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बिहार में बढ़ते किडनैपिंग केस, अधूरी जांच और हाईकोर्ट की फटकार

अपहरण की शिकायत के महीनों बीत जाने के बाद भी कोई ठोस सुराग नहीं मिलने के बाद विपिन किशोर मिश्रा के परिजनों ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पटना हाईकोर्ट ने शुरुआती सुनवाइयों में पुलिस से केस डायरी व अन्य सामग्रियां मांगी। पुलिस से संतुष्ट होकर कोर्ट ने इसी महीने इस मामले में अररिया के एसपी को कोर्ट में हाजिर होने का फरमान सुनाया।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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“अगर पुलिस ने ठीक से तलाश किया होता, तो अब तक कुछ न कुछ (सुराग) जरूर मिल जाता,” पुलिस की जांच से बुरी तरह असंतुष्ट विमला देवी गुस्से में कहती हैं।

वह पिछले लगभग डेढ़ साल पहले अपहृत हुए अपने दामाद प्रो. विपिन किशोर मिश्रा के मामले का अंत चाहती हैं, लेकिन पुलिस अब तक पता नहीं लगा पाई है कि आखिर पिछले साल 24 सितंबर को उनके साथ क्या हुआ और अब वह किस हाल में हैं या हैं भी कि नहीं।

मूल रूप से सुपौल जिले के वीरपुर के रहने वाले प्रो. विपिन किशोर मिश्रा अररिया के सीकेएम लॉ कॉलेज में शिक्षक हैं।


पिछले साल 24 सितंबर की दोपहर 12 बजे वह सुपौल से अररिया लॉ कॉलेज के लिए निकले थे। दोपहर करीब 2 बजे वह कॉलेज पहुंचे और वहां कक्षाएं लेने के बाद अपने भतीजे के घर चले गये। वहां से वह नीतीश कुमार नाम के एक शख्स के साथ अपनी बहन के घर के लिए रवाना हुए। उस व्यक्ति ने उन्हें शाम 7.30 बजे अररिया के कृष्णापुरी में उतार दिया, जिसके बाद से उनकी कोई खबर नहीं है। हालांकि, उन्होंने अपनी पत्नी से आखिरी बार 24 सितंबर की रात 9 बजे बातचीत की थी, मगर उसके बाद से उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

विमला देवी कहती हैं कि अपहरण होने की शिकायत अगले दिन ही अररिया थाने में कर दी गई थी। उनका हुलिया, कपड़ों का रंग आदि जानकारियां शिकायत में दी गई थीं। लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। लगभग एक महीने बाद पुलिस सुपौल आई।

“बड़ी संख्या में पुलिस वाले आये थे और दामाद के वो कपड़े और जूते देने को कहा था, जो वह पहना करते थे। हम लोगों ने पुलिस को अलमारी खोल दी कि जो कपड़ा लेना हो, ले जाए। पुलिस वाले एक जोड़ी कपड़े और जूते ले गये,” विमला देवी ने कहा।

क्या कॉलेज में गुटबाजी का शिकार हुए प्रोफेसर विपिन किशोर

सूत्र बताते हैं कि इस अपहरण केस में कॉलेज में चल रही गुटबाजी की बड़ी भूमिका हो सकती है।

बताया जाता है कि कॉलेज में दो गुट सक्रिय थे, जो एक दूसरे से धुर विरोधी थे। एक गुट का नेतृत्व कॉलेज के प्राचार्य राकेश मिश्रा कर रहे थे और दूसरे गुट का नेतृत्व पूर्व प्राचार्य अर्जुन आचार्य करते थे। लेकिन, विपिन किशोर इनमें से किसी भी गुट में नहीं थे, नतीजतन दोनों गुटों के निशाने पर रहते थे।

विपिन की पत्नी प्रेमलता मिश्रा ने इस आशय को लेकर एक पत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखा था। इस पत्र में उन्होंने कहा था, “पुलिस द्वारा (इस मामले में) अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है और न ही किसी संदिग्ध की गिरफ्तारी की गई है। अनुसंधानकर्ता को दिए अपने बयान में मैंने दोहराया है कि मुझे पूर्ण संदेह है कि स्थानीय लॉ कॉलेज की गंदी राजनीति के तहत मेरे पति का अपहरण किया गया है और उनकी हत्या कर देने की भी आशंका है।”

24 सितंबर की रात 9 बजे पत्नी के साथ हुई बातचीत में विपिन किशोर मिश्रा कुछ घबराये हुए लगे थे और उन्होंने अगले दिन यानी 25 सितंबर को लौटने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया था कि कहां ठहरे हुए हैं।

अपहरण की शिकायत के महीनों बीत जाने के बाद भी कोई ठोस सुराग नहीं मिलने के बाद विपिन किशोर मिश्रा के परिजनों ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पटना हाईकोर्ट ने शुरुआती सुनवाइयों में पुलिस से केस डायरी व अन्य सामग्रियां मांगी। पुलिस से संतुष्ट होकर कोर्ट ने इसी महीने इस मामले में अररिया के एसपी को कोर्ट में हाजिर होने का फरमान सुनाया।

11 दिसंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अररिया के एसपी व मामले के जांचकर्ताओं को कोर्ट में हाजिर होकर अब तक क्या जांच हुई, इसके बारे में विस्तृत जानकारी देने को कहा था। कोर्ट के आदेश पर 15 दिसंबर को अररिया के एसपी कोर्ट में हाजिर हुए थे। पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पीबी बजनथ्री ने एसपी की मौजूदगी में कहा कि पुलिस की जांच धीमी और दिशाहीन है। कोर्ट ने इस तरह के मामलों में गृह मंत्रालय के 2012 के दिशानिर्देशों का पालन करने को कहा और अगली सुनवाई की तारीख अगले साल जनवरी में तय की है।

इस अपहरण कांड में संदिग्धों से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस के हाथ अब भी खाली हैं। मामले से जुड़े एक पुलिस अधिकारी ने कहा, “आरोपियों से पूछताछ में कोई सुराग नहीं मिल पाया। नवंबर में पुलिस की टीम, डॉग स्क्वायड के साथ कॉलेज में छानबीन करने गई थी। हम लोग दिनभर छानबीन करते रहे, लेकिन वहां से भी कोई सबूत हमारे हाथ नहीं लगा।”

विपिन किशोर मिश्रा का मामला इकलौता केस नहीं है, जहां कोर्ट ने पुलिस को फटकार लगाई है। ऐसे कई मामले हैं, जो अब भी अनसुलझे हैं और इसको लेकर कोर्ट में पुलिस की किरकिरी हो चुकी है।

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छात्रा व किशोर के अपहरण के केस भी अनसुलझे

इनमें एक मामला तो 11 साल पहले का है और अपहृत किशोर अब तक 16 साल का हो चुका होगा।

उल्लेखनीय हो कि सिवान जिले के बसंतपुर थाना क्षेत्र के रहने वाले मंसूर आलम के 5 वर्षीय बेटे का 2 अगस्त 2012 को उसके घर से अगवा कर लिया गया था। दो युवक मोटरसाइकिल पर सवार होकर आये थे और बच्चे का मुंह बांधकर बाइक पर फरार हो गये थे।

पुलिस की जांच से असंतुष्ट होकर बच्चे के पिता ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसी साल सितंबर में पटना हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि जांच अधिकारी ने मामले की ईमानदारी से तहकीकात नहीं की।

जस्टिस एनएल कुमार सिन्हा ने कहा था, “जांच अधिकारी ने पर्याप्त संवेदनशीलता और ईमानदारी से मामले की जांच नहीं की और जांच रूटीन तरीके से चलाई गई।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले की जांच के दौरान कई जांच अधिकारी बदल दिये गये और सुपरविजन अफसर ने समय समय पर जांच दल को जो निर्देश दिये, उनका भी पालन नहीं किया गया।

कोर्ट ने आगे कहा था कि जांच अवैज्ञानिक तरीके से की गई और केस डायरी से पता चलता है कि पिछले साढ़े चार सालों में जांच में कोई प्रगति नहीं हुई।

मुजफ्फरपुर की एक छात्रा के अपहरण के मामले में भी पुलिस के हाथ एक साल बाद भी खाली हैं। इस मामले में भी हाईकोर्ट ने पुलिस की जांच शैली पर सवाल उठाया था।

पटना हाईकोर्ट के जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने कहा था कि पुलिस जांच को लेकर संवेदनशील नहीं है। अगर वह संवेदनशील होती, तो एक साल में अपहृत छात्रा को बरामद कर लेती।

अपहृत छात्रा मुजफ्फरपुर के एलएन मिश्रा इंस्टीट्यूट में पढ़ती थी। पिछले साल 12 दिसंबर को भगवानपुर चौक से उसे अगवा कर लिया गया था। जांच में पता चला था कि भगवानपुर चौक पर कुछ अज्ञात लोगों ने उसे नशे का इंजेक्शन दे दिया था। इसके बाद उसे पास ही स्थित रेड लाइट एरिया चतुर्भुज स्थान ले जाकर बेच दिया था। बताया जाता है कि इस मामले में पुलिस को दो संदिग्ध महिलाओं की जानकारी मिली थी, लेकिन पुलिस ने ठीक से जांच नहीं की, जिसके बाद छात्रा के परिजनों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट इस मामले की जांच सीबीआई को देने जा रहा था, लेकिन बिहार सरकार ने सीआईडी को जांच का जिम्मा दे दिया। पर, सीआईडी भी मामले में कोई ठोस सबूत नहीं जुटा पाया है।

अपहरण के 58 प्रतिशत मामलों में बरामदगी नहीं

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में साल 2022 में 11822 लोगों का अपहरण किया गया था, जो उत्तर प्रदेश (16460) और महाराष्ट्र (12491) के बाद तीसरे नंबर पर है। यह संख्या साल 2021 के मुकाबले अधिक है। साल 2021 में 10252 लोगों को अपहरण किया गया था।

अपहृतों की बरामदगी के आंकड़े बताते हैं कि 50 प्रतिशत से अधिक मामलों में पुलिस अपहृत लोगों को सही सलामत बरामद नहीं कर सकी है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं साल 2021 और 2022 को मिलाकर कुल 22074 लोगों का अपहरण किया गया था। 31 दिसंबर 2022 तक इनमें से 12874 अपहृतों को बरामद नहीं किया जा सका, जो कुल अपहृतों की संख्या का लगभग 58 प्रतिशत है।

अपहरण के मामले अगर सालों साल अनसुलझे रहे, तो एक वक्त के बाद पुलिस अपनी जवाबदेही से आसानी से फारिग हो जाती है। दरअसल, इंडियन एविडेंस एक्ट की धारा 107 और 108 कहती है कि अगर कोई व्यक्ति लगातार 7 साल तक लापता रहे और उसके बारे में कोई भी सुराग न मिले, तो उसे मृत मान लिया जाता है और फिर केस बंद हो जाता है। ऐसे में आरोप यह भी है कि पुलिस जानबूझ कर इस तरह के मामलों को लटकाती रहती है।

पटना के अधिवक्ता संतोष कुमार कहते हैं, “अधिकांश मामलों में पुलिस गंभीरता से जांच नहीं करती है। जब एफआईआर दर्ज होती है और पीड़ित परिवारों की तरफ से दबिश दी जाती है, तो उन्हें शांत करने के लिए पुलिस तत्काल गिरफ्तारियां कर लेती है। इससे परिवार शांत हो जाते हैं, तो पुलिस भी जांच करना छोड़ देती है।”

जब प्रो. विपिन किशोर लापता हुए थे, तब उनकी पत्नी प्रेमलता मिश्रा ने ही थाने में शिकायत दर्ज कराई थी। वह पेशे से वकील थीं। पति के लापता होने के पांच महीने बाद ही उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई। उनका एक बेटा और एक बेटी हैं। बेटा फिलहाल नानी विमला देवी के साथ रहकर पढ़ाई कर रहा है और बेटी मीडिया से जुड़ी हुई हैं।

“मेरी बेटी तो पति के सदमे के चलते ही हार्ट अटैक से मर गई। हमारा तो परिवार ही खत्म हो गया। नाती को अपने घर पर पढ़ा रहे हैं। हमको वृद्धा पेंशन मिलता है, उसी पैसा से किसी तरह जी रहे हैं,” विमला देवी ने कहा।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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