केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से 23 मार्च को जारी वायु गुणवत्ता सूचकांक रिपोर्ट में सीमांचल के कटिहार शहर को लेकर चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया है।
रिपोर्ट में देश के 156 शहरों की 24 घंटे की हवा की गुणवत्ता का मूल्यांकन किया गया है। इनमें से कटिहार जिले के कटिहार शहर की हवा की गुणवत्ता सबसे खराब है।
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रिपोर्ट के मुताबिक, कटिहार शहर का वायु गुणवत्ता सूचकांक 429 है, जो देश के सभी शहरों से बहुत अधिक है।
उल्लेखनीय हो कि भारत में वायु में पीएम-10 की स्वीकृत मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (24 घंटे में) होनी चाहिए। यानी कि प्रति घन मीटर में 100 माइक्रोग्राम पीएम-10 सेहत के लिए हानिकारक नहीं है। लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वायु गुणवत्ता सूचकांक के मुताबिक, कटिहार में पीएम-10 की मौजूदगी स्वीकृत मात्रा से चार से गुणा अधिक है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बताया कि कटिहार शहर में सिर्फ एक मॉनीटरिंग स्टेशन है, इसी स्टेशन से पार्टिकुलेट मैटर (पीएम)-10 के आंकड़े जुटाये गये हैं। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कटिहार शहर की वायु गुणवत्ता को गंभीर बताया है। इसका मतलब है कि अगर ऐसी गुणवत्ता वाली हवा में सांस ली गई, तो स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार पड़ सकता है। अगर कोई पहले से बीमार है, तो इस हवा में सांस लेने उसके लिए और भी खतरनाक हो सकता है।
पार्टिकुलेट मैटर बहुत छोटा लगभग 10 माइक्रोमीटर आकार का तत्व है, जो धूल और धुएं में पाया जाता है। जानकारों के मुताबिक, पीएम-10 अगर शरीर में प्रवेश कर जाए, तो इससे फेफड़े की बीमारी, दमा, हृदयाघात, कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां हो सकती हैं।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी रिपोर्ट में अररिया और किशनगंज शहर भी शामिल हैं, लेकिन अररिया की वायु गुणवत्ता तुलनात्मक रूप से ठीक है जबकि किशनगंज की वायु गुणवत्ता खराब है।
रिपोर्ट में सीमांचल के तीन शहरों के अलावा आरा, बेतिया, भागलपुर, छपरा, बक्सर, गया, हाजीपुर समेत अन्य 12 शहर शामिल हैं। इनमें से सहरसा, मुंगेर और भागलपुर की हवा काफी खराब बताई गई है।
क्यों बढ़ा कटिहार का वायु गुणवत्ता सूचकांक
कटिहार शहर में हालांकि वायु गुणवत्ता सूचकांक के लिए एक ही मॉनीटरिंग स्टेशन से आंकड़े लिये गये हैं। ऐसे में ये मानना मुश्किल है कि पूरे शहर में ऐसी ही वायु गुणवत्ता होगी। स्थानीय एक्टिविस्ट विक्टर झा ने कहा, “कटिहार शहर में न कोई बड़ी फैक्टरी है और न ही कोई बड़ा कंस्ट्रक्शन हो रहा है, फिर यहां की वायु गुणवत्ता इतनी खराब कैसे हो गई, समझ से परे हैं।”
पर्यावरणविद मोहित रे कहते हैं, “ये कोई जरूरी नहीं कि बड़ी फैक्टरियां हों, तो ही पीएम-10 अधिक होगा। अगर सड़कें अच्छी नहीं हैं। सड़कों पर धूल अधिक उड़ती है। ट्रक व अन्य भारी वाहनों की आवाजाही अधिक है, तो भी पीएम-10 बढ़ सकता है।”
ग्रीनपीस इंडिया के सीनियर क्लाइमेट कैम्पेनर अविनाश चंचल कहते हैं, “जीवाश्म ईंधन जलाने, कंस्ट्रक्शन साइट्स की धूल, ट्रांस्पोर्टेशन व खुले में कूड़ा जलाने की वजह से वातावरण में पीएम-10 की मात्रा बढ़ जाती है।”
यहां ये भी बता दें कि कटिहार शहर का वायु गुणवत्ता का निर्धारण सिर्फ एक मॉनीटरिंग स्टेशन से किया गया है। अविनाश चंचल कहते हैं, “मॉनीटरिंग स्टेशनों का कम होना एक गंभीर समस्या है। एक मॉनीटरिंग स्टेशन से पूरे शहर की वायु गुणवत्ता का पता नहीं लगाया जा सकता है, इसलिए मॉनीटरिंग स्टेशनों को बढ़ाने की जरूरत है।”
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ये रिपोर्ट कितनी गंभीर है? इस सवाल पर मोहित रे कहते हैं, “अगर सिर्फ एक दिन ज्यादा खराब है हवा, तो बहुत चिंता की बात नहीं है। लेकिन शहर की वायु गुणवत्ता की लगातार निगरानी करनी चाहिए और लगातार ऐसी ही वायु गुणवत्ता रहती है, तो इसे कम करने के उपाय करने की जरूरत है।”
“पीएम-10 का अधिक होना सबसे ज्यादा उन लोगों की सेहत पर प्रभाव डालता है, जो बाहर रहते हैं। मसलन रोड किनारे ठेला-खोमचा लगाने वाले, कंस्ट्रक्शन साइट्स या अन्य खुली जगह पर काम करने वाले मजदूर, फुटपाथ पर रहने वाले लोग इस प्रदूषण की जद में आते हैं,” अविनाश चंचल ने कहा।
गौरतलब हो कि पिछले साल जलवायु परिवर्तन को लेकर आई एक रिपोर्ट में बताया गया था कि सीमांचल के जिलों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सबसे ज्यादा बढ़ेगा।
सीमांचल के जिले पहले से ही कटाव और बाढ़ की समस्या से हलकान हैं, ऐसे में अब वायु प्रदूषण को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट ने सीमांचल के लोगों की चिंता बढ़ा दी है।
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