जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत सुपौल जिले में पीपरा प्रखंड के दीनापट्टी पंचायत स्थित सखुआ गांव में राजा पोखर पर फ्लोटिंग सोलर प्लांट लगाया गया। तालाब में स्थापित इस सोलर प्लांट के पीछे मुख्य उद्देश्य तालाब का दोहरा इस्तेमाल करना था- तालाब में मछली पालन तथा ऊपर सोलर प्लेट लगाकर सौर ऊर्जा पैदा करना।
सोलर प्लांट लगने से बिजली तो मिल रही है, मगर इससे मछली पालन पर खासा असर दिख रहा है।
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“साल 2020 में जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार गांव आए थे, तब तालाब की चारों ओर वृक्षारोपण कराया गया था। मछली भी पोखर में गिराया गया था। वादा किया गया था कि गांव के लोगों को रोजगार मिलेगा। इसके साथ ही गांव में राजा पोखर के बगल में 40 एकड़ में बने पोखर का निरीक्षण कर इसमें बड़े पैमाने पर मछली उत्पादन का वादा किया गया था। बायोफ्लॉक सिस्टम यूनिट भी स्थापित हुई थी। लेकिन, आज राजा पोखर के अगल-बगल पौधा नहीं मिलेगा। ऊपर बिजली तो है, लेकिन नीचे मछली नहीं है। बायोफ्लॉक सिस्टम यूनिट की स्थिति जाकर आप खुद देख लीजिए,” गांव के 68 वर्षीय संजय (बदला हुआ नाम) कुंए के चबूतरे पर बैठकर पूरी बात बताते हैं। अगल-बगल बैठे तीन-चार व्यक्ति उनकी ‘हां’ में ‘हां’ मिलाते हैं।
मछली पालन की दावेदारी पर विवाद, व्यवहारिकता पर सवाल
अभी यहां से 525 किलो वाट बिजली उत्पादन हो रहा है। जिसे पिपरा सब स्टेशन भेजा जाता हैं। वहां से बिजली जहां जरूरत हो वहां भेजा जाता है। गांव के अलावा जल जीवन हरियाली अभियान के तहत चल रहे योजना के लिए भी यहां की बिजली भेजी जाती हैं। मछली उत्पादन अभी इस पोखर में नहीं हो रही है। ग्रामीणों के मुताबिक योजना के शुरुआत के वक्त बस मछली गिराया गया था। उसके बाद नहीं गिराया गया है।
गांव के सरपंच प्रतिनिधि मुनींद्र झा राजा पोखर परिसर के बगल में 40 एकड़ में बने एक अन्य पोखर के निर्माणकर्ता भी है। वह बताते हैं, “राजा पोखर में जो मछली पालन की जिम्मेदारी है, वह हम लोग ही लेने वाले हैं। लेकिन, गांव के शर्मा टोले के कुछ लोग राजा पोखर पर अपनी दावेदारी दे रहे हैं। इसको लेकर मामला अदालत में चल रहा है। इसलिए अभी तक कोई इसमें काम नहीं कर रहा है।”

जब राजा पोखर पर कुछ ग्रामीण अपनी दावेदारी कर रहे हैं, तो राजा पोखर में बिहार सरकार की इतनी बड़ी योजना कैसे लग गई? इस सवाल के जवाब में मुनींद्र झा कहते हैं, “जमीन सरकार की ही है। कुछ लोग बेवजह परेशान कर रहे हैं, ताकि मछली पालन के लिए कोई पोखर नहीं ले। कोई लाखों रुपए खर्च कर मछली पालन करेगा और अदावत की वजह से अगर पोखर में जहर गिरा दिया गया तो सब पैसा बर्बाद हो जाएगा।”
दावेदारी पर विवाद के अलावा मछली पालकों का यह भी कहना है कि सौलर प्लेट लग जाने से तालाब से मछली पकड़ना मुश्किल काम है।
सखुआ गांव के मछली पालक सुरेंद्र मल्लाह कहते हैं, “राजा पोखर में मछली पालन संभव नहीं है। मछली तो आप पाल लीजिएगा। लेकिन निकालिएगा कैसे। पूरे पोखर में मछली निकालने के लिए जाल को दोनों तरफ से फेंकना पड़ता है। सोलर प्लांट लगाने की वजह से यह संभव ही नहीं है।”
साल 2014 के बाद कोई अनुदान नहीं
राजा पोखर परिसर के बगल में 40 एकड़ में फैला पोखर आसपास के इलाके में मछली पालन के लिए बहुत प्रसिद्ध है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब विभागीय सचिव और अधिकारी के साथ उक्त पोखर का निरीक्षण किया था। तब तत्कालीन डीएम महेंद्र कुमार को निर्देश दिया गया था कि इसे सौ एकड़ में विकसित करने की दिशा में पहल होनी चाहिए, ताकि ब़ड़े पैमाने में मछली पालन हो सके, ताकि लोगों को रोजगार मिले।
लेकिन, फिलहाल 100 एकड़ तो दूर 40 एकड़ में बने पोखर में भी मत्स्य पालन समुचित ढंग से नहीं हो रहा है। गांव के सरपंच मुनींद्र झा बताते हैं, “साल 2014 के बाद से 40 एकड़ में बने पोखर में हमें मछली पालन के लिए कोई अनुदान नहीं मिला है। हालांकि, बायोफ्लॉक सिस्टम यूनिट के तहत हो रहे मछली पालन के लिए अनुदान मिला है।”
गांव के लोगों को क्या मिला?
“जब राजा पोखर पर इस योजना को नहीं लाया गया था, तब गांव के चंद लोग मछली पालन कर रुपया कमाते थे। अब सरकार बिजली उत्पादन कर रहीं है। गांव के सिर्फ 2 लोगों को काम पर रखा गया है। गांव के लिए सोलर प्लांट महज आकर्षण का एक केंद्र बनकर रह गया है। गांव के आम लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है,” गांव के निवासी 48 वर्षीय सतीश बताते हैं।

“पोखर की सुरक्षा के लिए गांव के 2 लोगों को रखा गया है। जिससे ₹8000/ महीना दिया जाता है। इसके अलावा 40 दिन तक गांव के 20 से 25 मज़दूरों को काम कराया गया था।” गांव के ग्रामीण श्याम जी बताते है। जिन्हें पोखर की सुरक्षा के लिए नौकरी पर रखा गया है।
सोलर पैनल से पर्यावरण को कितना फायदा
सखुआ गांव का यह प्लांट बिहार का पहला पोखर में तैरता हुआ सोलर पावर प्लांट है, जहां से बिजली का उत्पादन अब शुरू हो गया है। यहां प्लांट ड्रम के सहारे तालाब में तैर रहा है। इस प्लांट से करीब 2.4 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने का लक्ष्य हैं, जबकि अभी 525 किलो वाट का उत्पादन किया जा रहा है। इस प्लांट की स्थापना जल जीवन हरियाली अभियान के तहत की गई है।
बिहार सरकार ने जल जीवन हरियाली अभियान की शुरुआत जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए की थी। इसी के तहत तहत तालाब, नदी और कुंओं का जीर्णोद्धार तथा वृक्षारोपण किया जा रहा है।
हालांकि सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है, जो यह बताता हो कि जल जीवन हरियारी मिशन से जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने व पर्यावरण संरक्षण में कितनी मदद मिल रही है।
ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या जलवायु परिवर्तन का असर कम करने में जल जीवन हरियाली मिशन सफल हो रहा है।
सुपौल में पर्यावरणविद राम प्रकाश रवि बताते हैं, “पोखर के अगल-बगल जो वृक्ष लगाए गए थे, वे सूख चुके हैं। मछली पालन नहीं हो रहा है। सवाल यह भी है कि सरकार के इन कामों से जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान को हम कितना कम कर पा रहे हैं। इस अभियान के तहत कुओं और तालाबों की सफाई, वृक्षारोपण आदि कराया जा रहा है। पर, जलवायु के लिहाज से इन कामों की उपयोगिता को नीति आयोग स्वीकार नहीं करता।”
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