Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

पूर्णिया: जीएमसीएच में मरीजों की चादर धोने तक की सुविधा नहीं

जीएमसीएच में वाशिंग एरिया नहीं, खून लगे चादरों को सिर्फ पानी में डुबोकर किया जाता है साफ

Novinar Mukesh Reported By Novinar Mukesh | Purnea |
Published On :

पूर्णिया के लाइन बाजार क्षेत्र में डॉक्टर, मरीजों के अलावा ऊँचे भवन राहगीरों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। लाइन बाजार मुख्य सड़क की दोनों ओर अनगिनत निजी भवनों से अलग राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल(जीएमसीएच), पूर्णिया का नवनिर्मित भवन है। भवन की ऊँचाई, साज-सज्जा, कार्य प्रगति देख बहुत लोगों को पूर्णिया में बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति का भ्रम हो सकता है।

पहले सदर अस्पताल के नाम से जाना जाने वाला पूर्णिया का सदर अस्पताल सीमांचल क्षेत्र के बड़े सरकारी अस्पतालों में गिना जाता था। यहां पूर्णिया के अलावा सीमांचल के दूसरे जिले कटिहार, किशनगंज, अररिया और कोसी क्षेत्र के मधेपुरा, सहरसा, सुपौल के अलावा बंगाल के कुछ जिलों से मरीज इलाज कराते हैं।

Hospital clothes being washed in dirty water in GMCH Purnia


यह सदर अस्पताल अब राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल बनने की राह पर है। ज्यों-ज्यों निर्माण कार्य आगे बढ़ता जा रहा है, त्यों-त्यों इस परिसर के अंतर्गत मौजूदा स्वास्थ्य व इससे जुड़ी सेवाओं की आपूर्ति की कलई खुलती जा रही है। मौजूदा अस्पताल में आपातकालीन वार्ड, पुरुष सर्जिकल वार्ड, महिला सर्जिकल वार्ड आदि को मिलाकर मरीजों के लिए लगभग 300 बेड की व्यवस्था है। इन बेडों का रखरखाव अधीक्षक, जीएमसीएच के जिम्मे है। इतने बड़े परिसर में भर्ती मरीजों के बेड की चादरों के दोबारा इस्तेमाल की प्रक्रिया के दौरान अस्पतालों की स्वच्छता और संक्रमण नियंत्रण के लिए विभागीय सह सरकारी दिशा-निर्देशों के कड़े अनुपालन में घोर लापरवाही बरती जा रही है।

सफाई के लिए जारी दिशा-निर्देश

भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा साल 2020 में जारी जरूरी दिशा-निर्देशों में खून सनी रंगीन लिनन सामग्री को समनुरूप डिटर्जेंट से संक्रमण मुक्त किया जाएगा। सफाई के दौरान सफाई कर्मी या धोबी को पीपीई मुहैया कराए जाने, नमी से बचाने के लिए लिनन सामग्रियों की सफाई और उसे सुखाने के बाद उसकी इस्त्री कर गिलाफ़ में सील बंद कर रखने, सादी लिनन सामग्री को बहते पानी में सोडियम हाइपोक्लोराइट सॉल्यूशन में 20 मिनट तक धोने और सफाई के दौरान सफाई कर्मी को पीपीई मुहैया कराने का प्रावधान है। मैट्रेस और तकिये के खोल को भी बहते पानी और सोडियम हाइपोक्लोराइट के सॉल्यूशन में साफ किया जाना जरूरी है। मैट्रेस और तकिये को दोबारा इस्तेमाल किये जा सकने वाले खोल में रखने की व्यवस्था जरूरी है।

लिनन सामग्रियों की सफाई की मौजूदा व्यवस्था

बीते सप्ताह सफाई स्थल का जायजा लेने के दौरान यह देखा गया कि राजकीय कॉलेज एवं अस्पताल, पूर्णिया परिसर में वाशिंग क्षेत्र के लिए कोई कमरा चिन्हित, निर्मित व आवंटित नहीं है। लिनन चादरों की सफाई पैरामेडिकल के पुरुष छात्रावास से सटे खाली भूखंड पर की जाती है।

यहाँ वाशिंग इक्विपमेंट के नाम पर एक छोटी-सी क्यू बॉय टिकल खुली टैंक या हौद है। ईंट और सीमेंट से बनी इस संरचना में पुरुष छात्रावास के मुख्य द्वार से तीन-चार फीट की दूरी पर खुले में लगे विद्युत मोटर से पाइप के जरिये पानी भरा जाता है, जिसमें खून लगी कुछ चादर सहित 200 से 250 चादर प्रतिदिन धोने के लिए लायी जाती है। इसके लिए वहाँ महज दस रुपए वाले डिटर्जेंट पाउडर का एक पैकेट मिला। मरीजों के बेड की चादरों को बिना डिटर्जेंट के धोया जा रहा था। एक ही हौद में अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों की चादरों को धोया जा रहा था। सफाई के क्रम में हौद में जमा हुए पानी में डिटर्जेंट का नामोनिशान न था।

धुली चादरों को सुखाने के लिए परित्यक्त बिजली के तारों व कुछ रस्सियों का इस्तेमाल हो रहा है। गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनी हैं न सोख़्ता। गंदे पानी की धार हौद से निकल कर दो भागों में बंट जाती है। पानी की एक धारा जमीन द्वारा सोख लिए जाने के इंतजार में सूखी चादरों को तह करने की जगह तक पहुँच कर जमा हो जाती है। वहीं, दूसरी धारा पहली से थोड़ा छिटक कर परिसर की चारदीवारी के नीचे अपने बहाव का रास्ता खोजते-खोजते थक हार कर जमा हो जाती है। वहां बिजली की सुविधा नहीं है, इसलिए सूखी चादरों को मरीज के बेड पर दोबारा बिछाने से पहले इस्त्री करने की व्यवस्था शायद बाबुओं और ठेका लेने वाली एजेंसी की फाइलों में जीवित है।

सफाई कर्मी ने कहा- कम मिलता है पैसा

वहाँ काम कर रहे सफाई कर्मी ने बताया कि चादरों की सफाई के मद में 100 रुपए प्रतिदिन दिए जाते हैं। उन्हें एक चादर की सफाई के मद में 3.5 रुपए का भुगतान किया जाता है, जबकि एक शर्ट या पैंट को इस्त्री मात्र करने का मौजूदा बाजार दर ही 10 रुपए है। प्रतिदिन 200 से 250 चादरों की बिना पीपीई के धुलाई, उन्हें सुखाकर तह करने की जिम्मेदारी, सभी सामग्रियों की देखरेख का मासिक मेहनताना 6000 से 7000 रूपए है, वो भी भुगतान में देरी की निश्चित गुंजाइशों के साथ।

GMCH Hospital cloth

दूसरी ओर, सफाई का ठेका लेने वाली एजेंसी से जुड़े जिम्मेदार व्यक्ति ने कहा कि चादरों की सफाई के लिए डिटर्जेंट के मद में 2000 रुपए मासिक और इस्त्री के लिए 2 या 3 रुपए प्रति चादर का भुगतान किया जाता है। जब उनसे 250 चादरों को धोने के लिए महज 10 रुपए के डिटर्जेंट का एक पैकेट उपलब्ध होने के बाबत पूछा गया, तो उन्होंने इसका आरोप सफाई कर्मी के माथे जड़ दिया। उन्होंने यह भी कहा कि चादरें धोने के लिए मौजूद हौदा छोटा होने के बारे में हमसे कहा गया था। दोबारा चादरों की सफाई के काम का ठेका मिलने पर हम जरूर इस दिशा में कदम उठाएँगे। हालांकि, उनकी एजेंसी को प्राप्त ठेके की समय सीमा समाप्ति के मुहाने पर है।

मामला चाहे वित्तीय अनियमितता का हो या सफाई से जुडे सभी हितधारकों के तुच्छ निजी स्वार्थों का, अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों के पास इन चादरों पर लेटे-लेटे इलाज कराने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। अस्पताल में भर्ती होने वाले अधिकांश मरीजों की साफ-सफाई, हायजीन और संक्रमण रोकथाम के प्रति जागरूकता अथवा उनमें बदलाव ला सकने की क्षमता न्यून स्तर की है।

Also Read Story

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को कैंसर, नहीं करेंगे चुनाव प्रचार

अररिया: टीका लगाने के बाद डेढ़ माह की बच्ची की मौत, अस्पताल में परिजनों का हंगामा

चाकुलिया में लगाया गया सैनेटरी नैपकिन यूनिट

अररिया: स्कूल में मध्याह्न भोजन खाने से 40 बच्चों की हालत बिगड़ी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोरोना को लेकर की उच्चस्तरीय बैठक

बिहार में कोरोना के 2 मरीज मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग सतर्क

कटिहार: आशा दिवस पर बैठक बुलाकर खुद नहीं आए प्रबंधक, घंटों बैठी रहीं आशा कर्मियां

“अवैध नर्सिंग होम के खिलाफ जल्द होगी कार्रवाई”, किशनगंज में बोले स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव

किशनगंज: कोरोना काल में बना सदर अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट महीनों से बंद

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

मधेपुरा में जन्मे नोविनार मुकेश ने दिल्ली से अपने पत्रकारीय करियर की शुरूआत की। उन्होंने दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर , एडीआर, सेहतज्ञान डॉट कॉम जैसी अनेक प्रकाशन के लिए काम किया। फिलहाल, वकालत के पेशे से जुड़े हैं, पूर्णिया और आस पास के ज़िलों की ख़बरों पर विशेष नज़र रखते हैं।

Related News

अररिया: थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों के लिए पर्याप्त खून उपलब्ध नहीं

पूर्णियाः नॉर्मल डिलीवरी के मांगे 20 हजार रुपये, नहीं देने पर अस्पताल ने बनाया प्रसूता को बंधक

पटना के IGIMS में मुफ्त दवाई और इलाज, बिहार सरकार का फैसला

दो डाक्टर के भरोसे चल रहा मनिहारी अनुमंडल अस्पताल

पूर्णिया में अपेंडिक्स के ऑपरेशन की जगह से निकलने लगा मल मूत्र

सीमांचल के पानी में रासायनिक प्रदूषण, किशनगंज सांसद ने केंद्र से पूछा- ‘क्या है प्लान’

किशनगंज: प्रखंड स्वास्थ्य केंद्र पर आशा कार्यकर्ताओं का धरना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?