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सहरसा में गंगा-जमुनी तहजीब का अनोखा संगम, पोखर के एक किनारे पर ईदगाह तो दूसरे किनारे पर होती है छठ पूजा

पोखर के एक किनारे पर ईदगाह है, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग हर साल ईद और बकरीद की नमाज अदा करते हैं। वहीं, हिंदुओं की आस्था से जुड़े महापर्व छठ में हजारों व्रती और श्रद्धालु यहां सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं।

Sarfaraz Alam Reported By Sarfraz Alam |
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बिहार के सहरसा जिला स्थित सहरसा बस्ती पोखर की ऐतिहासिक परंपरा रही है। यहां लोक आस्था के महापर्व छठ में हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल देखने को मिलती है। शहर का यह इकलौता पोखर है, जो मुस्लिम बहुल आबादी के बीच है।


पोखर के एक किनारे पर ईदगाह है, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग हर साल ईद और बकरीद की नमाज अदा करते हैं। वहीं, हिंदुओं की आस्था से जुड़े महापर्व छठ में हजारों व्रती और श्रद्धालु यहां सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। स्थानीय युवक राहुल कुमार बताते हैं कि यहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग भी छठ घाट के निर्माण और साफ-सफाई में सहयोग करते हैं।

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लोग बताते हैं कि छठ पर्व के 15 दिन पहले से ही स्थानीय मुस्लिम युवक पोखर की पहरेदारी करते हैं ताकि लोग पोखर के किनारे गंदगी न फेंक पायें। साथ-साथ पोखर की सफाई से लेकर तमाम व्यवस्था की जिम्मेदारी स्थानीय मुस्लिम समाज के लोग उठाते हैं। सहरसा बस्ती के अब्दुर्रज़्ज़ाक़ बताते हैं कि जब से उन्होंने होश संभाला है तब से यहां पर हिंदू-मुस्लिम मिलकर आस्था का महापर्व छठ मनाते हैं।


लोगों ने बताया कि यह परंपरा लगभग 80 साल से चली आ रही है और आज तक कायम है। सहरसा बस्ती की 52 बीघा जमीन पर बनी ईदगाह और पोखर देश की गंगा-जमुनी तहजीब, राष्ट्रीय एकता और आपसी भाईचारे का प्रतीक हैं। वार्ड नंबर 27 के वार्ड पार्षद प्रतिनिधि मो अकबर बताते हैं कि छठ पर्व दोनों समुदायों के लोग मिलजुल कर शांतिपूर्वक तरीके से मनाते हैं।

वार्ड नंबर 26 के वार्ड पार्षद तारिक आलम ने बताया कि पोखर के बनने के बाद से ही शहरी क्षेत्र के कई मोहल्ले के लोग यहां पर छठ पर्व मनाते आ रहे हैं। तारिक बताते हैं कि पर्व के मौके पर मुस्लिम युवक घाट पर रौशनी का इंतजाम, माइकिंग और साफ-सफाई में पूरा सहयोग करते हैं।

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एमएचएम कॉलेज सहरसा से बीए पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर सहरसा से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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