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सरकार दे रही मुफ्त जमीन व घर, गरीब-मजदूर कह रहे, नहीं चाहिए!

पश्चिम बंगाल राज्य सरकार राज्य में चाय बागान क्षेत्रों में गरीब मजदूरों को अपनी ओर से जमीन‌ का पट्टा देकर जमीन का मालिकाना हक और उस पर बना-बनाया पक्का घर दे रही है लेकिन उत्तर बंगाल के दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र, सिलीगुड़ी तराई क्षेत्र व डूआर्स क्षेत्र के ज्यादातर गरीब-मजदूर उसे लेने को तैयार नहीं हैं।

M Ejaj is a news reporter from Siliguri. Reported By M Ejaz |
Published On :
Houses being built in Alipurdoar district under cha sundri pariyojana at Mujnai Chai Bagan

सिलीगुड़ी: पश्चिम बंगाल राज्य सरकार राज्य में चाय बागान क्षेत्रों में गरीब मजदूरों को अपनी ओर से जमीन‌ का पट्टा देकर जमीन का मालिकाना हक और उस पर बना-बनाया पक्का घर दे रही है लेकिन उत्तर बंगाल के दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र, सिलीगुड़ी तराई क्षेत्र व डूआर्स क्षेत्र के ज्यादातर गरीब-मजदूर उसे लेने को तैयार नहीं हैं।


उनका कहना है कि उन्हें यह सब नहीं चाहिए। इसे लेकर उत्तर बंगाल के चाय बागान क्षेत्रों में एक गतिरोध सा उत्पन्न हो गया है। इस गतिरोध की वजहें पश्चिम बंगाल राज्य सरकार के “पश्चिम बंगाल भूमि सुधार (संशोधन) विधेयक, 2023” और “चा सुंदरी” (चाय सुंदरी) योजना हैं। इस पर आपत्ति जताने वालों की अपनी दलील है तो इसे वाजिब ठहराने की शासन-प्रशासन की भी अपनी दलील है।

भूमि सुधार (संशोधन) विधेयक-2023 पर आपत्ति

पश्चिम बंगाल भूमि सुधार (संशोधन) विधेयक-2023 पर अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद (अभाआविप) ने कड़ी आपत्ति जताई है। अभाआविप के पश्चिम बंगाल प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष तेज कुमार टोप्पो का कहना है कि बीते फरवरी महीने में पश्चिम बंगाल विधानसभा के पटल पर चर्चा के लिए रखे गए पश्चिम बंगाल भूमि सुधार (संशोधन) विधेयक-2023 की बिल संख्या 4 के संबंध में उचित उपाय किया जाना जरूरी है।


“उसके लिए हम मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। वह यह कि उक्त विधेयक के उद्देश्यों व कारणों से संबंधित बयानों से यह स्पष्ट हो गया है कि इस संशोधन विधेयक में व्यापारियों के व्यापार में आसानी और भूमि के झंझट मुक्त लीज व हस्तांतरण और अधिक निवेश आमंत्रित करने के लिए पट्टेदार भूमि की प्रकृति रूपांतरित कर पट्टेदार को बाहर कर दिए जाने जैसे विकल्प भी शामिल हैं,” उन्होंने कहा।

“वहीं, यह पश्चिम बंगाल भूमि सुधार अधिनियम-1955 की धारा 14-एम के तहत निर्धारित ‘रैयत’ की मान्यता को भी प्रभावित करता है,” वह आगे कहते हैं।

तेज कुमार टोप्पो कहते हैं, “यह नया संशोधन विधेयक पूरी तरह से आदिवासी निवासियों के साथ-साथ चाय बागानों के अस्तित्व के विरुद्ध प्रतीत होता है। नए संशोधन विधेयक की धारा 14 वाई के प्रावधान के अनुसार चाय उद्योग व चाय बागान क्षेत्र के निवासियों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। यह “लीज-होल्ड” भूमि को “फ्री-होल्ड” भूमि में परिवर्तित कर देने वाला और भूमि बंदोबस्त में “रैयत” की मान्यता के विरुद्ध विधेयक है। वर्तमान प्रस्तावित विधेयक में “जोत क्षेत्र छूट” भी रैयत हित के मामले में न्यायोचित नहीं है।”

“इसलिए उपरोक्त तथ्यों और प्रावधानों के आलोक में हमारी मांग है कि जब तक सरकार द्वारा चाय बागान निवासियों के लिए भूमि के बंदोबस्त को अंतिम रूप नहीं दिया जाता है तब तक 2023 के इस प्रस्तावित संशोधन विधेयक की बिल संख्या 4 में चाय की खेती वाले पट्टे के क्षेत्र को रूपांतरण दायरे से बाहर रखा जाए,” वह कहते हैं।

PC by All India Tribal Development Council in Siliguri Press Club
सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट्स क्लब में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के पश्चिम बंगाल प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष तेज कुमार टोप्पो (बीच में)।

इस मांग पर अमल नहीं होने पर उन्होंने अभाआविप की ओर से जोरदार आंदोलन की चेतावनी दी है। इन मांगों को लेकर अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को ज्ञापन भी भेजा है।

‘पथरीली जमीन पर टीन की छत का घर दिया जा रहा’

चाय बागानों के मजदूरों को मुफ्त में बना-बनाया पक्का घर देने की पश्चिम बंगाल राज्य सरकार की परियोजना ‘चा सुंदरी’ और चाय बागानों में लंबे अरसे से बस रहे चाय बागान मजदूरों को जमीन के ‘मालिकाना’ स्वरूप ‘पट्टा’ दिए जाने की योजना से ज्यादातर चाय बागान मजदूर खुश नहीं हैं।

इसे लेकर पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति की ओर से भी गहरा रोष जताया गया है। इस संगठन के बैनर तले, डुआर्स के मदारीहाट के मुजनाई चाय बागान के मजदूर विकास उरांव, नागराकाटा के बामनडांगा चाय बागान की मजदूर लिली कुजुर व कालचीनी के मधु चाय बागान के मजदूर विनय केरकेट्टा आदि ने चाय बागान मजदूरों का पक्ष रखा है।

उन्होंने कहा कि ‘चा सुंदरी’ परियोजना के तहत प्रति परिवार 5.43 लाख रुपये की लागत से घर बना कर दिया जा रहा है। मगर, जितनी राशि है उस अनुरूप घरों की गुणवत्ता नहीं है। ऊपर से चाय बागानों के एकदम अंतिम छोर पर नदियों के किनारे खाली कंकरीली पथरीली जमीनों पर घर बना कर दिए जा रहे हैं। वह भी मात्र 909 वर्गफूट क्षेत्र में ही। उसमें भी घर का क्षेत्र मात्र 394 वर्गफूट ही है। घर की छत पक्की नहीं है। टीन की चाल दी गई है।

Houses built under cha sundri pariyojana in North Bengal
उत्तर बंगाल के डूआर्स क्षेत्र में अलीपुरद्वार जिला अंतर्गत मुजनाई चाय बागान क्षेत्र‌ में ‘चा सुंदरी’ परियोजना के तहत निर्माणाधीन आवास।

वे आगे कहते हैं कि इन सबमें सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि जहां हम सदियों से बसते आ रहे हैं वहां हमें हमारी जमीन पर घर नहीं देकर अन्यत्र एकदम बाहर की ओर दिया जा रहा है। इससे सारे परिवार बिखर जाएंगे। हमारा समाज बिखर जाएगा। हम लोग जहां कई पीढ़ियों से बसते आ रहे हैं वहां अनेक परिवार एक बीघा व उससे भी ज्यादा जमीन का उपयोग कर रहे हैं। वे उस पर खेती व पशु पालन आदि कर अतिरिक्त आय सृजित करके भी अपना घर परिवार चलाते हैं।

वे आगे बताते हैं कि मगर, अब ‘चा सुंदरी’ परियोजना के तहत भले ही हमें घर मिलेगा लेकिन मात्र 909 वर्गफूट क्षेत्र में ही रहना पड़ेगा। वहीं, जिन्हें जमीन का मालिकाना का पट्टा मिलेगा उन्हें भी मात्र पांच डेसीमल यानी लगभग सवा कट्ठे जमीन ही मिलेगी। उसमें भी शर्त है कि हम उसका गैर कृषि उपयोग नहीं कर पाएंगे। हमें समझ में ही नहीं आ रहा कि ये योजनाएं, परियोजनाएं हम चाय बागान मजदूरों के हित में हैं या हमें अच्छी बसी-बसाई जगह से उजाड़ कर कहीं और किनारे फेंक दिया जा रहा और हमारी बसी बसाई अच्छी जमीन, सड़क, बिजली, पानी व अन्य सुविधाओं वाली जमीन को खाली करा कर उसे किसी और की सुविधा के लिए लिया जा रहा है।

“ऐसी योजना, परियोजना हमें किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं हैं। हम जहां पर सदियों से बसते आ रहे हैं, हमें वहीं पर घर और जमीन का मालिकाना हक दिया जाए। अन्यत्र कहीं और हम नहीं जाएंगे। यही वजह है कि सरकार की ओर से जो घर बना कर दिए जा रहे हैं उसे चाय बागान मजदूर लेने को तैयार नहीं हो रहे हैं। दो तिहाई घर अभी तक खाली ही हैं। केवल एक तिहाई घरों में ही लोग गए हैं। वे भी वैसे लोग जिन्हें कोई और उपाय था ही नहीं,” उन्होंने कहा।

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2020 में हुई थी ‘चा सुंदरी’ योजना की घोषणा

पश्चिम बंग खेत मजदूर समिति से जुड़ी आर्किटेक्ट देबोस्मिता घोष ने भी कहा कि ‘चा सुंदरी’ परियोजना के तहत चाय बागान मजदूरों के परिवारों के लिए प्रति परिवार जो 5.43 लाख रुपये की लागत से घर बना कर दिए जाने की बात कही जा रही है वह सुनने में अच्छी लगती है। इसकी राशि भी बड़ी अच्छी है। मगर, उस अनुरूप धरातल पर घर नजर नहीं आ रहे हैं। जो घर बने हैं उनकी गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है। इतनी राशि में जितना छोटा घर दिया जा रहा है वह तो पक्की छत वाला भी बन सकता था। मगर, ऊपर टीन की चाल वाला घर दिया जा रहा है।

उन्होंने इस पर अपनी पूरी शोध रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है। कहा है कि अपनी जमीन से आदिवासियों का लगाव अलग ही होता है। वे बड़ी गहराई की मानसिकता संग उससे जुड़े होते हैं। उनके 23 त्योहारों में 15 त्योहार ऐसे हैं जो आंगन में मनाए जाते हैं। मगर, उनका अब सब कुछ छीन लिया जा रहा है। ऐसा घर दिया जा रहा है जिसमें आंगन है ही नहीं।

इस बाबत पश्चिम बंग खेत मजूर समिति की राज्य कमेटी सदस्या, जानी-मानी समाजसेवी अनुराधा तलवार का कहना है कि इन योजनाओं को लेकर सब कुछ स्पष्ट नहीं है। इस वजह से बहुत सारे भ्रम उत्पन्न हो रहे हैं। शासन-प्रशासन को सब कुछ स्पष्ट करना चाहिए ताकि कोई भ्रम की गुंजाइश ही न रहे। इसके साथ ही आदिवासी कल्याण की ये योजनाएं वास्तव में आदिवासियों के कल्याण में ही कार्यान्वित की जाएं।

PC by Paschim Bang Cha Mazoor Samiti
सिलीगुड़ी जर्नलिस्ट्स क्लब में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए ‘पश्चिम बंग चा मजूर समिति’ की राज्य कमेटी सदस्या समाजसेवी अनुराधा तलवार (एकदम बाएं) व चाय बागानों के मजदूरों के प्रतिनिधि।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षी योजना ‘चा सुंदरी’ योजना की घोषणा वर्ष 2020 में पश्चिम बंगाल राज्य के तत्कालीन वित्त मंत्री अमित मित्रा ने विधानसभा में बजट पेश करते हुए की थी।

अब जब यह योजना धरातल पर उतर रही है तो इसे लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। राज्य के सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस का जहां कहना है कि, यह योजना चाय बागानों के आदिवासी मजदूरों के जीवन-दशा को संबल दे कर बेहतर करने की योजना है तो वहीं भाजपा, माकपा व कांग्रेस इसे आदिवासी मजदूरों के हितों के विरुद्ध और और पूंजीपतियों की सुविधा वाली योजना करार दे रही है।

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एम. एजाज़ सिलीगुड़ी और आस पास कि खबरें लिखते हैं।

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