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भूमि पट्टा देने के बावजूद सीएम ममता से दार्जिलिंग के चाय बागान श्रमिक नाराज

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग सहित अन्य जिलों के चाय बागानों में हज़ारों की तादाद में ऐसे मज़दूर हैं, जो दशकों से बिना भूमि पट्टा के रह रहे हैं।

Sumit Dewan Reported By Sumit Dewan |
Published On :

इसी वर्ष 21 फरवरी को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उत्तर बंगाल के अलग अलग जिलों में 1,246 चायबागान मज़दूरों को भूमि पट्टा दिया। इसके अलावा सैंकड़ों अन्य मज़दूरों को भी भूमि पट्टा देने का एलान किया गया था। पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग सहित अन्य जिलों के चाय बागानों में हज़ारों की तादाद में ऐसे मज़दूर हैं, जो दशकों से बिना भूमि पट्टा के रह रहे हैं।

ये मज़दूर लंबे समय से अपने भूमि अधिकार को लेकर आवाज़ उठाते रहे हैं। पश्चिम बंगाल सरकार ने इन मज़दूरों को 5 से 8 डिसमिल तक भूमि पट्टा देने का एलान किया है, जिससे चाय बागान श्रमिक नाराज़ हैं।

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उनका कहना है कि उनके हिस्से की ज़मीन 8 डिसमिल से कहीं अधिक है, लेकिन सरकार सभी को एक पैमाने पर रख रही है। श्रमिकों का कहना है कि उनके पूर्वज सालों से यहां रहते आए हैं और अब वे लोग यहां रह रहे हैं। लेकिन, सरकार उन्हें ज़मीन के अधिकार के नाम पर बहुत कम भूमि पट्टा दे रही है।


दार्जिलिंग में 198 मज़दूरों को भूमि पट्टा दिया गया है।

अनीता गुरुंग दार्जिलिंग के एक चाय बागान में लंबे समय से काम कर रही हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार द्वारा दी गई 8 डिसमिल ज़मीन बहुत कम है और उनके घर और खेत की ज़मीन इससे कहीं ज़्यादा निकलती है।

अनीता की तरह खेमा पराजुल भी सरकार के इस फैसले से नाखुश हैं। वह चाहती हैं कि राज्य सरकार उन्हें रहने की जगह के अलावा उनकी खेती की ज़मीन पर भी भूमि पट्टा मुहैया कराए।

एक और चाय बागान मज़दूर समर सुब्बा ने कहा कि राज्य सरकार उन्हें 5 डिसमिल भूमि पट्टा दे रही है, लेकिन यह उनकी वास्तविक भूमि से काफी कम है। समर के अनुसार, उनके पुरखों की छोड़ी हुई भूमि 50 डिसमिल से भी अधिक है। वह चाहते हैं कि सरकार ज़मीन का सर्वेक्षण करे, जितनी ज़मीन उनकी निकल रही है, उस पर उन्हें भूमि पट्टा मिले।

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सुमित दिवान पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग ज़िले की ख़बरों पर नज़र रखते हैं।

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