“भारतीय परम्परा के अनुसार, 12 वर्ष से अधिक समय तक लापता व्यक्ति का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। इस वजह से कई ग्रामीण और अपने लोग मुझे बेटे का अंतिम संस्कार करने की सलाह देते थे। लेकिन मेरा मन मानने के लिए तैयार नहीं था कि बेटा जिंदा नहीं है। आखिरकार 18 साल के बाद बेटा वापस लौट आया। लेकिन बेटा वैसा बनकर नहीं लौटा है, जैसा गया था। मंदबुद्धि पहले भी था, लेकिन अब तो पूरी तरह ही पागल हो गया है। अपने नाम के सिवा कुछ भी नहीं बता पाता है,” 32 वर्षीय श्याम सुंदर दास के पिता 70 वर्षीय भागवत दास नम आंखों से एक सांस में सब कुछ कह देते हैं।
श्याम सुंदर दास बिहार के सुपौल जिले के प्रतापगंज प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत भवानीपुर दक्षिण वार्ड नंबर 3 के रहने वाले हैं। वह 24 अक्टूबर को 18 साल के बाद पाकिस्तान की जेल से रिहा होकर गांव पहुंचे। गांव आते ही ग्रामीणों के अलावा बाहर से भी कई लोग इस जिज्ञासा से आए थे कि आखिर श्यामसुंदर दास के साथ हुआ क्या था? आखिर श्याम पाकिस्तान पहुंच कैसे गया? लेकिन श्यामसुंदर दास की मानसिक स्थिति अपनी आपबीती को बताने के लिए ठीक नहीं है। उसकी हालत एक पुतले से ज्यादा कुछ भी नहीं है। अपने नाम के अलावा वह कुछ नहीं बोल पा रहे हैं। वह सिर्फ एकटक लोगों को निहारते रहते हैं।

श्याम सुंदर के लौटने से उनके परिवार में खुशी तो है, लेकिन यह चिंता भी है कि वह क्या अब कभी भी सामान्य जीवन में लौट सकेंगे? अगर नहीं लौट सके तो उनकी जिंदगी आगे कैसे कटेगी?
श्याम सुंदर दास के पिता भागवत दास के अनुसार, उनका बेटा वैसा नहीं था, जैसा दिख रहा है। वह बताते हैं, “पाकिस्तानी जेल में उसकी मानसिक स्थिति को बिगाड़ दिया गया है। मंदबुद्धि जरूर था वह, लेकिन ऐसा नहीं था कि बिल्कुल कुछ बोलता ही न हो। पाकिस्तान जेल से लौटने के बाद उसकी ऐसी हालत हो गई है।”
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भगवान दास का सवाल यह भी है कि आखिर श्याम सुंदर का दोष क्या था कि उसकी ऐसी हालत कर दी गई? क्या सिर्फ गलती से सीमा पार चला जाना इतना बड़ा अपराध है कि इतनी बड़ी सजा उसे दी गई?
भवानीपुर गांव के दिलखुश ठाकुर गांव में ही सैलून चलाते हैं। वह बताते हैं, “श्याम पहले से ही मंदबुद्धि था। बहुत कम उम्र में ही कमाने के लिए दिल्ली चला गया था। साल 2004 के वक्त होली के समय ही अचानक लापता होने की खबर मिली थी। पूरे गांव को लगता था कि उसके साथ कोई हादसा हो गया है। फिर कुछ साल पहले पता चला था कि वह पाकिस्तान जेल में है, तो गांव में कुछ लोग अलग-अलग तरह की कहानी बताने लगे।”

“हालांकि, जो लोग श्याम को जानते थे, वे समझते थे कि वह गलती से ही उस पार चला गया होगा। जेल से आने के बाद तो वह गांव और ग्रामीणों को भूल चुका है। भगवान से प्रार्थना हैं कि जल्दी ही ठीक हो जाए श्याम,” दिलखुश कहते हैं।
कैसे पहुंचा पाकिस्तान
श्याम सुन्दर दास का छोटा भाई जयराम दास विस्तार से पूरी कहानी बताता है, “हम लोग तीन भाई हैं। श्याम मंझला भाई था। पापा मजदूर थे और मां बचपन में ही मर गई थी। 2004 के वक्त घर की स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। पापा मजदूरी और किसानी करके कमाते थे और भैया भी बाहर ही कमाते थे। 14-15 साल की उम्र में ही श्याम भैया गांव के ही कुछ लोगों के साथ दिल्ली कमाने के लिए गए थे। दिल्ली के संत नगर इलाके में एक पंजाबी के यहां काम करते थे।”
“फिर उसी सरदार के माध्यम से पंजाब के अमृतसर कमाने चले गए। वहीं पर अपने कुछ साथियों के साथ गलती से पाकिस्तान बॉर्डर चले गए थे। फिर पाकिस्तान जवान ने उन्हें और उनके साथियों को पकड़ लिया। चूंकि उनके पास कोई वीजा पासपोर्ट नहीं था, तो उन्हें घुसपैठिए मानकर जेल में डाल दिया भेज दिया गया था। श्याम से पिताजी की अंतिम बात 2004 में अप्रैल महीने में हुई थी। इसके 10 दिन के बाद वह गांव आने वाले थे लेकिन दुर्भाग्य से 18 साल के बाद आखिरकार आ गए,” जयराम दास ने कहा।
पता कब चला कि पाकिस्तान जेल में हैं?
भागवत दास के बड़े बेटे और श्याम दास के बड़े भाई रमेश दास फोन पर बताते हैं, “साल 2020 में भारतीय गृह मंत्रालय ने प्रतापगंज प्रशासन को श्याम के बारे में पता लगाने का आदेश दिया था। इसके बाद प्रशासन के लोग हमारे घर आए थे और पापा से श्याम का पहचान पत्र और अन्य कागज मांगा था। लेकिन श्याम का सारा कागज गलती से घर में आग लगने की वजह से जल चुका था। लेकिन पिताजी ने अपने पहचान पत्र और बयान के आधार पर सारी जानकारी प्रशासन को दे दी थी। तभी हम लोगों को श्यामसुंदर के पाकिस्तान के जेल में होने के बारे में पता चला था। इसके बाद मेरा बड़ा बेटा अमृत दास, जो दुबई की एक शॉप में काम करता है, ने भी इंटरनेट के माध्यम से फोन पर पाकिस्तान के जेल में बंद श्याम की फोटो देखकर हम लोगों को बताया था।”

18 साल तक जेल में क्यों रहा?
साल 2004 में श्याम के साथ पांच अन्य लोगों को भी पाकिस्तानी पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें छह महीने के बाद ही छोड़ दिया गया। लेकिन श्याम को छोड़ने में 18 साल का वक्त क्यों लग गया?
प्रतापगंज थानाध्यक्ष प्रभाकर भारती बताते हैं, “हम लोगों को साल 2020 में श्याम के पाकिस्तान जेल में बंद होने की सूचना मिली थी। जिसके बाद हम लोग अथक प्रयास किए और सिर्फ 2 साल के भीतर श्याम अपने घर पर हैं।”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान के दूतावास ने कई बार भारतीय दूतावास से भी श्यामसुंदर दास के भारतीय होने के सबूत की मांग की। लेकिन, उसकी सही ठिकाने की जानकारी नहीं मिलने की वजह से युवक को 18 साल जेल में बिताना पड़ा।
29 सितंबर काे जेल से हुआ रिहा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रतापगंज प्रशासन द्वारा 2020 के मार्च महीने में श्याम और उसके परिवार का सारा कागजात और उसके भारतीय होने की पहचान का पुख्ता सबूत भारतीय दूतावास को भेजा गया था। इसके बाद श्याम सुंदर को 29 सितंबर 2022 को रिहा कर दिया गया था।

बाद में इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी ने पंजाब के अमृतसर स्थित गुरु नानक देव अस्पताल में पंजाब पुलिस की देखरेख में श्याम को रखा गया था। इसके बाद सुपौल के पुलिस अधीक्षक डी अमरकेश के द्वारा सहायक अवर निरीक्षक मुन्ना कुमार और सिपाही चम्पू कुमार को प्रतिनियुक्ति कर श्याम को लाने के लिए अमृतसर भेजा गया। 24 अक्टूबर यानी दिवाली के दिन प्रतापगंज थानाध्यक्ष प्रभाकर भारती ने श्याम सुंदर की पहचान करवा कर उसे परिजनों को सौंप दिया।
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