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बिहार की मुस्लिम जातियां: पलायन में मलिक व सुरजापुरी आगे, सरकारी नौकरी में भंगी व सैयद, शेरशाहबादी कई पैमानों पर पीछे

जनसंख्या के हिसाब से बात करें तो बिहार में मुसलमानों की सबसे बड़ी जाति शेख है। इसकी आबादी करीब 50 लाख है, जो राज्य की कुल आबादी का 3.8% है। दूसरे नंबर पर मोमिन अंसारी जाति है, जिसकी आबादी करीब 46 लाख यानी 3.5% है, उसके बाद सुरजापुरी मुस्लिम हैं, जिनकी आबादी करीब साढ़े 24 लाख यानी 1.87% है, धुनिया की आबादी करीब 18 लाख है और लगभग इतनी ही आबादी राईन या कुंजरा की है।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
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बिहार जाति आधारित गणना 2023 की रिपोर्ट जारी करने के बाद राज्य सरकार ने अलग-अलग पैमानों पर विभिन्न जातियों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। आज हम बिहार की मुस्लिम जातियों की स्थिति पर बात करेंगे। हम आपको बताएंगे कि मुसलमानों की किस जाति में सबसे ज़्यादा लोग गरीब हैं, किस जाति के लोग सरकारी नौकरियों में सबसे ज़्यादा हैं, कौन सबसे ज़्यादा आवासहीन है, किसके यहाँ सबसे कम ग्रेजुएट हैं और कौन रोज़गार के लिए बिहार से बाहर या देश से बाहर सबसे अधिक पलायन कर रहा है।

शेख, अंसारी और सुरजापुरी की आबादी सबसे ज़्यादा

वैसे तो बिहार में मुस्लिम आबादी 2 करोड़ 31 लाख 50 हज़ार के करीब है, जो कुल आबादी का 17.7% है, लेकिन कुछ जातियों की जनसंख्या बिहार में बहुत कम है, इसलिए इस वीडियो में हमने सिर्फ उन जातियों को शामिल किया है, जिनकी संख्या 25,000 से ज़्यादा है।

बिहार जाति आधारित गणना 2023 में मौजूद आंकड़ों के हिसाब से बिहार में मुसलमानों की ऐसी जातियां कुल 31 हैं, जिनकी आबादी 25,000 से ज़्यादा है।


जनसंख्या के हिसाब से बात करें तो बिहार में मुसलमानों की सबसे बड़ी जाति शेख है। इसकी आबादी करीब 50 लाख है, जो राज्य की कुल आबादी का 3.8% है। दूसरे नंबर पर मोमिन अंसारी जाति है, जिसकी आबादी करीब 46 लाख यानी 3.5% है, उसके बाद सुरजापुरी मुस्लिम हैं, जिनकी आबादी करीब साढ़े 24 लाख यानी 1.87% है, धुनिया की आबादी करीब 18 लाख है और लगभग इतनी ही आबादी राईन या कुंजरा की है।

शेरशाहबादी की आबादी करीब 13 लाख, कुल्हैया करीब साढ़े 12 लाख और पठान की आबादी करीब 10 लाख है। इसके बाद साई / फ़क़ीर / दिवान या मदार आते हैं, जिनकी आबादी 6 लाख से ज़्यादा है। धोबी मुस्लिम की आबादी करीब 4 लाख है, इदरीसी या दर्जी मुस्लिम 3 लाख से ज़्यादा हैं, सैयद की आबादी 3 लाख से कम है, सेखड़ा करीब ढाई लाख हैं और चूड़ीहार की आबादी करीब 2 लाख है।

वहीं ठकुराई करीब डेढ़ लाख हैं। कसाब 1 लाख 33 हज़ार के करीब हैं, मलिक 1 लाख 11 हज़ार हैं और भाट 90 हज़ार से थोड़ा कम हैं। मडरिया 87 हज़ार के करीब और डफाली 73 हज़ार हैं। मेहतर, लालबेगिया, हलालखोर या भंगी 70 हजार के करीब हैं, मीरशिकार 67 हज़ार हैं, पमरिया करीब 65 हज़ार, नट मुस्लिम करीब 62 हज़ार, गद्दी 58 हज़ार, मुकेरी 55 हज़ार, चीक 50 हज़ार, जट मुस्लिम 45 हज़ार, रंगरेज 43 हज़ार, बक्खो 37 हज़ार और भठियारा 27 हज़ार के करीब हैं।

मलिक, सैयद और पठान में सबसे कम गरीब

अब मुस्लिम जातियों की आबादी के हिसाब से हम उनकी माली हालत के बारे में बात करेंगे। जिन परिवारों की मासिक आय 6 हज़ार रुपए से कम है, बिहार जाति आधारित गणना में उनकी गिनती गरीब में की गई है। इस आधार पर बिहार में कुल परिवारों में से 34.13% परिवार यानी करीब 94 लाख परिवार गरीब हैं।

अभी हमने जिन 31 मुस्लिम जातियों का ज़िक्र किया, उनमें प्रतिशत के हिसाब से सबसे ज़्यादा गरीब परिवार बक्खो जाति में हैं। बिहार में बक्खो जाति के कुल परिवारों में से 44.24% परिवार गरीब हैं, उसके बाद मडरिया हैं जिनमें 42.14% परिवार गरीब हैं, नट मुस्लिम में 40.03%, तो गद्दी में 38.72%, कुल्हैया में 35.31%, डफाली में 35.24%, पमरिया में 34.78%, सेखड़ा में 34.38%, मीरशिकार में 33.16%, मुकेरी में 32.91%, भाट में 32.79%, शेरशाहबादी में 31.99%‌ और हलालखोर भंगी में 31.9% परिवार गरीब हैं।

वहीं, सबसे कम गरीब परिवारों का आंकड़ा देखें, तो, मलिक में केवल 17.26% परिवार गरीब हैं, सैयद में 17.61% परिवार गरीब हैं, पठान में 22.2%, भठियारा में 24.63%, शेख में 25.84%, कसाब में 26.09% और मोमिन अंसारी में 26.77% परिवार गरीब हैं। बाकी जातियों में गरीबी 28% से 32% के बीच है।

सैयद और मलिक की मासिक आय सबसे अच्छी

50 हज़ार रुपए से ज़्यादा मासिक कमाई वाले परिवारों की बात करें तो, सैयद अव्वल हैं। उनके 11.84% परिवारों की मासिक आमदनी 50 हजार रुपये से अधिक है। मलिक में ये आकड़ा 10% है। बाकी सभी जातियों में ये आकड़ा 5% से भी कम है।

4.94% पठान परिवार monthly 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा कमाते हैं, 4.6% हलालखोर भंगी परिवारों की monthly कमाई 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा है, 3.9% रंगरेज, 3.71% भठियारा, 2.94% मोमिन अंसारी और 2.94% शेख परिवार monthly 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा कमाते हैं।

लेकिन बक्खो और शेरशाहबादी के 1% से भी कम परिवार ही monthly 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा कमा पाते हैं। कुल्हैया, धुनिया, राईन कुंजरा और सुरजापुरी समाज के केवल 1.3% से 1.4% परिवारों की ही monthly इनकम 50 हज़ार रुपये से ज़्यादा है।

शेरशाहबादी, मडरिया, गद्दी सबसे कम आवासहीन

अगर बात इस आधार पर की जाए कि कितने परिवार आज भी झोपड़ी में रहते हैं और कितने के पास रहने को घर तक नहीं है, तो पूरे बिहार के 14.09% परिवार आज भी झोपड़ियों में रहते हैं। वहीं, 0.24% यानी करीब 64 हज़ार परिवारों के पास अब तक घर नहीं है।

मुस्लिम जातियों में बक्खो जाति के लोग सबसे ज़्यादा आवासहीन हैं। इस जाति के 6.15% परिवार बेघर हैं, बाकी सभी जातियों के लिए ये आकड़ा डेढ़ प्रतिशत या उससे कम ही है। 1.51% भठियारा, 1.45% नट, 1.17% भंगी, 1.16% मलिक और 1.07% कसाब आवासहीन हैं। इनके अलावा बाकी सभी जातियों में ये आकड़े 1% से कम ही है। यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि मुस्लिम में सबसे कम आवासहीन शेरशाहबादी, मडरिया, गद्दी, सुरजापुरी, कुल्हैया, धोबी और सेखड़ा जातियों के परिवार हैं। इस मामले में ये जातियां सामान्य वर्ग की जातियां शेख, पठान और सैयद से भी आगे हैं।

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शेरशाहबादी, सुरजापुरी और कुल्हैया में बहुत कम ग्रेजुएट

वहीं पढ़ाई और सरकारी नौकरी की अगर बात करें, तो सबसे ज़्यादा ग्रेजुएट सैयद और मलिक में हैं। सैयद में ग्रेजुएट का प्रतिशत 15.28 है, वहीं मलिक में 11.21% ग्रेजुएट है। सबसे ज़्यादा 0.38 प्रतिशत MBBS डॉक्टर भी सैयद में हैं। 0.24% के आकड़े के साथ दूसरे नंबर पर मलिक हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा इंजीनियर मलिक जाति में हैं, जो 1.91% है और 1.65% के साथ सैयद दूसरे नंबर पर हैं।

वहीं सबसे कम ग्रेजुएट बक्खो जाति में हैं। बक्खो जाति के 0.26% यानी सिर्फ 97 लोग ही ग्रेजुएट हैं जिसमें केवल एक आदमी इंजीनियर है और डॉक्टर एक भी नहीं है। वैसे ही शेरशाहबादी और नट जाति में सिर्फ 0.81% और 0.89% ग्रेजुएट हैं। 13 लाख की शेरशाहबादी आबादी में केवल 203 डॉक्टर और सिर्फ 312 इंजीनियर हैं। कुल्हैया, जट और सुरजापुरी मुस्लिम में 1.5% से भी कम ग्रेजुएट हैं। साढ़े 24 की सुरजापुरी आबादी में सिर्फ 788 डॉक्टर और 1509 इंजीनियर हैं। वहीं साढ़े 12 लाख की कुल्हैया आबादी में सिर्फ 470 डॉक्टर और 507 इंजीनियर हैं।

लेकिन सबसे ज़्यादा सरकारी नौकरी भंगी, सैयद, मलिक और भठियारा मुसलमानों के पास है। 3.92% हलालखोर भंगी मुस्लिम सरकारी नौकरियों में हैं, वहीं, 2.43% सैयद, 1.39% मलिक, 1.18% भठियारा, 1.15% मडरिया, 1.09% मुकेरी, 1.08% ठकुराई और 1.07% पठान सरकारी नौकरियों में हैं। मुसलमानों की बाकी सभी जातियों के 1% से कम लोग सरकरी नौकरियों में हैं। बक्खो, नट, डफाली, जट, दिवान मदार और शेरशाहबादी सरकारी नौकरियों में सबसे कम हैं।

मलिक और सुरजापुरी में रोजगार के लिए सबसे ज़्यादा पलायन

बिहार की कुल 13 करोड़ आबादी में से लगभग 54 लाख यानी 4.11% लोग राज्य से बाहर रहते हैं। इसमें नौकरी या रोज़गार के लिए देश के अन्य राज्यों में करीब 46 लाख लोग रह रहे हैं, नौकरी या रोज़गार के लिए अन्य देशों में करीब 2 लाख लोग रह रहे हैं। वहीं पढ़ाई के लिए अन्य राज्यों में करीब साढ़े 5 लाख लोग रह रहे हैं और करीब 24 हज़ार लोग पढ़ाई के लिए देश से बाहर रह रहे हैं।

वहीं, मुसलमानों में नौकरी या रोज़गार के लिए सबसे ज़्यादा पलायन मलिक और सुरजापुरी करते हैं। 4.13% मलिक नौकरी या रोज़गार के लिए देश के अन्य राज्यों में रहते हैं और 2.82% देश के बाहर रहते हैं, जो कुल मिलाकर 6.95% होता है।

वहीं, 6.14% सुरजापुरी नौकरी या रोज़गार के लिए देश के अन्य राज्यों में रहते हैं और 0.3% देश के बाहर रहते हैं, जो कुल मिलाकर 6.44% होता है। इसी तरह 5.57% शेख नौकरी के लिए पलायन करते हैं, 5.47% सैयद, 4.81% अंसारी, 4.62% पठान, 4.54% धोबी, 4.3% जट और 4.06% मुकेरी नौकरी के लिए पलायन करते हैं।

बाकी जातियों में पलायन 4% से कम है। रोज़गार के लिए सबसे कम पलायन बक्खो, चीक और शेरशाहबादी ने किया है। इन जातियों में नौकरी या रोज़गार के लिए पलायन 1% के करीब या उससे भी कम है।

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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