“अब इन लोगों का क्या होगा बाबू साहेब? कितना उम्र था हमर बेटा के? कैसे हमरा सब के छोड़ कर चल गया? किसका क्या बिगाड़ा था? हे भगवान!अब की होतई। अनिल था तो जैसे-तैसे मजदूरी करके हम लोगों का पेट पाल रहा था। वह मेहनती था, तो कुछ न कुछ काम करके नमक रोटी का इंतजाम कर देता था। हम खुद अपाहिज हैं। मेरे ऊपर इन लोगों की जिम्मेवारी छोड़ गया। घर में छोटे छोटे पांच बच्चे हैं। हम तो जीते जी मर गए।” यह सब कहते कहते मृतक अनिल बैठा के 65 वर्ष के पिता हरि बैठा फूट फूट कर रोने लगे।
अनिल बैठा की मौत पिछले दिनों पूर्वी चम्पारण के मोतिहारी के रामगढ़वा थाना क्षेत्र में स्थित ईंट-भट्ठा की चिमनी में ब्लास्ट में हो गई थी। इस हादसे में चिमनी मालिक सहित 10 लोगों की मृत्यु हुई थी और 8 लोग घायल हुए थे, जिनका इलाज अलग अलग अस्पतालों में चल रहा है।
अनिल बैठा मोतिहारी से रक्सौल जाने वाली मुख्य सड़क से महज दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित नरीरगिर गांव के रहने वाले थे। नरीरगिर गांव में पक्की सड़क नहीं है। गांव में अधिकतर मकान आधे अधूरे बना कर छोड़ दिए गए हैं। आधा पक्का मकान है तो आधा खपरैल। लगभग 1700 की आबादी वाले इस गांव के अधिकतर लोग मजदूरी करते हैं। चिमनी में सबसे ज्यादा इसी गांव के लोग काम करते थे। चिमनी ब्लास्ट में इस गांव के तीन लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
क्या कहते हैं घटना के चश्मदीद
मोतिहारी चिमनी ब्लास्ट में घायल लोगों में परमा गौड़ भी एक हैं। उनकी नाक और पैर में चोट आई है। उन्होंने कहा, “रोज की तरह हम चिमनी पर मजदूरी करने गए। उस दिन ईंट को पकाने का पहला दिन था, इसलिए चिमनी मालिक भी मौजूद थे। चिमनी को फूंका (आग लगाना) गया। फूंकने के पांच मिनट बाद ही एक आवाज हुई और चिमनी गिर गई। हम भी गिर गए। फिर हम जैसे तैसे वहां से अस्पताल की ओर भागे।”
उनका कहना है कि लोग ब्लास्ट को लेकर तरह तरह की बात बना रहे हैं। परमा गौड़ को अभी तक घायल सहायता राशि नहीं मिली है। उनका कहना है कि उनका नाम भी नहीं था घायलों की सूची में। थोड़ा स्वस्थ होने के बाद जब वह बीडीओ से मिले तब उनको आश्वासन मिला कि उनका नाम जोड़ दिया जायेगा।
चिमनी ब्लास्ट के बारे में बात करते हुए लोगों ने कहा कि इस चिमनी में इस गांव के बहुत लोग काम करते हैं। परमा गौड़ ने बताया कि आस पास के चार पांच गांव के लोग इस चिमनी में काम करते हैं। अब लोगों को नया काम ढूंढना होगा।
क्या सरकारी गाइडलाइन की अनदेखी से हुआ हादसा?
बिहार में लगभग 6 हजार ईंट भट्ठा इकाइयां हैं। यहां ईंट की मांग काफी ज्यादा है।
नियमानुसार, जिन भट्ठों की क्षमता 30 हजार ईंट प्रतिदिन से कम है, उन्हें चिमनी की ऊंचाई 14 मीटर और 30 हजार से अधिक ईंट निर्माण करने वाले भट्ठों को 16 मीटर ऊंची चिमनी की व्यवस्था करनी होगी। विभाग के अनुसार, धुआं निकलने के लिए चिमनी की ऊंचाई बढ़ने से भट्ठे के आसपास प्रदूषण कम करने में मदद मिलती है। साथ ही दूरी के नियमों का पालन भी करना होता है।
लेकिन, अधिकतर ईंट चिमनी वाले इन नियमों का पालन नहीं करते हैं, जिस कारण इस तरह की घटनाएं बार-बार होती हैं।
अंदेशा है कि इस ईंट भट्ठा में भी नियमों की अनदेखी हुई है। हालांकि, घटना के बाद चिमनी में जाने पर रोक लगा दी है, लेकिन स्थानीय लोग अलग-अलग आशंका भी जता रहे हैं।
कुछ लोग इसे दुर्घटना, तो कुछ लोग इसे साजिश भी कह रहे हैं। लोगों का कहना है कि ब्लास्ट की आवाज इतनी जोरदार थी कि आस पास के चार पांच किलोमीटर तक के गांवों तक पहुंच गई थी। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि गैस भर जाने से भी ब्लास्ट होने की संभावना है।
परिवार का भविष्य अंधकार में, भूखे मरने की नौबत
30 वर्षीय अनिल बैठा शादीशुदा व पांच बच्चों – चार बेटियां व एक बेटा, के पिता थे। बच्चों का चेहरा सूखा हुआ और कपड़े फटे पुराने पहने हुए थे, जो परिवार की आर्थिक स्थिति को साफ साफ बयां कर रहे थे। विधवा नीतू देवी का रो रोकर बुरा हाल था वह बात करने की स्थिति में भी नहीं थी। बच्चों को पढ़ाई लिखाई से उतना सरोकार नहीं है। अनिल बैठा चिमनी में ईंट बनाने का काम करते थे। वह पिछले दो वर्षों से इस चिमनी में काम कर रहे थे। इससे पहले वह दिल्ली में एक फैक्ट्री में मजदूरी करते थे। लेकिन, लॉकडाउन लगने से उसका काम छूट गया था और वो गांव आ गए थे। तब से वह गांव में ही रहते थे।
हरि बैठा का कहना है कि परिवार में सिर्फ अनिल ही कमाने वाला सदस्य था। वह जो भी कमाता था, उसी से परिवार का भरण पोषण हो रहा था। “हम लोग खुशी खुशी से गरीबी में ही अपना जीवन जी रहे थे। पता नहीं कैसे ये सब हो गया। हम तो खुद अपाहिज हैं। हम कोई काम नहीं करते थे। अब मेरे ऊपर इन लोगों का जिम्मेवारी छोड़ गया। हमसे ये सब कैसे होगा,यह परिवार कैसे चलेगा। हम दिन रात इसी सोच में रहते हैं। अब तो यह स्थिति है कि अनिल के निधन हो जाने के बाद परिवार को खाने का भी दिक्कत होगा। हम लोगों के पास पुश्तैनी कोई जमीन जायदाद भी नहीं हैं। जिंदगी भर मजदूरी किए हैं,” उन्होंने कहा।
अनिल के मौत से आसपास के लोग भी बहुत दुखी थे। राजेश साह का घर ठीक उसके बगल में है। उन्होंने कहा, “अनिल बहुत ही मिलनसार लड़का था। अपने काम से मतलब रखता था और लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता था। पता नहीं किसकी नजर लग गई थी उसको। सिर्फ एक मौत से पूरा परिवार बिखर गया है। घर में छोटे छोटे बच्चे हैं। उसकी पत्नी का भी रो-रोकर बुरा हाल है। भगवान भरोसे ही है अब तो सब।”
जमा पूंजी के नाम पर समूह का कर्ज
हरि बैठा आगे बताते हैं कि अनिल मजदूरी करता था। चिमनी का काम भी पूरे साल नहीं चलता है। “जब सीजन हुआ तो काम होता है, नहीं तो घर पर बैठना पड़ता है। इस कारण हम लोगों को घर चलाने या अलग कुछ भी काम करने के लिए कर्ज लेना ही पड़ता है। अनिल भी एक समूह से कर्ज लिया हुआ था। जो कमाता था, उससे परिवार चलाता और समूह का कर्ज भी चुकाता था, इसलिए हम लोगों के पास कुछ भी जमा पूंजी नहीं है, हरि बैठा कहते हैं। वह आगे बताते हैं कि उनके पास खेती किसानी की भी जमीन नहीं हैं।
सरकारी मदद पर्याप्त नहीं
चिमनी ब्लास्ट में मरने वाले लोगों को मुख्यमंत्री द्वारा चार चार लाख रुपए मुआवजे की घोषणा की गई है। प्रधानमंत्री द्वारा भी मरने वाले लोगों को दो दो लाख रुपए देने का ऐलान किया गया है। अनिल बैठा से पूछने पर उन्होंने बताया कि चार लाख का चेक उनको मिल गया है। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित पैसा अभी उनको नहीं मिला है और न तो किसी ने सूचना दी है।
उन्होंने कहा, “पैसा लेकर क्या करेंगे। जब मेरा जवान बेटा ही नहीं रहा। अब घर में कोई कमाने वाला नहीं हैं। अनिल बैठा की पत्नी नीतू देवी आठवीं पास हैं। अगर सरकार नीतू देवी को आंगनबाड़ी या किसी स्कूल में खाना बनाने वाले में रखवा दे, तो इससे परिवार को बहुत मदद मिलेगी।”
Also Read Story
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।