देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची में पिछले कुछ दिनों से सीमांचल के शहर जगह बनाए हुए हैं। 18 नवम्बर को जारी रिपोर्ट में देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित देश के 10 शहरों में कटिहार और पूर्णिया शामिल थे।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी इस रिपोर्ट में कटिहार और पूर्णिया सबसे प्रदूषण शहर के तौर पर दर्ज थे। कटिहार का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 425 और पूर्णिया का वायु गुणवत्ता सूचकांक 416 दर्ज किया गया था। वहीं, 20 नवम्बर को कटिहार का वायु गुणवत्ता सूचकांक 355 और पूर्णिया का वायु गुणवत्ता सूचकांक 348 दर्ज किया गया। 21 नवम्बर को पूर्णिया का एक्यूआई 319, कटिहार का एक्यूआई 328 और व अररिया का एक्यूआई 220 था।
इससे पहले 7 नवम्बर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से 163 प्रदूषित शहरों की जो सूची जारी की गई थी, उसमें सबसे शीर्ष पर कटिहार था।
ताजा आंकड़े में देश के 174 शहरों में सबसे प्रदूषित शहर दो-तीन हैं जिनमें पूर्णिया भी एक है। 24 नवम्बर की शाम 4 बजे जारी आंकड़े के मुताबिक, पूर्णिया शहर में एक्यूआई 411 दर्ज किया गया, जो स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक की श्रेणी में आता है। वहीं, 23 नवम्बर को तैयार की गई रिपोर्ट में पूर्णिया में एक्यूआई 408 दर्ज किया गया था। किशनगंज में एक्यूआई 208, कटिहार में 372 और अररिया में 289 और किशनगंज में एक्यूआई 208 रहा, जो खराब की श्रेणी में आता है।
एक्यूआई क्या है
एक्यूआई मुख्य रूप से वायुमंडल में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)-2.5 और पीएम-10 की सांद्रता दर्शाता को दर्शाता है। पीएम-2.5 दरअसल 2.5 माइक्रोग्राम और उससे छोटे आकार के एयरोसोल कण होते हैं, जो वायुमंडल में फैले होते हैं। वहीं, पीएम-10 आकार में बड़े होते हैं।
पीएम-2.5 सेहत के लिए बेहद खराब होता है। इससे सेहत पर पड़ने वाले प्रभावों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले साल 40000 बच्चों की मौत का सीधा संबंध पीएम – 2.5 के प्रदूषण से था। पीएम-2.5 से दमा, कैंसर, फेफड़े की बीमारियां, हृदय रोग आदि हो सकते हैं, जो जानलेवा होते हैं।
पीएम-2.5 बिजली उत्पादन, औद्योगिक इकाइयों, खेती, निर्माण कार्य, लकड़ी और कोयला जलाने से पैदा होता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदूषण के ये आंकड़े सीमांचल के चार शहरों के महज चार मॉनीटरिंग स्टेशनों से जुटाए हैं क्योंकि चार शहरों में इतने ही प्रदूषण मापक केंद्र स्थापित हैं। बिहार सरकार के सूत्रों के मुताबिक, पूर्णिया में एक, अररिया में एक, कटिहार में एक और किशनगंज में भी एक ही मॉनीटरिंग स्टेशन है।
बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से संबद्ध एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि अगर ज्यादा केंद्र होते, तो प्रदूषण के आंकड़े ज्यादा संगीन होते। संभव है, जिस मॉनीटरिंग स्टेशन से आंकड़े लिए गए हैं, वहां का प्रदूषण स्तर अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कम हो। हो सकता है कि मॉनीटरिंग स्टेशन जहां स्थित है, वहां दूसरे इलाकों के मुकाबले कम प्रदूषण फैलता हो। उन्होंने मौजूदा केंद्रों की संख्या को अपर्याप्त बताते हुए नये केंद्र स्थापित करने पर जोर दिया। “सिर्फ एक मॉनीटरिंग स्टेशन पूरे शहर की सही तस्वीर नहीं दे सकता है। जितने अधिक स्टेशन होंगे, उतना सटीक आंकड़ा मिलेगा,” उन्होंने कहा।
क्यों बढ़ रहा प्रदूषण
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन अशोक घोष के मुताबिक, बिहार के शहरों में प्रदूषण का अधिक स्तर होने के पीछे इन शहरों की भौगोलिक स्थिति के साथ साथ मौसम में अचानक हुए बदलाव जिम्मेवार हैं। उन्होंने कहा कि ट्रेंड से मालूम हो रहा है कि इन क्षेत्रों में तापमान में गिरावट के साथ ही प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। अलुवियल मिट्टी के चलते उत्तर बिहार में स्थिति एग्रीवेट हुई और वायुमंडल के निचले स्तर में पार्टिकुलेट मैटर जमा हो गया।
हालांकि, जमीनी जायजा बताता है कि सीमांचल के शहरों में सिर्फ भौगोलिक स्थिति और मिट्टी की वजह से प्रदूषण नहीं बढ़ा है बल्कि इसके पीछे दूसरी वजहें भी हैं।
मसलन कटिहार शहर में निर्माण कार्य तेज है। यहां भारी पैमाने पर निजी और सरकारी निर्माण कार्य हो रहे हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण भी चल रहा है। वहां प्रशासन की तरफ से ठेकेदारों को आदेश है कि निर्माण कार्य के दौरान धूल न उड़े इसके लिए पानी का छिड़काव किया जाना चाहिए और कंस्ट्रक्शन मैटेरियल को ढककर ले जाना चाहिए। लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि ठेकेदार इस आदेश का पालन नहीं करते हैं। स्थानीय लोगों की मानें, तो न तो पानी का नियमित छिड़काव होता है और न ही बालू, सीमेंट व ईंटों की ढुलाई ढककर हो रही है।
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भौगोलिक स्थिति और मिट्टी के साथ ही वायु प्रदूषण की एक प्रमुख वजह इन क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए लकड़ियों पर निर्भरता और सर्दियों में अलाव के लिए लकड़ियों का अधिक इस्तेमाल है।
प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो की प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक, 14 मार्च 2022 तक बिहार में उज्ज्वला स्कीम के तहत 1,01,01,034 एलपीजी कनेक्शन दिए जा चुके हैं। लेकिन, सीमांचल में एलपीजी कनेक्शन की स्थिति शुरू से ही खराब रही है। साल 2016 में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने स्वीकार किया था कि सीमांचल में उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी कनेक्शन की स्थिति खराब है। सीमांचल में प्रति 100 परिवारों में से महज 10 से 12 परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन था। इसका मतलब है कि अब भी बहुत सारे परिवार लकड़ियों पर खाना पकाते हैं और जिन्हें एलपीजी कनेक्शन मिला हुआ है, वे एलपीजी के महंगा होने के कारण रीफिल कराने के बजाय लकड़ियों पर खाना बनाने को तरजीह दे रहे हैं। पिछले दिनों मैं मीडिया ने सीमांचल से एक स्टोरी की थी, जिसमें बहुत सारे लोगों ने एलपीजी कनेक्शन नहीं होने की बात कही थी और कई लोगों ने यह भी बताया था कि जिनके पास कनेक्शन है भी वे एलपीजी महंगा होने के कारण रीफिल नहीं करा पा रहे हैं।
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पटना केंद्रित एक अध्ययन में बताया गया है कि वायु प्रदूषण के पीछे कई वजहें हैं। साल 2018 के प्रदूषण के स्तर को लेकर हुए इस अध्ययन में ट्रांसपोर्ट, धूल, डीजल संचालित जेनरेटर सेट, लकड़ी से खाना पकाने, उद्योग, कूड़ा जलाना और ईंट-भट्टे को भी प्रदूषण का जिम्मेदार माना गया था।
अध्ययन बताता है कि कुल प्रदूषण में ट्रांसपोर्ट की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत, धूल की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत, घरेलू कारणों (लकड़ियों व अन्य ईंधन का जलावन के रूप में इस्तेमाल) की भागीदारी 22 प्रतिशत, उद्योग की भागीदारी 14 प्रतिशत, ईंट-भट्टे की हिस्सेदारी 14 प्रतिशत और कूड़ा जलाने की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत है।
सीमांचल के चार जिलों को मिलाकर लगभग 100 ईंट-भट्टे हैं। इनका काम तो फिलहाल बंद है, लेकिन अगले महीने ईंट भट्टा में काम शुरू होगा, तो आशंका है कि प्रदूषण में और भी इजाफा होगा।
बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से जुड़े एक अन्य अधिकारी कहते हैं, “इन शहरों में वाहनों की आवाजाही अधिक है और इनमें ज्यादा संख्या ट्रकों व अन्य बड़ी गाड़ियों की है क्योंकि ये पूर्वोत्तर के राज्यों के प्रवेशद्वार हैं। यहां वायु प्रदूषण बढ़ने की यह भी एक बड़ी वजह है।”
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन अशोक घोष ने भले ही वायु प्रदूषण के लिए सीधे तौर पर जलोढ़ मिट्टी को जिम्मेवार मानते हों, लेकिन सच यह है कि दूसरे कारक भी बराबर जिम्मेवार हैं। यही वजह है कि शनिवार को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ विज्ञापन जारी कर लोगों से कई तरह की अपील की है। मसलन लोगों से कोयले, लकड़ी आदि की अंगीठी, कूड़ा व कृषि अपशिष्टों को नहीं जलाने को कहा गया है।
वहीं, निर्माण कार्य से जुड़ी एजेंसियों से निर्माण स्थल को ढक कर रखने और सड़क, पुल आदि की मरम्म्त के दौरान पानी का छिडकाव करने को कहा गया है। इसके अलावा लोगों से यह भी अपील की गई है कि वे डीजल व पेट्रोल चालित वाहनों की जगह ई-रिक्शा की सवारी को प्रोत्साहित करें।
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