मजदूरों को हर वर्ष 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देने वाली केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) बिहार के किशनगंज में विफल होती दिख रही है। किशनगंज के बहादुरगंज प्रखंड अंतर्गत महेशबथना पंचायत के मज़दूरों को कई सालों से कोई रोज़गार नहीं मिला है। ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें मनरेगा योजना के तहत परिवार रोजगार कार्ड तो दिया गया लेकिन रोजगार का कोई अता पता नहीं।
कई साल पहले रोजगार कार्ड बनने के बावजूद महेशबथना पंचायत वार्ड संख्या 1 के महादलित परिवारों को किसी तरह का काम नहीं दिया जा रहा है।
मज़दूरों ने बताया कि गांव के दर्जनों परिवार बेरोजगारी से जझ रहे हैं और कई लोग मज़दूरी के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं। गांव की कई महिलाएं मनरेगा श्रम कार्ड बनवा कर रोजगार पाने की आस में बैठी हैं लेकिन सालों से उन्हें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी है।
महेशबथना पंचायत वार्ड संख्या 1 निवासी उर्मिला देवी ने कहा कि गांव में किसी को भी रोजगार नहीं मिलता। लोग मुश्किल से गुज़ारा कर पाते हैं। कभी काम मिल गया तो अच्छा है वरना खाली हाथ बैठना पड़ता है।
उर्मिला कहती हैं, “हमलोग यहां 30 – 35 परिवार हैं और दलित जाति से हैं। यह जो लेबर कार्ड है इससे हम लोग को कुछ भी नहीं मिलता है। कार्ड बने हुए तो 4, 5 साल हो गये। मेंबर को बोले तो वह भी नहीं सुनता है। ऐसे ही इधर उधर मज़दूरी कर के खाते हैं, कार्ड का कोई लाभ नहीं है। मेरे घर में चार लोग हैं और यह एक ही कार्ड मिला है।”
“काम मांगने पर डांट- डपट करता है”
एक और महिला लीला देवी ने बताया कि उनके बच्चे के भरण-पोषण और पढ़ाई का खर्च भी पूरा नहीं हो पता। थोड़ी बहुत खेतों और दूसरी जगह काम कर के बच्चों का पेट भरना पड़ता है। मनरेगा परिवार रोजगार कार्ड से गांव में किसी को कोई भी लाभ नहीं मिलता।
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“रहने का भी तकलीफ है इधर। हम लोग बहुत परेशान हैं। हम लोग के साथ बहुत मजबूरी है। हमलोग को कार्ड से कुछ नहीं मिला है। हमलोग को डांटता है। यहां मुखिया और मेम्बर है न, वह हमलोग पर डांट-डपट करता है। मांग यही कि सरकार हमको रोज़ी दे तो हमलोग काम करेंगे, खाएंगे। इस कार्ड का लाभ होना चाहिए, सरकार हमलोग को भी लाभ दे इसका,” लीला देवी बोलीं।
एक और महिला उर्मिला देवी ने कहा, “यह लेबर कार्ड है लेकिन हमारे लिए कोई रोजगार नहीं है, कोई काम नहीं है। हमको कोई काम नहीं देता है, काम देगा तब न करेंगे। यहां तो कोई आता भी नहीं हैं। कोई जांच करने या देखने नहीं आता है। हमलोग सब काम मांगते हैं, सरकार से मांग यही है कि हमें रोजगार दे सरकार।”
एक और ग्रामीण जमालुद्दीन का रोगजार कार्ड 5 साल पहले बन गया था लेकिन एक हादसे में उनका घर जल गया जिसमें रोजगार कार्ड सहित उनके कई कागज़ात जल गए। जमालुद्दीन इस सरकारी योजना से निराश हैं। उन्होंने कहा कि किसी को रोजगार मिलता ही नहीं है, ऐसे में कार्ड बनवा कर क्या लाभ होगा।
“रोजगार कार्ड मुझे मिला तो था लेकिन मेरा घर जल गया था तो सब कागज़ भी जल गया। कार्ड पांच, सात साल पहले मिला था लेकिन काम नहीं मिला। यहां किसी को काम नहीं देता है। हमको जानकारी नहीं है, किसके पास जाएंगे, शिकायत करेंगे? वार्ड मेंबर हो या कोई, जाते हैं तो कोई नहीं सुनता है। कोई काम नहीं देता है हम लोग को। काम ही नहीं देता है तो अब मांगते भी नहीं हैं,” जमालुदीन ने कहा।
वहीं एक ग्रामीण महिला ने कहा कि उनका घर तालाब के पास है और हर बरसात में उनके कच्चे मकान में पानी आ जाता है। उन्होंने आगे कहा कि सालों से जॉब कार्ड उनके पास किसी गहने की तरह रखा है लेकिन इस गहने का कोई मोल नहीं है, महज़ कागज़ है जिससे किसी तरह का कोई लाभ नहीं होता।
“सालों पहले जॉब कार्ड मिला, बुढ़ापा आ गया रोजगार नहीं मिला”
महेशबथना पंचायत वार्ड संख्या 1 के दर्जनों परिवार इलाके में के लोग मनरेगा की विफलता की जीती जागती तस्वीर बन चुके हैं। कई ग्रामीण वृद्ध अवस्था में कदम रख चुके हैं लेकिन बरसों पहले बने परिवार रोजगार कार्ड का अब तक लाभ नहीं ले सके हैं। सुकन मोची नामक एक बुज़ुर्ग को करीब 15 सालों पहले ही मनरेगा रोजगार कार्ड मिल गया था। उन्होंने कहा कि उम्र अधिक होने से अब पहले जैसी ताकत नहीं रही। कुछ सालों पहले वह काफी स्वस्थ थे लेकिन कार्ड बन जाने के बावजूद काम नहीं मिला।
सुकन मोची कहते हैं, “कार्ड तो दे दिया लेकिन कोई काम कहां मिला। परिवार ऐसे ही चल रहा है। भूखे सूखे रह कर अपना जो भी काम होता है, तो खाते हैं। अब जब कार्ड मिला है तो धो धोकर पीजिये। मेरे परिवार में बस मेरे पास ही कार्ड बना हुआ है। हमलोग का अब ऐसा शरीर है कि खटकर खाएंगे ? वह भी रोजगार नहीं मिल रहा है कि खटकर खाएं। यही मांग करते हैं कि हमारे कार्ड का लाभ होना चाहिए।”
बिहार के परिवारों को साल में औसतन 50 दिन भी रोजगार नहीं मिल रहा
पीसीआई ग्लोबल इंडिया नामक एक गैर सरकारी संगठन ने वर्ष 2019 से 2023 तक मनरेगा पर एक रिपोर्ट प्रकशित की। रिपोर्ट में देश और खासकर बिहार में मनरेगा योजना के कार्यान्वयन पर कुछ आंकड़े दिए गए हैं। आंकड़ों के अनुसार आखिरी चार सालों में बिहार में प्रत्येक परिवार को औसतन हर साल 50 दिनों का रोजगार भी नहीं दिया गया है।
वर्ष 2019 -20 में प्रत्येक परिवार को औसतन 42 दिन रोजगार मिला जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 में रोजगार के दिनों की संख्या बढ़ कर 44 दिन तक पहुंची। 2021-22 में राज्य में हर परिवार को औसतन केवल 37 दिन ही रोजगार मिला। साल 2022-23 में यह संख्या बढ़ कर 47 तक पहुंची। 100 दिनों की गारंटी देने वाली योजना बिहार में पिछले 4 सालों में औसतन 50 दिनों के आंकड़े को भी नहीं छु सकी है।
पिछले चार सालों में किशनगंज में हर परिवार को औसतन 41 दिन रोजगार दिया गया है। वित्त वर्ष 2022-23 में पूरे 100 दिनों का रोजगार बिहार में सबसे अधिक औरंगाबाद (4232) में दिया गया। वहीं, सीमाचल का कटिहार (1610) छठे पायदान पर रहा जबकि अररिया (1376) आठवें पर। इस सूची में चोटी के 10 शहरों में किशनगंज शामिल नहीं था।
अपर समाहर्ता ने दिया कार्रवाई का आश्वासन
किशनगंज के अपर समाहर्ता और प्रभारी जिला पदाधिकारी अनुज कुमार ने इस मामले पर संज्ञान लेकर जल्द कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि मनरेगा कार्यक्रम पदाधिकारी और पीओ से बात कर जल्द मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए पहल की जाएगी।
उन्होंने कहा, “अभी आपके द्वारा सूचना दी गई है। हम डीआरओ के निदेशक से बात किए हैं और पीएओ से बात कर लेते हैं। यदि ऐसी बात हुई तो उन्हें रोजगार दिया जाएगा। इसका हम लोग सर्वे करवा लेते हैं कि किसको किसको जॉब कार्ड मिला हुआ है और उसे रोजगार नहीं मिल रहा है। इस पर कार्रवाई की जाएगी।”
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Gujarat me bhi aisa hi hai koi bhi jile me rojgari nahi di jati hai usme Jude huye log Sara Pisa kha Jana hai our usame job karne vala karmchari bhi chor hai in sabko kadak saja milni chahiye