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कौन हैं किशनगंज की रौशनी जो संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम में देंगी भाषण?

रौशनी किशनगंज जिले की टेउसा पंचायत के सिमलबाड़ी गांव की रहने वाली हैं। उन्होंने बताया कि 14 साल की उम्र में उनका बाल विवाह हो गया था जिसके कुछ वर्षों बाद उन्होंने बाल विवाह में फंसती बच्चियों को निकालने का अभियान शुरू किया।

Avatar photo Reported By Amit Singh and Nawazish Alam |
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किशनगंज जिले की सामाजिक कार्यकर्ता रौशनी परवीन को संयुक्त राष्ट्र ने ‘यंग एक्टिविस्ट समिट’ 2023 (Young Activists Summit 2023) में आमंत्रित किया है। रौशनी पूरे विश्व भर से चुने हुए पांच युवा सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक हैं।

वह 16 नवंबर को स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) के जेनेवा शहर स्थित संयुक्त राष्ट्र के दफ्तर में आयोजित एक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करेंगी।

रौशनी को यह सम्मान ऐसे ही नहीं मिला है, बल्कि एक लंबे संघर्ष के बाद उनको यह मौक मिला है। रौशनी का बहुत छोटी उम्र में बाल विवाह हो गया था, जिसके कुछ वर्षों बाद उन्होंने तलाक लेकर बाल विवाह में फंसी बच्चियों को निकालने का अभियान शुरू किया।


बाल विवाह आज भी देश में एक बड़ा मुद्दा है, और रौशनी की मानें तो बिहार जैसे पिछड़े प्रदेशों में हालात और अधिक खराब हैं। रौशनी का लक्ष्य बिहार को बाल विवाह से मुक्त करना है, जिसके लिए वह आम जनता के साथ-साथ सरकार से भी मदद चाहती हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने क्यों चुना है रौशनी को?

किशनगंज जिले की टेउसा पंचायत के सिमलबाड़ी गांव में जन्मी रौशनी परवीन के पिता हैदर अली ऑटो रिक्शा चलाकर परिवार का भरन-पोषण करते हैं। 2014 में रौशनी की शादी उनके माता-पिता द्वारा सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में कर दी गई थी। उस वक्त रौशनी मैट्रिक पास कर चुकी थी।

रौशनी की शादी दो साल तक चली, या रौशनी के शब्दों में कहें तो उन्होंने दो साल तक इस रिश्ते को झेला। वह बताती हैं कि एक वक्त ऐसा भी आया जब उन्होंने आत्महत्या करने का मन भी बना लिया था।

रौशनी कहती हैं कि 2016 में जब वह मां बनी तो उसी दिन उन्होंने ठान लिया था कि जो परेशानी उन्होंने झेला है, वह अब किसी लड़की को झेलने नहीं देंगी। इसके लिए वह किसी ऐसे प्लेटफार्म या संगठन की तलाश में थी, जो बाल विवाह रोकने को लेकर काम करता हो।

इसी बीच वह 2018 में एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन से जुड़ी। वह तब से लेकर बाल विवाह को रोकने के लिए काम कर रही हैं। उन्होंने 2018 से लेकर 2021 तक इस संस्था के साथ काम किया।

2023 से वह स्वतंत्र रूप से इस दिशा में अपना योगदान दे रही हैं। रौशनी कहती हैं कि चूंकि वह खुद भी बाल विवाह का शिकार हुई थीं, इसलिए बाल विवाह के बाद जीवन में लड़की को क्या तकलीफ और परेशानी होती है, उसको वह बखूबी जानती और समझती हैं। रौशनी फिलहाल स्वतंत्र रूप से गांव-गांव जाकर बाल विवाह के विरुद्ध अभियान चलाती हैं।

UNICEF से जुड़कर काम को आगे बढ़ाया

चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन के बाद उनको संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के साथ काम करने का मौका भी मिला। रौशनी ने यूनिसेफ के ‘सेव द चिल्ड्रेन’ कार्यक्रम के साथ बिहार के खगड़िया में दो साल काम किया।

खगड़िया में काम करने के दौरान रौशनी ने प्रशासन की मदद से कई लड़कियों के बाल विवाह को रोका। रौशनी ने अब तक परामर्श के जरिये लगभग 50 बच्चियों का बाल विवाह होने से रोका है।

रौशनी कहती हैं कि सबसे मुश्किल काम लड़की के माता-पिता को समझाना होता है। कई-कई बार माता-पिता को समझाने में रौशनी को तीन-तीन महीने भी लग जाते हैं, लेकिन रौशनी हिम्मत नहीं हारती हैं।

रौशनी का मकसद सिर्फ बाल विवाह को रोकना भर नहीं है, बल्कि शिक्षा के जरिये लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाना है। बाल विवाह से रोकने के बाद वह बच्चियों को शिक्षा के लिए प्रेरित करती हैं, और जरूरत पड़ने पर उनके स्कूल में नामांकन करवाने में भी मदद करती हैं।

“बेटी को बोझ समझना असल समस्या”

बाल विवाह के कारणों को लेकर रौशनी कहती हैं कि बेटी को बोझ समझना ही इस समस्या की जड़ है। वह बताती हैं कि जैसे ही परिवार में बेटी की पैदाइश होती है तो लोगों को लगता है कि एक और कर्ज बढ़ गया, हालांकि, ऐसा नहीं है।

रौशनी कहती हैं कि लोग बेटे को बुढ़ापे की लाठी कहते हैं। वह खुद यह बात अपने घर, परिवार और समाज में बचपन से सुनती आई हैं। उनके अनुसार, बेटी को बोझ समझना ही बाल विवाह के लिए रास्ते खोलता है।

“लोगों को लगता है कि उनकी बेटी की शादी हो जायेगी तो उनके सिर का बोझ कम हो जायेगा। जबकि इस वजह से लड़की दलदल में फंसती चली जा रही है, शोषण में फंसती जा रही है और इस पीड़ा को सह रही है। उससे बाहर नहीं निकल पा रही है। इसी को देखते हुए मैंने इस ओर काम करना शुरू किया है,” उन्होंने कहा।

चूंकि रौशनी खुद भी इस दलदल से निकली हैं, इसलिए उनको लड़कियों को समझाने में आसानी होती है। हालांकि, इस दौरान कई बार रौशनी को कड़े विरोध का सामना भी करना पड़ता है, लेकिन उनको खुद के साथ हुए अनुभव से इस अवरोधों से लड़ने में प्रेरणा मिलती है।

“इलाके में काम करने में बहुत चुनौतियां हैं”

शुरू-शुरू में जब रौशनी बाल विवाह को रोकने के अभियान को लेकर लोगों के पास जाती थीं, तो उस दौरान उनको आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ता था। इसको लेकर सबसे अधिक सवाल महिलाएं ही करती थीं। यहां तक कि रौशनी के रिश्तेदार भी उनके आचरण पर सवाल उठाने लगे।

“रिश्तेदार कहते थे यह लड़की बाहर निकल रही है। कैरेक्टर पर मारना (बोलना) उनका मकसद होता था, ताकि मेरा मनोबल नीचे गिर जाये। लेकिन मैं सबको पॉजिटिवली लेकर सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ती रही। इन्हीं लोगों के ताने से मुझे प्रेरणा मिलती रही कि मुझे और आगे जाना है,” उन्होंने कहा।

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युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए रौशनी ने आगे कहा, “युवा पीढ़ी को अपने लक्ष्य पर बने रहना चाहिए। ठहरा हुआ पानी दूषित हो जाता है। युवा आगे बढ़ते रहें और अपने लक्ष्य को देखकर काम करते रहें, तो यह बहुत बड़ी बात है।”

रौशनी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि संयुक्त राष्ट्र जैसा वैश्विक मंच उनको अपनी बात रखने का मौका देगा। इस सम्मान को रौशनी ने अपने माता-पिता और बाल विवाह का शिकार हुई सभी पीड़ितों को समर्पित किया।

रौशनी का संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्रम

12-16 नवंबर के बीच संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्रम निर्धारित है, जिसमें 16 नवंबर को कार्यक्रम में रौशनी लोगों को संबोधित करेंगी। रौशनी के अनुसार, उनके काम को संयुक्त राष्ट्र ने न सिर्फ सराहा है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र बाल विवाह को रोकने में आर्थिक तौर से भी रौशनी की मदद भी करेंगे।

रौशनी ने बताया कि उनके संबोधन को संयुक्त राष्ट्र लाइव टेलिकॉस्ट भी करेगा। संबोधन में वह अपना संघर्ष लोगों के सामने पेश करेंगी। रौशनी ने इलाके के लोगों से कार्यक्रम में ऑनलाइन जुड़ने का आह्वान किया।

क्या कहते हैं रौशनी के पिता

रौशनी के पिता हैदर अली अपनी बेटी की सफलता से बेहद खुश हैं। उन्होंने जिले और इलाके के सभी लोगों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि रौशनी का संयुक्त राष्ट्र के इतने बड़े समारोह में शामिल होना ना केवल उनके लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व की बात है।

हैदर अली कहते हैं कि अब समय बदल चुका है और उन्होंने हरसंभव अपनी बेटी की मदद करने की कोशिश की है। उनको रौशनी का बाहर जाकर काम करना कभी भी खराब नहीं लगा। हालांकि, रौशनी की सुरक्षा को लेकर वह जरूर फिक्रमंद रहते थे

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Amit Kumar Singh, a native of Kishanganj, Bihar, holds a remarkable 20-year tenure as a senior reporter. His extensive field reporting background encompasses prestigious media organizations, including Doordarshan, Mahua News, Prabhat Khabar, Sanmarg, ETV Bihar, Zee News, ANI, and PTI. Notably, he specializes in covering stories within the Kishanganj district and the neighboring region of Uttar Dinajpur in West Bengal.

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