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बिहारशरीफ दंगे का एक साल: मुआवजे के नाम पर भद्दा मजाक, प्रभावित लोग नहीं शुरू कर पाये काम

'मैं मीडिया' ने दंगे से प्रभावित आधा दर्जन लोगों से बातचीत की। बातचीत में सभी लोगों ने कहा कि काफी दौड़-भाग करने के बावजूद जिला प्रशासन में मुआवजे को लेकर संजीदगी नहीं दिखी और मुआवजे के रूप में जितनी रकम की पेशकश की गई, वे उनके लिए भद्दा मजाक से अधिक नहीं।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
one year of biharsharif riots a crude joke in the name of compensation
इकबाल हुसैन की जली हुई बस।

31 मार्च को बिहारशरीफ दंगे का एक साल हो जाएगा। इस एक साल में जला दी गई मदरसा अजीजिया की लाइब्रेरी और दंगे से प्रभावित दुकानदार किस स्थिति में है, ‘मैं मीडिया’ ने इसकी पड़ताल की है।


एक साल पहले इकबाल हुसैन के ट्रांसपोर्ट कारोबार में काफी तेजी हुआ करती थी। वह जल्दी खराब हो जाने वाले खाद्य सामानों को छोड़ अन्य सभी सामानों की ट्रांसपोर्टिंग का काम करते थे और साथ ही उनकी अपनी चार बसें चला करती थीं। लेकिन, पिछले एक साल से उनका काम लगभग थमा हुआ है। जो लोग पहले अपने सामान की ट्रांसपोर्टिंग के लिए इकबाल हुसैन को तलाशते थे, वे लोग अब उन्हें शक की निगाह से देखते हैं और उन्होंने इकबाल को काम देना लगभग बंद कर दिया है।

“जिस पार्टी से कभी 150 से 200 कार्टन सामान पहुंचाने का काम मिलता था, उनसे बहुत विनती की, तो उन्होंने चप्पलों से भरे 20 कार्टन पहुंचाने का काम दिया है। लेकिन, ज्यादातर पार्टी, जो ट्रांसपोर्ट के लिए मुझ पर निर्भर थे, उन्होंने हमें काम देना बंद कर दिया है,” परेशान आवाज में इकबाल हुसैन कहते हैं।


मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा के बिहारशरीफ टाउन के रहने वाले इकबाल हुसैन के गोदाम और गोदाम के अहाते में खड़ी दो बसों, एक बुलेट समेत कुल चार गाड़ियों को पिछले साल रामनवमी जुलूस में हुई साम्प्रदायिक झड़प के बाद दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था। गोदाम में वे सामान रखे हुए थे, जिन्हें अन्य राज्यों से लाया गया था और वाहनों से उन्हें गंतव्य तक पहुंचाया जाना था। आग में गोदाम में रखा सारा सामान जला दिया गया, लेकिन इकबाल हुसैन के अनुसार, ये सामान मंगवाने वाले ज्यादातर लोगों को लगता है कि उन्होंने वो सामान बेच दिया और दंगे में सामान जल जाने का बहाना बना रहे हैं।

“हम तो जला हुआ सामान भी दिखाने को तैयार हैं, लेकिन लोगों को भरोसा हम पर से उठ गया है, जिससे अब पहले जैसा काम मिलना बंद हो गया है। बहुत मिन्नतें करता हूं, तो थोड़ा-बहुत काम मिलता है, वरना वह भी नहीं। चिंता के मारे नींद नहीं आती है,” उन्होंने बताया।

इकबाल हुसैन के अनुमान के मुताबिक, उन्हें कम से कम 8 करोड़ का नुकसान हुआ है, लेकिन मुआवजे के रूप में उन्हें लगभग दो लाख रुपये ही अब तक मिल पाये हैं।

उनके गोदाम के अहाते में जली हुई बसें अब भी खड़ी हैं, जो दंगे की भयावहता बताती हैं। गोदाम से ही उनका ट्रांसपोर्ट का काम चलता था, मगर दंगे में जला दिये जाने के बाद गोदाम भी बंद पड़ा हुआ है।

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पिछले साल 31 मार्च को हुआ था दंगा

पिछले साल 31 मार्च को बिहारशरीफ टाउन में रामनवमी की शोभायात्रा निकली थी। इस शोभायात्रा के दौरान ही दो समुदायों में झड़प हो गई थी, जिसने भयावह रूप ले लिया था और जिस रूट से रामनवमी की शोभायात्रा गुजरी थी, उस रूट में दर्जनों दुकानों को दंगाइयों ने निशाना बनाया था।

अगले दिन एक अप्रैल को दोबारा हिंसा भड़क उठी थी, जिसके बाद सरकार ने जिले में इंटरनेट बंद कर दिया था और पूरे टाउन में कर्फ्यू की घोषणा कर दी थी, जो लगभग एक हफ्ते तक लागू रहा था।

दंगाइयों ने दुकानों को तो नुकसान पहुंचाया ही, उन्होंने मस्जिद पर भी हमला किया और मस्जिद से सटी लगभग 100 साल से भी पुरानी मदरसा अजिजिया की लाइब्रेरी, जिसमें कुछ दुर्भल पुस्तक समेत लगभग 4500 किताबें थीं, को आग के हवाले कर दिया था। आग से पूरी लाइब्रेरी बुरी तरह तहस नहस हो गई थी।

मदरसे को हुए नुकसान की मरम्मत के लिए 5 लाख रुपये आवंटित किये गये थे। मदरसे से जुड़े लोगों ने बताया कि इस राशि से क्षतिग्रस्त कमरों और शौचालय में कुछ कुछ काम किया गया है। लेकिन मदरसे की लाइब्रेरी का काम शुरू होना अभी बाकी है। बताया जा रहा है कि लाइब्रेरी को तोड़कर दोबारा उसे बनाने की योजना है क्योंकि आग से बुरी झुलस जाने के कारण वह बेहद कमजोर हो चुकी है।

burnt library of madrasa azizia
मदरसा अजीजिया की जली हुई लाइब्रेरी। इसी लाइब्रेरी में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं।

उल्लेखनीय हो कि पिछले साल अक्टूबर में बिहार सरकार ने मदरसा अजीजिया के पुनर्निर्माण के लिए 29.87 करोड़ रुपये आवंटित किये थे। हालांकि, तकनीकी तौर पर देखा जाए, तो ये राशि बिहार राज्य मदरसा सुदृढ़ीकरण योजना के अंतर्गत आवंटित हुई थी। इस योजना के तहत इस राशि से मदरसा अजीजिया की खाली जमीन पर 18 कमरे बनाये जाएंगे। ये कमरे बनकर तैयार हो जाएंगे, तो बच्चों को इन नये कमरों में शिफ्ट किया जाएगा और इसके बाद लाइब्रेरी का काम शुरू होगा।

इस दंगे में शहर के ही पहड़पुरा मोहल्ले के रहने वाले 17 वर्षीय एक किशोर गुलशन कुमार की गोली लगने से मौत भी हो गई थी। गुलशन कुमार के भाई विकास कुमार ने कहा कि इस हत्या के मामले में पुलिस की क्या कार्रवाइयां हुई हैं, इसकी उसे कोई जानकारी नहीं है।

इस दंगे को एक साल होने को आया है, लेकिन दंगे से प्रभावित लोगों के जेहन में इसके जख्म अब भी हरे हैं। लोगों के जमे-जमाये कारोबार को दंगाइयों ने जलाकर राख कर दिया था। दंगे से इन कारोबारियों की कमर ऐसी टूटी कि अब तक संभल नहीं सके हैं। कई कारोबारी तो नये सिरे से अपना कारोबार भी शुरू नहीं कर पाये हैं और उनका भविष्य अनिश्चितताओं से भरा हुआ है।

नौशाद आलम, बिहारशरीफ टाउन के जिला परिषद मार्केट में फलों और सूखे फलों का कारोबार किया करते थे। उनका गोदाम मस्जिद के मुख्य गेट के पास था, जिसे दंगाइयों ने आगे के हवाले कर दिया था। इसी गोदाम में उनकी बुलेट थी। आग की लपट ने बुलेट को भी जला दिया था। “रमजान को लेकर भारी मात्रा में सूखे फल, कोल्ड ड्रिंक्स, सेवइयां व अन्य खाद्य पदार्थ स्टॉक कर रखे हुए थे। कुछ भी नहीं बचा,” नौशाद आलम कहते हैं।

नौशाद आलम ने स्थानीय लहेरी थाने में जो एफआईआर दर्ज कराई थी, उसमें उन्होंने लगभग 17 लाख रुपये के नुकसान का जिक्र किया है।

वह कहते हैं, “दंगे के बाद 4 महीने तक हमलोग कुछ कर ही नहीं पाये। इसके बाद एक छोटा सा ठेला लगाकर किसी तरह दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने की कोशिश कर रहे हैं। घर में 12 सदस्य हैं। उनका भरण-पोषण मेरी कमाई से ही होती है, लेकिन इस छोटे से ठेले से कितनी कमाई होगी। दिक्कत बहुत है, लेकिन किससे शिकायत करें।”

नुकसान लाखों का, मुआवजा हजारों में

‘मैं मीडिया’ ने दंगे से प्रभावित आधा दर्जन लोगों से बातचीत की। बातचीत में सभी लोगों ने कहा कि काफी दौड़-भाग करने के बावजूद जिला प्रशासन में मुआवजे को लेकर संजीदगी नहीं दिखी और मुआवजे के रूप में जितनी रकम की पेशकश की गई, वे उनके लिए भद्दा मजाक से अधिक नहीं। इस संबंध में नालंदा के एसडीएम को फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया।

नौशाद आलम कहते हैं, “मैंने जिले के डीएम, एसपी से लेकर उन तमाम अफसरों के पास मुआवजे की फरियाद लेकर गया, जहां थोड़ी भी उम्मीद थी। लेकिन मुआवजे के रूप में हमें महज 30 हजार रुपये की पेशकश की गई और कहा गया कि दुकान को ठीक कर दोबारा धंधा शुरू कीजिए।”

“आप बताइए, दुकान का एक शटर ठीक कराने में एक लाख रुपये का खर्च आता है, ऐसे में 30 हजार रुपये में हम दुकान को पूरा ठीक कैसे करवा लेंगे और धंधा कैसे शुरू करेंगे,” वह गुस्सा होकर पूछते हैं।

वह आगे बताते हैं, “17 लाख रुपये का नुकसान हुआ है और मुआवजे के रूप में महज 30 हजार रुपये दिये जा रहे हैं। यह हमारे साथ सरासर मजाक है, इसलिए हमने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया।”

नौशाद आलम का सवाल पुलिस से भी है। वह कहते हैं कि जिन लोगों को उन्होंने अपनी एफआईआर में नामजद किया था, उनमें से दो लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और तुरंत छोड़ भी दिया। “वे लोग खुला घूम रहे हैं। हमें मुआवजा दिया गया और न न्याय।”

दंगे से दो महीने पहले खोला था रेस्तरां, अब कर रहे मदजूरी

समीर हुसैन ने दंगे से महज दो महीने पहले बिहारशरीफ टाउन में मुरारपुर मस्जिद के बगल में रेस्तरां खोला था। वह बताते हैं कि दंगाई ताला तोड़कर रेस्तरां में घुस गये थे और सबकुछ जला दिया था। उन्होंने एफआईआर में 14 लोगों को नामजद करते हुए कहा था कि उन्हें 10 लाख 42 हजार रुपये का नुकसान हुआ है। “मगर, स्थानीय प्रशासन ने बताया कि सहायता राशि के रूप में 30 हजार रुपये ही दिये जाएंगे,” वह कहते हैं। वह पूछते हैं, “30 हजार लेकर हम क्या करेंगे?”

रेस्तरां के दंगे की भेंट चढ़े एक साल होने जा रहा है, लेकिन समीर दोबारा अपना धंधा शुरू नहीं कर पाये हैं। वह कहते हैं, “दोबारा रेस्तरां तो तभी खोल पायेंगे, जब पूंजी होगी। इतना पैसा कहां से आएगा?” फिलहाल समीर दिहाड़ी का काम करते हैं। “कभी कुछ सामान कहीं पहुंचाने का काम मिल जाता है, तो कभी कंस्ट्रक्शन का काम कर लेते हैं। इसी तरह मुश्किल से गुजारा हो पा रहा है,” उन्होंने कहा।

अरुण मेहता की शोगरा कॉलेज के पीछे गोदामों की श्रृंखला है। इसमें से एक गोदाम में उनकी तीन ई-रिक्शा और एक कार रखी हुई थी। दंगाइयों में उन्हें भी आग के हवाले कर दिया था।

अरुण मेहता कहते हैं, “चार गोदामों को हुए नुकसान और वाहनों की क्षति को मिलाकर मुझे 20 से 25 लाख रुपये का नुकसान हुआ है, लेकिन मुआवजे के रूप में सिर्फ एक लाख रुपये दिये गये हैं।

अरुण मेहता के अन्य गोदामों को भी आग के हवाले कर दिया था, जिनमें से एक गोदाम में उमेश प्रसाद गोस्वामी का हार्डवेयर का सामान था।

उमेश प्रसाद गोस्वामी ने 35-40 साल की मेहनत से हार्डवेयर का कारोबार खड़ा किया था, लेकिन दंगे की लपट ने उन्हें एक झटके में ही सड़क पर ला खड़ा कर दिया है।

54 साल के उमेश प्रसाद गोस्वामी जब 14 साल के थे, तभी से उन्होंने इस लाइन का काम शुरू कर दिया था। धीरे धीरे अपना कारोबार स्थापित कर लिया। हार्डवेयर का धंधा वह पिछले 20 सालों से कर रहे थे। “गोदाम में एक करोड़ रुपये से ज्यादा का सामान था, सब जल गया। एक करोड़ रुपये के सामान का तो मेरे पास जीएसटी बिल है। पुराने सामान का बिल नहीं है, लेकिन गोदाम में पहले का भी सामान था,” उन्होंने कहा।

उमेश प्रसाद गोस्वामी अब तक अपना धंधा शुरू नहीं कर पाये हैं। “घर पर बैठे हुए हैं। बैंक से 32 लाख रुपये लेकर सामान मंगवाया था, जिसका हर महीने 26000 रुपये ब्याज जमा करना पड़ता है। दो महीने से बैंक का ब्याज भी जमा नहीं किये हैं,” उमेश प्रसाद बताते हैं, “पैसे की ऐसी किल्लत है कि मेरे दो बेटे दूसरे राज्यों में पढ़ते थे, वे घर लौट आये हैं।”

umesh prasad goswami hardware items were in this warehouse
इसी गोदाम में उमेश प्रसाद गोस्वामी का हार्डवेयर का सामान था।

उन्होंने अपने घर और गोदाम का बीमा कराया हुआ था और हर साल उसे रिन्यू कराते थे। अतः जब दंगाइयों ने गोदाम जलाया तो वे थोड़े निश्चिंत थे कि बीमा का पैसा मिलेगा, तो फिर से वह नये सिरे से धंधा शुरू कर सकेंगे। लेकिन, बीमा का मामला भी फंस गया है।

उमेश प्रसाद गोस्वामी ने कहा कि बैंक वालों से बीमा दावा को लेकर संपर्क किया, तो बैंक की तरफ से बताया गया कि उन्होंने सिर्फ मकान का बीमा किया था, गोदाम का नहीं। “मैंने इसको लेकर बैंक के खिलाफ कोर्ट में केस किया है। उम्मीद है कि फैसला हमारे पक्ष में होगा और हमें बीमा की रकम मिलेगी। अगर रकम मिलती है, तो दोबारा धंधा शुरू करने की कोशिश करेंगे। फिलहाल तो घर पर ही खाली बैठे रहते हैं।”

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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