पूर्णिया के लाइन बाजार क्षेत्र में डॉक्टर, मरीजों के अलावा ऊँचे भवन राहगीरों का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। लाइन बाजार मुख्य सड़क की दोनों ओर अनगिनत निजी भवनों से अलग राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल(जीएमसीएच), पूर्णिया का नवनिर्मित भवन है। भवन की ऊँचाई, साज-सज्जा, कार्य प्रगति देख बहुत लोगों को पूर्णिया में बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति का भ्रम हो सकता है।
पहले सदर अस्पताल के नाम से जाना जाने वाला पूर्णिया का सदर अस्पताल सीमांचल क्षेत्र के बड़े सरकारी अस्पतालों में गिना जाता था। यहां पूर्णिया के अलावा सीमांचल के दूसरे जिले कटिहार, किशनगंज, अररिया और कोसी क्षेत्र के मधेपुरा, सहरसा, सुपौल के अलावा बंगाल के कुछ जिलों से मरीज इलाज कराते हैं।
यह सदर अस्पताल अब राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल बनने की राह पर है। ज्यों-ज्यों निर्माण कार्य आगे बढ़ता जा रहा है, त्यों-त्यों इस परिसर के अंतर्गत मौजूदा स्वास्थ्य व इससे जुड़ी सेवाओं की आपूर्ति की कलई खुलती जा रही है। मौजूदा अस्पताल में आपातकालीन वार्ड, पुरुष सर्जिकल वार्ड, महिला सर्जिकल वार्ड आदि को मिलाकर मरीजों के लिए लगभग 300 बेड की व्यवस्था है। इन बेडों का रखरखाव अधीक्षक, जीएमसीएच के जिम्मे है। इतने बड़े परिसर में भर्ती मरीजों के बेड की चादरों के दोबारा इस्तेमाल की प्रक्रिया के दौरान अस्पतालों की स्वच्छता और संक्रमण नियंत्रण के लिए विभागीय सह सरकारी दिशा-निर्देशों के कड़े अनुपालन में घोर लापरवाही बरती जा रही है।
सफाई के लिए जारी दिशा-निर्देश
भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा साल 2020 में जारी जरूरी दिशा-निर्देशों में खून सनी रंगीन लिनन सामग्री को समनुरूप डिटर्जेंट से संक्रमण मुक्त किया जाएगा। सफाई के दौरान सफाई कर्मी या धोबी को पीपीई मुहैया कराए जाने, नमी से बचाने के लिए लिनन सामग्रियों की सफाई और उसे सुखाने के बाद उसकी इस्त्री कर गिलाफ़ में सील बंद कर रखने, सादी लिनन सामग्री को बहते पानी में सोडियम हाइपोक्लोराइट सॉल्यूशन में 20 मिनट तक धोने और सफाई के दौरान सफाई कर्मी को पीपीई मुहैया कराने का प्रावधान है। मैट्रेस और तकिये के खोल को भी बहते पानी और सोडियम हाइपोक्लोराइट के सॉल्यूशन में साफ किया जाना जरूरी है। मैट्रेस और तकिये को दोबारा इस्तेमाल किये जा सकने वाले खोल में रखने की व्यवस्था जरूरी है।
लिनन सामग्रियों की सफाई की मौजूदा व्यवस्था
बीते सप्ताह सफाई स्थल का जायजा लेने के दौरान यह देखा गया कि राजकीय कॉलेज एवं अस्पताल, पूर्णिया परिसर में वाशिंग क्षेत्र के लिए कोई कमरा चिन्हित, निर्मित व आवंटित नहीं है। लिनन चादरों की सफाई पैरामेडिकल के पुरुष छात्रावास से सटे खाली भूखंड पर की जाती है।
यहाँ वाशिंग इक्विपमेंट के नाम पर एक छोटी-सी क्यू बॉय टिकल खुली टैंक या हौद है। ईंट और सीमेंट से बनी इस संरचना में पुरुष छात्रावास के मुख्य द्वार से तीन-चार फीट की दूरी पर खुले में लगे विद्युत मोटर से पाइप के जरिये पानी भरा जाता है, जिसमें खून लगी कुछ चादर सहित 200 से 250 चादर प्रतिदिन धोने के लिए लायी जाती है। इसके लिए वहाँ महज दस रुपए वाले डिटर्जेंट पाउडर का एक पैकेट मिला। मरीजों के बेड की चादरों को बिना डिटर्जेंट के धोया जा रहा था। एक ही हौद में अस्पताल के विभिन्न वार्डों में भर्ती मरीजों की चादरों को धोया जा रहा था। सफाई के क्रम में हौद में जमा हुए पानी में डिटर्जेंट का नामोनिशान न था।
धुली चादरों को सुखाने के लिए परित्यक्त बिजली के तारों व कुछ रस्सियों का इस्तेमाल हो रहा है। गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां बनी हैं न सोख़्ता। गंदे पानी की धार हौद से निकल कर दो भागों में बंट जाती है। पानी की एक धारा जमीन द्वारा सोख लिए जाने के इंतजार में सूखी चादरों को तह करने की जगह तक पहुँच कर जमा हो जाती है। वहीं, दूसरी धारा पहली से थोड़ा छिटक कर परिसर की चारदीवारी के नीचे अपने बहाव का रास्ता खोजते-खोजते थक हार कर जमा हो जाती है। वहां बिजली की सुविधा नहीं है, इसलिए सूखी चादरों को मरीज के बेड पर दोबारा बिछाने से पहले इस्त्री करने की व्यवस्था शायद बाबुओं और ठेका लेने वाली एजेंसी की फाइलों में जीवित है।
सफाई कर्मी ने कहा- कम मिलता है पैसा
वहाँ काम कर रहे सफाई कर्मी ने बताया कि चादरों की सफाई के मद में 100 रुपए प्रतिदिन दिए जाते हैं। उन्हें एक चादर की सफाई के मद में 3.5 रुपए का भुगतान किया जाता है, जबकि एक शर्ट या पैंट को इस्त्री मात्र करने का मौजूदा बाजार दर ही 10 रुपए है। प्रतिदिन 200 से 250 चादरों की बिना पीपीई के धुलाई, उन्हें सुखाकर तह करने की जिम्मेदारी, सभी सामग्रियों की देखरेख का मासिक मेहनताना 6000 से 7000 रूपए है, वो भी भुगतान में देरी की निश्चित गुंजाइशों के साथ।
दूसरी ओर, सफाई का ठेका लेने वाली एजेंसी से जुड़े जिम्मेदार व्यक्ति ने कहा कि चादरों की सफाई के लिए डिटर्जेंट के मद में 2000 रुपए मासिक और इस्त्री के लिए 2 या 3 रुपए प्रति चादर का भुगतान किया जाता है। जब उनसे 250 चादरों को धोने के लिए महज 10 रुपए के डिटर्जेंट का एक पैकेट उपलब्ध होने के बाबत पूछा गया, तो उन्होंने इसका आरोप सफाई कर्मी के माथे जड़ दिया। उन्होंने यह भी कहा कि चादरें धोने के लिए मौजूद हौदा छोटा होने के बारे में हमसे कहा गया था। दोबारा चादरों की सफाई के काम का ठेका मिलने पर हम जरूर इस दिशा में कदम उठाएँगे। हालांकि, उनकी एजेंसी को प्राप्त ठेके की समय सीमा समाप्ति के मुहाने पर है।
मामला चाहे वित्तीय अनियमितता का हो या सफाई से जुडे सभी हितधारकों के तुच्छ निजी स्वार्थों का, अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों के पास इन चादरों पर लेटे-लेटे इलाज कराने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। अस्पताल में भर्ती होने वाले अधिकांश मरीजों की साफ-सफाई, हायजीन और संक्रमण रोकथाम के प्रति जागरूकता अथवा उनमें बदलाव ला सकने की क्षमता न्यून स्तर की है।
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