छह विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर 2,420 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला सुपौल जिला पर्यटन के मामले में फिसड्डी है। कोसी बैराज और कोसी महासेतु के अलावा कुछ धार्मिक मंदिर ही सुपौल की पहचान थी। फिर साल 2009 में सुपौल के गणपतगंज निवासी जय नारायण मल्लिक के पुत्र और कोसी क्षेत्र के प्रसिद्ध डॉक्टर पीके मल्लिक ने सुपौल के गणपतगंज की भूमि पर वैष्णव धर्म की शुरुआत करते हुए विष्णु धाम यानी वरदराज पेरुमल देवस्थान बनाने की शुरुआत की। लगभग 14 एकड़ में साल 2014 में यह मंदिर बनकर तैयार हो गया था।
करोड़ों रुपए खर्च कर बना यह मंदिर सिर्फ सुपौल ही नहीं बल्कि कोसी और मिथिलांचल के लिए भी एक दर्शनीय स्थल बन गया था। मंदिर के दर्शन के लिए दरभंगा, मधुबनी और नेपाल से भी लोग आते थे।
लोगों को रात में ठहरने के लिए मंदिर के बगल में एक बेहतरीन होटल भी बनाया गया था। मंदिर के पीछे आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों की खेती और गाय पालन होता था। गणपति मंदिर के कुछ दूरी पर धरहरा महादेव मंदिर भी स्थित है। लिहाजा गणपतगंज एक पर्यटक स्थल बनकर उभर रहा था। मंदिर का गेट मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा रहा था। लेकिन सवाल है कि विष्णु मंदिर और गणपतगंज पर्यटन स्थल के रूप में कितना उभर पाया है?
गौशाला में दूध उत्पादन कम, प्रसाद के लिए भी अपर्याप्त
गणपतगंज विष्णु मंदिर के पीछे एक गौशाला का निर्माण कराया गया है, जहां गाय को बांधने और उसका चारा रखने के लिए एक बड़ा कमरा है। उसके बगल में कई तरह की आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों और फूल-फलों की खेती होती हैं। जिस वक्त हम लोग पहुंचे, उस वक्त सिर्फ 15 से 17 गाएं होंगी।
गाय की सुरक्षा के लिए काम कर रहे जितेंद्र कुमार सिंह बताते हैं, “2-3 साल पहले तक लगभग 50 गाय होती थी। अभी लगभग 20 गाय हैं। इनमें से आधे से ज्यादा गाय दूध नहीं दे रही है इसलिए इतना कम दूध होता है कि मंदिर का प्रसाद भी नहीं बन सकेगा, जबकि लोग भी बहुत कम ही आते हैं। जब डॉक्टर साहब थे, तो व्यवस्था बहुत अच्छी थी। उनके जाने के बाद गाय पालन हो या फिर खेती की व्यवस्था, बहुत कमी आई हैं।”
साल 2019 के सितंबर महीने में गणपतगंज मंदिर के संस्थापक डॉ पी के मल्लिक की मृत्यु हो गई थी। मंदिर में काम कर रहे एक वर्कर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “मंदिर की वजह से डॉक्टर साहब अधिकांश समय गणपतगंज में रहने लगे थे। वह इस बात पर ध्यान नहीं देते थे कि मंदिर से क्या कमाई आ रही है बल्कि वह मंदिर के कायाकल्प के लिए हर संभव प्रयास करते थे। लेकिन डॉक्टर साहब के मरने के बाद सारी कमान डॉक्टर साहब की पत्नी के हाथ में चली गई है। वह भी मंदिर को सुदृढ़ बनाने के लिए पूरा ध्यान देती हैं, लेकिन वह मंदिर से होने वाली कमाई पर भी खासा ध्यान रखती हैं।”
मंदिर से बाहर आइसक्रीम बेच रहे नरेश बताते हैं, “डॉक्टर साहब के पास कम ही जमीन थी। उन्हें लोगों ने मंदिर बनाने के लिए जमीन नहीं बेची। लेकिन जब मंदिर की दीवार बनकर खड़ी हुई, तो वह इतनी बेहतरीन थी कि लोगों ने जमीन देना शुरू कर दिया। डॉक्टर साहब ने भी जमीन की अच्छी खासी कीमत लोगों को दी। डॉक्टर साहब जब तक जिंदा रहे मंदिर के अंदर चल रही गौशाला, खेत और होटल की चमक को जिंदा रखा। लेकिन अभी आप स्थिति देखिए, ऐसा लग रहा है कि विरासत को ढोया जा रहा है।”
पहले 25 थे, अब सिर्फ 10 पंडित बचे
नरेश विष्णु दक्षिण भारत से संस्कृत पाठ करने आये हैं। वह बिहार के ही रहने वाले हैं। गणपतगंज विष्णु मंदिर में बतौर पुजारी वह काम करते हैं। वह बताते हैं, “जब मंदिर की शुरुआत हुई थी, उस वक्त लगभग 30 पुजारी थे। अधिकांश दक्षिण भारत के थे, जो वैष्णव धर्म के प्रकांड विद्वान थे। अभी मंदिर में सिर्फ 10 पुजारी बचे हुए हैं।” “होली दशहरा और छठ के वक्त लोगों की भीड़ रहती है। मतलब सुपौल और सहरसा के बाहर के लोग भी आते हैं। बाकी दिन कुछ खास लोग नहीं आते हैं,” उन्होंने कहा।
धार्मिक जगह क्यों नहीं बन पाया?
गणपतगंज स्थित विष्णु धाम को वरदराज पेरुमल देवस्थान के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में विष्णु भगवान के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की भी मूर्तियां स्थापित हैं। चेन्नई के प्रसिद्ध विष्णु मंदिरों में पूजा करने वाले वैष्णव आचार्य के द्वारा यहां पूजा-अर्चना की जाती है।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संस्कृत की पढ़ाई कर रहे अमित पांडे बताते हैं, “बिहार और उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से शिव को मानने वाले लोग ज्यादा हैं, जबकि दक्षिण भारत में वैष्णव धर्म की ज्यादा पूजा की जाती है। गणपतगंज में ही विष्णु मंदिर के बगल में धरहरा महादेव का मंदिर भी स्थित है, जहां प्रतिदिन विष्णु मंदिर की तुलना में अधिक श्रद्धालु जाते हैं। विष्णु मंदिर एक दर्शनीय स्थल बनकर जरूर उभरा है, लेकिन धार्मिक स्थल नहीं बन पाया है। एक व्यक्ति एक जगह घूमने की दृष्टि से एक से दो बार जाएगा, लेकिन धार्मिक कारणों से हर बार जाएगा।”
विष्णु मंदिर के बगल में और कुछ भी देखने लायक जगह नहीं है। बाहर से लोग अगर कहीं घूमने जाते हैं तो उनकी इच्छा रहती है कि दो से तीन दिन बाहर रहे। जबकि विष्णु मंदिर को लोग एक दिन में अच्छे से घूम सकते हैं। शायद इस वजह से बाहर के लोग दर्शन करने के लिए कम आते हैं।
व्यवसाय के लिहाज से भी नहीं हुआ उभार
गणपतगंज के विपुल कुमार पटना के बोरिंग रोड में रहकर नेट की तैयारी करते हैं। वह बताते हैं, “मंदिर के बगल में एक आलीशान होटल बनाया गया है। उस होटल में पत्रकार, सरकारी व्यक्ति और सरकार के द्वारा घुमाया जा रहे स्कूली बच्चों के अलावा कोई देखने को नहीं मिलता। गणपतगंज बहुत ही पिछड़ा इलाका था। मंदिर बनने के बाद जरूर यह इलाका एक बेहतरीन जगह के रूप में शुमार हो गया है। लेकिन एक पर्यटन स्थल नहीं बन सका।”
मंदिर के बाहर आठ दुकानों के लिए पक्का ढांचा तैयार किया गया था, लेकिन इनमें से कोई भी भाड़े पर नहीं लगा हुआ है। अलबत्ता श्रृंगार, आइसक्रीम कुछ किराना दुकानें जरूर चल रही हैं।
मंदिर से बाहर आइसक्रीम बेच रहे नरेश बताते हैं, “मंदिर के बाहर आठ दुकान खोली गई थीं, लेकिन इनमें से एक भी अभी भाड़े पर नहीं लगा हुआ है। पहले स्कूल के बच्चे भी आते थे, तो थोड़ी कमाई हो जाती थी। कोरोना के बाद वे लोग भी अभी नहीं आ रहे हैं।”
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