Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

सुपौल शहर की गजना नदी अपने अस्तित्व की तलाश में

सुपौल शहर के बीचों-बीच गजना नदी बहती है। शहर के बीएसएस कॉलेज के पश्चिमी छोर से लेकर बकौर तक बहने वाली गजना धार कोशी की सहायक नदियों में एक है। जल्द ही प्रशासनिक उपेक्षा और भू माफियाओं की वजह से यह नदी अपने अस्तित्व की तलाश में रहेगा। शुरुआत में शहर के लोगों ने नदी को नाले में तब्दील किया और अब तेजी से धार के बीचोंबीच घर बनाए जा रहे हैं।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
Published On :

“सुपौल शहर से होकर गुजरने वाली गजना नदी का अतिक्रमण धड़ल्ले से हो रहा है। यह नदी सुपौल शहर की जीवित नदियों में एक थी, जो अतिक्रमण के फलस्वरूप मृतप्राय हो गई है। अतिक्रमण का सिलसिला लगातार जारी है। मैं गजना नदी के अतिक्रमण मुक्त और सौंदर्यीकरण के लिए सदन से स्पष्ट व्यक्तव की मांग करता हूं।”

21 मार्च को विधानपरिषद में सत्र के दौरान सहरसा के विधान परिषद सदस्य अजय सिंह ने कहा था।

Also Read Story

बारसोई में ईंट भट्ठा के प्रदूषण से ग्रामीण परेशान

बिहार इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2023: इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर सरकार कितनी छूट देगी, जान लीजिए

बारिश ने बढ़ाई ठंड, खराब मौसम को लेकर अगले तीन दिनों के लिये अलर्ट जारी

पूर्णिया : महानंदा नदी के कटाव से सहमे लोग, प्रशासन से कर रहे रोकथाम की मांग

बूढी काकी नदी में दिखा डालफिन

‘हमारी किस्मत हराएल कोसी धार में, हम त मारे छी मुक्का आपन कपार में’

कटिहार के कदवा में महानंदा नदी में समाया कई परिवारों का आशियाना

डूबता बचपन-बढ़ता पानी, हर साल सीमांचल की यही कहानी

Bihar Floods: सड़क कटने से परेशान, रस्सी के सहारे बायसी

गौरतलब है कि 10 जनवरी 2015 को पर्यावरणविद कुमार कलानंद मणि के जन्मदिन के अवसर पर कोसी कंसोर्टियम द्वारा गजना नदी के जीर्णोद्धार के लिए किए  गए अनशन में अजय सिंह भी शामिल थे।


सुपौल शहर के बीचों-बीच गजना नदी बहती है। शहर के बीएसएस कॉलेज के पश्चिमी छोर से लेकर बकौर तक बहने वाली गजना धार कोशी की सहायक नदियों में एक है। जल्द ही प्रशासनिक उपेक्षा और भू माफियाओं की वजह से यह नदी अपने अस्तित्व की तलाश में रहेगा। शुरुआत में शहर के लोगों ने नदी को नाले में तब्दील किया और अब तेजी से धार के बीचोंबीच घर बनाए जा रहे हैं।

MLC in a sit in protest for the rejuvenation of gajna river in supaul
2015 को पर्यावरणविद कुमार कलानंद मणि के जन्मदिन के अवसर पर कोसी कंसोर्टियम द्वारा गजना नदी के जीर्णोद्धार के लिए किए गए अनशन में विधानपरिषद सदस्य अजय सिंह भी शामिल थे।

सुपौल शहर के वार्ड नंबर 1 के सुमन कुमार बताते हैं, “जिस नदी को कभी नाव से पार करना पड़ता था, उसे घर बनाने के लिए भरा जा रहा है। लोगों ने धारा के दोनों किनारों को भरवा कर मकान बनवा लिया है। प्रशासन इस संबंध में पूरी तरह निकम्मा साबित हुआ है।”

“शुरुआत में कचरा फेंका जाने लगा, फिर धीरे-धीरे उस पर घर बनने लगा। अगर स्थिति ऐसी ही रही, तो कुछ दिनों के बाद यह नदी अपने अस्तित्व को भी खो चुकी होगी। अतिक्रमण करने वालों में सत्ताधारी और विपक्षी के अलावा कई दबंग और सफेदपोश भी शामिल हैं,” उन्होंने कहा।

वार्ड नंबर 1 और 3 में गजना धार नजर भी नहीं आता

वार्ड नंबर 3 के स्थानीय निवासी पंकज यादव बताते हैं,”पहले हमारे वार्ड में जलजमाव नहीं होता था। सारा पानी धार में बह जाता था। अभी स्थिति यह है कि धार ही नहीं बची है। धार पर लोगों ने घर बना लिया है। अब प्रशासन और सरकार ही कुछ कर सकते हैं।”

स्थानीय पत्रकार विमलेंदु के मुताबिक, अक्टूबर 2019 में गजना धार को अतिक्रमण से मुक्त कराने हेतु सीओ और राजस्व कर्मचारी की देखरेख में खरेल मौजा अंतर्गत 1868 डिसमील जमीन कोसी परियोजना के लिए निकाली गई। इसके अलावा अतिक्रमण से संबंधित कोई भी कार्रवाई प्रशासन के द्वारा नहीं की गई है।

कोसी की कहानी उसकी सहायक धाराओं के बिना अधूरी

विद्यापति के रहने वाले अभिषेक कुमार कहते हैं, “सुपौल शहर और मलहद के बीच गजना की दोनों तरफ बने मकान के बीच की दूरी मुश्किल से 15 मीटर है। क्या नदी का पाट इतना कम होना किसी आपदा को निमंत्रण नहीं है? प्राकृतिक अपवाह तंत्र से हम नदी को लापता कर सकते हैं, ऐसा भ्रम केरल जैसी विभीषिका लाता है।”

“नदी को अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए हम मजबूर कर रहे हैं। कोसी पर बना बांध धीरे-धीरे अपनी उपयोगिता खोता जा रहा है। इसलिए पिछले 60 वर्षों में बांध के भीतर बालू का जमाव होने से नदी घाटी का तल ऊपर उठता रहा है। इस वजह से बारंबार बांध टूटने की घटना होती है। ऐसे में गजना जैसी छोटी नदी को पुन: जीर्णोद्धार करना पड़ेगा। वैसे भी जलवायु परिवर्तन की वजह से कम समय में तेज़ बारिश की घटनाएं बार बार होने लगेंगी। तब पुरानी धाराओं की राह बने मानवीय अवरोधों का ध्वस्त होना स्वाभाविक है,” अभिषेक ने कहा।

अभिषेक आईआईटी मंडी से इंजीनियरिंग कर रहे हैं।

सुपौल के रहने वाले 77 वर्षीय अरुण कुमार झा नेक्षकहा, “हमारे समय में सुपौल में लोहियानगर और मलहद के बीच बहती ‘गजना नदी’ आकर्षण का केन्द्र होती थी। लकड़ी वाले हिलते-डुलते पुल से हम इसे निहारते थे। तब इसमें भी खूब तेज बहाव हुआ करता था। वहीं, गजना धार से कुछ दूरी पर लालगंज के मिरचैया में भी एक धार हुआ करती थी। उस वक्त गांवों की पहचान भी वहाँ की धार से हुआ करती थी। कोसी की कहानी उसकी सहायक धाराओं के बिना अधूरी है।”

“आज उसकी ज्यादातर सहायक नदियां सूख चुकी हैं। गजना सहित सुरसर, गैंडा, धेमुरा, खैरदाहा व न जाने कितनी ही धाराएं सूखकर लुप्त हो चुकी हैं या लुप्त होने की कगार पर है। राज्य और जिला प्रशासन के सामने भू माफियाओं के द्वारा उस जमीन पर ऊंचे-ऊंचे भवनों का निर्माण हो रहा है। सच तो यह है कि इन नदियों के किनारे बसी एक पूरी सभ्यता के हम अपराधी हैं।”

जल के स्रोत का हो सकता है बेहतर माध्यम

सुपौल के दिव्यम बताते हैं, “कोशी क्षेत्र का सहअस्तित्व यहां की नदियों के अलावा अन्य परंपरागत जलस्रोत है। गजना धार का जीर्णोद्धार कर इस जलस्रोत का बेहतर माध्यम बनाया जा सकता है। बरसात के मौसम में तटबंध के पास सीपेज में आ रहे पानी की निकासी के लिए भी लाभदायक होगा।”

पर्यावरणविद ज्ञान चंद ज्ञानी बिहार में प्रवासी पक्षी और जलाशयों पर काम करते हैं। वह बताते हैं, “राज्य में लगभग 50 से अधिक जलाशय तेजी से सूख रहे हैं। सुपौल की गजना नदी, भागलपुर की अंधरी और महमूदा नदी, जहानाबाद में दरधा और गया में फल्गू जैसी छोटी नदियां गाद और अतिक्रमण की शिकार हैं। जल संसाधन विभाग ने इस साल छोटे-छोटे नहरों पर काम किया है। लेकिन, जब नदी ही शहर में तब्दील हो जाए तो नहर को बचाने से क्या फायदा। सरकार को छोटी नदियों के जीर्णोद्धर पर ध्यान देना चाहिए।”

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

Related News

भारी बारिश से अररिया नगर परिषद में जनजीवन अस्त व्यस्त

जलवायु परिवर्तन से सीमांचल के जिले सबसे अधिक प्रभावित क्यों

सीमांचल में हीट वेव का प्रकोप, मौसम विभाग की चेतावनी

पेट्रोल पंपों पर प्रदूषण जाँच केन्द्र का आदेश महज दिखावा

महानंदा बेसिन की नदियों पर तटबंध के खिलाफ क्यों हैं स्थानीय लोग

क्या कोसी मामले पर बिहार सरकार ने अदालत को बरगलाया?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?

क़र्ज़, जुआ या गरीबी: कटिहार में एक पिता ने अपने तीनों बच्चों को क्यों जला कर मार डाला

त्रिपुरा से सिलीगुड़ी आये शेर ‘अकबर’ और शेरनी ‘सीता’ की ‘जोड़ी’ पर विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा विश्व हिंदू परिषद