नौशाद आलम अपने जल चुके फल गोदाम में कभी दोनों हथेलियों से अंजीर उठाकर दिखाते हैं, तो कभी खजूर, और कभी काजू। मगर सभी इस कदर जल चुके हैं कि उनकी पहचान मुश्किल हो जाती है। देखने से लगता है कि उनके हाथ में जल चुके कोयले के टुकड़े हैं।
“रमजान के मद्देनजर गोदाम में हमने भारी मात्रा में महंगे खजूर, काजू, पिस्ता, बादाम और अन्य सूखे फल, लच्छा महंगे चावल गोदाम में स्टॉक कर रखा था। इसके अलावा डीप फ्रीजर में सॉफ्ट ड्रिंक भरे हुए थे। गोदाम में एक बाइक भी थी। सबसे पहले दंगाइयों ने गोदाम का ताला तोड़ा और फिर भीतर दाखिल होकर पहले लूटपाट की व इसके बाद आग लगा दिया,” आग में सब कुछ स्वाहा हो जाने से बदहवास नौशाद आलम कहते हैं।
आग से उन्हें 30 से 35 लाख रुपए का नुकसान हुआ है और उनका कहना है कि उनके हाथ में पैसा भी नहीं है कि दोबारा वह अपना रोजगार शुरू कर पाएं। उनकी सारी उम्मीदें अब बिहार सरकार से है, मगर उनको हुए नुकसान का आकलन करने के लिए बिहार सरकार की तरफ से कोई प्रतिनिधि अब तक नहीं आया है।
उनका गोदाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा के बिहारशरीफ टाउन मुरारपुर मस्जिद के अहाते में है। दंगाइयों ने नौशाद का गोदाम जला दिया और मस्जिद पर भी पथराव किया था। गोदाम के पास एक पेड़ के नीचे लगी एक बाइक को भी आग के हवाले कर दिया था। आग की लपटें इतनी तेज थीं कि उसकी तपिश से पेड़ तक झुलस गए हैं। जिस वक्त मस्जिद पर हमला हुआ, उस वक्त मौलवी समेत कई लोग मस्जिद के भीतर थे। वे काफी समय तक वहीं फंसे रहे। काफी बाद में उन्हें सुरक्षित निकाला जा सका।
मस्जिद के बगल में 100 साल से भी पुराना मदरसा अजिजिया भी है, जिसकी लाइब्रेरी में 4500 किताबें थीं। इन किताबों को बुरी तरह जला दिया गया। रांची रोड पर स्थित आधा दर्जन अन्य दुकानों को भी दंगाइयों ने निशाना बनाया। इन्हीं में से एक दुकान नरेश कुमार की है। खपरैल की छत वाली इस दुकान में वह पेंट का काम करते थे। दुकान में तैयार बोर्ड व ग्रेनाइड पत्थर, जिन पर उद्घाटन संबंधी जानकारियां लिखकर चिपकाई जाती हैं, और पेंट रखे हुए थे। सब बर्बाद हो गये हैं।
दुकान में उनकी एक छोटी साइकिल भी थी, वह भी बुरी तरह तोड़ दी गई है। इसी साइकिल से उनका पुत्र उन्हें घर से दोपहर का खाना पहुंचाने आता था। दुकान सुबह से लेकर रात 8 बजे तक खुली रहती थी। मगर, 31 मार्च की दोपहर को रामनवमी के जुलूस के मद्देनजर उन्होंने दुकान बंद करने का फैसला लिया था। सुबह वह वित्त आयोग से जुड़ी योजनाओं को लेकर चार ग्रेनाइट पत्थर पर सूचनाएं लिखने के लिए आए थे। लिखते-लिखते दोपहर हो गई।
वह टूटी हुई साइकिल की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, “इसी साइकिल से मेरा बेटा खाना लेकर आया था। रामनवमी के जुलूस को देखते हुए खाना खाने के बाद मैंने दुकान बंद करने का फैसला लिया और साइकिल को दुकान में छोड़कर दोपहर ढाई बजे बेटे के साथ घर लौट गया। उसी वक्त जुलूस आ रहा था।” बाद में फोन पर उन्हें जानकारी मिली कि उनकी दुकान को दंगाइयों ने क्षतिग्रस्त कर दिया है। अगर उन्होंने दुकान बंद नहीं किया होता, तो भीड़ की हिंसा का शिकार वह भी हो सकते थे।
61 वर्षीय नरेश कुमार साल 1990 से यहां दुकान चला रहे हैं। वह कहते हैं, “इतने दिनों में कभी किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई थी। आठ सदस्यों का मेरा परिवार कैसे चलेगा अब, मुझे नहीं पता।” इतना कहकर वह रोने लगते हैं।
नौशाद आलम और नरेश कुमार जैसी ही कहानियां अन्य एक दर्जन से अधिक लोगों की है, जिनका रामनवमी के जुलूस से कोई ताल्लुक नहीं था, लेकिन जुलूस के बीच हुई हिंसा के शिकार ये लोग ही हुए।
सद्भावना रोड पर नफरत का तांडव
साम्प्रदायिक हिंसा के बाद बिहारशरीफ में धारा 144 लगे हुए और इंटरनेट सेवा बंद हुए करीब एक हफ्ता बीत चुका है। कुछ दिन पहले तक निषेधाज्ञा 24 घंटे तक लागू थी, जिससे पूरे टाउन में दिनभर सन्नाटा पसरा रहता था। सिर्फ फ्लैग मार्च के बूटों की आवाज और कभी कभार गुजरने वाली गाड़ियों से खामोशी में खलल पड़ता था।
इधर, दो दिनों से कुछ छूट दी गई है। दुकानों को सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक खोलने की इजाजत मिल गई है, लिहाजा सुबह से दोपहर तक बाजार में चहलपहल नजर आती है। मगर, दोपहर 2 बजते बजते शहर में चुपके से खामोशी उतर आती है, जैसे शाम ढल आती है।
शहर के भरावपर से लेकर सोगरा कॉलेज तक डेढ़ दर्जन से अधिक दुकानों, गोदामों को दंगाइयों को भीषण नुकसान पहुंचाया है। ये दुकानें जिस रास्ते के किनारे गुलजार हुआ करती थीं, उस रास्ते को ‘सद्भावना रोड’ नाम दिया गया था। सद्भावना माने अच्छी भावना, दूसरों का हित हो ऐसी कामना। मगर बीते शुक्रवार की घटना इस नाम को मुंह चिढ़ा रही है।
स्थानीय लोग बातचीत में दंगे पर अफसोस जाहिर करते हुए यह बताना नहीं भूलते कि साल 1981 के बाद पहली बार इतनी व्यापक हिंसा शहर में हुई है। प्रशासनिक अधिकारियों की तरफ से थाने में दिए गए आवेदन में झड़प की शुरुआत बिंदु गगन दीवान बताया गया है।
बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद की तरफ से आयोजित रामनवमी की शोभायात्रा शुक्रवार की दोपहर 1.30 बजे श्रम कल्याण विभाग से शुरू हुई थी, जो शहर के बीचों बीच संवेदनशील इलाकों से 3 किलोमीटर की यात्रा कर बाबा मणिराम के अखाड़े में जाकर खत्म होने वाली थी।
शुक्रवार की रामनवमी शोभायात्रा से ठीक एक दिन पहले स्थानीय भाजपा विधायक डॉ सुनील कुमार, जो पूर्व में जदयू से विधायक रहे हैं, ने धनेश्वर घाट मंदिर प्रांगण में 51 फीट ऊंचा झंडा लहराया था और उन्होंने इस मौके पर धर्म ध्वजा यात्रा निकाली थी।
शोभायात्रा खत्म होने वाली थी तब शुरू हुई हिंसा
स्थानीय लोगों के मुताबिक, रामनवमी की शोभायात्रा अपनी अंतिम घड़ी तक शांतिपूर्ण थी। 40 साल से शहर की शांति समिति के सदस्य शकील देशनवी और अन्य 10-15 लोग कांटापर थे। वे शोभायात्रा में शामिल लोगों को शरबत पिला रहे थे। शोभायात्रा लगभग खत्म हो गई थी। इसकी सफल निकासी के लिए धन्यवाद देने एसपी व अन्य अधिकारी खुद शकील के पास आए और रमजान की मुबारकबाद भी दी।
“हमलोग राहत में थे कि शोभायात्रा शांतिपूर्ण तरीके से गुजर गई, लेकिन हम गलत थे। हमने देखा कि अचानक हुजूम उमड़ पड़ा और उन लोगों ने हमारे साथ मारपीट की और फिर एक के बाद दुकानों, मस्जिद पर हमला शुरू कर दिया। मुझे इतना मारा कि हम जमीन पर गिर पड़े। पास में पुलिस के कुछ कर्मचारी थे, लेकिन उन्होंने हमें बचाने की कोई कोशिश नहीं की। वे सब मूकदर्शक बने रहे,” उन्होंने कहा।
उनका दावा है कि उन्होंने टोपी पहन रखी थी, जिससे उनकी मुस्लिम पहचान उजागर हो रही थी और इसलिए उन पर हमला किया गया।
पिछले शुक्रवार तक वह रोजे पर थे, लेकिन जख्मी होने के बाद उन्होंने रोजा रखना बंद कर दिया है। वह कहते हैं, “जख्म को सुखाने के लिए बहुत सारी जरूरी दवाइयां खानी पड़ती हैं। दवा खाने से रोजा टूट जाता है, इसलिए शुक्रवार के बाद मैंने रोजा नहीं रखा है।”
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सर्किल अफसर धर्मेंद्र पंडित उस शोभायात्रा की सुरक्षा में गगन दीवान कब्रिस्तान के पास तैनात थे। उन्होंने थाने में जो आवेदन दिया है उसमें लिखा है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच मौजूद असामाजिक तत्वों ने रामनवमी की शोभायात्रा में शामिल लोगों की तरफ गलत इशारे और टिप्पणी की थी, जिसकी प्रतिक्रिया में झड़प हो गई।
धर्मेंद्र पंडित अपने आवेदन में लिखते हैं, “शाम 5.30 बजे शोभायात्रा जब गगन दीवान कब्रिस्तान के पास पहुंची, तो वहां पहले से भारी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग सड़क के किनारे और कब्रिस्तान में खड़े थे। उन्हीं में कुछ असामाजिक तत्वों ने शोभायात्रा में शामिल लोगों पर गलत इशारा करते हुए गलत टिप्पणी की। इससे शोभायात्रा में शामिल कुछ लोग भड़क गए और उन्होंने भी आपत्तिजनक टिप्पणी की। इससे दोनों पक्षों के बीच बकझक और फिर दोनों में रोड़ेबाजी शुरू हो गई।”
यहां से दुकानों में आगजनी और लूटपाट की भी शुरुआत हुई। पास ही सोगरा कॉलेज के पीछे अरुण प्रसाद के 6-7 गोदाम थे। इनमें हिन्दू समुदाय के लोगों की कॉपियां, किताबें, पाइप आदि रखे हुए थे, जिन्हें आग के हवाले कर दिया गया। एक अन्य गोदाम में तीन ई रिक्शा और एक कार थी, उन्हें उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया। गगन दीवान में भी आधा दर्जन दुकानों को आग के हवाले कर दिया गया। इनमें अधिकांश क्षतिग्रस्त दुकानें हिन्दू समुदाय की हैं। कब्रिस्तान से शुरू हुई झड़प आगे बढ़ते हुए भरावपर पहुंची और वहां सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया।
बीडीओ अंजन दत्ता की भी तैनाती 31 मार्च को रामनवमी शोभायात्रा में की गई थी। वह शाम 6.10 बजे शोभायात्रा के अंतिम छोर भरावपर थे, तभी उन्होंने देखा कि गगन दीवान की तरफ से आ रही उग्र भीड़ में शोभायात्रा के अंतिम छोर में शामिल लोग मिल गए। वे लोग साथ मिलकर दुकानों में आगजनी, तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे। यहीं पर एक के बाद एक होटल, फल दुकान, मुरारपुर मस्जिद और मस्जिद प्रांगण में स्थित नौशाद आलम के फल गोदाम व अन्य दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया। मदरसा अजीजिया और उसकी लाइब्रेरी को बुरी तरह जला दिया और डिजिटल वर्ल्ड मॉल में भीषण लूटपाट की। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से मुस्लिमों की दुकानों को चुन-चुन कर नुकसान पहुंचाया गया।
दत्ता अपने आवेदन में लिखते हैं, “उन्होंने समझाने और रोकने का प्रयास किया गया, लेकिन उग्र भीड़ ने उन्माद फैलाने के उद्देश्य से भड़काऊ नारे लगाए। उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ते हुए पुलिस अधिकारियों पर भी अंधाधुंध रोड़ेबाजी और फायरिंग की।”
दोनों पक्षों की ओर से हुई गोलीबारी का शिकार गुलशन कुमार नाम का एक किशोर भी हो गया। वह शोभायात्रा का हिस्सा नहीं था बल्कि अपने बड़े भाई के साथ बाजार से कुछ सामान लाने गया था कि झड़प में फंस गया और एक गोली उसे जा लगी। बाद में अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
31 मार्च की हिंसक घटनाओं के बाद पुलिस की तरफ वैसी एहतियात नहीं बरती गई, जैसी अपेक्षित थी। इसका परिणाम यह निकला कि अगले दिन 1 अप्रैल को भी दो पक्षों में भीषण झड़प हो गई।
बिहारशरीफ थाने के थानाध्यक्ष नीरज कुमार सिंह ने 1 अप्रैल को नालंदा के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी को दिए अपने आवेदन में बताया कि बनौलिया हाट के पास दो पक्षों में रोड़ेबाजी और गोलीबारी हो रही थी। तुरंत ही वहां अतिरिक्त सुरक्षा बल आ गई और उपद्रवियों को तितर-बितर किया। इस घटना में मौके से चार लोगों को गिरफ्तार किया गया।
31 और एक अप्रैल की हिंसा में अब तक दोनों समुदायों के दर्जनों लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।
गगनदीवान से शुरू होकर भरावपर पहुंची इस हिंसा के दौरान पत्थर, ईंट चलाने के अलावा फायरिंग भी की गई, जिससे साफ पता चलता है कि हिंसा अचानक नहीं हुई बल्कि इसकी पहले से ही तैयारी हुई होगी।
“मुझे दुख है कि मेरा विश्वास टूट गया”
इस बार क्षेत्र से रामनवमी की जो शोभायात्रा निकली थी, उसमें ऐतिहासिक भीड़ थी। स्थानीय लोग बताते हैं कि इतनी भारी भीड़ पहले कभी नहीं हुई थी। रामनवमी की शोभायात्रा को लेकर 21 मार्च को पुलिस और शांति समिति की जो बैठक हुई थी, उसमें बजरंग दल के प्रतिनिधियों ने पुलिस को बताया था कि 127 जगहों से लोग इस शोभायात्रा में शामिल होंगे। बजरंग दल ने इस शोभायात्रा में लगभग एक लाख लोगों के जुटान का अनुमान दिया था, मगर भीड़ की तुलना में पुलिस की तैनाती बहुत कम थी।
इतना ही नहीं, जहां सबसे ज्यादा तोड़फोड़, आगजनी हुई है, वे इलाके लहेरी पुलिस थाने से बमुश्किल 200 से 500 मीटर की दूरी पर हैं। मगर, हिंसा पर काबू पाने में रात 8 बज गये और वह भी तब हुआ, जब पटना से भारी संख्या में सुरक्षाबलों को रवाना किया गया।
पर्याप्त पुलिस की तैनाती नहीं होने के सवाल पर नालंदा एसपी अशोक मिश्रा कहते हैं कि यह आरोप बेबुनियाद है। हिंसा का शिकार हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों ने झड़प के पीछे विधायक डॉ सुनील कुमार की भूमिका होने का आरोप लगाया है। हालांकि विधायक इन आरोपों को खारिज करते हैं। उन्होंने कहा, “रामनवमी की शोभायात्रा बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद ने निकाली थी। मेरी इसमें कोई भूमिका नहीं थी।”
अजीजिया मदरसा को जलाने और मस्जिद में तोड़फोड़ को लेकर उन्होंने कहा कि हिंसक झड़प दुखद घटना है लेकिन पहले दूसरे समुदाय के लोगों ने शोभायात्रा पर पथराव किया। इसकी प्रतिक्रिया के रूप में यह घटना हुई है। (हालांकि, खबर में ऊपर लिखे गए पुलिस के लिखित बयान में पहले मुस्लिम समुदाय की तरफ से पथराव का जिक्र नहीं है, बल्कि आपत्तिजनक टिप्पणी के बाद दो समुदायों में झड़प होने की बात कही गई है।)
हिंसाग्रस्त इलाकों में समाजसेवियों को लेकर पुलिस सद्भावना रैलियां निकाल रही हैं, ताकि दोनों समुदायों के लोगों के बीच पहले जैसी भाईचारा बहाल हो जाए, मगर साम्प्रदायिक हिंसा के जख्म इतने मामूली नहीं कि इतनी जल्दी उसके दाग मिट जाए।
सोगरा कॉलेज के पीछे बने प्रमिला कॉम्प्लेक्स के गोदामों में हिन्दु समुदाय के लोगों ने किताब, कॉपियां, प्लास्टिक के पाइप, टंकी और गाड़ियां रखी थी, जिन्हें आगे के हवाले कर दिया गया।
प्रमिला कॉम्प्लेक्स के प्रबंधक अरुण मेहता कहते हैं, “आसपास सिर्फ मुस्लिम लोग रहते हैं। लेकिन पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। सब लोग मिलजुल कर रहते हैं। 31 मार्च को साम्प्रदायिकता का एक अंधड़ उठा, जिसने दुकानें जला दीं।”
हुमायूं अख्तर तारिक पिछले 32 साल से भरावपर एक होटल चला रहे हैं। उनके होटल का जनरेटर दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया और फिर होटल के प्रवेशद्वार में आगजनी की। इसके बाद दंगाइयों ने होटल में पथराव किया। होटल की पहली मंजिल पर बने डोरमेट्री में लगे बिस्तरों पर कांच के टुकड़े और ईंट अब भी बिखरे पड़े हैं।
हुमायूं अख्तर तारिक कहते हैं, “होटल के कांच टूटे हैं, वो तो बदल दिए जाएंगे। कुछ दिन में ठीक ठाक कर होटल दोबारा शुरू हो जाएगा। लेकिन मुझे इस बात का दुख नहीं है कि होटल का नुकसान हुआ है। मुझे दुख है कि मेरा विश्वास टूट गया है। ”
“मेरा होटल हिन्दू समुदाय की दुकानों के बीच है और मैं खुद को यहां ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहा था। मगर, इस घटना ने विश्वास को नुकसान पहुंचाया है,” उन्होंने कहा।
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