दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में चाय उत्पादन करने वाला सबसे बड़ा जिला है। चाय बागान श्रमिकों का कहना है कि महंगाई के जमाने में उन्हें 250 रुपये प्रति दिन की मजदूरी दी जाती है,…
जुलाई 2011 में राज्य की ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार व केंद्र की कांग्रेस सरकार और बिमल गुरुंग के बीच त्रिपक्षीय समझौता हुआ। जिसके बाद गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (GTA) बना। छह साल…
दार्जिलिंग के खूबसूरत पहाड़ों के बीच दिनचर्या के ये संघर्ष अपने आप में एक विडम्बना है। पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग भले ही एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर मशहूर है, लेकिन यहाँ के…
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में 23 साल बाद पंचायत चुनाव होने जा रहा है। इस बार चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा यानी BGPM गठबंधन में है, जिसका नेतृत्व…
38 साल पहले इस सड़क के कुछ हिस्से में पत्थर डाले गये थे लेकिन तब से आज तक इसे पक्का नहीं किया गया और न ही कोई मरम्मत ही हुई। सड़क की हालत…
पश्चिम बंगाल और असम में चाय बागान के श्रमिकों को फिलहाल 232 रुपए दिहाड़ी की दर से मज़दूरी दी जाती है। त्रिपुरा और बिहार के किशनगंज को छोड़ दें तो यह देश में…
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग सहित अन्य जिलों के चाय बागानों में हज़ारों की तादाद में ऐसे मज़दूर हैं, जो दशकों से बिना भूमि पट्टा के रह रहे हैं।
पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के पुलबाज़ार प्रखण्ड अंतर्गत जोरबंगलो मार्ग्रेट्स होप चायबागान में काम करने वाले श्रमिक रोज़ाना जोखिम भरे रास्ते से काम पर जाते हैं।
दार्जिलिंग जिला अंतर्गत सोम फाटक से बालुवास तक जाने वाली सड़क जर्जर हो चुकी है। यह 9 KM लंबी मुख्य सड़क 10 से 12 गांवों की करीब साढे 5000 जनसंख्या के लिए आने-जाने…
दार्जिलिंग के संतरे हमेशा से प्रसिद्ध रहे हैं लेकिन पिछले दो तीन सालों में इसके उत्पादन में भारी कमी आने से यहां के किसानों को वादी के इस पारंपरिक फल उत्पादन के अंत…
रास्ता अधूरा रह जाने से ग्रामीण भूस्खलन यानी लैंडस्लाइड से परेशान हैं। ग्रामीण अशोक सुब्बा के घर के नीचे भूस्खलन से उनका घर क्षतिग्रस्त हो गया, लेकिन अब तक कोई सरकारी मदद नहीं…