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बिहार जातीय जनगणना कोड लिस्ट में ट्रांसजेंडर को जाति बताने पर किन्नर समुदाय नाराज

जातियों की लिस्ट में 22 नंबर पर ‘किन्नर / कोथी / हिजड़ा / ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर)’ लिखा गया है यानी राज्य सरकार किन्नर समुदाय को एक अलग जाति में शुमार कर रही है। इस पर किन्नर समाज में आक्रोश देखा जा रहा है।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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बिहार सरकार ने पिछले साल जाति आधारित जनगणना कराने की घोषणा की थी। 2023 की शुरुआत में पहले चरण में मकानों की गणना कर ली गई है। 15 अप्रैल को दूसरे चरण की जनगणना होनी है, जिससे पहले राज्य सरकार ने जातियों की एक लिस्ट जारी की है जिसमें हर जाति को एक कोड दिया गया है। इस लिस्ट में 215 जातियों को शामिल किया गया है। बिहार सरकार ने इस जाति आधारित जनगणना को 15 मई तक संपन्न करने का लक्ष्य रखा है।

इस लिस्ट में 22 नंबर पर ‘किन्नर / कोथी / हिजड़ा / ट्रांसजेंडर (थर्ड जेंडर)’ लिखा गया है यानी राज्य सरकार किन्नर समुदाय को एक अलग जाति में शुमार कर रही है। इस पर किन्नर समाज में आक्रोश देखा जा रहा है। किन्नर समुदाय के लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें थर्ड जेंडर का दर्जा दिया है फिर बिहार सरकार उन्हें एक अलग जाति के तौर पर कैसे चिन्हित कर सकती है।

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पटना निवासी ट्रांसजेंडर समाजसेवी रेशमा प्रसाद ने ‘मैं मीडिया’ से इस मुद्दे पर बात की। उन्होंने कहा कि सरकार ने यह ग़लत किया है। ट्रांसजेंडर कोई जाति नहीं है बल्कि जेंडर है, जैसे महिला और पुरुष हैं।


“ट्रांसजेंडर हिन्दू भी हो सकते हैं, मुसलमान भी हो सकते हैं। यादव, ब्रह्मण, चमार, पासवान, कोई भी धर्म और जाति के हो सकते हैं। ट्रांसजेंडर को एक जाति के तौर पर शिनाख़्त करना सामाजिक और कानूनी, दोनों तौर पर आपराधिक कृत्य है,” रेशमा प्रसाद कहती हैं।

हालाँकि, बिहार जातीय जनगणना में पुलिंग, स्त्रीलिंग के अलावा ‘अन्य’ लिंग का भी एक अलग कोड दिया गया है।

ट्रांसजेंडर है तीसरा जेंडर: सुप्रीम कोर्ट

15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए किन्नर समाज को थर्ड जेंडर के तौर पर पहचाना था और सरकार से आधिकारिक कागज़ों पर ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के तौर पर शामिल करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने किन्नर समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा मानते हुए सार्वजानिक शैक्षणिक संस्थाओं और रोज़गार में आरक्षण का हक़दार बताया था। इसके साथ साथ कोर्ट ने सरकार से किन्नरों की उत्थान के लिए कल्याणकारी योजनाएँ लाने की बात कही थी।

दिसंबर 2014 में राज्यसभा सांसद तिरुचि शिवा ने सदन में एक निजी बिल पेश किया था जिसके अंतर्गत “ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स व्यक्तियों के लिए रोजगार और शिक्षा में आरक्षण” का प्रावधान था। यह बिल राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था। इस बिल में ट्रांसजेंडर और इंटरसेक्स समुदाय के व्यक्तियों को क्षैतिज आरक्षण दिया गया था। इस प्रस्ताव में किन्नर और इंटरसेक्स व्यक्तियों को पहले से लागू आरक्षण स्लैब में ही एक अलग वर्ग के तौर पर रखा गया था। इस फैसले का किन्नर समुदाय ने विरोध किया था।

ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था Trans Rights Now Collective (TRNC) ने ‘द वायर’ से बात करते हुए सरकार के इस कदम पर नाराज़गी जताते हुए कहा था कि ओबीसी श्रेणी में पहले से ही कई वर्गों के लोग आरक्षण प्राप्त करते हैं, ऐसे में किन्नर समाज को भी उसी श्रेणीं में डालना समुदाय के एक बड़े हिस्से के लिए हानिकारक होगा।

‘बिहार सरकार न मानी तो कोर्ट जाएंगे’

ट्रांसजेंडर समाजसेवी रेशमा प्रसाद मानती हैं कि बिहार सरकार का ऐसा करना किन्नर समाज के बारे में उनकी समझ के ऊपर सवालिया निशान खड़ा करता है।

उन्होंने कहा, “ट्रांसजेंडर प्रोटेक्शन राइट 2019 के अनुसार यह ग़लत है। पटना उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने इसपर फैसले दिए हैं कि आप किन्नरों को किस तरह से उनके सामाजिक अधिकार उपलब्ध कराएंगे। सरकार ने जब आरक्षण दिया, तो उन्हें ज्ञान नहीं था कि वह ग़लत कर रहे हैं। हमें अलग आरक्षण की आवश्यकता है, जैसे कर्नाटक सरकार कर रही है। सरकार के जो भी ‘ओपिनियन मेकर’ हैं, उन्हें या तो जानकारी नहीं है या तो जान बूझकर रहे हैं कि यह समुदाय हाशिये पर है, इसलिए इनकी तरफ से विरोध की कोई आवाज़ नहीं आएगी।”

रेशमा आगे कहती हैं कि सरकार एक तरफ लैंगिकता की आज़ादी की बात करती है और दूसरी तरफ एक लैंगिक पहचान को गुलामी की तरफ लेकर जा रही है। उन्होंने बिहार सरकार से मांग की कि ट्रांसजेंडर को एक अलग जेंडर के तौर पर चिन्हित किया जाए और उनके जेंडर को जाति का नाम न दिया जाए।

“हम चाहते हैं कि हमें जाति के तौर पर न पहचाना जाए बल्कि एक अलग जेंडर के तौर पर चिन्हित करके अलग आरक्षण दिया जाए। यह हमारा अधिकार है और सामाजिक रूप से लोगों की भी समझ होनी चाहिए कि ट्रांसजेंडर एक अलग जेंडर है। अगर सरकार यह जाति कोड से हमारा नाम नहीं हटाती है, तो हम कानूनी लड़ाई लड़ेंगे। आप इस तरह की चीज़ें करते हैं, तो आप कानूनी तौर पर ग़लत कर रहे हैं। ट्रांसजेंडर को जाति बनाने का क्या मतलब है। क्या सरकार चाहती है कि जो दलित ट्रांसजेंडर हैं, वे अपना अधिकार प्राप्त नहीं करें? कोई अगर उच्च जाति का ट्रांसजेंडर है, तो उसे आप ओबीसी में डालकर किस तरह के आरक्षण में लेकर आएंगे,” रेशमा ने कहा।

रेशमा बिहार सरकार के इस कदम को उनके मूल्य अधिकारों का हनन बताती हैं और वह सरकार से ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडर के तौर पर चिन्हित करने और ट्रांसजेंडर समाज को जाति कोड लिस्ट से हटाने की मांग पर अटल हैं। “हम आप मीडिया वालों के माध्यम से सरकार से मांग कर रहे हैं कि हमें तीसरे जेंडर के तौर पर कॉलम में रखा जाए न कि ट्रांसजेंडर को एक जाति बताया जाए। सरकार ऐसा करती है तो ठीक है वरना हम कानूनी प्रक्रिया की तरफ रुख करेंगे। जिस तरह पुरुष और महिलाओं में ब्राह्मण, दलित, यादव आदि होते हैं उसी तरह ट्रांसजेंडर भी एक अलग जेंडर है।”

रेशमा प्रसाद ने इस बातचीत में कर्नाटक सरकार के आरक्षण का ज़िक्र किया था। बताते चलें कि कर्नाटक देश का एकलौता राज्य है जहाँ ट्रांसजेंडर वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 1% का आरक्षण रखा गया है। इस में सामान्य, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को 1-1% आरक्षण देने का प्रावधान है।

बिहार जातीय जनगणना पर पहले से ही काफी विवाद के बादल घिरे रहे हैं, ऐसे में किन्नर समुदाय की नाराज़गी सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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