Main Media

Get Latest Hindi News (हिंदी न्यूज़), Hindi Samachar

Support Us

विदेशों में काम की चाहत में ठगों के चंगुल में फंस रहे गरीब

पिछले तीन महीनों में 'मैं मीडिया' की टीम ने ऐसे दर्जनों प्रवासी मज़दूरों और उनके परिजनों से बात कर बर्बादी के स्तर को समझने की कोशिश की।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
Published On :
An affidavit to go abroad for work

हमारे देश में विदेश जाकर कमाने की होड़ दशकों पुरानी है। United Nations Department of Economic and Social Affairs के 2020 के आकंड़ों के अनुसार अकेले गल्फ देशों में भारत के 80 लाख से भी अधिक लोग काम करते हैं, बाकी देशों में प्रवासी मज़दूरों का आंकड़ा करीब 2 करोड़ तक जाता है। भारतीय विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2022 में 4 लाख सोलह हज़ार भारतीय भारत से ECR देशों में काम के लिए गए जिसमें बिहार के 69,518 प्रवासी मज़दूर शामिल हैं।


इनमे एक बड़ी तादाद सीमांचल के लोगों की होती है। साल 2018-2019 में सीमांचल से 21129 पासपोर्ट जारी हुए थे, वहीं साल 2019-2020 में कुल 21101 पासपोर्ट सरकार ने निर्गत किए। हालांकि साल 2021-2022 में सीमांचल से सिर्फ 11176 पासपोर्ट जारी किए गए।

Also Read Story

पटना में वक्फ संपत्ति विवाद: ‘पूरा गांव’ नहीं, 21 डिसमिल जमीन का मामला है

जन सुराज ने बिना सहमति के जिला कार्यवाहक समिति में डाले नेताओं के नाम

जहानाबाद के सिद्धेश्वरनाथ मंदिर में क्यों मची भगदड़

शराब मिली 600 एमएल, जुर्माना लगाया 8 लाख रुपये!

कटिहार: बारसोई गोलीकांड के एक साल बाद न कोई गिरफ्तारी, न कोई मुआवज़ा

कौन हैं बिहार में 65% आरक्षण ख़त्म करने के लिये हाईकोर्ट जाने वाले याचिकाकर्ता?

क्या जाति केंद्रित हॉस्टलों के वर्चस्व की लड़ाई में हुई पटना यूनिवर्सिटी के छात्र हर्ष की हत्या?

सरकारी स्कूलों में तय मानक के अनुरूप नहीं हुई बेंच-डेस्क की सप्लाई

हिन्दी अख़बार ‘स्वदेश’ की लापरवाही, कथित आतंकी की जगह पर लगा दी AIMIM नेता की तस्वीर

लेकिन विदेशों में काम कर मोटा पैसा कमाने की ललक कई बार लोगों को ठगी का शिकार बना देती है, अवैध तरीके से विदेशों में बंधुवा मज़दूर की ज़िन्दगी जीने पर मजबूर करती है और कई बार ज़िन्दगी से हाथ गवां देने पर महीनों घर वालों को लाश का इंतज़ार करना पड़ता है। शायद इसी लिए मशहूर उर्दू शायर मुनव्वर राना ने कहा है,


“बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है के बेटा मज़े में है”

पिछले तीन महीनों में ‘मैं मीडिया’ की टीम ने ऐसे दर्जनों प्रवासी मज़दूरों और उनके परिजनों से बात कर बर्बादी के स्तर को समझने की कोशिश की।

किशनगंज और अररिया ज़िले के कुल 33 मज़दूरों को एक स्थानीय एजेंट रंजीत ने सिंगापुर, अज़रबैजान और ऑस्ट्रेलिया में काम का ख्वाब दिखा कर 60 लाख रुपए से ज़्यादा ले लिए और उन्हें महीनों दिल्ली और कोलकाता घुमाता रहा। बार-बार टिकट कैंसिल होने पर इन्हें एजेंट पर संदेह हुआ। अब हालात ऐसे हैं की कई पंचायती और थाने में पूछताछ के बाद भी रंजीत न एक रुपए लौटा पाया है और न ही किसी को बाहर भेज पाया है।

किशनगंज ज़िले के कोचाधामन प्रखंड की कैरी बीरपुर पंचायत निवासी मोहम्मद नौमान ने रंजीत को डेढ़ लाख रुपय दिए थे। उनसे कहा गया था कि उन्हें सिंगापुर में फ़ूड पैकेजिंग का काम करना होगा जिसके लिए उन्हें मासिक वेतन 70 से 80 हज़ार रुपए मिलेंगे। सिंगापुर का टिकट कैंसिल होने पर उन्हें अज़रबैजान भेजने का भरोसा दिलाया गया लेकिन ऐसा कुछ न हुआ और फिर ट्रेवल एजेंट ने उनके पैसे वापस करने से भी इनकार कर दिया।

नोमान की तरह कुंवारी बैसा निवासी सतीश कुमार ने भी ट्रेवल एजेंट रंजीत को पैसे दिए थे जो उन्हें वापस नहीं मिले। सतीश ने बताया के उन्होंने एजेंट को सिंगापुर में नौकरी लगाने और टिकट वग़ैरह के खर्च के लिए अपने घर की ज़मीन बंधक रख कर 2 लाख नक़द दिए थे।

मैं मीडिया ने आरोपी ट्रेवल एजेंट रंजीत से बात की तो उसने बताया कि ग़ाज़ियाबाद के अज़मत खान ने उनसे सारा पैसा ले लिया और भाग गया। रंजीत ने आगे बताया कि वह और उसके भाई भी अज़मत खान के फ्रॉड का शिकार हुए हैं। रंजीत के अनुसार अज़मत खान फ्लाईकोन ट्रेवल एजेंसी नामक कंपनी के मालिक होने का दवा कर रहा था लेकिन पैसे मिलने के बाद वह फरार है और उसका नंबर भी बंद है। रंजीत ने किसी मुन्ना नामक शख्स के बारे में बताया जिसने उसे एजेंट अज़मत खान से मिलवाया था। रंजीत ने हमें अजमत और मुन्ना का फ़ोन नंबर भी दिया, लेकिन लगातार कोशिश करने पर भी उन नंबर पर किसी से बात नहीं हो पाई।

दूसरी तरफ किशनगंज के ही मुस्तफिज़ इसी साल जून में सऊदी अरब पहुंचे। वहां उन्हें ए.सी मेंटेनेंस की नौकरी दिलवाने को कहा गया था। मुस्तफिज़ के अनुसार उनके कफील यानी सऊदी अरब में उनको काम दिलाने वाला एजेंट उनसे लोडिंग अनलोडिंग का काम करवाता है और तीन महीने के बाद केवल एक महीने का वेतन मिला है। उन्होंने वापस भारत आने की गुहार लगाई, लेकिन उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया गया। हालांकि, हमसे बात करने के कुछ दिन बाद ही किशनगंज के कुछ लोगों की मदद से मुस्तफिज़ वहां से निकल पाने में कामयाब रहा।

मैं मीडिया ने मुस्तफिज़ को सऊदी अरब भेजने वाले ट्रेवल एजेंट अख्तर से बात की। अख्तर मुंबई में हमदान नामक ट्रेवल एजेंसी चलाते हैं। उन्होंने मुस्तफिज़ के आरोपों के जवाब में मुस्तफिज़ को ही दोषी बताते हुए कहा कि उससे ए.सी का ही काम कराय जाता है लेकिन उसे काम करने का मन है ही नहीं।

किशनगंज के कोचाधामन प्रखंड बलिया गाँव के मोहमद तबरेज़ आलम भी पिछले दिनों बड़े ठगी का शिकार हुए। उन्हें हयात नामक किसी एजेंट ने नौकरी वीज़ा बोलकर विजिट वीज़ा पर UAE भेज दिया, जहां उनसे 7 महीने काम करवाया गया लेकिन वेतन के नाम पर उन्हें कुछ नहीं मिला, बस खाने पीने के लिए पैसे मिलते थे। उनके अनुसार जब उनकी तबियत खराब हुई तो उनसे 80 हज़ार रुपय की मांग की गई। किशनगंज से जब उनके घर वालों ने यह रक़म भेजी तो तबरेज़ भारत लौट सके।

आपको बता दें कि कई अरब देशों में क़फ़ाला व्यवस्था प्रचलित है जिसमें बाहर से आए मज़दूरों के लिए एक ‘कफिल’ होता है, जिसे अरबी में अरबाब कहते हैं। अरबाब के पास प्रवासी मज़दूरों के रहने खाने की ज़िम्मेदारी होती है। अक्सर अरबाब द्वारा मज़दूरों के साथ दुर्व्यवहार करने और पासपोर्ट ज़ब्त कर लेने के मामले सामने आते हैं। विश्व के कई बड़े मानवाधिकार संगठन इस क़फ़ाला व्यवस्था को बंद करवाने की मांग करते रहे हैं।

पिछले छह महीने में सीमांचल के कई प्रवासी मज़दूरों की लाश बड़ी मशक्कत के बाद विदेश से आ पाई है। किशनगंज के दिघलबैंक प्रखंड के धानगड़ा गाँव के निवासी मुस्तकीम आलम भी उनमें से एक थे। मुस्तकीम मई 2018 में एजेंट की मदद से रोज़गार की तलाश में मलेशिया पहुंचे। एजेंट इंदलाल पर आरोप है कि उसने मुस्तकीम को 15 दिन के टूरिस्ट वीज़ा पर मलेशिया भेज दिया। मुस्तकीम साढ़े तीन साल तक ग़ैर कानूनी तौर पर मलेशिया में रहने पर मजबूर रहा। 22 जुलाई 2022 को मुस्तकीम ने अपने घर पर फ़ोन कर बताया कि उसकी तबियत बिगड़ गई है और वह दो दिन बाद भारत लौट रहा है। कुछ दिनों बाद मलेशिया के एक अस्पताल से मुस्तकीम की मौत की खबर की पुष्टि हुई। बड़ी मशक्कत के बाद मुस्तकीम की लाश भारत उनके घर मंगाई गई। मुस्तकीम के बड़े भाई मोहसिन आलम का कहना है कि मुस्तकीम ने बड़ी दिक्कतों से मलेशिया में साढ़े 3 साल गुज़ारे और अंत में विदेश में ही संदिग्ध हालात में उसकी मौत हो गई।

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

Related News

बिहारशरीफ दंगे का एक साल: मुआवजे के नाम पर भद्दा मजाक, प्रभावित लोग नहीं शुरू कर पाये काम

बिहार में बढ़ते किडनैपिंग केस, अधूरी जांच और हाईकोर्ट की फटकार

क्या अवैध तरीके से हुई बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सचिव की नियुक्ति?

जमीन के विशेष सर्वेक्षण में रैयतों को दी गई ऑनलाइन सेवाओं की क्या है सच्चाई

राज्य सूचना आयोग खुद कर रहा सूचना के अधिकार का उल्लंघन

“SSB ने पीटा, कैम्प ले जाकर शराब पिलाई” – मृत शहबाज के परिजनों का आरोप

बिहार जातीय गणना के खिलाफ कोर्ट में याचिकाओं का BJP-RSS कनेक्शन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

अप्रोच पथ नहीं होने से तीन साल से बेकार पड़ा है कटिहार का यह पुल

पैन से आधार लिंक नहीं कराना पड़ा महंगा, आयकर विभाग ने बैंक खातों से काटे लाखों रुपये

बालाकृष्णन आयोग: मुस्लिम ‘दलित’ जातियां क्यों कर रही SC में शामिल करने की मांग?

362 बच्चों के लिए इस मिडिल स्कूल में हैं सिर्फ तीन कमरे, हाय रे विकास!

सीमांचल में विकास के दावों की पोल खोल रहा कटिहार का बिना अप्रोच वाला पुल