अररिया जिले में पहला खुला चिड़ियाघर बनाने की घोषणा के बावजूद इस पर काम शुरू नहीं हो पाया है, क्योंकि इसके लिए कोई फंड ही अब तक आवंटित नहीं हुआ है।
सरकार ने अररिया जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर रानीगंज में 289 एकड़ में फैले अधिसूचित वनक्षेत्र को इसके लिए चिन्हित किया है। पहले इस वनक्षेत्र को हसनपुर बालू धीमा कहा जाता था। साल 2008 में सरकार ने इसकी घेराबंदी की और इसे वृक्षवाटिका का नाम दिया।
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नेपाल में भूकंप के बाद इस क्षेत्र में काफी अजगर मिलने लगे, जिन्हें इस वाटिका में रखा जाने लगा। इस वृक्षवाटिका में फिलहाल 40 से अधिक अजगर, 15 हिरण, एक चीतल समेत अनगिनत पक्षी हैं। साल 2011 में इस वाटिका में सबसे बड़ा अजगर लगभग 14 फीट लम्बा 22 इंच मोटा था। अभी अनुमानतः उसकी लम्बाई करीब बढ़कर 20 फीट और मोटाई 40 इंच हो गई होगी।
कुछ दिन पहले तक यह वृक्षवाटिका आम लोगों के लिए खुली हुई थी, लेकिन हाल में एक हिरण द्वारा एक व्यक्ति पर हमला कर जख्मी कर देने के बाद आम लोगों के लिए यह बंद है।

कैसा होता है खुला चिड़ियाघर
खुला चिड़ियाघर सामान्य चिड़िया घरों से अलग होता है। इसमें जानवरों को खांचे में नहीं रखा जाता है, बल्कि वे खुले में रहते हैं एक दूसरे से मिलजुल सकते हैं।
इसमें सैलानियों की सुरक्षा के लिए रास्ते के दोनों तरफ पारदर्शी घेराबंदी की जाती है, ताकि लोग सीधा जानवरों के संपर्क में न आ सकें। घेराबंदी त्रिस्तरीय होती है।
पिंजड़ा वाले चिड़ियाघरों के मुकाबले खुले चिड़ियाघर में लोग जानवरों को अच्छी तरह से देख पाते हैं। हालांकि, खुले चिड़ियाघर में भी यह सुनिश्चित करना जरूरी होता है कि ऐसे जानवरों को खुले में न रखा जाए जो आपस में लड़कर एक दूसरे को खत्म कर दें।

जू अथॉरिटी से मिल चुका है लाइसेंस
वृक्षवाटिका के फॉरेस्टर प्रदीप सिंह ने मैं मीडिया को बताया कि कुछ दिन पहले ही जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया से लाइसेंस मिल चुका है, लेकिन चिड़ियाघर के रूप में इसे विकसित करने के लिए दूसरी प्रक्रियाएं अब तक शुरू नहीं हो पाई हैं।
उल्लेखनीय हो कि डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने पिछले साल जनवरी में इस वृक्षवाटिका का दौरा किया था। उस वक्त उन्होंने कहा था कि सरकार इसे चिड़ियाघर के रूप में विकसित करेगी और इसके लिए 20 करोड़ रुपए की मंजूरी भी दे दी गई है। इससे पहले साल 2013 में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिलान्यास कर इस वाटिका को चिड़ियाघर के रूप में विकसित करने की बात कही थी।
प्रदीप सिंह कहते हैं, “सरकारी स्तर पर फंड आवंटित करने की घोषणा तो हुई, लेकिन अब तक कोई पैसा हमें नहीं मिला है। यहां तक कि इस साल जो बजट पास हुआ है, उसमें भी वृक्षवाटिका के लिए कोई राशि आवंटित नहीं हुई। इस वजह से चिड़ियाघर के रूप में इसे विकसित करने के लिए कोई भी काम नहीं हो पा रहा है।”

“हाल ही में वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के कुछ अधिकारी आए थे। उन्होंने वृक्षवाटिका में मौजूद पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं, पानी की व्यवस्था, मौसम, तापमान, बारिश आदि के बारे में विस्तृत जानकारी ली और वापस चले गये, लेकिन इसके बाद से कोई सूचना नहीं मिली है,” प्रदीप सिंह कहते हैं।
विशेषज्ञों की भी नियुक्ति नहीं
यहां यह भी बता दें कि खुले चिड़ियाघरों में कई तरह के जोखिम होते हैं। साथ ही किसी भी नई जगह पर चिड़ियाघर विकसित करने के लिए कई तरह के अध्ययनों की जरूरत पड़ती है। ये अध्ययन विशेषज्ञों की टीम करती है। वे अध्ययन कर पता लगाते हैं कि किसी जगह का मौसम उस जगह पर रखे जाने वाले जानवरों के लिए अनुकूल है कि नहीं। साथ ही यह भी देखा जाता है कि उनके लिए उस जगह पर खाने के लिए क्या चीजें उपलब्ध हो सकती हैं। इसके अलावा घूमने आने वाले लोगों की सुरक्षा का भी मसला है।
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लेकिन आश्चर्यजनक रूप से अब तक इसके लिए विशेषज्ञों की भी नियुक्ति नहीं हुई है और न ही किसी तरह के अध्ययन की ही शुरुआती की जा सकी है।
प्रदीप सिंह कहते हैं, “चिड़ियाघर बनाना एक लम्बी प्रक्रिया होती है और काफी वक्त लगता है। अगर विशेषज्ञों की नियुक्ति कर अध्ययन वगैरह अभी नहीं शुरू किये गये, तो इसे बनाने में काफी विलम्ब हो जाएगा।”

यहां यह भी बता दें कि बिहार में एक ही चिड़ियाघर है, जो पटना में स्थित है। इसके अलावा चम्पारण में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व है और कैमूर में एक और टाइगर रिजर्व विकसित करने की योजना है। लेकिन, सीमांचल क्षेत्र में न कोई रिजर्व है और न ही चिड़ियाघर। ऐसे में अररिया में चिड़ियाघर विकसित किया जाता है, तो आसपास के जिलों के लोग आसानी से यहां पहुंच सकते हैं। इससे सरकार को कमाई भी होगी और आसपास के क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। लेकिन, सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण चिड़ियाघर का काम अटका हुआ है।
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