50 वर्षीय अशोक यादव हफ्तेभर से बारिश का इंतजार कर रहे थे। लेकिन, बारिश नहीं हुई, तो उन्हें मजबूरी में डीजल चालित पंप सेट की मदद से खेत में पानी डालकर धान की बुआई करनी पड़ी।
“यह तो बारिश का सीजन ही है। इस सीजन में हमारे यहां भारी बारिश हुआ करती है और उसी बारिश के पानी से धान की खेती करते थे। लेकिन इस साल बारिश हो ही नहीं रही है, इसलिए पंप से खेत में पानी डालकर धान लगाना पड़ा,” बिहार के सीमांचल के अररिया जिलांतर्गत भरगामा ब्लॉक के रहरिया गांव के रहने वाले 50 वर्षीय अशोक यादव ने ‘मैं मीडिया’ को बताया।
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धान की बुआई 5 जुलाई तक हो जानी चाहिए थी, लेकिन अशोक यादव ने डेढ़ हफ्ते तक बारिश का इंतजार किया और अब जाकर पंप से पानी डाल रहे हैं, लेकिन वह यकीन के साथ नहीं कह सकते हैं कि धान के पौधे बच ही जाएंगे।

“अगर इसी तरह सूखा बरकरार रहा, तो धान के पौधे झुलस जाएंगे और खेती चौपट हो जाएगी,” अशोक चिंता जाहिर करते हैं।
अगर उत्पादन हुआ भी, तो उसकी लागत बढ़ जाएगी क्योंकि उन्हें खेत में कदवा करने के लिए डीजल चालित पंप का इस्तेमाल करना पड़ा है। वह कहते हैं, “बारिश के पानी से कदवा कर धान लगाई जाए, तो एक बीघा में 10 हजार रुपए खर्च होते हैं, लेकिन इस बार डीजल पंप का इस्तेमाल करना पड़ा है, तो एक बीघा खेत में उत्पादन लागत 5 हजार रुपए बढ़ जाएगी।”
“बाजार में एक तो धान की कीमत ही कम मिलती है और अगर खराब मौसम से धान की गुणवत्ता खराब हो गई, तो औने-पौने दाम में ही बेचना होगा,” उन्होंने कहा।
सूखा, उत्पादन लागत में इजाफा और दाम सही नहीं मिलने की चिंता इकलौते अशोक यादव की नहीं है। पूरे सीमांचल में जुलाई के पहले हफ्ते के बाद नहीं के बराबर बारिश हुई है। इससे यहां धान की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है।
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मौसम की मार से परेशान किसानों के लिए बिजली थोड़ी राहत देती, लेकिन सीमांचल में इन दिनों बिजली भी खूब जा रही है, जिस कारण किसानों को डीजल पर निर्भर होना पड़ रहा है।
अररिया के किसान परमेश्वरी यादव ने भी 10 दिन तक बारिश का इंतजार करने के बाद पंप से पानी डालकर तीन एकड़ में धान लगाया है। लेकिन इसके लिए उन्हें रातभर जागना पड़ा।
उन्होंने ‘मैं मीडिया’ को बताया, “बिजली नहीं थी, इसलिए रातभर जगे रहे कि बिजली आएगी, तो तुरंत पंप चालू कर खेत में पानी डाल दूंगा। देर रात 6-7 घंटे के लिए बिजली आई, तो पंप लगाकर खेत में पानी डाला।”

परमेश्वरी यादव ने कहा कि हाल के सालों में मौसम में बदलाव आया है। जब पानी की जरूरत पड़ती है, तब पानी नहीं बरसता है और जब पानी नहीं चाहिए, तो इतनी बारिश होती है कि फसल खराब हो जाती है।
यही वजह है कि परमेश्वरी यादव ने हाइब्रिड की जगह बीबी 11 प्रजाति का धान लगाना शुरू कर दिया है।
“मॉनसून के शुरुआती दिनों में बारिश कम हो गई है, इसलिए हाइब्रिड धान देर से लगाते थे। इस वजह से सितंबर में दाने आते थे। सितंबर महीने में हथिया नक्षत्र की भारी आंधी-बारिश होती है। हाइब्रिड धान के पौधे आंधी में गिर जाते हैं और फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है। इसलिए अब बीबी 11 धान लगा रहे हैं। इस प्रजाति के पौधों पर आंधी का असर उतना नहीं होता है,” उन्होंने कहा।
दो जिलों में भारी बारिश, दो में सामान्य से कम
सीमांचल में इस साल मॉनसून की बारिश असमान्य हुई है। कुछ जिलों में कम बारिश हुई है, तो कुछ जिलों में सामान्य से काफी ज्यादा हुई है। हालांकि जिन जिलों में ज्यादा बारिश हुई है, वहां भी मॉनसून के शुरुआती दिनों में ही बारिश हुई है। पिछले 10 दिनों से उन जिलों में बारिश का नामोनिशान नहीं है। इसके लिए अररिया का उदाहरण लिया जा सकता है।
भारतीय मौसमविज्ञान विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार, अररिया जिले में एक जून से 17 जुलाई तक 542.6 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, लेकिन इस बार इस अवधि में 666.2 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 23 प्रतिशत अधिक है। लेकिन, अररिया जिले के किसानों को पंप से खेत में पानी डालकर धान रोपना पड़ रहा है। ‘मैं मीडिया’ ने जब खेतों का दौरा किया, तो वहां धूल और दरारें नजर आईं।
अररिया के जिला कृषि पदाधिकारी संजय कुमार ने ‘मैं मीडिया’ से कहा, “इस बार एक लाख 9996 हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है, जिनमें से 50.58 प्रतिशत लक्ष्य पूरा हो गया है। लेकिन, बारिश नहीं होने से बहुत सारे किसानों को धान की बुआई में भारी दिक्कत हो रही है।”
कटिहार जिले में एक जून से 17 जुलाई तक सामान्य तौर पर 424 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन अब तक 151 मिलीमीटर बारिश ही हुई है, जो सामान्य से 64 प्रतिशत कम है। किशनगंज जिले में 1 जून से 17 जुलाई तक 712 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, लेकिन इस बार 880 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है, जो सामान्य से 24 प्रतिशत अधिक है। इसी तरह, पूर्णिया में इस अवधि में 562.5 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, लेकिन इस बार महज 360 मिलीमीटर बारिश हुई है, जो सामान्य से 36 प्रतिशत कम है।
पूर्णिया के जिला कृषि पदाधिकारी प्रकाश चंद्र मिश्रा ने ‘मैं मीडिया’ को बताया, “इस साल 96 हजार हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से लगभग 80 प्रतिशत में धान की बुआई हो चुकी है, लेकिन लगातार कई दिनों से बारिश नहीं होने के कारण धान के पौधे सूख रहे हैं।”
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किशनगंज में भी यही स्थिति है। इसी तरह, कटिहार में भी सामान्य से काफी कम बुआई हो पाई है। कटिहार में इस साल 77 हजार हेक्टेयर जमीन में धान की बुआई का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अब तक 25 हजार हेक्टेयर में ही धान की बुआई हो पाई है, जो लक्ष्य के मुकाबले 35 प्रतिशत से भी कम है।

कटिहार के कृषि विभाग से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, इस बार अब तक हुई कुल बुआई में से लगभग 12 प्रतिशत बुआई ही बारिश के पानी से हो पाई है। बाकी की बुआई पंपसेट के माध्यम से की गई है।
हालांकि, पूरे बिहार का आंकड़ा लें, तो इस अवधि में 17 जुलाई तक 361 मिलीमीटर बारिश होनी चाहिए, लेकिन इस बार 196.8 मिलीमीटर बारिश ही हुई है, जो सामान्य से 46 प्रतिशत कम है।
जानकारों का कहना है कि धान की बुआई का सबसे बेहतरीन सीजन निकल चुका है और अगर अब बारिश हो भी जाए और किसान धान रोप भी लें, तो अच्छा उत्पादन नहीं हो सकेगा।
डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर व एग्रोनॉमिस्ट अब्दुस सत्तार ने कहा, “अगर 15 जुलाई तक धान की बुआई कर ली जाए, तो धान का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है। वो अवधि अब निकल चुकी है। अगर चार-पांच दिनों में बारिश हो जाए और किसान धान रोप भी लें, तो पैदावार घट जाएगी।”
देर से धान लगाने के एक और नुकसान की तरफ इशारा करते हुए वह कहते हैं, “अगर किसानों ने धान देर से लगाया और मॉनसून के जाने के समय में भारी बारिश हो गई, तो इससे तापमान गिर जाएगा। तापमान गिरने से धान में दानें नहीं आएंगे और किसानों को काफी नुकसान हो जाएगा।”
जलवायु परिवर्तन से बदली मॉनसून की चाल
पिछले साल आईआईटी मंडी और आईआईटी गुवाहाटी ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलुरू के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन पर एक अध्ययन किया था। इस अध्ययन में जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले 50 जिलों की शिनाख्त की गई थी, जिनमें बिहार के 14 जिले शामिल थे। इन 14 जिलों में सीमांचल के तीन जिले किशनगंज, पूर्णिया और अररिया शामिल हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने साल 1989 से 2018 तक के 30 सालों के मौसम के आंकड़ों के आधार पर एक अध्ययन कर पाया कि मॉनसून और बारिश के चालढाल में बदलाव आया है।
उल्लेखनीय हो कि बिहार में मॉनसून की कुल बारिश में से 33 प्रतिशत बारिश सिर्फ जुलाई में होती है। वहीं, अगस्त में 28 प्रतिशत, जून में 17 प्रतिशत और सितंबर में 21 प्रतिशत होती है।
राज्य में सालभर में जितनी बारिश दर्ज की जाती है, उनमें से करीब 85 प्रतिशत बारिश दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून से होती है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग कि रिपोर्ट बताती है कि बिहार में दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून की बारिश में गिरावट के ट्रेंड दिख रहे हैं।
जिलावार ट्रेंड हम देखें, तो पता चलता है कि सीमांचल के जिलों में भी दक्षिण पश्चिमी मॉनसून की बारिश के ट्रेंड में बदलाव हो रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पूर्णिया और कटिहार जिले में जून और सितंबर में होनेवाली मॉनसून की बारिश में काफी गिरावट देखी जा रही है जबकि अररिया में अगस्त महीने में बारिश में इजाफे के ट्रेंड दिख रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कटिहार और पूर्णिया में दक्षिण पश्चिमी मॉनसून के साथ ही सालाना बारिश में भी गिरावट आ रही है। हालांकि, कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया में मॉनसून के सीजन में बारिश के दिनों में बढ़ोतरी के ट्रेड नजर आ रहे हैं, लेकिन भारी बारिश के दिनों में गिरावट आई है। यानी कि सीमांचल में बारिश सामान्य से कम रही है और आगे भी यह ट्रेंड जारी रह सकता है।
पिछले कुछ सालों के आंकड़े बताते हैं कि सीमांचल के जिलों में मॉनसून की बारिश सामान्य अनुपात में नहीं हुई है। किसी साल सामान्य से कई गुना अधिक हुई, तो किसी साल काफी कम बारिश दर्ज की गई।

साल 2020-2021 में पूर्णिया में 1488 मिलीमीटर बारिश हुई थी लेकिन अगले साल यानी 2021-2022 में सितंबर तक महज 812 मिलीमीटर ही बारिश हुई। किशनगंज में 2020-21 में 2318.1 मिलीमीटर बारिश हुई थी, लेकिन साल 2021-22 के सितंबर महीने तक 1494.9 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई। इसी तरह अररिया और पूर्णिया में भी बारिश में गिरावट आई थी। साल 2014 में मॉनसून के सीजन में सीमांचल (चार जिले – किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और किशनगंज) में 4274 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो साल 2015 में घटकर 3512 मिलीमीटर पर आ गई।
मॉनसून के बदलते चाल-ढाल के मद्देनजर यह जरूरी है किसानों को बदलते मौसम के अनुकूल खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। पिछले साल केंद्र सरकार ने जलवायु अनुकूल खेती के लिए बिहार के 10 जिलों का चयन किया था। इनमें दरभंगा, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण, सीवान, सहरसा, लखीसराय, किशनगंज, भागलपुर, नालंदा और सीतामढ़ी शामिल हैं।
किशनगंज जिले के तीन गांवों खानाबारी, खरसेल और गोविंदपुर को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है। किशनगंज कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख व सीनियर साइंटिस्ट मनोज कुमार राय ने ‘मैं मीडिया’ को बताया, “इन तीन गांवों में हम जलवायु अनुकूल फसल, तकनीक का इस्तेमाल कर देखेंगे कि इससे किसानों को कितना फायदा मिलता है। अगले 4-5 सालों तक यहां प्रायोगिक तौर पर जलवायु अनुकूल खेती की जाएगी। इसके बाद इसे अन्य गांवों में प्रयोग में लाया जाएगा।”
इन तीन गांवों में बाढ़ का प्रकोप अधिक होता है, इसलिए इन गांवों का चयन किया गया है ताकि बाढ़ प्रभावित इलाकों में मौसम के अनुकूल खेती की जा सके।
हालांकि, यह प्रायोगिक खेती 4-5 साल तक करने के बाद ही बाकी गांवों में इसे लागू किये जाने की उम्मीद है। तब तक किसानों को मौसम से जूझते हुए खेती करनी होगी।

अररिया के किसानों का कहना था कि बदलते मौसम में किस तरह की खेती अनुकूल होगी, इसको लेकर कभी कोई कृषि पदाधिकारी कुछ बताने नहीं आता है।
क्या इस बार बिहार में सूखा पड़ेगा?
अब तक की मॉनसून की गतिविधियों के मद्देनजर अनुमान है कि इस साल भी मॉनसून की बारिश में गिरावट रहेगी। दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के एनवायरमेंट साइंस डिपार्टमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर व पूर्व प्रमुख प्रधान पार्थ सारथी कहते हैं, “मॉनसूनी हवा अरब सागर और भारतीय महासागर से आती है।
यह अफ्रीका के पास सोमालिया जगह है, जहां से दो शाखाओं में बंट जाती है। एक शाखा केरल के रास्ते भारत में प्रवेश करती है। दूसरी शाखा श्रीलंका के पास से होकर बंगाल की खाड़ी में आती है। केरल से जो मॉनसूनी हवा आती है, वह पूर्वोत्तर की तरफ चली जाती और बंगाल की खाड़ी में जो हवा आती है वह छोटानागरपुर होते हुए बिहार में प्रवेश करती है। इसी से बिहार में बारिश होती है।”
“इस बार यह स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि बंगाल की खाड़ी की तरफ जो हवा आती है, वह बेहद कमजोर है, जिस कारण बारिश नहीं हो रही है,” उन्होंने कहा।
यहां यह भी बता दें कि मॉनसून हवाओं के अलावा बंगाल की खाड़ी में इस मौसम में निम्न दबाव का क्षेत्र भी बनता रहता है, जो बारिश लाता है। कई बार मॉनसून की बारिश नहीं होने पर बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव से हुई बारिश उसकी कमी पूरी कर देती है।
“बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव से बिहार और झारखंड में अच्छी बारिश हो जाती थी, जिससे किसानों को धान रोपने के लिए पर्याप्त पानी मिल जाया करता था, लेकिन इस बार एक भी निम्न दबाव नहीं बना है अब तक इसलिए भी बारिश कम हो रही है और जुलाई महीने में बहुत बारिश के आसार बिल्कुल नजर नहीं आ रहे हैं,” पार्थ प्रतीम सारथी ने कहा।
उन्होंने कहा, “भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने तो इस बार सामान्य मॉनसून का पूर्वानुमान लगाया है, लेकिन जो स्थिति दिख रही है, मेरे हिसाब से स्थिति भयावह होगी। इस बार सूखा पड़ेगा।”
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