कटिहार जिले के कदवा प्रखंड के खाड़ी अलहंडा गांव के लोग गांव तक जाने वाली कच्ची सड़क को पक्का करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर हैं।
लोगों का कहना है कि अजब आयरनी है कि बिहार सरकार हाईवे, फोर लेन, और सिक्स लेन की बातें कर रही है और इन्हें सूबे के विकास का पैमाना बता रही है, लेकिन इस गांव में एक मामूली पक्की सड़क नहीं बन पा रही है।
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सड़क नहीं होने से लोगों को तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ रही हैं।
स्थानीय विधायक डॉ शकील अहमद खान विधानसभा में दो बार इस सड़क की मांग उठा चुके हैं, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं हुई।
भूख हड़ताल और आंदोलन पर बैठे स्थानीय निवासी इफ्तेखार आलम ने कहा कि ये डिजिटल ऐज का जमाना है और जिस जमाने में हम लोगों को सीमांचल के एयरपोर्ट के लिए बैठना था, यूनिवर्सिटी के लिए बैठना था, सालमारी – कूरुम रोड चौड़ीकरण के लिए बैठना था, बारसोई को डिस्ट्रिक्ट बनाने के लिए बैठना था, हमारी दैन्य स्थिति तो देखिए हम एक मामूली सी सड़क बनवाने की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
“हमारी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होने की वजह से हम धरना प्रदर्शन करने पर मजबूर हैं, हमें कोई शौक नहीं है,” उन्होंने कहा।
हर दिन इसी सड़क से होकर गुजरने वाले पवन कुमार राय एक शिक्षक हैं। उनका कहना है कि यह सड़क तीन पंचायतों को जोड़ने का काम करती है और लगभग 20 हजार की आबादी को सीधे बलिया बेलौन थाना, हाई स्कूल, पोस्ट आफिस और मुख्य बाजार से जोड़ती है।
पवन कुमार राय कहते हैं, “सबसे ज्यादा दिक्कत हमारी बच्चियों को होती है, जब उन्हें हाई स्कूल जाना होता है। बारिश के मौसम में जब यह सड़क कीचड़ से भर जाती है तब चार-पांच गांव के बच्चे बच्चियों को दस किलोमीटर घूम कर जाना होता है।”
उन्होंने बताया कि एक बार एक स्कूल बस दुर्घटनाग्रस्त होने से बाल बाल बची थी जिसमें बच्चे बैठे थे। बस पलटने ही वाली थी कि आसपास के ग्रामीणों के सहयोग से बचा लिया गया।
स्थानीय समाजसेवी इज़हार आलम ने कहा, “रोजी-रोटी की तलाश तो हम खुद कर लेते हैं, लेकिन कम्युनिकेशन के लिए रोड, इलाज के लिए अस्पताल तो बना दिया जाए। रोड बन जाने से यहां के लोग टेंपो चलाकर भी परिवार का पेट भर सकते हैं।”
लोगों का कहना है कि इमेरजेंसी में डाक्टर के पास जाना हो या फिर किसी महिला की डेलिवरी करवाना हो, तो सड़क नहीं होने की वजह से हम उसे मरते हुए देखा करते हैं।
स्थानीय ग्रामीण मो. नौशाद ने बताया कि एक बार सरकारी अनाज लदा हुआ ट्रेक्टर ट्राली नदी में पलट गया था। ड्राइवर को ग्रामीणों द्वारा बचा लिया गया लेकिन अनाज नदी में सड़ गया। उस महीने गांव में किसी को भी पीडीएस से अनाज नहीं मिला था।
स्थानीय ग्रामीण मो. शहनवाज ने कहा कि यह उनके गांव की मुख्य सड़क है और कई बार वह दुर्घटना का शिकार भी हुए हैं। शहनवाज ने बताया, “रात में तीन बार वह साइकिल लेकर नदी में गिर चुके हैं, जिसमें चोटें भी आईं हैं।”
स्थानीय दुकानदार वाजिउद्दीन ने बताया कि हर साल ग्रामीण चंदा करके मिट्टी और ईंटा गिराते हैं, ताकि सड़क को चलने लायक बनाया जा सके।
22 फरवरी की सुबह 8 बजे से भूख-हड़ताल शुरू हुई थी। लेकिन, प्रशासन से आए कुछ लोगों ने भूख-हड़ताल तुड़वा दिया और धरना खत्म करने का आग्रह किया। लेकिन ग्रामीण अड़े रहे। इस प्रर्दशन का समर्थन करते हुए 24 फरवरी को विधायक डॉ शकील अहमद खान ने ग्रामीण कार्य विभाग को पत्र लिख कर सड़क निर्माण शुरू करने को कहा है।
सड़क के लिए धरने पर बैठे लोगों से निवर्तमान एमएलसी और प्रत्याशी अशोक अग्रवाल ने मुलाकात की और चुनाव बाद सड़क का काम कराने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव बाद वे पटना जाएंगे और वहां ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री से मिलकर सड़क निर्माण के लिए फंड जारी करवाएंगे ताकि जल्द सड़क बन जाए। अग्रवाल के आश्वासन के बाद 2 मार्च की शाम लोगों ने धरना खत्म कर दिया।
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