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“250 रुपये की दिहाड़ी से नहीं होता गुजारा”- दार्जिलिंग के चाय श्रमिक

दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में चाय उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा जिला है। चाय बागान श्रमिकों का कहना है कि महंगाई के जमाने में उन्हें 250 रुपये प्रति दिन की मजदूरी दी जाती है, जिससे उनका गुज़ारा नहीं हो पाता है। पिछले वर्ष जून में चाय श्रमिकों की मज़दूरी 232 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 250 रुपये की गई थी लेकिन श्रमिक इससे नाखुश हैं और वेतन में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam and Sumit Dewan |
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देश की आज़ादी के एक साल बाद 1948 में न्यूनतम वेतन अधिनियम लागू किया गया था जिसमें सरकार द्वारा श्रमिकों का न्यूनतम वेतन निर्धारित करने का प्रावधान है। लेकिन चाय बागान के श्रमिकों के मामले में इस प्रावधान का पालन नहीं होता और इन मजदूरों को बेहद कम मजदूरी में गुजारा करना पड़ रहा है। मजदूर बढ़ाने की मांग को लेकर पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिक राजधानी कोलकाता पहुंचे। उन्होंने न्यूनतम वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर शहर के बीबीडी बाग़ स्थित राजभवन तक पैदल मार्च निकाला।

दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में चाय उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा जिला है। चाय बागान श्रमिकों का कहना है कि महंगाई के जमाने में उन्हें 250 रुपये प्रति दिन की मजदूरी दी जाती है, जिससे उनका गुज़ारा नहीं हो पाता है। पिछले वर्ष जून में चाय श्रमिकों की मज़दूरी 232 रुपये प्रतिदिन से बढ़ाकर 250 रुपये की गई थी लेकिन श्रमिक इससे नाखुश हैं और वेतन में बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं।

चाय श्रमिकों की मांगें

रुबिना राई प्रदर्शन में हिस्सा लेने अपने बच्चे के साथ दार्जिलिंग से 700 सौ किलोमिटर दूर कोलकाता पहुंची हैं। वह दार्जिलिंग के रिंगरोड चाय बागान में करती हैं। उन्होंने कहा कि वेतन कम होने के कारण बच्चे की पढ़ाई का खर्च भी पूरा नहीं हो पाता है। महंगाई के इस दौर में चाय मज़दूरों को प्रतिदिन कम से कम 650 रुपये मिलने चाहिए।


“हम लोग दार्जिलिंग से 35 लोग कोलकाता आए हैं। हमारी मांग है कि हमारा न्यूनतम वेतन बढ़ना चाहिए। अभी 250 रुपए है उससे तो कुछ नहीं होगा हमारा। मेरे अनुसार रोजाना हमें 650 तो मिलना ही चाहिए क्योंकि आज कल इतना बाज़ार का भाव बढ़ गया है, बच्चों को पढ़ाना लिखाना है। हर चीज़ का दाम अब बढ़ चुका है, इसलिए हमारे बागान में वेतन बढ़ना चाहिए। कम से कम छह-साढ़े छह सौ होना ही चाहिए,” रुबीना राई ने कहा।

प्रभा तमांग दार्जिलिंग के मार्गरेट होप चाय बगान में काम करती हैं l उन्होंने कहा कि चाय श्रमिकों के साथ सालों से अन्याय किया जा रहा है इसलिए अब मजदूरों ने फैसला किया है कि सब मिलकर संघर्ष करेंगे और जब तक सरकार उनकी बात नहीं सुनती संघर्ष जारी रहेगा।

उन्होंने कहा, “मैं मार्गरेट होप चाय बागान से आई हूँ। मेरे बागान से और भी मज़दूर इधर आए हैं। अब तक हमारा न्यूनतम वेतन लागू नहीं हुआ है। हम सब मजदूर आज यहां राजभवन आए हैं यह जानने कि हमारा न्यूनतम वेतन अभी तक क्यों लागू नहीं हुआ है। यह हमारा संघर्ष है, लागू तो होना ही चाहिए, होना ही पड़ेगा। हमें संघर्ष करना ही पड़ेगा, हम सब मज़दूर को एक होना ही पड़ेगा। इसलिए हमलोग यहां आए हैं।”

दार्जिलिंग में 70 प्रतिशत से अधिक चाय श्रमिक महिलाएं

आईआईएम कलकत्ता के तरित कुमार दत्ता ने दार्जिलिंग के चाय उत्पादन पर एक शोध पत्र लिखा जिसमें उन्होंने बताया कि दार्जिलिंग में 87 चाय बागान हैं, जो 17,542 हेक्टेयर जमीन पर फैले हैं। इनमें सबसे ऊंचा चाय बागान करीब 2000 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। हर चाय बागान में औसतन 700 श्रमिक काम करते हैं। दार्जिलिंग में चाय श्रमिकों में महिलाओं की भागेदारी पुरुषों से काफी अधिक है। शोध पत्र के आंकड़ों की मानें तो दार्जिलिंग के चाय बागानों में 70 प्रतिशत श्रमिक महिलाएं हैं।

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दार्जिलिंग में चाय उत्पादन भारत के दूसरे इलाकों के मुकाबले अधिक महंगा है। लेकिन, उत्पादन दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। औसतन भारत में हर हेक्टेयर में 1,800 किलो चाय का उत्पादन होता है, लेकिन दार्जिलिंग में ये आंकड़ा केवल 400-450 किलो है। अधिक ऊंचाई पर स्थित होने के कारण दार्जिलिंग में चाय की पत्तियों को पूरी तरह से मनुष्य द्वारा निकाला जाता है।

पिछले कुछ दशकों में इलाके की आबादी तेज़ी से बढ़ी है। 2010 आते आते दार्जिलिंग में चाय श्रमिकों की संख्या 61,000 पार कर गयी। आज यह आंकड़ा करीब तीन लाख बताया जाता है।

हाई कोर्ट ने कहा- 2 फरवरी तक सलाहकार समिति न्यूनतम वेतन तय करे

2014-15 में संयुक्त चाय श्रमिक आंदोलन के बाद त्रिपक्षीय समझौता हुआ जिसमें सरकार द्वारा एक सलाहकार समिति का गठन किया गया था। तब कहा गया था कि चाय श्रमिकों का न्यूनतम वेतन दो साल के अंदर लागू किया जाएगा। लेकिन 9 साल बीत जाने के बाद भी इस मामले में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला।

पिछले वर्ष 2 अगस्त को कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से 6 महीने के अंदर चाय श्रमिकों के लिए वैधानिक न्यूनतम मजदूरी लागू करने को कहा था। इस आदेश के अनुसार राज्य सरकार को आगामी 2 फरवरी तक चाय श्रमिकों के न्यूनतम वेतन को निर्धारित कर के लागू करना है l

16 जनवरी को न्यूनतम वेतन सलाहकार समिति की 18वीं बैठक बिना किसी निर्णय के खत्म हुई। 30 जनवरी को एक और बैठक बुलाई गई है। 2 फरवरी से पहले समिति की यह संभवतः आखिरी बैठक होगी।

बंगाल के लोक निर्माण मंत्री मलय घटक ने बैठक के बाद निजी अखबार से बातचीत में कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर 30 जनवरी की बैठक में न्यूनतम वेतन दर तय कर लिया जाएगा। इसके लिए सुझाव समिति के सदस्यों को कुछ अहम दस्तावेज़ पहुंचाए जाएंगे।

वहीं, चाय व्यापार संघ के एक प्रतिनिधि ने कहा कि उन्होंने सुझाव समिति को न्यूनतम वेतन दर कम से कम 600 रुपये रखने का सुझाव दिया है। हिल प्लांटेशन एम्प्लॉई यूनियन और चाय व्यापार संघ ने मांग की है कि न्यूनतम वेतन दर को चाय बागान, छोटे चाय क्षेत्रों सहित खरीदी गई पत्तियों के कारखानों में भी लागू किया जाना चाहिए।

“682 रुपये हो न्यूनतम वेतन”

हिल प्लांटेशन एम्प्लॉई यूनियन ने मांग की है कि उत्तर बंगाल के बागानों में न्यूनतम मजदूरी 682 रुपये होनी चाहिए l यूनियन की एक कार्यकर्त्ता अनूपा तमांग ने कहा कि मौजूदा निर्धारित न्यूनतम वेतन से मजदूरों की बुनियादी जरूरतों की पूर्ति नहीं हो पा रही है जिसको लेकर यूनियन के कार्यकर्त्ता और दार्जिलिंग के दर्जनों श्रमिक राजधानी कोलकाता की सड़कों पर उतरे हैं।

आगे उन्होंने बताया कि श्रमिकों का यह पैदल मार्च राजभवन तक जाएगा जहां यूनियन की ओर से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल को तीन सूत्री मांगों पर आधारित ज्ञापन सौंपा जाएगा।

अनुपमा कहती हैं, “मैं दार्जिलिंग से यहां हिल प्लांटेशन एम्प्लॉई यूनियन के तरफ से आई हूँ। हमलोग यहां पर आज राज्यपाल के यहां ज्ञापन देंगे। ज्ञापन में मुख्य रूप से तीन बिंदु रखेंगे। पहला यह कि जो बंद बागान हैं , उन्हें खोलना पड़ेगा। जो बागानों की हालत बेहतर नहीं है, उसे सुचारु रूप से चलाना होगा और जो खुला बागान है वहां न्यूनतम वेतन बढ़ा कर देना पड़ेगा। अभी जो 250 रुपये दिहाड़ी है उससे एक श्रमिक का घर नहीं चलता है।”

उन्होंने आगे कहा, “इतने कम पैसे से खाना पीना, स्वास्थ और शिक्षा नहीं हो पा रहा है। इसी को लेकर हम लोग राज्यपाल को ज्ञापन देंगे। पिछले साल 2 अगस्त को कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक आदेश दिया था कि 6 महीने के अंदर चाय श्रमिकों का न्यूनतम वेतन कितना होना चाहिए, वो राज्य सरकार को तय करना था, लेकिन कोई खास परिणाम नहीं आ रहा है। हमारी मांग है कि न्यूनतम वेतन 682 रुपये होना चाहिए एक दिन का।”

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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