बिहार सरकार ने पिछले साल एक अक्टूबर को बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सचिव के पद पर संविदा पर विनोद कुमार की नियुक्ति की थी। इससे पहले वह विधान परिषद में ही निदेशक-सह-कार्यकारी सचिव थे और पिछले ही साल सितंबर में इस पद से रिटायर हुए थे।
इसको लेकर पिछले साल 27 सितंबर को कैबिनेट की एक बैठक हुई और उस बैठक में उन्हें संविदा के आधार पर एक साल के नियुक्त करने के फैसले को मंजूरी दे दी गई।
इस आशय को लेकर पिछले साल 29 सितंबर को बिहार विधान परिषद सचिवालय से एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें लिखा गया था, “मंत्रिपरिषद की स्वीकृति के आलोक में बिहार विधान परिषद में कार्यकारी सचिव के पद पर अनुभवी पदाधिकारी विनोद कुमार, निदेशक-सह-कार्यकारी सचिव की सेवानिवृत्ति के उपरांत संविदा के आधार पर 1.10.2022 से एक वर्ष के लिए नियोजित किया जाता है।”
पिछले साल 30 सितंबर को वह रिटायर होते हैं अगले ही दिन उनकी संविदा पर नियुक्ति हो जाती है।
दस्तावेजों और नियमों के अवलोकन से पता चलता है कि विनोद कुमार की नियुक्ति अवैध तरीके से की गई है।
संविदा पर विनोद कुमार की नियुक्ति को लेकर पिछले साल 29 सितंबर को बिहार विधान परिषद सचिवालय की तरफ से जो अधिसूचना जारी की गई थी, उसमें नियुक्ति की वैधता दर्शाने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग के संकल्प का हवाला दिया गया था, जिसे साल 2015 में 13 जुलाई को जारी किया गया था।
इस संकल्प में सेवानिवृत्त कर्मचारियों की संविदा पर नियुक्ति को लेकर नियमावली दी गई है, जो बताती है कि संविदा पर नियुक्ति के लिए चयन समिति का गठन करना होगा। साथ ही इसमें उन पदों का भी जिक्र किया गया है, जिन पर संविदा पर नियुक्ति की जा सकती है।
संकल्प में कुल 62 पदों के बारे में लिखा गया है, जिन पर उसी पद से रिटायर कर्मचारी को संविदा पर उसी पद पर नियुक्ति किया जा सकता है, लेकिन संकल्प में इन 62 पदों में बिहार विधान परिषद के कार्यकारी सचिव के पद का कोई जिक्र ही नहीं किया गया है।
कार्यकारी सचिव को प्रशासनिक व वित्तीय शक्तियां
इस नियुक्ति के तहत उन्हें सारी प्रशासनिक व वित्तीय शक्तियां दी गई हैं, जो एक स्थायी अधिकारी को मिल सकती हैं। ये शक्तियां उन्हें सामान्य प्रशासन विभाग के परामर्श के आधार पर दी गई हैं।
4 नवंबर 2022 को जारी बिहार विधान परिषद सचिवालय की अधिसूचना में लिखा गया है, “सामान्य प्रशासन विभाग, बिहार सरकार से प्राप्त परामर्श के आलोक में विनोद कुमार [को] निदेशक-सह -कार्यकारी सचिव के पद में निहित सभी प्रशासनिक व वित्तीय शक्तियां संविदा नियोजन के उपरांत उन्हें भी प्राप्त होगी।”
दस्तावेजों के अध्ययन से पता चलता है कि न केवल विनोद कुमार की नियुक्ति नियमों के खिलाफ की गई है बल्कि उन्हें जो प्रशासनिक व वित्तीय शक्तियां दी गई हैं, वे भी नियम विरुद्ध हैं।
दिलचस्प तो यह है कि सामान्य प्रशासन विभाग ने खुद एक पत्र लिखकर संविदा पर नियोजित सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों को वित्तीय शक्ति नहीं देने को कहा और साथ ही सचिव/विभागाध्यक्ष व अन्य महत्वपूर्ण पदों पर सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों को को संविदा पर नियुक्त नहीं करने की सलाह दी थी, लेकिन इसके बावजूद विनोद कुमार को न केवल कार्यकारी सचिव बनाया गया बल्कि वित्तीय व प्रशासनिक शक्तियां भी दी गईं।
संविदा पर नियोजन पर 2021 का पत्र क्या कहता है
6 अक्टूबर 2021 को बिहार सरकार में प्रधान सचिव चंचल कुमार ने सभी अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, सचिव, सभी विभागाध्यक्ष, पुलिस महानिदेशक, सभी प्रमंडलीय आयुक्त और सभी जिला पदाधिकारियों को पत्र लिखकर कहा था कि संविदा पर नियोजित सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों को वित्तीय शक्तियां देना प्रशासनिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
उक्त पत्र में अहम पदों पर संविदा पर नियोजन नहीं करने की सलाह भी दी गई थी।
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पत्र के बिंदू-4 में चंचल कुमार लिखते हैं, “उल्लेखनीय है कि सचिव/विभागाध्यक्ष अथवा अन्य महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत पदाधिकारी सरकार के महत्वपूर्ण निर्णयों में सम्मिलित होते हैं, इसलिए प्रशासनिक दृष्टिकोण से इन पदों पर सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों का संविदा नियोजन किया जाना उचित नहीं है।” अगले बिंदू में वह लिखते हैं, “संविदा पर नियोजित सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों को निकासी व व्यय पदाधिकारी का दायित्व अथवा अन्य वित्तीय शक्तियां दिया जाना भी प्रशासनिक दृष्टिकोण से उचित नहीं है।”
हालांकि, पत्र में विशेष स्थिति में संविदा पर नियोजित सेवकों को वित्तीय शक्ति देने की बात कही गई है, लेकिन इसके लिए प्रशासी विभाग, सामान्य प्रशासन विभाग और वित्त विभाग से सहमति लेना जरूरी है।
विनोद कुमार और नीतीश कुमार एक ही गांव के
विनोद कुमार मूल रूप से नालंदा जिले के कल्याण बिगहा थाना क्षेत्र के कल्याण बिगहा गांव के रहने वाले हैं। दिलचस्प बात है कि सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कल्याण बिगहा गांव के ही रहने वाले हैं।
3 सितंबर 1962 को जन्मे विनोद कुमार ने बीए (बैचलर्स ऑफ आर्ट्स) तक की पढ़ाई की है।
बिहार विधान परिषद के सचिव के पद पर उनकी नियुक्ति 1 फरवरी 2019 को हुई थी और पिछले साल सितंबर वह इस पद से रिटायर हुए थे।
बताया जाता है कि विनोद कुमार कुर्मी जाति से आते हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कुर्मी जाति से ही ताल्लुक रखते हैं।
विनोद कुमार के संविदा पर नियोजन को लेकर एक्टिविस्ट विवेक राज ने बिहार सरकार से जानकारियां मांगी थीं, जिसके जवाब में सरकार ने यह माना कि जिन पदों पर रिटायर्ड सरकारी सेवकों को संविदा पर नियोजित करने का प्रावधान हैं, उन पदों में बिहार विधान परिषद के सचिव का पद शामिल नहीं है।
उन्होंने इस नियोजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर उनकी नियुक्ति को अवैध करार देते हुए इसकी जांच के लिए कमेटी बनाने का आदेश देने की अपील की है।
विवेक राज कहते हैं, “आरटीआई में मैंने कई सारी जानकारियां मांगी थीं, इनमें से कुछ जानकारियां दी गई हैं और कुछ जानकारियां गोपनीय बताकर देने से इनकार कर दिया गया।”
“मसलन, विधान परिषद सचिवालय की तरफ से सामान्य प्रशासन विभाग को संविदा पर नियोजन को लेकर पत्र भेजा गया था। इस पत्र पर सामान्य प्रशासन विभाग ने टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी से संबंधित दस्तावेज हमने मांगा था, मगर उसे गोपनीय बताकर दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराया गया। हां, सरकार ने यह माना कि जिस पद पर विनोद कुमार का नियोजन हुआ है, वह पद 2015 की अनुसूची में शामिल नहीं है,” उन्होंने कहा।
विवेक राज ने कहा, “हमने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की है और जल्द ही इस पर सुनवाई शुरू होगी।”
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