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किसान ने धान बेचा नहीं, पैक्स में हो गई इंट्री, खाते से पैसे भी निकाले

सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ सीजन 2022-2023 में बिहार में 42,04,774.957 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई। वहीं, रोहतास जिले में 4,35,317.340 मीट्रिक टन धान की खरीद हुई।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
representative image of a farmer

राम किसुन सिंह पेशे से किसान हैं। खरीफ विपणन मौसम 2022-2023 में उन्होंने पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चरल को-ऑपरेटिव सोसाइटी) को धान नहीं बेचा था, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड कुछ और कहानी कह रहा है।


सरकारी रिकॉर्ड में न केवल यह लिखा गया है कि उन्होंने धान पैक्स को बेचा बल्कि यह भी दर्ज है कि बिक्री के बाद उनके अकाउंट में पैसे गए और उस पैसे को उन्होंने निकाल भी लिया।

बिहार के को-ऑपरेटिव विभाग के दस्तावेज से पता चलता है कि रोहतास जिले के दिनारा प्रखंड के करहंसी गांव के रहने वाले राम किसुन सिंह ने 25 दिसम्बर 2022 में करहंसी पैक्स में 120 क्विंटल धान की बिक्री की और इस बिक्री के बाद उनके को-ऑपरेटिव बैंक के अकाउंट में धान का पैसा ट्रांसफर हुआ, तो वह पैसा भी निकाल लिया गया।


PACS list of rohtas district

रामकिसुन सिंह ने ‘मैं मीडिया’ को बताया, “मेरे मोबाइल नंबर पर 25 दिसम्बर को एक मैसेज आया था, जिसमें लिखा था कि 120 क्विंटल धान मैंने पैक्स को बेचा है और उसके एवज में मेरे अकाउंट में अगले 24 घंटों में 2,47,800 रुपए ट्रांसफर होंगे।”

OTP from pacs

मार्च के पहले हफ्ते में वह को-ऑपरेटिव बैंक की शाखा में अपने अकाउंट को चेक कराने गए, तो पता चला कि उनके अकाउंट से दो लाख रुपए की निकासी भी हो गई है।

वह कहते हैं, “को-ऑपरेटिव बैंक में मेरे बैंक अकाउंट में 14-1500 रुपए ही थे। उस अकाउंट में पीएम सम्मान निधि का पैसा भी आता है। मार्च में जब मैं बैंक में पहुंचा तो पता चला कि अकाउंट में लगभग 50 हजार रुपए पड़े हुए हैं। जब मैंने बैंक वालों से और तहकीकात कराई तो मालूम चला कि मेरे अकाउंट से 2 लाख रुपए निकाल लिए गए हैं।”

रामकिसुन सिंह के पास करीब 6 बीघा खेत है, लेकिन वह अकेले ही खेती करने वाले हैं, तो 10-15 कट्ठा जमीन पर ही अपने लायक खेती करते हैं और बाकी खेत की बंदोबस्ती कर दी है।

उन्हें आशंका है कि उनके फर्जी हस्ताक्षर कर पैसे की निकासी की गई है। उन्होंने बताया, “मैंने आखिरी बार पैक्स में धान की बिक्री 6-7 साल पहले की थी। उस वक्त मुझसे हस्ताक्षर कराए गए थे। इसके बाद से मैंने कभी भी धान की बिक्री पैक्स को नहीं की है।”

रामकिसुन के नाम पर धान की बिक्री और उसके रुपए की उनके बैंक अकाउंट से निकासी से पता चलता है कि पैक्स के स्तर पर व्यापक भ्रष्टाचार हो रहा है। यह भ्रष्टाचार तब हो रहा है जब पैक्स में धान की बिक्री के लिए ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) अनिवार्य कर दिया गया है।

किसी परिचित ने मांगा था ओटीपी

बिहार को-ऑपरेटिव विभाग में पंजीकृत रामकिसुन के मोबाइल फोन पर 25 दिसम्बर को ही धान की बिक्री से संबंधित एक ओटीपी आया था। बताया जाता है कि ओटीपी आते ही एक परिचित व्यक्ति ने राम किसुन को फोन किया। “फोन करने वाले ने मुझसे कहा कि उनका एक मैसेज मेरे पास आया है और इस मैसेज मे चार डिजिट का जो नंबर है, वह मैं उन्हें बता दूं,” रामकिसुन कहते हैं।

चूंकि वह तकनीकी तौर पर उतने जानकार नहीं हैं, तो उन्हें यह सामान्य बात लगी और उन्होंने ओटीपी शेयर कर दिया। ओटीपी शेयर करने के दो तीन मिनट बाद ही उनके पास एक और मैसेज आया जिसमें लिखा गया था, “आपको सूचित किया जाता है कि आपके द्वारा 120 क्विंटल धान अधिप्राप्ति मद में दिया गया, जिसका समतुल्य मूल्य 2,47,800 रुपए आपके बैंक खआते में 48 घंटे के अंदर क्रेडिट कर दिया जाएगा।”

यह पहली बार नहीं है जब रामकिसुन के नाम पर धान की बिक्री और पैसे की निकासी हुई है। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने सहकारिता विभाग की वेबसाइट देखी, तो पाया कि दो-तीन बार उनके नाम पर धान की बिक्री दिखाई गई है, जबकि वह 6-7 सालों से पैक्स को धान बेच ही नहीं रहे हैं।

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रामकिसुन को डर है कि अगर सरकार धान अधिप्राप्ति की जांच करती है, तो भुक्तभोगी होने के बावजूद वह आरोपित हो जाएंगे। इसी डर के चलते उन्होंने 4 मार्च को जिले के विक्रमगंज अनुमंडल के अनुमंडल लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को इसकी शिकायत करते हुए दोषियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर कार्रवाई करने के लिए आवेदन दिया है। लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी ने अप्रैल के पहले हफ्ते में सुनवाई की तारीख तय की है।

गौरतलब हो कि साल 2006 में एपीएमसी एक्ट खत्म करने के बाद बिहार सरकार ने किसान से फसलों की खरीद के लिए पैक्स और व्यापार मंडल की स्थापना की। बिहार में फिलहाल 8,463 पैक्स और 500 व्यापार मंडल हैं। यहां किसानों को फसल बेचने के लिए पहले सहकारिता विभाग में पंजीयन कराना पड़ता है।

चार सालों में धान की सरकारी खरीद का आंकड़ा

सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ सीजन 2022-2023 में बिहार में 42,04,774.957 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई। वहीं, रोहतास जिले में 4,35,317.340 मीट्रिक टन धान की खरीद हुई। यह खरीद हालांकि, पिछले वर्ष के मुकाबले कम है। खरीफ सीजन 2021-22 में बिहार में किसानों से 44,90,413.694 मीट्रिक टन धान की खरीद हुई थी और रोहतास में 4,86,474.074 मीट्रिक टन खरीदी गई थी।

इसी तरह, खरीफ सीजन 2020-21 में बिहार में 35,58,858.551 मीट्रिक टन धान किसानों से लिया गया था, जबकि रोहतास में 3,20,864.291 मीट्रिक टन धान की खरीद हुई थी। खरीफ सीजन 2019-2020 में बिहार में 20,01,761.820 मीट्रिक टन और रोहतास में 2,08,126.814 मीट्रिक टन धान की खरीद की गई थी।

कुछ पैक्स संचालकों ने ‘मैं मीडिया’ को नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि रामकिसुन का मामला कोई छिटपुट घटना नहीं है। पूरे राज्य में पैक्स जो खरीद दिखाते हैं, उसका करीब 50 प्रतिशत हिस्सा किसानों से न खरीद कर निजी तौर पर खरीदा जाता है और उसे किसानों के खाते पर दिखा दिया जाता है।

जिस पैक्स पर रामकिसुन सिंह ने गंभीर आरोप लगाए हैं, उस पैक्स के संचालक चंद्र प्रकाश सिंह ने ‘मैं मीडिया’ के साथ बातचीत में इन आरोपों को खारिज किया। उन्होंने कहा, “रामकिसुन ने धान बेचा था, तभी रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज है। अगर नहीं बेचा होता तो रिकॉर्ड में नाम ही नहीं होता।” उन्होंने आगे कहा, “अब तो बिना ओटीपी के धान की बिक्री नहीं की जा सकती है। उन्होंने ओटीपी दी है, तभी तो धान की खरीद हुई है।” यह बताने पर कि रामकिसुन का कहना है कि किसी परिचित व्यक्ति ने उनसे ओटीपी मांगा था, चंद्र प्रकाश सिंह ने कहा कि कोई दूसरा व्यक्ति उनका ओटीपी क्यों मांगेगा। “उन्होंने खुद धान की बिक्री की है और पिछले कई सालों से हर साल पैक्स को धान बेच रहे हैं,” उन्होंने कहा।

रोहतास जिले के दिनारा प्रखंड के प्रखंड सहकारिता अधिकारी मधुरेंद्र कुमार ने ‘मैं मीडिया’ से कहा, “हमें ऐसी जानकारी मिली है। हमने भुक्तभोगी से संपर्क किया, लेकिन उनका फोन बंद था। हमलोग फिर उनसे संपर्क कर उनकी शिकायत सुनेंगे और मामले की जांच करेंगे।

उन्होंने यह भी कहा कि इस तरह की शिकायत अगर अन्य पंचायतों से मिलेगी, तो उनकी भी जांच की जाएगी।

क्या धान खरीद में अनैतिक फायदा लेते हैं पैक्स

एक पैक्स संचालन ने नाम नहीं छापने की शर्त पर इस कथित हेराफेरी का गणित समझाया, “दरअसल, पैक्स ने न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम कीमत पर निजी स्तर पर धान खरीदा होगा और उसे सरकारी दस्तावेज में दर्ज किया होगा कि उक्त धान को पंजीकृत किसानों से एमएसपी पर खरीदा है। पैक्स ने चूंकि एमएसपी से कम दर पर धान खरीदा है और सरकारी दस्तावेज में बताया है कि एमएसपी पर खरीद की गई है, तो असल दर (निजी तौर पर खरीद) और एमएसपी के बीच पैसे का जो अंतर है, वह पैक्स संचालक का मुनाफा है।”

पैक्स संचालकों का यह भी कहना है कि कई बार इस तरह का फर्जीवाड़ा लक्ष्य को पूरा करने के लिए भी किया जाता है।

बिहार स्टेट फूड एंड सिविल सप्लाइज कारपोरेशन लिमिटेड ने फरवरी में सभी जिलों के डीएम को पत्र लिखकर कहा था कि जिन मिलों को धान को चावल में परिवर्तित कर सरकार को देने का लक्ष्य मिला था, उनमें से ज्यादातर मिलों ने क्षमतानुसार चावल अब तक नहीं दिया है अतः उन मिलों की जांच कर पता लगाया जाए कि कौन कौन सी मिलें धीमी गति से काम कर रही हैं और उन्हें ब्लैक लिस्ट किया जाए।

जिस पैक्स द्वारा रामकिसुन के नाम पर फर्जीवाड़ा हुआ, उस पैक्स में धान की अधिप्राप्ति की सूची से यह भी पता चलता है कि रामकिसुन की तरह ही कई ऐसे किसान हैं, जिनके पास उतना खेत ही नहीं कि धान की बिक्री कर सकें, मगर उनसे भी बड़ी मात्रा में धान की खरीद दर्ज हुई है।

खरीफ सीजन 2020-2021 में बेगूसराय में भी एक आरटीआई में खुलासा हुआ था जिनके पास खेती की जमीन नहीं है, उनके नाम भी पैक्स को धान बेचने वालों की सूची में शामिल थे।

ऐसा ही मिलता जुलता मामला पिछले दिनों पूर्वी चंपारण के मोतिहारी में भी सामने आया जहां दो किसानों से धान की अधिप्राप्ति दिखाई गई, मगर उनका खाता खेसरा नंबर एक ही दर्ज किया गया। हैरानी तो यह कि जो खाता खेसरा नंबर सरकारी दस्तावेज में दर्ज हुआ वह किसी तीसरे किसान का है।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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