Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

क्या कोसी मामले पर बिहार सरकार ने अदालत को बरगलाया?

पटना हाईकोर्ट ने 4 फरवरी को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बिहार सरकार से कोसी प्रभावितों को लाभ पहुंचाने के लिए कोसी विकास प्राधिकार स्थापित करने को कहा।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :

पटना हाईकोर्ट ने 4 फरवरी को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बिहार सरकार से कोसी प्रभावितों को लाभ पहुंचाने के लिए कोसी विकास प्राधिकार स्थापित करने को कहा।

कोर्ट ने अपने आदेश में प्राधिकार में उन सभी प्रासंगिक अफसरों को बतौर शामिल करने की बात कही, जो एक तरफ कूटनीतिक संतुलन बनाए और दूसरी तरफ प्रभावित लोगों की सुरक्षा, आजादी व विकास को सुनिश्चित भी करे।

Also Read Story

बारसोई में ईंट भट्ठा के प्रदूषण से ग्रामीण परेशान

बिहार इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2023: इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने पर सरकार कितनी छूट देगी, जान लीजिए

बारिश ने बढ़ाई ठंड, खराब मौसम को लेकर अगले तीन दिनों के लिये अलर्ट जारी

पूर्णिया : महानंदा नदी के कटाव से सहमे लोग, प्रशासन से कर रहे रोकथाम की मांग

बूढी काकी नदी में दिखा डालफिन

‘हमारी किस्मत हराएल कोसी धार में, हम त मारे छी मुक्का आपन कपार में’

कटिहार के कदवा में महानंदा नदी में समाया कई परिवारों का आशियाना

डूबता बचपन-बढ़ता पानी, हर साल सीमांचल की यही कहानी

Bihar Floods: सड़क कटने से परेशान, रस्सी के सहारे बायसी

इससे पहले पिछले साल 28 सितंबर इसी जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए 6 बिंदुओं में आदेश दिया था। इसमें कोसी उच्च बांध बहुद्देशीय प्रोजेक्ट को लेकर बिहार सरकार से शपथ पत्र देने, कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना को लेकर केंद्र सरकार के साथ फंडिंग शेयर करने, सुन और कोसी नदी जोड़ परियोजना में खर्च को केंद्र सरकार के साथ साझा करने आदि के बारे में बताने को कहा गया था।


सरकार ने कहा – रिपोर्ट के लिए जिले को लिखा पत्र

पिछले आदेश में पटना हाईकोर्ट ने अस्सी के दशक में कोसी तटबंधों के भीतर रहने वाली आबादी के कल्याण के लिए बनी पाठक कमेटी की रिपोर्ट की स्थिति के बारे में पूछा था और साथ ही यह भी पूछा था कि उस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू किया गया या नहीं। इस संबंध में रिपोर्ट देने के लिए बिहार सरकार ने 8 हफ्ते का वक्त मांगा था। पटना हाईकोर्ट ने इसकी मंजूरी भी दे दी थी।

दिलचस्प बात है कि बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट को 8 हफ्ते बाद बताया कि पाठक कमेटी की रिपोर्ट जल संसाधन विभाग के पास है ही नहीं। बिहार सरकार ने कहा था कि जल संसाधन विभाग, पाठक कमेटी रिपोर्ट को प्राप्त करने और उस रिपोर्ट पर क्या कार्रवाइयां हुईं, ये पता लगाने की कोशिश कर रही है। राज्य सरकार ने अदालत को कहा था कि रिपोर्ट के लिए संबंधित जिले के जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखा गया है।

मगर दिलचस्प बात है कि जिस पाठक कमेटी की रिपोर्ट पास में नहीं होने की बात बिहार सरकार कह रही है, उसी रिपोर्ट की सिफारिशों के आधार पर 1985 के आसपास कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार का गठन हुआ था। इस प्राधिकार ने कोसी पीड़ितों की आर्थिक मदद, पुनर्वास, आदि के लिए कई कार्यक्रम तय किए थे।

ऐसे में सवाल उठता है कि जिस रिपोर्ट के आधार पर प्राधिकार का गठन हुआ, करोड़ों रुपए खर्च हुए, वह रिपोर्ट बिहार सरकार के पास कैसे नहीं है? सवाल यह भी उठने लगा है कि कहीं, बिहार सरकार कोर्ट को बरगला तो नहीं रही है क्योंकि कमेटी की सिफारिशों पर बिहार सरकार ने काम ही नहीं किया है। ऐसे में वह कोर्ट को रिपोर्ट सौंप देगी तो कोर्ट में उसे शर्मिंदा होना पड़ेगा?

इन सवालों की वजह यह है कि पाठक कमेटी की रिपोर्ट बहुत आसानी से उपलब्ध हो सकती है। ‘मैं मीडिया’ ने इस कमेटी की रिपोर्ट हासिल की है। आठ पन्नों की यह रिपोर्ट कोसी पीड़ितों की मदद की कलई खोलती है।

उल्लेखनीय हो कि हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी बिहार में 260 किलोमीटर बहकर कुरसेला के पास गंगा नदी में समा जाती है। साठ के दशक में इस नदी के फैलाव क्षेत्र को सीमित करने के लिए इसकी दोनों ओर तटबंध बनाने का फैसला लिया गया। कोसी को दोनों ओर तटबंध बनने से सैकड़ों गांव तटबंध के भीतर आ गए, तो उन गांवों के लोगों को तटबंध के बाहर पुनर्वासित करने का निर्णय लिया गया, मगर उन्हें पुनर्वास पैकेज नहीं मिला, लिहाजा वे लोग तटबंध के भीतर ही रहने लगे।

क्या कहती है चंद्र किशोर पाठक की रिपोर्ट

रिपोर्ट में चंद्र किशोर पाठक लिखते हैं, “जिस प्रकार शिव ने संसार के कल्याणार्थ स्वयं विषपान कर लिया, उसी प्रकार इनलोगों (कोसी तटबंध के भीतर की आबादी) ने लाखों नर-नारियों के हितार्थ अपने सीने पर होकर तटबंधों का निर्माण होने दिया और कोसी संपूर्ण विभीषिका को बर्दाश्त किया।”

“कहते हैं कि विषपान के कुप्रभाव व पीड़ा को मिटाने के लिए आतक शिव के ऊपर जल चढ़ता आया है, किंतु कोसी तटबंधों के बीच के इन लोगों के प्रति दिए गए आश्वासनों की पूर्ति आज तक नहीं हो सकी। उनकी पीड़ा को मिटाया नहीं जा सका, जिससे उनकी दशा अत्यंत विपन्न हो गई है,” उन्होंने रिपोर्ट में लिखा।

रिपोर्ट में वह आगे लिखते हैं, “इस दिशा में विगत वर्षों में पुनर्वास की कुछ अधूरी एवं अव्यावहारिक योजनाएं बनाई गईं, जो पूर्णतः असफल हो गईं। समिति महसूस करती है कि इन चार लाख लोगों के आर्थिक विकास और जीविकोपार्जन के लिए कारगर उपाय हेतु पुरजोर कदम उठाना सरकार का पुनीत कर्तव्य और महान दायित्व है।”

इस रिपोर्ट में कोसी तटबंधों के भीतर दो पंचायतों पर एक स्वास्थ्य केंद्र, पक्के स्कूल और स्कूलों में बच्चों को निःशुल्क पौष्टिक भोजन, तटबंध के बाहर कल-कारखाने लगाकर पीड़ितों को रोजगार देने, सरकारी नौकरी में आरक्षण जैसे कार्यक्रम शुरू करने की सिफारिश की गई थी। लेकिन इक्कादुक्का मामलों को छोड़ दिया जाए, तो कोसी तटबंध के भीतर रहने वाले लोगों को लिए कुछ भी नहीं किया गया।

क्या सरकार झूठ बोल रही?

कोसी नवनिर्माण मंच के संस्थापक व कोसी तटबंध के भीतर रहने वाली आबादी के अधिकारों के लिए लगातार काम कर रहे महेंद्र यादव कहते हैं, “कोर्ट को दिए गए बिहार सरकार के जवाब से साफ लग रहा है कि वह अदालत को बरगला रही है। वह रिपोर्ट बहुत आसानी से उपलब्ध हो सकती है, बल्कि बिहार सरकार के पास होगी भी क्योंकि उसी रिपोर्ट के आधार पर कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार का गठन हुआ था।”

वह यह भी कहते हैं कि अगर सरकार को रिपोर्ट नहीं मिल रही है, तो वह रिपोर्ट उपलब्ध करा सकते हैं।

महेंद्र यादव का मानना है कि रिपोर्ट में तटबंध के भीतर रहने वाले लोगों के कल्याण के लिए जो कार्यक्रम चलाने की बात कही गई थी, उनमें से ज्यादातर कार्यक्रम कागजों में ही सिमट कर रह गए, नतीजतन आज भी पीड़ित लोग नारकीय जीवन जीने को विवश हैं। अगर सरकार वह रिपोर्ट कोर्ट को जमा कर देती है, तो कोर्ट के सामने बिहार सरकार की कलई खुल जाएगी।

“सच तो यह है कि इस रिपोर्ट में जो कार्यक्रम चलाने की बात थी, उनमें से एक दो को छोड़कर ज्यादातर कार्यक्रम नहीं चलाए गए और कोसी तटबंध के भीतर के लोगों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया,” उन्होंने कहा, “और अब फिर नए सिरे से कोसी विकास प्राधिकार गठन करने की बात चल रही है।”

1970 के आसपास कोसी तटबंध के भीतर अनुमानतः 4 लाख लोग रहते थे और अब उनकी संख्या बढ़कर 8 लाख हो जाने का अनुमान है।

नए सिरे से विकास प्राधिकार बनाने के आदेश से तटबंध के भीतर रहने वाले लोगों को भी बहुत उम्मीद नहीं है।

सुपौल के डगमारा निवासी 70 साल के कामेश्वर कर्ण तटबंध के भीतर रहते हैं। वह पिछले 50 सालों में तटबंध के भीतर चलाई गई कथित कल्याणकारी योजनाओं का गवाह हैं। वह कहते हैं, “तटबंध के भीतर रहने वाले लोगों को 50 साल में सरकार की किसी योजना से फायदा नहीं मिला है। सरकार जो हर महीने किफायती राशन देती है, उसके लिए राशन कार्ड तक यहां के लोगों को नहीं मिल पाता है। यहां न सड़क है, न अस्पताल है, न पानी है, तो बाकी के लाभ क्या मिलेंगे।”

उन्होंने आगे कहा, “1985 में जो कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार बना था, उसका क्या हुआ कोई नहीं जानता है। अब कोसी विकास प्राधिकार बनाने की घोषणा हुई है। इसका भी हश्र कोसी पीड़ित विकास प्राधिकार जैसा ही होगा। हम कोसीवासियों को अब किसी के भी कोई उम्मीद नहीं है।”

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

Related News

भारी बारिश से अररिया नगर परिषद में जनजीवन अस्त व्यस्त

जलवायु परिवर्तन से सीमांचल के जिले सबसे अधिक प्रभावित क्यों

सीमांचल में हीट वेव का प्रकोप, मौसम विभाग की चेतावनी

पेट्रोल पंपों पर प्रदूषण जाँच केन्द्र का आदेश महज दिखावा

सुपौल शहर की गजना नदी अपने अस्तित्व की तलाश में

महानंदा बेसिन की नदियों पर तटबंध के खिलाफ क्यों हैं स्थानीय लोग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?