मज़दूरों के यूनियनों ने उनकी राज्य सरकारों द्वारा अंतरिम राहत के भुगतान में हो रही विसंगतियों का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में उठाया है।

बकाया भुगतान पर 28 मार्च को सुनवाई

अब इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 28 मार्च 2023 तय की गई है, जहां कोर्ट केरल के लिए इसी तरह की रिपोर्ट पर विचार करेगी। उसके बाद तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल के मामलों पर भी अंतिम आदेश आ जाने की पूरी संभावना है।

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अनुराधा तलवार ने असम के चाय बागानों के मजदूरों के बकाया की अदायगी के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को ऐतिहासिक करार देते हुए उसका स्वागत किया है और इसे तमिलनाडु, केरल व पश्चिम बंगाल के चाय बागानों के ऐसे मजदूरों के लिए उम्मीद की नई किरण करार दिया है। इस मामले में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर बागान मजदूरों, उनके परिजनों व मजदूर यूनियनों में खुशी का माहौल है।

इस बारे में उत्तर बंगाल के चाय बागान श्रमिकों के यूनियनों के ज्वाइंट फोरम के संयोजक जियाउल आलम का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला अभूतपूर्व व स्वागत योग्य है। इससे एक नया रास्ता खुला है। केंद्र व राज्य सरकारों की आंखें भी इससे खुलनी चाहिए। मजदूरों के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार कानून का सही-सही अनुपालन नहीं करवाती, इसलिए ऐसी नौबत पैदा होती है। बकाया राशि का आंकड़ा और भी बहुत ज्यादा होता।

उन्होंने आगे कहा, “मगर, बहुत से चाय बागानों का मामला अदालत में जा ही नहीं पाया है। खैर, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में ही जो मजदूरों की बकाया राशि का 50 प्रतिशत भुगतान सुनिश्चित कराने का सरकारों को निर्देश दिया था वह जल्द से जल्द पूरा हो। और, अब इधर, असम के चाय बागानों के मजदूरों के हक में जैसा फैसला आया है वैसा ही फैसला हमारे पश्चिम बंगाल के चाय बागानों के मजदूरों के हक में भी जल्द से जल्द आए, उसका हमें बेसब्री से इंतजार है। असम पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हमारी उम्मीदों को भी जगा दिया है। हमें पूरी उम्मीद है कि यहां के चाय बागान मजदूरों को भी पूरा इंसाफ मिलेगा।”

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