2022 के आखिरी तीन दिनों में दैनिक जागरण द्वारा चलाए गए सीरीज ‘सीमांचल का सच’ में कई ऐसे दावे किए गए, जो खबर के नाम पर मज़ाक लगते हैं।
बांग्ला भाषा में लगा बोर्ड
29 दिसंबर, 2022 को अखबार के पहले पन्ने पर सबसे ऊपर खबर छपी ‘सीमांचल में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों का दबदबा, पलायन को मजबूर हो रहे अल्पसंख्यक हिंदू।’ इस खबर में किशनगंज एसपी ऑफिस के सामने बांग्ला भाषा में लगे एक बोर्ड की तस्वीर लगाई गई है। इस तस्वीर का खबर से क्या वास्ता है, इसका ज़िक्र न तो पहले पन्ने पर मिलता है, न ही पेज 12 पर छपे खबर के शेष अंश में। हालांकि पेज 12 पर यह ज़रूर लिखा गया है, “1971 में भारत-पाक युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश के गठन के बाद बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मुस्लिम असम पहुंचे। कालांतर में ये सीमांचल के कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया आदि जिलों में बसने लगे।” खबर की इस पंक्ति से लगता है कि दैनिक जागरण के रिपोर्टर संजय सिंह की समझ यह है कि बिहार में बांग्ला भाषा का मतलब बांग्लादेशी घुसपैठ है। जबकि सच तो यह है कि किशनगंज ज़िले का बांग्ला से जुड़ाव का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। बांग्ला भाषी समाज से आनेवाले किशनगंज निवासी सुबीर मजूमदार बताते हैं कि एसपी ऑफिस के अलावा पहले किशनगंज रेलवे स्टेशन, यहाँ के स्कूल से लेकर दुकानों तक का नाम बांग्ला में लिखा होता था, अब वो चीज़ खत्म हो गई है। शहर के कई जगहों जैसे ‘डे मार्केट’ का नाम भी में बंगाली के नाम पर रखा गया है।
Also Read Story
बांग्ला भाषा होने का यह मतलब नहीं है कि यहां बांग्लादेशी घुसपैठिए आ गए हैं। इसलिए, दैनिक जागरण की खबर में किशनगंज एसपी ऑफिस के सामने बांग्ला में लगा बोर्ड का फोटो भ्रामक है।
पहनावा
30 दिसंबर, 2022 को दैनिक जागरण अखबार के पहले पन्ने पर सबसे ऊपर खबर छपी “मिड डे मील के लिए सरकारी स्कूल जाते बच्चे, तालीम मदरसा में ही।” इस खबर के जरिए मुसलमानों के पहनावे और खान-पान में घुसपैठ बताने की कोशिश की गई है। खबर में लिखा गया है, “यहां पढ़ने वाले अधिकतर बच्चों की वेशभूषा बांग्लादेशी मुसलमानों की तरह है, छोटे बच्चे भी घुटनों तक की लुंगी में नज़र आते हैं।” रिपोर्टर संजय सिंह के इस दावे से साफ़ समझ आता है कि उन्हें मुस्लिम समाज के बारे में कितनी कम जानकारी है। नमाज़ पढ़ने के लिए मुस्लिम समाज के लोग हमेशा पजामा, पेंट या लुंगी को टखना से ऊपर रखते हैं। इसलिए मदरसों में बच्चे टखने से ऊपर लुंगी पहने नज़र आते हैं। घुटनों तक लुंगी न बच्चे पहनते हैं और न बूढ़े। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के किशनगंज जिला अध्यक्ष मौलाना इलियास मुख्लिस बताते हैं, टखना से ऊपर के लिबास पहनना सुन्नत तरीका है यानी इस्लाम के आखिरी पैगंबर मुहम्मद साहब का तरीका है यानी देशभर या दुनिया के मुसलमान ऐसा करते हैं।
खान-पान
उसी खबर में हाईलाइट कर लिख गया है, “बांग्लादेशियों को लहरी रोटी और पटुए की साग बहुत पसंद है। बहुतायत में जब लोग इसकी मांग करने लगे तो किशनगंज के होटलों में इसे मेनू में शामिल कर लिया गया। अब यह हर जगह आसानी से उपलब्ध है और हर वर्ग के लोगों के खानपान में शामिल होता जा रहा है। साग का मौसम नहीं रहने पर लहरी रोटी के साथ नमक-मिर्च उपलब्ध होता है।”
सीमांचल के शेरशाहबादी समाज के लोग बताते हैं कि लहरी रोटी कई आटा के मिश्रण से बनाई जाती है। खेतों में काम करने जाने या मज़दूरी करने जाने से पहले अक्सर लोग इसे खाते हैं, जिससे काम करने में ताकत मिल सके। बिहार के कई हिस्से में इस रोटी को ‘मिलावन की रोटी’ भी कहा जाता है, जिसे मक्खन, छाछ, कच्चा प्याज और अचार के साथ खाया जाता है।”
किशनगंज ज़िले के दिघलबैंक प्रखंड निवासी नौशाद अली बताते हैं, “शेरशाहबादी समाज में सुबह के नाश्ते को लहरी बोला जाता है, उसमें रोटी या भात कुछ भी हो सकता है।”
इसलिए सीमांचल के मुसलमानों के पहनावे और खान-पान को लेकर दैनिक जागरण में छपी जानकारी भ्रामक है।
मस्जिद और मदरसा
दैनिक जागरण की खबर में लिखा गया है, “सीमांचल में मस्जिदों की बनावट दो तरह की है। कोई मस्जिद आलीशान बना हुआ है तो कोई बहुत ही सामान्य। मस्जिदों में गुंबद की उपस्थिति से इस अंतर को समझा जा सकता है।”
खबर में आगे लिखा गया है, “मदरसे में फ़िक़ह, मंतिक, हदीस, उसूल-ए-हदीस, उसूल-ए-फ़िक़ह, कुरआन, उर्दू, फ़ारसी, अरबी आदि की पढ़ाई होती है। प्राइवेट मदरसे को निज़ामिया और सरकारी मदरसे को आलिया कहा जाता है। निज़ामिया का संचालन चंदे की राशि से होता है। वहीं, सरकारी मदरसों पर राज्य सरकार प्रतिवर्ष लगभग 483 करोड़ रुपए खर्च करती है।”
घुसपैठिए से जुड़ी एक खबर में इस जानकारी को ऐसे डाला गया है, जैसे सीमांचल में देश के बाकी हिस्सों से कुछ अलग हो रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के मौलाना इलियास मुख्लिस बताते हैं, “सीमांचल में कुछ अलग नहीं हो रहा है। और जगहों पर भी ऐसी बड़ी-छोटी मस्जिदें होती हैं। जहाँ तक प्राइवेट और सरकारी मदरसे की बात है, तो स्कूल भी ऐसे ही होते हैं। इसमें अलग कुछ नहीं है।”
दैनिक जागरण का पक्ष
दैनिक जागरण का पक्ष जानने के लिए हमने ‘सीमांचल का सच’ के रिपोर्टर संजय सिंह को कॉल किया, लेकिन उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया। हमारी खबर ‘दैनिक जागरण का झूठ’ पार्ट 1 और पार्ट 2 से जुड़े छह सवाल हमने संजय सिंह को 26 जनवरी को उनके WhatsApp पर भेजे थे, लेकिन 28 जनवरी तक उधर से कोई जवाब नहीं आया। जवाब आने पर हमारी वेबसाइट mainmedia.in पर खबर को अपडेट कर दिया जाएगा।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।