अररिया: आज केंद्र सरकार देश में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा दे रही है। उद्देश्य है कि ज्यादा से ज्यादा लड़कियां शिक्षित होकर देश की प्रगति में भागीदार बनें। लेकिन, अररिया जिले की एक अनपढ़ और गरीब महिला ने 55 वर्ष पहले ही लड़कियों को पढ़ाने का बीड़ा उठा लिया था।
उन्होंने अपने अथक प्रयास और लोगों के सहयोग से चार शिक्षण संस्थाओं का भी निर्माण कराया था, जहां आज सैकड़ों लड़कियां शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।
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यह महिला कोई और नहीं, अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड की कलावती थीं। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए आज से 55 वर्ष पहले एक प्राइमरी स्कूल की आधारशिला रखी थी, जो आज प्लस टू हाईस्कूल तक पहुंच चुका है। उनकी यह मुहिम यहां पर ही नहीं रुकी, उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए डिग्री कॉलेज की भी स्थापना करवाई।
यहां यह भी बता दें कि रानीगंज प्रखंड में लड़कियों का यही इकलौता विद्यालय है, जहां तकरीबन 800 लड़कियां पढ़ रही हैं। रानीगंज शहर के बीचों बीच स्थित कलावती कन्या मध्य विद्यालय नाम के इस स्कूल का निर्माण कलावती ने साल 1968 में कराया था। उस वक्त सीमित कमरे थे और उन्हीं कमरों में वर्ग एक से लेकर 9 तक की पढ़ाई होती थी।
उसके बाद उन्होंने 1970 में इस विद्यालय को उच्च विद्यालय का दर्जा दिलाया और यहां मैट्रिक तक की पढ़ाई होने लगी। स्कूल की पढ़ाई समाप्त होने पर लड़कियों को उच्च शिक्षा में परेशानी होने लगी तो, स्कूल को 2014 में प्लस टू हाई स्कूल बना दिया गया। आज यहां लड़कियां वर्ग वन से लेकर प्लस 2 तक की पढ़ाई बखूबी कर रही हैं।
कलावती ने अपनी मुहिम को इसी जगह नहीं छोड़ा। उन्हें लगा कि यहां की लड़कियां कॉलेज तक नहीं पहुंच पा रही हैं, तो उन्होंने कलावती डिग्री कॉलेज की स्थापना 1983 में रानीगंज में ही की, जहां से शिक्षा ग्रहण कर बच्चियां ऊंचे मुकाम पर पहुंच चुकी हैं।
कौन थीं कलावती
पद्मश्री कलावती की बेटी की बहू व कलावती कन्या विद्यालय में लिपिक के पद पर कार्यरत पुतली कुमारी ने बताया, “स्वर्गीय कलावती की 2 बेटियां थीं। उनकी छोटी बेटी अनुराधा देवी मेरी सास हैं और मेरा विवाह 1985 में हुआ था। मुझे कलावती जी के साथ रहने का अवसर कुछ ही वर्ष प्राप्त हुआ। कलावती जी का जीवन बहुत कष्ट में बीता था।”
“रानीगंज के छररापट्टी मोहल्ले के निर्धन किसान परिवार में उनका जन्म हुआ था। कलावती का भरण पोषण साधारण तरीके से ही हुआ था। उनके पिता नकछेदी मंडल व माता रामप्यारी देवी की पांच संतानों में वह दूसरी थीं,” उन्होंने बताया। उनका विवाह गांव के ही पंच लाल चौधरी से हुआ था।
पंच लाल चौधरी गंभीर रोग से ग्रसित हो गए थे और दो पुत्रियों को कलावती के सहारे छोड़कर चल बसे। दोनों बच्ची के भरण पोषण में उनको काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पति के गंभीर रोग से ग्रसित होने के दौरान ही उस समय समाज के लोगों ने उनको बहिष्कृत भी कर दिया था। इस अकेलेपन में ही वह अपने पति की सेवा करती रहीं। परिवार के दूसरे लोग उनके करीब नहीं आते थे।
“उसी दौरान उनके पास कुछ बच्चियां आकर उनकी परेशानियों को सुनती थी और चोरी चुपके उनकी मदद भी किया करती थी। कलावती ने समाज में फैली कुरीतियां व अंधविश्वास के चलते महिलाओं के नारकीय जीवन को महसूस किया, तो उनके मन में महिलाओं को शिक्षित करने की इच्छा जागृत हुई,” उन्होंने कहा।
झोपड़ी में रहकर भी उन्होंने विद्यालयों के लिए उंची उंची इमारतें बनाने का संकल्प ले लिया और देखते देखते उसे पूरा भी कर लिया। कन्या मध्य विद्यालय, कन्या उच्च विद्यालय व डिग्री महाविद्यालय के भवनों को देखकर उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का पता लगता है।
कुशल प्रशासक की भांति छात्राओं के बीच जीवन बिताने वाली अनपढ़ महिला पर जब सरकार का ध्यान गया, तो उनका नाम पद्मश्री के लिए चयन हुआ और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने 30 अप्रैल 1976 को उन्हें इस सम्मान से सम्मानित किया।
शिक्षा के लिए किया भिक्षाटन
कलावती की हिम्मत की बात करें, तो न सिर्फ अररिया, बल्कि बिहार के हर जिले में जाकर उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए भिक्षाटन किया। उनकी इस मेहनत और लगन को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी काफी प्रभावित हुई थीं। उन्होंने कलावती को अपने पास बुलाया और उपहार स्वरूप खादी की एक खूबसूरत साड़ी उन्हें दी। आज का समय होता, तो लोग उस साड़ी के साथ कितनी तरह की बातें करते और उसकी प्रदर्शनी लगाते।
लड़कियों की शिक्षा के प्रति उनके समर्पण का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री से उपहार में मिली साड़ी को भी उन्होंने बेच दिया और उस पैसे को लड़कियों की शिक्षा में लगाया। यह कोई एक घटना नहीं थी, ऐसी कई घटनाएं कलावती के साथ घट चुकी थीं। इसी मेहनत और लगन का नतीजा है कि रानीगंज का यह विद्यालय आज लड़कियों की शिक्षा के लिए जाना जाता है।
फिलहाल 750 बच्चियां स्कूल में नामांकित
कलावती उच्च विद्यालय के प्रधानाध्यापक अशोक कुमार ने बताया कि विद्यालय में इस वक्त 750 छात्राएं हैं। जिस भवन का निर्माण कलावती ने खुद 1967 में कराया था, वह दो मंजिला है। नीचे 9 और ऊपर 9, यानी कुल 18 कमरों में लड़कियों की पढ़ाई होती थी। लेकिन, आज इस भवन में लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता है, क्योंकि यह भवन जर्जर हो गया है।
उन्होंने यह भी कहा कि लड़कियों का विद्यालय होने के कारण स्कूल के चारों ओर बाउंड्री वाल की भी बहुत जरूरत है।
उन्होंने आगे कहा, “इस भवन के जीर्णोद्धार को लेकर हम लोगों ने कई बार शिक्षा विभाग के वरीय पदाधिकारियों को लिखा। लेकिन, आज तक इस भवन पर किसी ने कोई कार्य नहीं किया और यह आहिस्ता आहिस्ता पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है।”
अब इस भवन को तोड़कर नये सिरे से बनाना होगा। “कमरे कम होने के कारण लड़कियों की पढ़ाई में थोड़ी परेशानी होती है, इसलिए हम लोगों की मांग है कि सरकार इस पुराने भवन को तोड़कर यहां नए भवन का निर्माण कराए, ताकि पढ़ाई सुचारू रूप से हो सके,” अशोक कुमार ने कहा।
उन्होंने आगे बताया कि इसी भवन के ऊपरी तल्ले पर एक कमरे में कार्यालय था, जहां कलावती से जुड़े कई महत्वपूर्ण दस्तावेज, पद्मश्री के अवार्ड वगैरह रखे गये थे, लेकिन भवन क्षतिग्रस्त होने के कारण सब कुछ इधर-उधर हो गया है।
“हम लोगों का अनुरोध है कि इस भवन को फिर से नए रूप में बनाया जाए और उन दस्तावेजों को सुरक्षित कर एक संग्रहालय का रूप दिया जाए,” उन्होंने कहा।
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